**कहानी और कथाओं का दौर शायद आज खत्म सा हो गया हो किन्तु कुछ कथा
आज भी प्रासंगिक लगते है इन्ही में से एक कहानी बाबूजी ने बचपन में सुनाई थी
आपसे साझा करता हूँ
प्राचीन काल में एक बालक की मृत्यु एक संजोग पर टिकी थी जब उसकी माँ को
ज्ञात हुआ तो उसने ब्रह्मा से मृत्यु को टालने का निदान पूछा बिरंची जी विधी के
विधान को बदल पाने में अपनी असमर्थता जाहिर की और माँ को श्री हरि के पास
जाने को कहा माँ के अनुनय विनय पर स्वयं भी साथ गये किन्तु विष्णु जी ने भी
असमर्थता बतलाकर देवाधि देव महादेव के पास जाने को कहा शायद उनके पास
इसके मुक्ति का मार्ग मिले।
माँ ने ब्रह्मा जी, विष्णु जी, के साथ महादेव जी को अपनी व्यथा सुनाई उसने
कहा इस बुढ़ापे में वह निःसंतान नहीं होना चाहती।
शिव जी ने कहा चलो देखें आखिर वह कौन बालक है जिस पर ऐसी संकट आन पड़ी है
शंकर जी सहित विष्णु जी और ब्रह्मा जी और माँ ने जैसे ही बच्चे को देखा बालक
मृत्यु को प्राप्त हो गया।
वास्तव में इन्ही पाँचों के मिलन का यही पल
उस बालक की मृत्यु का पल था ये माँ नहीं जानती थी।
**रामायण, रामचरित मानस, महाभारत की कथा और इनके कालजयी पात्रों से सदैव
प्रेरणा प्राप्त किया और मेरे ज़िन्दगी के भी करीब हैं, चाहे वो भीष्म हो या कर्ण या फिर
परम मित्र दुर्योधन { सुयोधन }
बाबूजी ने महाभारत की कथा में बतलाया कि दुर्योधन को अद्भुत ईच्छा मृत्यु प्राप्त थी।
{ मूल कथा के साथ एक अद्भुत सहायक कथा जुड़कर कथा को रोचक और नई दिशा
और दशा दे जाती है यह *क्षेपक कथा * भी शायद उसी प्रसंग का एक जीवंत भाग हो }
दुर्योधन ने जीवन नहीं मृत्यु के लिए वरदान माँगा था
*एक ही पल में हर्ष और विषाद की अनुभूति का संयोग हो तब मुझे मृत्यु प्राप्त हो*
वरदान माँगा और मिला भी किन्तु विधि का विधान अटल होता है
सुयोधन का सरोवर में गुप्त वास सम्भव कहाँ बन पड़ा भीम के ललकारने पर
सरोवर से बाहर आने पर लीलाधारी कृष्ण के रचे महाभारत में दुर्योधन आहत
असहाय बलराम भी धर्म अधर्म के युद्ध में माखन चोर के सामने
अश्वत्थामा का गुरू पुत्र प्रेम ले आया धोखे में निरपराध पाण्डव पुत्रों का शीश
शायद यही पल बन गया हर्ष और विषाद के मिलन और दुर्योधन के वर का क्षण
कहानी और कथाओं का दौर शायद आज खत्म सा हो गया हो किन्तु ऐसा लगता है
गीतकार शैलेद्र जी को इस गीत की प्रेरणा ऐसे ही किसी प्रसंग से मिली होगी .
मूल भाव वही रहे, दृश्य बदल गये, ढल गये मर्म गीत में
संगीत और नृत्य ने समां बाँध दिया
काँटों से खींच के ये आँचल
तोड़ के बंधन बांधे पायल
कोई न रोको दिल की उड़ान को
दिल वो चला ह ह हा हा हा हा
आज फिर जीने की तमन्ना है
आज फिर मरने का इरादा है
कल के अंधेरों से निकल के
देखा है आँखें मलके मलके
फूल ही फूल ज़िंदगी बहार है
तय कर लिया अ अ आ आ आ आ
आज फिर जीने...
मैं हूँ खुमार या तूफ़ां हूँ
कोई बताए मैं कहाँ हूँ
डर है सफ़र में कहीं खो न जाऊँ मैं
रस्ता नया अ अ आ आ आ आ
आज फिर जीने...
समर्पित मेरे मन की ब्लॉग की सर्जिका अर्चना चाव जी को
जून 2013