बहुत कठिन है डगर राह { जनपथ } पनघट की |
राजन
परिवर्तन प्रकृति का नियम है?
आप जानते हैं?
आप राजा कैसे बने और मैं वेताल
ये सब जोग-संजोग है?
इस पर इतराना कैसा?
आपकी ग्लानि और सन्ताप हरने के लिये
एक लघु कथा सुनाता हूँ
*****
एक बार एक उत्पाती चुहे को
एक हल्दी का टुकड़ा मिल गया
बस क्या था
उसने अपनी बिल के सामने लिखवा दिया
हल्दी का थोक व्यापारी
राजा विक्रम ने मुड़कर पैनी दृष्टि से देखा
राजन यूँ न देखें
मुझे शरम नहीं आती है
किसी झूठ को भी बड़ी ईमानदारी से बोलिये
बड़ी सिद्दत से बोलिये
बड़ी विनम्रता से बोलिये
बारम्बार बोलिये
किसी मंच से बोलिये
ईमानदार बनकर बोलिये
बड़ी जनसभा को सम्बोधित कीजिये
वो सच प्रतिध्वनित हो जाती है?
राजन
फिर से यूँ ना देखें
झूठ बोलना भी एक कला और कुंठा है?
चूहे ने समझा दिया
वह हल्दी का थोक व्यापारी है?
*****
चलिये इसी कथा का अगला भाग सुनिये
उसी दिन शाम चार बजे
चूहे का बाप मर गया
चूहे ने पण्डित को बुलवाया
पण्डित रामानन्द जी ने कहा
श्राद्ध कर्म शुरू कीजिये
चूहा निरुत्तर
पण्डित जी ने कहा
पिता का नाम लीजिये
फंस गई सांस और फांस
अब मौन और घिघियाहट
क्यूँ असमंजस?
पण्डित ने कहा
बाप का नाम बताओ या श्राद्ध करो?
चौड़े, स्वच्छ राज पथ पर चलते चलते
राजा विक्रम को भी ठोकर लगी
और
आह की आवाज़ के साथ मौन भंग हो गया
फिर क्या वेताल यथावत्?
बहुत कठिन है डगर राह { जनपथ } पनघट की
१० दिसम्बर २०१३
समर्पित भारतीय जनमानस को
चित्र गूगल से साभार
वाह, असमंजस की स्थिति में ही तो सारा देश पड़ा है
ReplyDeleteपरिवर्तन प्रक्रति की प्रकृति है और प्रगति का परिचायक भी है ।
ReplyDeleteसच है ...बहुत कठिन है डगर राह { जनपथ } पनघट की....
ReplyDeleteभुभुलैया की स्थति है !
ReplyDeleteनई पोस्ट भाव -मछलियाँ
new post हाइगा -जानवर
यही असमंजस तो दूर होना बाकी है ... देखें दिल्ली किस करवट बैठती है ...
ReplyDeleteरविकर जी आपने विक्रम वेताल 16 को बुधवारीय चर्चा मंच के योग्य
ReplyDeleteमाना हृदय से आभार
ReplyDeleteदिल्ली की करवट मत देखो , ऊंट भयंकर दिली है
कभी भागता मरुथल में ,लगता कभी शेख चिल्ली है
एक नहीं ,सौ बार ,चीर दिली का देखा समझ न पाया
दिल्ली है की बिल्ली है क्या क्या नहीं ये दिल्ली है
किसी झूठ को भी बड़ी ईमानदारी से बोलिये
ReplyDeleteबड़ी सिद्दत से बोलिये
बड़ी विनम्रता से बोलिये
बारम्बार बोलिये
किसी मंच से बोलिये
ईमानदार बनकर बोलिये
बड़ी जनसभा को सम्बोधित कीजिये
वो सच प्रतिध्वनित हो जाती है?
गज़ब का विचार और आज का यथार्थ !! रमाकांत भाई आभार !!