अब अँधेरा होगा?
भोर हुई
और रवि की किरणों संग
तुमने सोच लिया
जगत को जीत लिया
अब अँधेरा होगा ही नहीं?
विस्तृत आसमान है
उड़ चलो खोलकर पंख
वक़्त थम जायेगा मौज में?
तुम्हारी मर्ज़ी से तुम्हारी खातिर?
अक्षय तरुणाई?
समय की धारा में भी
बारिस के बुलबुले हैं?
कि थम जाये सावन में भी?
अहंकार या बचपना?
या फिर छलावा खुद से?
न संशय न आग्रह
ढीठ, उन्मत्त बन
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी है?
ज़िन्दगी में कोई शर्त ?
लेकिन
ज़िन्दगी मेरी है?
मेरी शर्तों पर?
जल तरंग की भांति
नित नये स्वरुप ले
न पुनर्जन्म
न सृजन
मेरे वज़ूद के लिये
मंज़ूर
कोई शर्त नहीं
तेरी मर्ज़ी तू जाने
01जुलाई 2013
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल रविवार (18-08-2013) को "नाग ने आदमी को डसा" (रविवासरीय चर्चा-अंकः1341) पर भी होगा!
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपने छलावा को (18-08-2013) को "नाग ने आदमी को डसा" (रविवासरीय चर्चा-अंकः1341) के लिए चुना आभार
Deleteकोई शर्त नहीं
ReplyDeleteतेरी मर्ज़ी तू जाने sahi bat apni marji hi chalti hai ....bahut acchi prastuti ...
कब कुछ ठहरा है जिन्दगी में
ReplyDeleteजिन्दगी शर्तों से परे ही अच्छी
बहुत सुन्दर, आभार !
मेरे वज़ूद के लिये
ReplyDeleteमंज़ूर
कोई शर्त नहीं
तेरी मर्ज़ी तू जाने,,,
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ,,आभार रमाकांत जी
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
आकाश में विचरते पंछी की तरह खुली, आजाद सोच.
ReplyDeleteअहंकार या बचपना?
ReplyDeleteया फिर छलावा खुद से?
न संशय न आग्रह
ढीठ, उन्मत्त बन
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी है?
ज़िन्दगी में कोई शर्त ?
अच्छी रचना ,शुभकामनाएं
latest os मैं हूँ भारतवासी।
latest post नेता उवाच !!!
अहंकार या बचपना?
ReplyDeleteया फिर छलावा खुद से?
न संशय न आग्रह
ढीठ, उन्मत्त बन
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी है?
ज़िन्दगी में कोई शर्त ?गहन अभिवयक्ति......
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति आज रविवार (18-08-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 87" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteआपने छलावा को "ब्लॉग प्रसारण- 87" के लायक माना आभार
Deleteये शब्द यदि ब्लॉग प्रसारण पर लिखे होते तो हार्दिक ख़ुशी मिलती।
Deleteअहंकार या बचपना?
ReplyDeleteया फिर छलावा खुद से?
मन को छूती पंक्तियाँ …
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी है?
ReplyDeleteज़िन्दगी में कोई शर्त ..बहुत सुन्दर .मन को छूती पंक्तियाँ …आभार
मन को छुती रचना... बहुत सुंदर भाव.... जिंदगी शर्तों पर नहीं ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर......
ReplyDelete" किम् आश्चर्यम् ?" यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया था । अर्थात् आश्चर्य क्या है ? "मनुष्य प्रतिदिन अपने सामने अनेक लोगों को मरते हुए देख रहा है फिर भी वह समझ नहीं पाता कि एक दिन वह भी मरेगा, यही आश्चर्य है ।" युधिष्ठिर ने कहा ।
ReplyDeleteरचना उत्कृष्ट है ..
ReplyDeleteबधाई !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,बधाई.
ReplyDeleteएक दिन पानी के बुलबुले की भांति सब खतम हो जाएगा.कुछ भी तो हमेशा रहने वाला नहीं है फिर भी जीवन चलता रहता है.
ReplyDeleteअच्छी भावाभिव्यक्ति.
मेरे वज़ूद के लिये
ReplyDeleteमंज़ूर
कोई शर्त नहीं
तेरी मर्ज़ी तू जाने
...वाह! बहुत सुन्दर...