गुरुकुल ५

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Sunday 25 August 2013

मेरी आवाज / दीपक

चिरंजीव दीपक सिंह दीक्षित ऑटो सेंटर रायगढ़ 

पञ्च तत्व * क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर * के अंश से बना दीपक 
कुछ लोग जीते हैं परमार्थ में उनकी निष्ठा, समर्पण, सेवा, निर्विकार 

कोई संदेह नहीं जीये तो अपनों के लिये और अपनों के संग, हर सांस में
दिया , बाती और तेल ,दीपक बन प्रकाशित करता राह जलकर पथिक को 

दीपक सिंह एक नाम ही नहीं मेरे लिये एक रिश्ता, एक एहसास है
जिसका जीवन दर्शन और चिंतन सदैव मुझे प्रेरणा देता है

*
सुहानी सुबह ०६ जुलाई २०१० को विद्यालय में हम सब स्टाफ रूम में बैठे थे
एक पुरुष और एक लड़की संग आये, परिचय दिया श्रीमति आभा सिंह
विज्ञान विषय वर्ग २ के पद पर नियुक्त की गई है पू मा शा पटियापाली में
मैंने कहा शाला परिवार आपका स्वागत करता है यह स्वर्ग है कोरबा जिला में

कुछ परिचय और स्वागत सत्कार के बाद मुस्कराहट और संकोच संग आवाज आई
आप रमाकांत सिंह हैं क्या? मैं अवाक सा रह गया, पूछा कैसे जाने कि मैं रमाकांत हूँ?
आपकी आवाज से, आज से लगभग नौ साल पहले आप मेरे पास रायगढ़ आये थे
सचमुच नौ वर्ष पूर्व बहन की शादी के सिलसिले में मुलाकात हुई थी चेहरा घूम गया

वही शांत, धीर, गंभीर, पेशानी की लकीर मेहनतकस इंसान की कहानी बयां करती
कल भी वो शख्स मेरी पसंद में शामिल था और आज भी मैं उससे प्यार करता हूँ
**
९ मई १९९९ की रात मैं भैया शशांक सिंह के साथ शादी में शामिल होने धनगाँव निकले
रात घुप्प अँधेरा हाथ को हाथ सुझाई पड़ना मुश्किल, रास्ते में एक परिवार पैदल मिला
पति पत्नी दो बच्चे सुनसान रास्ता, कुछ दूर आगे निकलकर वापस लौटा यूँ ही पूछा
कहाँ जा रहे हैं? मैं रमाकांत सिंह मुलमुला गाँव निवासी हूँ,क्या मेरे लायक कोई

मेरी बात बीच में ही कट गई पुरुष ने कहा क्या आप दंतेवाड़ा बस्तर में कार्यरत थे?
मैंने पूछा आप कौन? मुझे कैसे जानते हैं? जवाब मैं दंतेवाड़ा में गणित व्याख्याता हूँ
१९८० से १९९९ एक अरसा बीत गया था दंतेवाड़ा छोड़े लेकिन कुछ तो किया है मैंने
अँधेरे में छैल बिहारी सिंह को भैया संग छोड़ दिया भटकने अँधेरे में, मजबूरी थी क्या करता
उनकी पत्नि और बच्चों को कोड़ा भाट छोड़ने निकल गया और जीता विश्वास अँधेरे में भी

हम दोनों भाई भी निकल गये बाद में उसे भी लेकर शादी में शामिल होने अपनी जगह

***
२००४ में गणित मेरी दृष्टि में लिखकर सहायक सामग्री के प्रदर्शन हेतु भैसमा निकला
हाई स्कुल का भरा स्टाफ जहां विद्वान लोगों के बीच अपनी बात रखना कठिन
प्राचार्य सक्सेना जी की अनुमति से लेख और सामाग्री को बतलाना शुरू किया

जैसे ही मैंने बोलना शुरू किया एक आवाज आई अरे रमाकांत सिंह आप यहाँ
मैं वापस मुड़ा कुछ आश्चर्य मिश्रित भाव ले, मैं सी. एस. सिंह रात कोड़ा भाट
आपने मुझे परिवार सहित ससुराल छोड़ा था, पसर गई स्मृति रात की दिन में
आप यहाँ कैसे? स्थानातरण से, लेकिन आपने कैसे पहचाना कि मैं वही हूँ?

आपकी आवाज से पहचाना, गणित मेरी दृष्टि में की सामाग्री का प्रदर्शन संग
एक बात समझ में आई कुछ तो है मेरी आवाज में चाहे गाऊं या कुछ कहूँ

अनायास भूपेंद्र जी का गाया ये गीत याद आ गया

नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा
मेरी आवाज़ ही पहचान हैं, गर याद रहें

आंखें तेरी सब कुछ बयां करती हैं तो हाथ की लकीरें बताती तक़दीर का लेखा
मेरी आवाज़ में भी कुछ तो है जादू कल हो न मैं ये आवाज़ गूंजेगी फिजा में?

२२ अगस्त २०१३

समर्पित मेरे छोटे भाई दीपक सिंह दीक्षित को
जिसने मेरे आवाज़ के जादू को समझाया

18 comments:

  1. waah bahut badhiya silslewaar tarike se apne dil ki bat kah dee..

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  2. कुछ तो होगा ही ऐसा जादू आपकी आवाज़ में जिसे सुनकर सालों बाद भी कोई आप को पहचान सकता है.
    अब आप जल्दी से माईक उठायें और कुछ गीत -कविता -कुछ भी रिकॉर्ड करें और यहाँ पोस्ट करें .अब तो हम भी सुनना चाहते हैं..
    पॉडकास्टिंग बेहद आसान है.आवश्यकता हो तो मैं पोडकास्टिंग प्रक्रिया आसान चरणों में बता सकती हूँ.

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    1. आपके निर्देशों का इंतजार है कोशिश कर देखेंगे आपके हौसला बढ़ाने का आभार

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  3. अल्पना जी की बात से सहमत .....शुभकामनायें

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  4. @एक बात समझ में आई कुछ तो है मेरी आवाज में चाहे गाऊं या कुछ कहूँ
    बहुत सुन्दर पोस्ट रमाकांत जी कभी गुनगुना दीजिये न कोई आपकी कविता
    हम भी सुनना चाहते है आपकी आवाज :)

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  5. आवाज़ से सम्बंधित एक पुराना फ़िल्मी गाना मुझे यद् आ रहा है -----
    आवाज़ दे कहाँ है,दुनिया मेरी जवां हैं
    बरबाद मैं यहाँ हूँ,आबाद तू कहाँ है

    सुन्दर संस्मरण

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  6. मोबाइल पर आपने एक रचना सुनाई थी,,,आपकी आवाज में दम है,मै भी चाहता हूँ
    कि आप अपनी रचना स्वम गाकर पोस्ट करे,,,इन्तजार रहेगा,,,,

    RECENT POST : पाँच( दोहे )

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  7. अब तो सुनने की उत्सुकता जाग गई है !
    उम्मीद है जल्दी ही पोडकास्ट करेंगे।

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  8. अतीत के चल-चित्र जीवन का सम्बल । " दस द्वार से सोपान तक " की याद दिलाती मन के कपाट खोलती, मन-वीणा के तारों को सहेजती, भित्ति-चित्र को उकेरती, उधडते हुए रिश्तों को बुनती,उजडे हुए कल को हसरत भरी निगाहों से निहारती, हँस-हँस कर अपनी ओर बुलाती,प्राञ्जल प्रस्तुति ।

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  9. हम भी सुनने के लिए उत्सुक्त है ,तो कब कररहें है पोडकास्टिंग..शुभकामनाएं

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  10. छोटी सी ये दुनिया, ... कहीं तो मिलोगे.

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  11. बहुत रोचक पोस्ट..वाकई अब कुछ सुनने का अवसर मिले

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  12. bahut badhiya , jaise ek lahar si chal rahi ho

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  13. आपकी आवाज़ का जादू इतना चलता है पता नहीं था ...
    आप तैयारी कीजिये पोडकास्ट बनाइये ... रोचक पोस्ट दिल को छूती हुई ..

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  14. सहज और निस्वार्थ भाव वाले हदय की आवाज कोई भूलेगा भी कैसे?

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