आत्मदाह / आत्महत्या / पलायन / समापन? |
क्या आपने मनुष्य जैसे तुच्छ जीव के अतिरिक्त किसी अन्य जीव को
आत्महत्या करते देखा? या आत्महत्या का प्रयास करते देखा है?
शायद इन निम्न जीवों में सामंजस्य और सहनशीलता का प्रबल भाव होता है
श्रृष्टि का एक मात्र प्राणी और भगवान की उत्तम व अनुपम कृति ही यह दुर्लभ कार्य करते हैं
चलो आत्महत्या करके देखा जाये, मरने के बाद किसी समस्या का समाधान मिल जाये?
बाबूजी की कही एक कहानी आपसे साझा करता हूँ
राजा विक्रमादित्य महारानी मीनाक्षी संग भोजन करते समय अनायास हंस पड़े
मीनाक्षी द्वारा अचानक हंसी कारण कौतुहल बन गया हंसी और वह भी चींटी के जोड़ों पर
राजन मुस्कुराकर टाल गये, तिरिया हठ प्रबल हो उठा, किन्तु विवश हो गये नारी के आंसू से
जिद और प्रेम में जितना भी कम या ज्यादा हो जाये बस कोई मोल और तोल नहीं
राजन को प्राप्त विद्या अनुसार जीवों की भाषा का ज्ञान था किन्तु शर्त अकाट्य
जैसे ही भाषा का रहस्य उजागर होगा, वर का उल्लंघन मृत्यु को टाल नहीं सकता
अनिष्ट निवारण हेतु किसी निर्जन स्थान में ही ज्ञान और मन्त्र को बतलाया जाये
जहाँ जीर्ण शीर्ण कुँए में पीपल का पेड़ उगा हो, और पुराना बरगद के पेड़ में खोह हो
ताकि विद्या को बतलाने के प्रायश्चित स्वरुप आत्मदाह किया जा सके
उज्जैन राज्य के दक्षिण दिशा में तलाश पूरी हुई राजन जैसे ही रहस्य बताने उद्यत हुए
एक बकरी और बकरे का जोड़ा कुँए की ओर निकला, गर्भवती बकरी का मन ललचाया
बकरी ने बकरे से अनुरोध किया, यदि कुँए में उगे कोमल पीपल का पत्ता मिल जाये?
तो पेट का बच्चा और मैं तृप्त हो जायेंगे, कुआं जीर्ण है मृत्यु निश्चित बकरे ने कहा मृदुल
रीता चला गया अनुरोध और समझाईश, जिद बकरी की मर जाओ, किन्तु पत्ते लाओ
बकरे ने अब कड़े ढंग से कहा मुरख मैं मर जाऊंगा, तो क्या हुआ? मैं तो तृप्त हो जाऊँगी
राजन समझ और देख रहे थे, रानी जानवर का मनुहार ताड़ रही थी, जिद प्रबल हो उठा
संयम का बाँध टूटा, बकरे ने निःसंकोच धड़ धड़ कई चोट बकरी के सिर और पेट पर लगाये
बकरे ने कहा मुर्ख बकरी तू मुझे राजा विक्रम जैसा संज्ञा शून्य और विवेकहीन समझती हो
मैं तुम्हारी अंतहीन जिद के लिए अपनी जान दे दूँ,तुम्हे जान देनी है, जाओ तुम स्वतंत्र हो
सामाजिक चेतना, व्यक्तिगत जिम्मेदारी, दायित्वों का निर्वहन, सजगता,सामंजस्य
दया, सेवा, सहिष्णुता, ममता, जीवन्तता, सहयोग, विवशता का सर्वथा अभाव क्यों?
परमपिता की अद्भुत कृति मनुष्य ही है जो अहंकार से परे, ज्ञान, वैभव, विज्ञान का केंद्र?
आत्मदाह / आत्महत्या / पलायन / समापन किसी भी समस्या का न्याय संगत निवारण
जिंदगी जो मेरी है ही नहीं ,अन्यथा करो आत्महत्या।
और एक बार मरकर पुनः प्राप्त कर देखो ये अनमोल अद्भुत जीवन ?
समर्पित मेरे छोटे भाई दीपक सिंह दीक्षित को
जिसका जीवन दर्शन और चिंतन प्रेरित करता है।
चित्र गूगल से साभार
२ जुलाई २०१३
आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं ,मनुष्य ईश्वर की अनुपम कृति है और उसका जीवन अनमोल .
ReplyDeleteबोध कथा सोचने पर विवश करती है.
सकारात्मक सन्देश देती बोधकथा ..... जीवन सच में अनमोल है, अद्भुत है ...
ReplyDeleteईश्वर का दिया एक अनुपम वरदान है जीवन..सकारात्मक सन्देश देती सार्थक बोध कथा
ReplyDeleteसुंदर बोध देती कथा..
ReplyDeleteसोचने को विवश करती बोध कथा ... सकारात्मक सोच ...
ReplyDeleteआत्महत्या पर तीन रचनाएँ Enough
ReplyDeleteकुछ और सोचें यह प्रवित्ति और सोच चिताजनक
सुन्दर बोध कथा। बकरा गुरुघंटाल निकला
ReplyDelete" तेरी हार भी नहीं है तेरी हार उदासी मन काहे को डरे । " आशा से आकाश थमा है विधेयात्मक दिशा में चिन्तन करें । आप यह सोचें कि ईश्वर ने आपको क्या-क्या दिया है । आप पायेंगे कि आपको इतना कुछ मिला है कि जिसकी कोई सीमा नहीं है । हमारी स्थिति उस भिखारी की तरह है जो दुर्लभ खज़ाने के ऊपर बैठकर भीख मॉंग रहा है । हमें यह मानकर चलना चाहिये कि हमारे साथ जो भी होगा शुभ ही होगा ।
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