गुरुकुल ५

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Thursday, 5 December 2013

करिश्मा

 मेरी खता?

*
लाचारी पर यूँ तरस न खा मै तेरी ही तस्वीर हूँ
चार कदम चल मेरे साथ हौसला न दूँ तो कहना

**
माँगना मालिक ने ही सिखलाया मेरी खता क्या
देख हाथ फैला तेरे  नजरो का भरम टूट जायेगा

***
मै करिश्मा हू किसका मै क्या जानूँ तू जाने तू
तूझे शरम लगी तो फेर नजरें या सीने से लगा

०५ दिसम्बर २०१३
चित्र गूगल से साभार



14 comments:

  1. लाचारी पर तरस न खाकर, हाथ बढ़ा कर आगे आ!
    चार कदम ही आगे आकर मानवता के काम तो आ !

    जैसी किस्मत हमने पायी, इंसानों के लिये सबक है,
    कैसे ऐसा जीवन कटता , यह भी सबक सीखने आ !

    कौन चाहता जीवन ऐसा , यह बिन मांगे मिलता है
    मैं भी तेरे जैसा ही था, मुंह न फेर कुछ पास तो आ !

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  2. सलिल वर्मा जी के अनूठे अंदाज़ मे आज आप सब के लिए पेश है ब्लॉग बुलेटिन की ७०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़िये और आनंद लीजिये |
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन 700 वीं ब्लॉग-बुलेटिन और रियलिटी शो का जादू मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन 700 वीं ब्लॉग-बुलेटिन और रियलिटी शो का जादू मे ***करिश्मा*** पोस्ट को भी शामिल किया ***** आभार

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  3. बिना ऑंख के पढ लेते हैं हम सबके चेहरे की भाषा ।फिर भी नहीं गढी है हमने किसी दूसरे की परिभाषा । कोई भी सम्पूर्ण नहीं है सबमें कुछ न कुछ अभाव है । बाहर से कुछ नहीं दीखता पर भीतर में बडा घाव है । हम भी तुमसे अलग नहीं हैं एक बार हमको अपना लो । अपना सपना हमें दिखा दो हमको अपना मित्र बना लो । यदि मैं सच-सच कहूँ तो भाई तुम मेरे अपने लगते हो । बेगाना सा व्यवहार न करना प्यार मुझे तुम भी करते हो ।

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  4. कितना सटीक चित्रण किया है आपने..वे हम जैसे ही हैं या कहें हम सब एक जैसे हैं..बस जगह बदल गयी है

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  5. बहुत बढ़िया,सटीक अभिव्यक्ति...!
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    Recent post -: वोट से पहले .

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  6. हमेशा की तरह अलग और अनूठी रचना!!

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (06-12-2013) को "विचारों की श्रंखला" (चर्चा मंचःअंक-1453)
    पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. मर्मस्पर्शी रचना !
    बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ..

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  9. बहुत मर्मस्पर्शी रचना...

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  10. सटीक चित्रण ... दिल को छूते हुए शब्द ...

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