भूख चाहे ज़िस्म की या रहे राज की भूख में थूंककर चाटते हमने देखा है |
आज प्रातः वेताल
राजपथ के वट पर लटका
निहारता रहा शून्य में
देश कहाँ जा रहा है?
अचानक एक झटका लगा
और वेताल विक्रम के मजबूत कंधे पर
राजन
आपने मेरी गहन चिंता और सोच में विघ्न क्यों डाला
आपको देश और जनता की चिंता होती तो?
आज विक्रम की भृकुटि तनी
यूँ न देखें
सचमुच देश की ये दुर्दशा होती?
राजन ज़रा गौर से राजपथ पर एक नज़र डालें
ये भला मानस जीभ से क्या उठा रहा है?
स्वच्छ वस्त्रधारी, नेकचलन, सौम्य, धीर, गम्भीर
अरे कहीं ये हंस का वंशज तो नहीं?
इसी व्यक्ति की तरह मैं भी वादा करता हूँ?
और आपका मौन भंग होते ही
मैं भी पुनः यथावत्
और आप भी युगों से
चल पड़ते है प्रतिदिन खोज में?
आदर्श, सत्य, सिद्धांत, मूल्य की खोज में?
राजन
सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग
अपने मूल्य, आदर्श, जीवन वृत्त संग रहे?
कभी कोई मेल रहा?
कैसे मान लिया आज को कल स्वीकारेगा
यदि ऐसा सम्भव होता?
तो राजपथ पर स्वयं के त्याज्य वस्तु को
यूँ अपनी ही जिह्वा से न उठाता
भूख चाहे ज़िस्म की या रहे राज की
भूख में थूंककर चाटते हमने देखा है
राजन ज़रा बचकर
यहाँ भी आपके पैरों के नीचे
विक्रम अरे कहकर उछल पड़े
मौन भंग होते ही
वेताल पुनः अदृश्य?
और राजा विक्रम
देश की
दुर्दशा पर मौन?
08 दिसम्बर 2013
चित्र गूगल से साभार
इसी दुर्दशा के गवाह हैं हम..
ReplyDeleteबने होगे बेताल ह चल दिस
ReplyDeleteसटीक सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (09-12-2013) को "हार और जीत के माइने" (चर्चा मंच : अंक-1456) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
विक्रम और वेताल १५ की चर्चा आज सोमवार (09-12-2013) को "हार और जीत के माइने" (चर्चा मंच : अंक-1456) पर darz karane ke liye hriday se aabhar
Deletesuprabhat sang PRANAM
सार्थक और आज कि व्यवस्था पर सटीक प्रस्तुति..
ReplyDeleteसमय बदलेगा वेताल हमेशा के लिये किसी पीपल पर टंग जायेगा।
ReplyDeleteईश्वर करे वह दिन हम सब मिलजुलकर देखे
ReplyDeleteयही मौन तो दुर्भाग्य है.. अगर बोला तो सिर टुकड़े टुकड़े हो जायेगा!! बहुत अच्छा लगा!!
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