गुरुकुल ५

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Thursday, 20 June 2013

निर्विकार / मौन / निश्छल


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। 
        सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥

केदारनाथ की पावन यात्रा में शामिल लोग अनायास बादल फटने से भूस्खलन से काल
कलवित हो गये। देश विदेश से आये दर्शनार्थी फंस गये इस प्राकृतिक आपदा में टी.वी.
पर समाचार की निरंतरता ने जहां लोगों को अपनों से जोड़ा तो दूसरी ओर भयावह
घटना को दिखलाकर दिल दिमाग और जनमानस को दहला भी गया।
लोग जुटे हैं सेवा में हम भी चिंतित हैं परिजनों के हाल जानने

जो लोग नहीं हैं हमारे बीच उनकी सुध मालिक जाने मैं तो बस प्रार्थना करता हूँ।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥

बाबूजी ने बचपन  में एक कहानी सुनाई थी मन हल्का करने के लिये आपसे साझा करता हूँ

बहुत बरस पहले ऐसे ही एक आपदा में बहुत सारे लोग मारे गये
उस आपदा में गाँव की गरीब नर्मदा का बेटा भी फंसा था
दबी छुपी जबान से खबर नर्मदा तक पहुंची बेटा मृत्यु को प्राप्त हो गया
जवान बेटे की लाश लावारिस सड़क के अमुक जगह औंधी पड़ी है

नर्मदा बदहवास दौड़ पड़ी नंगे पाँव बेटे की लाश देखने भूखी प्यासी
चौराहे पर जमा लोग पचास लोग सौ बातें तरह तरह की सुनी अनसुनी
एक आवाज़ आई कहाँ है मेरा बेटा अरे कोई पानी पिलाओ उसे
भाई ज़रा उसका चेहरा ऊपर करो आखरी बखत में चेहरा देख लूँ

लोग छिटकने लगे कोई सेवा न करनी पड़ जाये
मौज की जगह आफत न पड़ जाये गले अकारण

माँ के अनुनय विनय पर किसी ने औंधी पड़ी लाश को सीधा किया
माँ के चेहरे पर परम संतोष के भाव जागृत हो उठे चित्त शांत हो गया
जो माँ बदहवास नंगे पाँव, भूखी प्यासी, रोती  बिलखती आई थी
उसी भीड़ का हिस्सा बन गई निर्विकार, मौन, निश्छल

वेताल ने कहा
राजन

ये घट जाता है रोज किसी चौराहे पर
आज दर्शन या पूजा के बहाने
तो कल किसी आवेश में
हम भी बन जायें
उसी भीड़ का हिस्सा?

२० जून २०१३
मेरी श्रद्धांजली उन लोगों को
जो केदारनाथ जी दर्शन करने गये थे