गुरुकुल ५

# गुरुकुल ५ # पीथमपुर मेला # पद्म श्री अनुज शर्मा # रेल, सड़क निर्माण विभाग और नगर निगम # गुरुकुल ४ # वक़्त # अलविदा # विक्रम और वेताल १७ # क्षितिज # आप # विक्रम और वेताल १६ # विक्रम और वेताल १५ # यकीन 3 # परेशाँ क्यूँ है? # टहलते दरख़्त # बारिस # जन्म दिन # वोट / पात्रता # मेरा अंदाज़ # श्रद्धा # रिश्ता / मेरी माँ # विक्रम और वेताल 14 # विनम्र आग्रह २ # तेरे निशां # मेरी आवाज / दीपक # वसीयत WILL # छलावा # पुण्यतिथि # जन्मदिन # साया # मैं फ़रिश्ता हूँ? # समापन? # आत्महत्या भाग २ # आत्महत्या भाग 1 # परी / FAIRY QUEEN # विक्रम और वेताल 13 # तेरे बिन # धान के कटोरा / छत्तीसगढ़ CG # जियो तो जानूं # निर्विकार / मौन / निश्छल # ये कैसा रिश्ता है # नक्सली / वनवासी # ठगा सा # तेरी झोली में # फैसला हम पर # राजपथ # जहर / अमृत # याद # भरोसा # सत्यं शिवं सुन्दरं # सारथी / रथी भाग १ # बनूं तो क्या बनूं # कोलाबेरी डी # झूठ /आदर्श # चिराग # अगला जन्म # सादगी # गुरुकुल / गुरु ३ # विक्रम वेताल १२ # गुरुकुल/ गुरु २ # गुरुकुल / गुरु # दीवानगी # विक्रम वेताल ११ # विक्रम वेताल १०/ नमकहराम # आसक्ति infatuation # यकीन २ # राम मर्यादा पुरुषोत्तम # मौलिकता बनाम परिवर्तन २ # मौलिकता बनाम परिवर्तन 1 # तेरी यादें # मेरा विद्यालय और राष्ट्रिय पर्व # तेरा प्यार # एक ही पल में # मौत # ज़िन्दगी # विक्रम वेताल 9 # विक्रम वेताल 8 # विद्यालय 2 # विद्यालय # खेद # अनागत / नव वर्ष # गमक # जीवन # विक्रम वेताल 7 # बंजर # मैं अहंकार # पलायन # ना लिखूं # बेगाना # विक्रम और वेताल 6 # लम्हा-लम्हा # खता # बुलबुले # आदरणीय # बंद # अकलतरा सुदर्शन # विक्रम और वेताल 4 # क्षितिजा # सपने # महत्वाकांक्षा # शमअ-ए-राह # दशा # विक्रम और वेताल 3 # टूट पड़ें # राम-कृष्ण # मेरा भ्रम? # आस्था और विश्वास # विक्रम और वेताल 2 # विक्रम और वेताल # पहेली # नया द्वार # नेह # घनी छांव # फरेब # पर्यावरण # फ़साना # लक्ष्य # प्रतीक्षा # एहसास # स्पर्श # नींद # जन्मना # सबा # विनम्र आग्रह # पंथहीन # क्यों # घर-घर की कहानी # यकीन # हिंसा # दिल # सखी # उस पार # बन जाना # राजमाता कैकेयी # किनारा # शाश्वत # आह्वान # टूटती कडि़यां # बोलती बंद # मां # भेड़िया # तुम बदल गई ? # कल और आज # छत्तीसगढ़ के परंपरागत आभूषण # पल # कालजयी # नोनी

Thursday 1 August 2024

$ जोरन्धा $

अलगेच अलग आय फेर काबर कथें जोरन्धा
बिज्ञान कथे आउ सबो ज्ञानी मनषे मन कथें के सब अपन म अद्भुत
जोरन्धा आय त आँखि के परदा ह एके कस होही ?
कईसे मिल जाहि हांथ के अंगठा, अंगठि के चीन्हा ?
कपार के लिखा ह एके कस मोला तो कभू नई दिखिस ....?

डॉक्टर , बईद, सियान, ज्ञानी, पढन्ता मन के लिखा पोंछा ह
सब गुन अवगुन के हिसाब किताब लगा के बताथे के जोरन्धा के सब माया मछिन्दर काय काय हवय ....
सब सही आउ काय गलत.. पढ़, लिख, पोंछ, गुन डारे हवय,....

परमात्मा के खेला बड़ निराला....बबा Ravindra Sisodia जी
ओहि माटी म पुटू आउ ओहि माटी म गुलाब, आउ रंग रंग के फूल, पेंड़, नार, बिंयार ,बीज, बिन के पेंड़, अमरबेल अध्धर म, रोटहा, मोटहा, फोसवा मुनगा कस पेंड़, त निन्धा सइगोन, सरई, शीशम ,साल , कोंहुँ मेर मीठ, बोइर, कस्सा कैथ, बड़े मखना, चिरपोटी पताल, कोंहुँ मेर झूलत बड़े कौंहड़ा , लम्मा लौकी , त नार म झूलत तरोई, ओरमत मुनगा, त गद गद फरे भूंसा किरा कस तुत, 
मकोइया के कांटा, तेंदू के अध्धर पेंड़ , पपरेल के फूल, त ओहि मेर  मंदार के कई रंग के झूलत-डोलत फूल, आउ भांठा म बगरे बन बोइर, त टीबॉन्चु भटकटईया के फर आउ फूल , रात रानी, गोंदा, मोंगरा, चमेली, फेर चम्पा के बड़े पेंड़, अरे कतेक ल गिनवावा, ऊंच म फरे पिन खजूर, आउ नरियर एहि माटी म एहि माटी म....
माटी ओहि आउ बिधाता के रचना अपरम्पार , अनगिनत...

महतारी के एके कोंख म.....
जोरन्धा बेटा-बेटा त कभू बेटी-बेटा, त बेटी-बेटी घलो ....
रूप, गुन, बरन, सुभाव, रंग, अक्ल-नकल घला म एके कस  ?
एके कस  ? ,के भोरहा .... ? देखत आउ गुनत म  ?
सोंचथे मनषे एके कस आउ बिचार घलव करथे बरोबर एके कस ?
फेर जोरन्धा लईका मन के भाग्य आउ भाग ह नई मिलय त नई...

०१
मोर देखत जानत म जोरन्धा बड़े भाई के ०६ बेटाआउ ०१ बेटी
छोटे भाई के ०६ बेटी आउ ०१ बेटा... ओहु बेटा खइता होगे,....
सबके अपन करम, अपन धरम, रूप, गुन

०२ 
एक जोरन्धा बड़े भाई संजोग देखा कोई लोग लईका नई रहिस
त छोटे भाई के भरे पूरे परिवार ...धन, जन, विद्या के अशीष...
ओहि नेंग, ओहि नियम, धरम, जीवन बैपार फेर अलग संसार...

०३ 
दु जोरन्धा बहिनी मोर जान चिन्हारी म हवय...
बड़े बहिनी अति शांत , धिरन्त, गुनी आउ मुश्कियावत बान के
त छोटे बहिनी छिनमीनही आउ घेरी बेरी गुस्साए सुभाव के
एकेच घरी पहिली कोंख ले बाहिर आइस ,......
सुईन के नेरूहा छीनते छीनत म छोटकी घलो आगे
फेर बड़की आने त छोटकी ताने.....

गुनी ज्ञानी मनषे मन बताथे के हमन के लहू म कोडोमोड़ोजोम रथे
ओइ ह कुछु संझार मिंझर होके गुन ल आन तान कर देथे ।।

अरे होही जी हमला काय लेना देना ...अपन डहर जा अपन म आ..
अरे एके महतारी के कोंख ले अवतरे त एके कस रहय न जी 
फेर एके हाथ म पांच अंगरी , जेवनी ले डेरी देख त....
ठेंगा, निटोरे के अंगरी, बड़े अंगरी, मुंदरी अंगरी, त कानी अंगरी
अंगरी मन तो छोटे ,बड़े, रोठ, मोठ, आउ कानी हे त.......?
ओहि कोंख ओहि नार, एके लहू एके पानी फेर कईसे उलट बानी.?

बड़ गुने त मोला लागिस ** जोरन्धा**  ह पेंड़ के दुथांगी नो हय ..
नो हय ए ह रेल लाइन के लोहा के गाडर जे ह बिछाय रथे एक संग
मिलय कभू नहीं फेर दसाथें बड़ जतन करके....
जोरन्धा ह संजोग आय परमात्मा के जेला ओकर किरपा कहि दे...
जोरन्धा ह रेखा गनित में समानांतर सोझ डाँड़ घलाऊ नो हय ,..
जोरन्धा ह नो हय नंदिया के दुनो पाठ जे हर संगे संग रेगय ....
नंदिया के दुनो पाठ अपन-२ गुन-अवगुन आउ चरित्तर संग

देखें ,गुने , सुनें, आउ ओरखें त मोला **जोरन्धा ** ह भासिस .....

*** जोरन्धा *** ह आय भुइयां के ऊपर के पवन.......
कोंहुँ मेर जुड़ मन ल थिरवात संतोष देवत  त कोनो मेर धधकत आगी कस सुभाव, कोंहुँ मेर गर्रा बड़ोरा त कोंहुँ मेर सर्रात टोरत फोरत गुन संचरे, कोंहुँ मेर सकेलत बादर ल गरजत घुमरत

*** जोरन्धा *** ह भुंइया कस घला लागिस मोला
कोंहुँ मेर सरपट आँखि के पुरत ले नंजर भर देख ले
त कोंहुँ घानी नंजर नई पुरत हे देखे म ... आँखि चोन्धियागे
कौंहु मेर डीपरा त दतकि कन दुरिहा म बड़ खंचवा 
किसिम किसिम के रंग मटासी, डोंडसहुँ, कछरी, कन्हार, ...

*** जोरन्धा *** म लागिस मोला आगी कस सुभाव...
चूल्हा म परिस् त चुरो ले दार भात पेट के आगी थिरवाय बर
परगे मसान घाट म चिता म त लेस दिस मुर्दा ल
आउ कल्यान बर बार दे हवन भीतरी त ओहो..आहा ,.....
अपन मन के बरगे के बार दिस त बन घला ल ....
नई देखिस अपन आन जे ह डहर म आइस लेस दिस जी जंतु संग

कभू कभार मोला *** जोरन्धा *** ह पानी कस लागिस
जेकर भाग म परिस तेकर आत्मा ल जुड़वा दिस 
कोंहुँ बेरा म तीपगे त उसन के घर दिस बने मईहन सबो ल
बने राखे सके त जीवन दाई कस लागिस 
कभू उमड़ घुमड़ गे त बड़े ले बड़े पहार ल ओदार देथे
माढ़गे तला, पोखरी म निर्मल, साफ देख ले भीतरी म माढ़े घोंघी

 ज्ञानी अंतरजामी कस आँखि मुंदके देख तो *** जोरन्धा *** ल
अगास आय जेकर ओर आय न छोर .....
अनंत, अपार, अथाह, अबूझ, जतका जाबे ओतके दुरिहा 

बस यूं ही बैठे-ठाले
एकादशी 31 जुलाई 2024
आज मेरे सेवा निवृत्ति का दिन 2015 शानदार 09 बरस
ए लिखा पोंछा आप ल समर्पित...सादर पैलगी संग
१९९१ म " एक रात दिसम्बर के ,, गुरुदेव Rahul Kumar Singh
मोर फेर से गुरु बने के कथा लिखिहं जियत जागत रहें त ।।

***** कचकूटहा *****

रामदयाल दाऊ के एक ठन बेटी शहर के पढ़े लिखे 
घर के सब्बो बुता म गुनिक , रान्धे पसाये , जुनहा, फटहा , ओनहा घला ल अतक बढ़िया संवार के खिल देवय त गांव के भौजी, फूफू , भाई, बबा, कका, काकी, के तो बाते छोड़ा, पास परोस के बहुरिया ओकर बान के मारे ओला दीदी दीदी कहत थक जाय ....
एक बूंद माथा म टपक के थिरा भर जावय त नहा डारिस...
दिखे म ०८ कोस म ओकर ले सुघ्घर कुंआरी बेटी कोंहुँ नई रहिंन ।

ओकर दाई कौशिल्ला नान पन म छेवारी म कच्चा परगे त ....
भगवान घर चल पराईस .... पहिली पहल गांव घर म लइकई म पर्रा म बइठार के भाँवर किन्दार देवय ...कम उमर म पठऊनि कर देवय .... आउ गांव म छट्ठी छेवारी कर देवय त पहिलीच गोड़ ह गरू होईस तेहि छट्ठी म कौशिल्ला ह फौत खा गे ।। गिरगे गाज सब करे धरे म अन्धमन्धागे रामदयाल दाऊ फेर छाती ल पोठ करके सह लिस ...दाऊ बर घातकन बिहाव बर सोर आइस ... फेर बाह रे मंझला दाऊ ...हिरक के नई निहारिस कोंहुँ माई लोग ल ..... काट दिस बैरी कस रात उमर ल

रामदयाल ०२ भाई एक बहिनी दीनदयाल ओकर पठियरा भाई  एके ठन बहिनी सुनीता ...तुलसी कस चौरा....
गुन म अपन दिन म ओकर छां ल नई खुन्दे पाइन ओकर संगी सांथी मन ......भाई... दाई... ददा... आउ अपन फूफू के गुन पा गे रहिस बस नाक के सोझ म आउ ओहि म आइस

जेकर जइसन घर दुआर तेकर तइसन फईका ,,
,आउ जेकर दाई ददा तेकर तइसन लईका ....

बस ईँ हाना ल उतार दिस यमुना अपन फूफू सुनीता कस गुन आउ बान म .... जे डहर म रेंग दिस मनषे सुरता करिन फूफू ल...
जइसे सुनीस सुनीता के लल्ली  भौजी छोंड़ दिस मोर मइके के अंगना... सोर के संगे संग बिन दुआरी ओधाय आगे सोरहार संग
अपन मइके आउ दसा दिस अपन अँचरा ल भाई के आगू 
भाई ददा जनम भर तोर करा कुछु नई मांगे ग .....
आज मोर अँचरा ल उन्ना मत करबे ...ग ...
एकर बाद जनम भर कुछु नई मांगव भइया ....
रामदयाल सन्न परगे हे राम काय खंग गे सुनीता ल राम जी...
बोल नोनी का लेबे अरे घर तो तोरेच आय ...बोल भईया काय...
सुनीता मांग दिस रामदयाल के करेज्जा के कूटा ** दीदी ** ल
भईया दे दे दीदी ल मोला मैं ओकर महतारी बनके पोंस लेंहा ।।
रामदयाल बहिनी के मया पा आंसू म हदर गे .....
रोवत रोवत कहिस नोनी दीदी ह तोर तोरेच अंश आय जी
मैं भाइ तैं मोर बहिनी एकेच तो आन नोनी काय फरक हावय...
फेर देख तो काल ब मनषे मन कही देंही नोनी ...
ए मनखे बान आउ सुभाव ल मोर ले जादा तैं जानत हवस जी

हड़िया के मुंह म पराई ल टोप बे , मनखे के मुंह म काय तोपबे जी

दुनों भाई बहिनी एक दूसर ल रपोट के सुधा भर रोईन ...
फेर थीराके दाऊ कहिस एकर नां धर दे ..नोनी 
अभी अवइया जवईया मन घर म एला दीदी.... दीदी कथन ...
भइया नदिया कस निरमल हवय नोनी त जमुना धर दे .....
परगे दीदी के स्कूली नाम यमुना देबी फेर रहिगे दीदी के दीदी 

कोन कथे *** खदुहन धान बादशाह भोग, देवभोग, कुबरी मौहा, बासमती, एच एम टी, जीरा फूल, *** धान के करगा नई होवय.....
अरे होथे मालिक होथे जी सब म करगा होथे ....जी
अईसनहे मनषे घला म करगा होथे ......
कांसा के थारी लोटा, गिलास, चरु ,सैकमी, बटलोही, गंगार ....
कांस के सब्बो बरतन मन  मिंझरा धातु के बने हवय .....
नेर कांस आउ फूल कांस म तामा आउ गिलट ह 12 आना मने कि ७८ % आउ  ४ आना मन कि २२ % म मिंझरा रथे त ठीक ठाक ...
,नहीं त ....दतकी कन होगे आन तान त होगे मरे बिहान ....
ईँ ही कांस ह अपन मनके बँगहा हो जाथे .......
बने सुग्घर रान्धे पसाय दार, भात, साग ल मढ़ा दे.... एकेच घरी म कस्सा जाथे । इही बुजा पूत ह आय  
                ***** कचकुटहा *****
सोंचत हवव के कच + कुट + हा कईसे बने होही
बबा ह जी बबा Ravindra Sisodia कछु सुर लमावा हो...
कच +कुटहा कुछु गुनत नई बनत आय एकरे कस .....
जेकर जात ,धरम, बरन, लिंग, बान, सुभाव,  चरित्तर के कांहीं ठिकाना नई ये जेकर चिन्हारी खोजे बर पर जावय ओहि हर आय
 # कचकूटहा # थोरकन कुछु कांहीं कर परिस त छन्न ले कई कुटा
सकेले म दुख पर जावय , दतकिकन भोरहा म चूक होईस त कटाये, बोंगाये के पूरा बुता हो जाये ।। 
कारन  ओ ह आय ननजतिया होगे ओकर गुन धरम ऑन के तान...

घर-परिवार-समाज म
बर , बिहाव , मरनी , हरनी, तीज , तिहार  म कांस के बरतन के बड़ महत्तम हवय ,,,,, बिहाव के पंचहड़, फेर कन्या दान म सैकमी के तरी परात मढ़ा के रोचन पानी म दाई ददा संग भाई ह संग रथे कन्या दान आउ बिहाव के बड़े साछि ...
पथरा के सील संग गंगार लोटा के जोरन के महात्तम काय कहव ...
पुरखौती बेरा म एक तो माटी के बने हंडिया म भात, दार, साग चुरय नहीं त नवा बहुरिया होगे त फूटे फाटे ले दुरिहा कांस के बटलोही म दार भात के अन्धन  मढ़ा देवय चुरत हे बुड़ुक बुदुक...
बटलोही के मुंह म माढ़े कांस के मलिया अपन बजन के मारे बिन कहे सरक के तोपना बन जाथे आज काल सिटी परोये बर परथे ।।
नेर कांस के बरतन बगबग ले सुग्घर .. राख म मांज दे त ऐना कस .
मोला सुरता हे मोर बड़का दाई करा एक ठन जुन्ना कलदार धरे के कांस के बने हंडा हवय जेला घुरूवा म गाड़े रहिंन आजो तस के तस माँजीस त रग ले नवा के नवा ....

फूल कांस के थारी नई बदलय अपन रंग न जात
कांस के थारी म दुबराज के भात, बटलोही म चूरे राहेर के दार,
कांस के गोड़हा लोटा म घर कुंआ के निरमल पानी, कारी गाय के परो दिन के मथे लेवना के ठोमहा भर घी, पीढ़ा म बड़ जतन करके परोसिस जमुना अपन बाबू रामदयाल दाऊ ल ......तसमहि, बोबरा, बरा, सोंहारी , नूनचरा, मेंथी आलू के साग ....फेर.....
कांस के मलिया म परोसे मखना, बोदी, सकर कन्द के अमटहां साग एके घरी म कस्सा गे ....***** कचकुटहा ***** कांस के मलिया सब परोसे दार, भात, घी, के सेवाद ल खिख्ख कर दिस ...
एक ठन  " कचकुटहा ,, कांस के मलिया ह नोनी के पूरा जतन के बनाये सब रान्धे चूरे ल .....

खदुहन धान के करगा तो चीन्हा जाथे , बने देख देहे म 
कचकुटहा कांस घला ह चीन्हा जाथे त तिरिया देथें ....
फेर अपन नता गोता म के .....…. चीन्हात ले चुन्दी पाक जाथे ...
सारे ***** कचकुटहा *****  मनषे मरे के दिन म चीन्हाथे ....
अब मरे के दिन म आखिरी बेरा म काय कर लेबे ?
अरे परोसी ल छोंड़ देबे त काम चल जाहि ....
भाई, बहिनी, फूफा, भांटो, दीदी एकर कचकुटहा ल कोन मेर तिरियाबे ...आउ कै घरी बर, फेर तैं तो तिरिया देहे ...आउ ओ ह किन्नी कस चटक के रही गे त...?
बड़ मुश्कुल आय अपन लहू म परे कचकुटहा ल अलगीयाना....
इही किसिम के कचकुटहा गत किसकिस रहिस बड़ घिनहा रामदयाल दाऊ के भाई .... दीनदयाल ...अपन नाम के उल्टा
कभू कोकरो बने नई सोंचीस ...कोकरो लागत गाय, मया करत घर दुवार, नौकरी करत बहुरिया, बुता म मगन किसान, हरियाये खेत भरे कोठी...सब ओकर आँखि म रेती कस कसके लागय ...
जमुना ओकर आँखि के फ़ांस बन गए रहिस ....
कब रामदयाल के आँखि मुँदावय आउ जमुना के भाँवर परय ...
बेटी बिदा होवय त बहरा खेत संग घर म कब्जा करव....
इही गुंताड़ा म दिन बीतय दीनदयाल के .....
फेर भगवान घला के लाठी के कांहीं जवाब नई ए ....
मंगलवार के बड़े फ़ज़ल दीनदयाल के मुंह ह एकंगू अईठागे
मार दिस लोकवा .....बँगहा कांस कस छन्न ले फुटगे 
अब दाऊ दीनदयाल दिन गिनत खटिया म करम ल  गिनत परे हे ।।

बस यूं ही बैठे -ठाले 
२४ जुलाई २०२४
शायद मेरी गलत सोच हो कि हम सभी का भला नहीं चाहते
लोग कुछ तो आज भी जिंदा हैं जो दूसरों की पीड़ा में सुखी
चलो चिंतन कर देखें ऐसा क्यों ?

Thursday 18 July 2024

@#.com ***** पानी & पानी *****


कथे हमर सियान Ravindra Sisodia बूड़ गए रहिस संसार
मनु आउ सतरूपा बाँहचे रहिन हम सब ओकरे लोग लईका आन
पूरा संसार ...म तब नई रहिस होही जात, धरम, बरन , टूरि-टुरा...
पानी रहिस त बाँहच गयेन एला बैज्ञानिक मन कथें
जिनगी उहें ले सुरु होईस ...कथें किरा मकोरा फेर बनीस मनषे....

फेर आज मनखे के *** आँखि के पानी मरगे ***
सरेहन बीच रद्दा म माई लोग ल नंगरी किंदार दिस......
एकेक डेढ़ डेढ़ लाख के मुबाइल धरे मनषे फोटू खिंचते रहीगे
एक झन अपन अंगरखा म ओकर देंह ल नई तोपिन....
बड़ सोर गुल गुल होईस त गम पाइन बड़ खोज बिन म...
के अरे ए तो फलाना के बेटी आय जे ह देस रच्छा म सहीद आय
किस्सा नो हय न कंथुली रोज बीतत हवय....
मनषे के आँखि के पानी मरगे हवय.....
बड़े भाई चुनदिया के मारत हे दाई ददा ल घिल्ला घिल्ला....
छोटे बेटा डौकी के तोलगी धरे खेंडा चुहकत पर हे ....
परसंग ल बदल दे मोरे मुंह म करिया पोताय हवय ....
*****
फेर का बात रे मनराखन दाऊ काय करम करे रहिस होही
ओकर कस दान पुन्न करईया मनखे के*** देंह म पानी *** परगे
नित नियम बिहनियां पूजा पाठ करना, सांझ के बेरा म रमायन गाना ,सबके मरनी म बड़ मन लगाके चिता रंचना ओकर धरम....
बिहनियां के हे कृष्ण गोविंद ....के मण्डली के मुख करता धरता
फेर देखते देखत नख करिया परिस आउ अंगठि गर के गिरगे....
तभे कहय हमर बबा ह तोर उखाने म न बनय  न बिगड़य...
कुछ करनी कुछ करम गति, कुछ पुरबल के भाग
बिगड़े रहिस होही जान अनजान म ...लोक परलोक म...
तभे भगवान के देहे चीज भगवान लेगे बिन कहे बोले .....
*****
मनषे सब गांव जात, धरम घर के देखेन फेर शसन गउँटिया एक लम्बर के ....बाप मरिस आँखि ले एक बूंद पानी नई गिरीस ....
मरगे बाप बेटा के मुंह ले दु आखर बने बने सुने बर...
जेवान बेटा पीपर पेंड़ म दबा के सांस छोंड़ दिस देंह छोड़ दिस ...
बहनोई ओकरे घर आके शरीर तियाग दिस .....
दाई उमर भर मोर नानकन मोर नानकन कहत थकगे...
बहिनी मरगे नान पन ले सेवा करत ....फेर का बात रे आँखि
न ऑंखि म आइस न दिखिस न ढ़रकीस कोकरो देखत म ...
मनषे बिदेह राजा ले ओ पार ....न हूँकिस न भुंकिस ....
 " बिन मानी-बानी-पानी ,, के आज घला मुड़ उठा के जियत हे ।
*****
मरगे *** बिन पानी *** बछिया के धनसाय ......
एक ठन बेटा जनम भर बाप के मुंह ल नई देखिस ....
रख्खी डौकी के चक्कर म खेत-खार सब जँहड़ बिंहड़ होगे....
भादों के महीना म झोर झोर के  *** पानी *** गिरीस 
नदिया , नरवा , तला, झोरकी, गांव, गली, खोर जला थल होगे
जुन्ना कोठी के दीवार गिरगे मुंढर घर के ऊपर म.....मुंढर घर के देवार ह लदक दिस रेंगान के  केड़ेरी ल, फेर का धारन डोलगे ... होगे बुता मुड़का गिरगे धनसाय के मूड़ म....
बिहनियां ***** पानी थिराइस ***** त मनखे निकरिन घर ले
देखा देखा म देखिन टारींन मुड़का मियार ल त पाइन...
मरगे रहिस ***** बिन पानी ***** धनसाय
*****
***** पानी उतरगे ***** देखते देखत त गम पाइस अपन औकात
जेला पावय तेला अपन गाड़ी,  घोड़ा , सोन, चांदी, घर, खेत-खार
नौकरी, बंगला इंहा तलक सारे पोंसवा कुकुर के रंग आउ पूछी के टेढ़वा नीक ल बता के सबके अपमान करना अपना धरम समझय
बेटी ल परदा म राखय, कोंहुँ घर म आगे त रेंगान म बईठार के एक कप चाहा पिया के रेंगा देवय, बेटा बेटी होगे रहिन मनमुख्खी....
मनखे ल मनषे कम कुकुर ले जादा नई हेज़य....
किंदारिस भगवान घला ह अपन बाँसड़ा के लौड़ी ल.....
उतान परगे छत नारी जुड़ागे .... थू ...थू होगे ...
बेटी भागगे डरा वर संग सब्बो सोन चांदी ल धरके रातों रात...
बेटा लाज म घर छोंड़ के नौकरी म परदेश निकरगे ...
घरवाली ल बेटी के करम के जियान परगे त लुकुवा मार दिस
अब कुकुर के हागे उठात परे हवय घर म
तभे कथें बमरी मत बों, अंगूर नई फरय  राम जी ।
*****
शिवरीनारायण म महानदी के पुल बुड़गे एकेच घरी म ...
कहाँ ले आइस होही रेला पानी के मंदिर के दुआरी ले चढ़के 
महानदी के जल भगवान के चरन पखारे लागिस .....
पूरा ह खरौद के लखनेश्वर जी के घला पैलगी करे पहुंचगे ...
भुनेश्वर महाराज के मंझली बेटी सुकन्या सांवर देह के रहिस ,,,, 
लागथे महतारी के छांव परे रहिस काय नाक नक्शा एक नम्बर फेर 
सुंदर गत, गढ़न , बात, बेवहार, बानी, पानी, सुभाव होए के बाद घलो बिहाव नई हो पाए रहिस, परमात्मा के किरपा ले सुकन्या के बिहाव नरियरा व्यास परिवार म अनुज व्यास जी बर होगे ।।
ससुरार म सास, ससुर, जेठ, जेठानी सबके मया मिलिस आउ अपन बात बेवहार म सब ल रपोट डारिस *** चढ़गे पानी ***
पहिली पठौनी ले घर लहुटीस त महतारी जनकदुलारी रो डारिस
सांवर सुकन्या मंदिर के दुआरी चढीस आउ महाराज रामसुंदर दास जी के गोड़ छू के आशीष लिस त पुछिन के नोनी ह काकर बेटी आय ।।। # चढ़गे # पानी प्रेम, नेम आउ बिहाव के हरदी के ...

पानी देखके हमर पुरखा मन गांव म बसीन ,, पानी देखके बर बिहाव लगाइन ,, पानी बर तला कोड़वाइन आउ पानी बानी बर मर घलो गईंन ....फेर आज बदलगे काय जमाना के चलन ????
सुरुज घलो उत्ति बूड़ती होथे स्वागत करा नवा बिहान के

बस यूं ही बैठे-ठाले
निहारता महानदी के निर्मल जल को
04 जुलाई 2024

***** फोकट *****

अजगर करे न चाकरी पंछी करे न कांव ।
दास मलूका कह गईंन सबके दाता राम ।।

फेर एकरो लो ओ पार

फोकट के दाना हकन के खाना ,, मर जाना त का पछताना । ।

काबर करिन होहिं देवता आउ राछस मन सागर मंथन
जब देंवता मन ल मनषे भोग लगा देथे फेर ओकरो ले ओ पार
न देंवता ल खाये कमाए, भूख, पियास , नींद के संसो....
कुछु तो कमी बेसी लागिस होही तभे सब जुरीन फेर मथिन
मोर सोंच म नई सागर मंथन के पहिली ....
बिष, कामधेनु गाय, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभमणि,
कल्पवृक्ष, रम्भा कस अप्सरा, लच्छमी जी, वारुणी, चंद्रमा, पारिजात के फूल, पाञ्चजन्य शंख, धन्वन्तरि आउ अमरित ...

देंवता आउ दानव के जुरना, एक संग एके बुता ब हं कहना...
बड़ मानमनौव्वल करे बर परिस होही सुमेरु परबत ल ओकर धरम मरजाद ले घुंच के बुता करे बर मनाए बर ,अटल अचल सुमेरु कईसे आइस होही सागर के बीचों बीच म , फेर एकरो ले ओ पार बासुकी नाथ नाग महाराज ल डोरी कस लपेट के मथानी कस मथना, झन डोलय सुमेरु तेकर बर खुदेच बिष्णु जी शंख, गदा, पद्म, चक्र संग सुमेरु के ऊपर म रखवार बन पहरा दिन ।।
मथागे जिनगी सागर कस निकरिस बिस लकलकात हरियर ....
एला पिहि कोन अब खोज चिमनी धरके जटाशंकर....
निकरगे लक्ष्मी अति चञ्चल खोज ओकर बर जोग्य बर...
सब्बो सोंचत हे अमर हो जांवां आउ फंदोत रहौ फांदा ...पियत रहौ धरम करम करईया मनखे के लहू .रोज रंच दव नवा लुकडु फांदा ..
मानले कतको चेत करे ओ ह बैमानी कर दिस त काटे सक ओकर नरी ल , कोन चलाही सुदर्शन चक्र जे ह फूंके सकय पाञ्चजन्य शंख ल , आउ कभू शंख के जगा अन्ते ह बाजगे त .....
वारुणी, कलप वृक्ष, कामधेनु ऐरावत सब्बो रत्न मन ल जोग्य हाथ धरना धराना घलो ह बड़ मुड़ पीरा के जिम्म्मेदारी आय ।
मथे बर परथे जिनगी ल त हिसाब किताब ह बरोबर होथे ....
जेकर खाये तेकर देहे बर परथे ...कभू कभू तोर बर नई आय तभो मांग जांच के देंहें हे हमर सियान मन जे ह माढे हवय त जियत हन
चलिस सुदर्शन चक्र सांप घलो मरिस आउ लाठी घलो नई टूटिस

रचें हवय भगवान ह संसार ल ....बने हवय पञ्चतत्व ले संसार.....
कर न जी ओकर रच्छा ओकरे बर तो तोला मनखे गढ़ीस ...
निमरा एक ठन ...करबे कुछू कहिके बुद्धि घलो दिस ....
झन काट बन म अपन मनके उपजे पेंड़ ल ..तोर ददा नई लगाये हे
खोज साजा, साईगौन, खम्हार आउ बना खईलर मथे बर दही
झन धरा टंगिया के बेंठ बन आउ अपने नाश करे बर...
जा खोज पटुवा नहीं त खोद खोज के परसा जरी ..फेर थूथर ओला नेत लगाके बना ढ़ेरा तेमा आंट त बनहि डोरी त खईलर रेंगहि जी
नई पावस ***** फोकट ***** म सब्बो जिनिस ल ....फोक्कट

दूध चुरहि कुंडेरा म... कुंडेरा बनहि सीझे माटी ले...भुंइया के सेवा करबो त ओ ह अपन गुन जस ल बनाये रखही...
महात्तम हवय सबो पंचतत्व के अपन अपन हिसाब म....
दूध ह हवा म नठा जाथे...चुरोये बर परथे आगी म ....त घोंस चकमक पथरा खोज लोहा ....बन अगरिया फेर उठा आगी आउ सिपचा गोरसी ल ...नहीं त अगोरा कर बन म बांस के रगराय के मिलहि आगी फेर धूंगिया जाहि अगास ले पताल तलक....
दूध ल कुकुर खा देहि के बिलाई पी देहि त बनाये बर परही कौड़ा
तेमा मुसुर मुसुर सिपचहि पलपला त मिठाहि अउंटे दूध ...
कुकुर बिलाई के छेंका बनथे तोपना…. माटी के ...किरा, मकोरा , कचरा , कूटा ले घला बांच जाथे..... आउ गुरतुर चुरथे ...
कतका कन असकट बुता करे बर परही  रोजेच रोज ....
तेकर ले जा बजार 50 रुपिया फेंक चूरे दूध ल धर ला .....
फेर झन देख के पूछ के कोन तला, डबरी के पानी मिलिस के मिला दिस दूध बनाये बर चप्पल के रंग रोगन के मिलगे यूरिया खातू....

हमर सियान मन चलाईंन खईलर गियान के आउ मथ दिन जुग ल
त कुढ़ाये रहिस धान, औंहारी, गाय, गोरु, चारा, भूंसा, खरी, कोठा, संकरी, कोटना, पैरा, कोढ़ा, गहुँ, तिल, नून, अलमल....
 त कहाइन गौंटिया, मालगुजार, जमींदार ..धाक रहिस 50 कोस म
चातर खेत मेंड़, पार जेमा बोंवाये रहत तील , राहेर ..…
धान कटिस त उतेर दिन अंकरी संग मटर आउ बटुरा दाना ...
खेत के उपज कभू फरक नई परिस कौंहु दिन बादर म ...
कन्हार म गरु, त मटासी म थोरकन हरू आउ टिकरा म कोदो कुटकी, रेगहा अधिया म आँखि मुंदके धरा दिन .....
त संझउति बेरा म कंडील के काँछ पोंछा जावय ...
गाय, गरुआ संग नांगर, गाड़ा, के बेंऊत बने रहय.....

आज सब्बो लेन देन ह लिख, पोंछ, फेंक, संग कलदार के माथा म माढ़गे , जेला देख तेला पों पों करत गाड़ी म आइस, बड़े बड़े रुख राई ल एके घरी म काट बोंगके डोहार दिस, नदिया नरवा ल राखड़ म पाट के नवा फैक्टरी लगा दिस, उड़त हवय धूंगिया बोहात हवय दवाई मिंझरा पानी नदिया म, बन रातों रात उजर जावत हे, रेंगत हवय रात दिन चिर चिट चिर चिट करत करेंट ह बड़े बड़े खंभा म
आंच आही संगवारी कुछु कर नवा जुन्ना नई त पठेरा कस कौड़ी दांत ल नीपोरे परे रहिबे अस्पताल के ढेंकी कुरिया म....
गुंथाये रहिही किसिम किसिम के नारा फांदा मुंह, कान, छाती, गोड़ ,आँखि म मनषे घटरत परे रही ......
 
नई मिले हवय फोकट म कुछु सोंच तो भगवान के देहे बेटा बेटी दाई ददा असमय कईसे देखते देखत दिया कस लौ अलोप होगे
संसार तोला दिस ओमा मिंझार मिला ओकर ले जादा ओला दे
बने रहिहि तखरी के कांटा बीच म ...तुंहर मन ....
पानी गिरत नई आय त चिंता पेल दिस ए बछर का होही 

बस यूं ही बैठे-ठाले
08 जुलाई 2024

गुरुदेव Rahul Kumar Singh सादर प्रणाम


संदर्भ आपका 07 जुलाई का पोस्ट
 अज्ञानी बेकूफ़ की टिप्पणी 
 " जानते हो किससे बात कर रहे हो ,,,मुझे पढ़ो फिर बात करो  ,, 

एक हाना सुरता आइस सर जी
कुंवार म कोल्हिया जनमिस, कथे अषाढ़ म बड़ पूरा आये रहिस

एक अक्षर ज्ञानी गंवार की टिप्पणी पर मेरा एतराज़ दर्ज  करें ...
सुनो  ससुर के नाती टिप्पणीकार ...उर्फ सरहा साहित्यकार ...
हे अक्षर ज्ञानी गंवार तुम हिंदी साहित्य के विकास के आदिकाल में पैदा हुए ही नहीं और भक्तिकाल की संतान लग नहीं रहे हो क्योंकि तुम्हारा  अहंकार तुम्हे उबरने नहीं दे रहा है लगता है कोई सामान्य पढ़ा लिखा व्यक्ति तुमसे चर्चा करे, रीतिकाल में जब तुम्हारे पूर्वजों ने पांव धरा ही नहीं तब इसकी चर्चा व्यर्थ है । अब आती है आधुनिक काल की  जिसकी संतति तुम हो ही नहीं सकते ।। यह मेरा भ्रम नहीं पूर्ण विश्वास है ।

कहीं पढ़े हो कि "" साहित्य समाज का दर्पण होता है ,,,,
सर्जक, लेखक , कवि, कवियत्री , व्यंगकार, कलाकार ....
इनकी भाषा , इनकी सम्प्रेषणीयता, इनका शिल्प विधान इन्हें सर्वकालिक, सर्वमान्य, सर्वग्राह्य और लोकप्रिय पूज्य बनाता है , 
ऐसा मेरा मानना है, किन्तु जो व्यक्ति किसी को पूर्णतः जानता ही नहीं वह अभद्र टिप्पणी करे यह नाकाबिले बर्दास्त है ।
रामायण, वेद, शास्त्र, पुराण, ग्रंथ, काव्य, सर्वकालिक .... हैं  ?
ये क्यों आज भी पूजे जाते हैं माथे से लगाये जाते हैं चिंतन करो ?

टिप्पणी कार का अभिमान कहता है .... मुझे पढ़ो.....
मैं और मेरी बात तो छोड़ो कोई भी तुम्हारी सड़ी पुस्तक पढ़े क्यों?
तुम महान हो तो नोबल पुरुष्कार जीतो और महान बनो ।
निश्चित ही तुम्हारी पुस्तक का स्तर *** पम्मी दीवानी *** सा होगा 
तुम्हे पढ़कर कोई भी व्यक्ति निश्चित ही भ्रमित होगा ही ...
क्या तुम्हारे पूर्वज या तुम हिंदी साहित्य के स्वर्णयुग से हो ?
या तुम्हारी तथाकथित रचना आदरणीय रामधारी सिंह दिनकर, सूरदास, मीरा, कबीर, रहीम, रसखान के समकक्ष है ?
दाऊ जी तुम्हारा वास्ता भी रीतिकाल / भारतेन्दु युग / शुक्ल युग 
के किन आदरणीय को स्पर्श करता है ?

तुम्हारी उदण्डता, तुम्हारे टिप्पणी में व्यक्त होती है वही तुम्हारे विचारों की अभिव्यक्ति में होगी यह मेरा दृढ़ विश्वास है ।
जरा चिंतन करो क्या तुम्हारी रचनाएं रीतिमुक्त काव्य धारा की हैं, 
जहां बिहारी जी के दर्शन होते हैं, या रीति सिद्ध काव्यधारा में चिंतामणि जी, केशवदास, रतिराम जी की रचनाओं के चरण रज के बराबर भी हैं ? कभी घनानंद जी, आलम, बोधा ठाकुर को पढ़ो और कढ़ो फिर किसी लेखन पठन, पाठन की चर्चा का औचित्य बनता है ।
एक बात स्मरण रखो आदरणीय निराला जी, पंत जी, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद जी को छू पाना तुम्हारी औकात के बाहर है
रांगेय राघव जी का नाम तुमने सुना है ?????

तुम्हारा लेखन नवीन है या संकलन मात्र कभी बिचार करना 
तुम्हारा बौद्धिक स्तर किस महान लेखक ,साहित्यकार के समकक्ष
तुम्हारे साहित्य का मूल प्रतीक किसका प्रतिबिम्बन करता है
नवीन सोचो किन्तु नवीनता में कोपलों का सौंदर्य हो 
नवीनता की चाह में गन्दा सृजन न हितकारी न मंगलकारी....

बेवकूफ इंसान एक बात स्मरण करना भूल जाता है कि 
किसान किसी कृषि वैज्ञानिक से ज्यादा जानता है बस उसके पास लेखन, अभिव्यक्ति, आंकड़ों का संकलन, के लिये जीवन की आपाधापी में समय नहीं । 
 ***** मेरे जैसा सामान्य फेसबुकिया लेखक जिन लोगों के बीच बैठकर उनकी चर्चा सुनता है बस उनका लेखन नहीं सात दिन का लेखा जोखा एक खण्ड काव्य बन जायेगा  *****
पुरातत्व, धर्म, दर्शन, परम्परा, लोकजीवन, जीवनशैली, साहित्य,
समाज, जाति का अति सूक्ष्म ज्ञान इनके जीवनशैली के आभूषण हैं कभी बैठो ऐसे लोगों के बीच और सुनने की क्षमता बनाओ ...
आग्रह नहीं आदेश टिप्पणी के पूर्व अपनी प्रोफाइल का स्वयं आंकलन करो फिर अपनी बात करो ।।
जो व्यक्ति अपने जनक को मात्र मांसाहारी होने पर नीच कहे...
उसका स्तर क्या हो सकता है ? अति चिंतनीय....

बस यूं ही बैठे-ठाले 
14 जुलाई 2024 
अपमान मेरे किसी भी श्रद्धेय का माफी कदापि नहीं 
अपनी सीमाएं तय करके रखिये जनाब ....

छेड़ना नहीं सैलाब हूँ , बहा ले जाऊंगा  ।
साहिल पर ठहरता हूँ , घरी ....दो घरी  ।।

..... अड़गसनी ....

        ***** मान झन मान मोर साढू के काय खँघत हे

त्रेता जुग म बाली आउ एक झन राच्छस के घन घोर जुद्ध होईस
कथें  जी बंहचाये बर राच्छस खुसरगे जुन्ना खोह म......
ओ किल्ली परत ले पटका पटकी मार पिटाई.... अनसम्हार लड़ाई
देर सबेर खोहरा ले लहू के नदिया बोहगे ....बाली के छोटे भाई सुग्रीव मन म बिचार करिस गये ददा रे ए चण्डाल राच्छस मोर बड़े भाई बाली ल मार डारिस त तो अतका कन लहू बोहात हे ....
बाहिर निकरही त मोरो बुता ल बनाही ....इही सोंच बिचार म
बस भोरहा आउ जी के डर म खोहरा के मुँहड़ा म ओधा दिस बड़का जनिक पखना ल , हरप दिस पखना ..... 
ओला ढकेल के निकर आइस बाली फेर तो पूछ झन....

जगत माता पार्वती जी घला देबी देंवता मन के बेर कुबेर आये आउ बरदान मांगे म धीरज टोर डारे रहिंन होंहि त शंकर जी करा बिनती करके सोन के लंका ल बनवाये रहिंन, घर म गोड़ नई मढ़ा पाए रहिंन ...भुछि दछिना म रावण मांग लिस लंका ल ....
नहीं त तीनों लोक चौदहों भुवन म पहिली जग के महतारी  होतिस जेकर घर पहिली ***** अड़गसनी ***** लगे दिखतीस ।।

सब मन म बिचार करिन होहिं के झन टरय के टारे सकय ओधा ल
मोर बिचार म त कौंहु सियान Ravindra Sisodia  मन्त्रा दिस होही लगा दे कुछु अड़गड़ बेड़ा करके त हेरे धरे म थोरकन तो बेरा लागहि । फेर का..... लगा दिखींन होंहि बेंढ़ा लकरी के छेंका ....
,तभे  एकर ना परिस होही ***** अड़गसनी ***** गुनत रहव 
मोला लागथे ओ समे म घर कुरिया नई सिरजे रहिस होही ...
त कहाँ के तारा आउ काय के कूची फेर ओ बेरा म चोर चिंहाट नई रहिस होही कहाऊक नई लागय ? ... आज घलो कथें शनि सिंगनापुर म कोंहुँ घर म तारा कुची न लगय न कोंहुँ लगावय ।

एक दिन किन्दरत बुलत भेंट करे बड़े बखरी अकलतरा 
राघव राजा Raghavendra Singh Akaltara  के हबेली म देखत देखत म एक ठन सरई के मुसर कस दुआरी के तीर म गोल लकरी देखें.... मन म बिचार ह कल्थी मारिस  ए ह काय होही ।।
गुरु  Rahul Kumar Singh बताइन के ए ह दुआरी के  आड़ा आय , मैं पूछ पारें ...फेर संकरी घलो तो लगे हवय ...
आउ लोहा के सिटकिनी घलाव ...ओइ मेर डोलत हवय ....
बताइन सब्बो के अपन अपन कथा किस्सा आउ कंथुली हवय ...
फेर चोर बर न तारा बने हवय न अड़गसनी, न संकरी ....
ओ ह कुछु ल टोर देहि कुछु ल उसाल देहि चोर के काय धरम ...

जुग बदलिस , मनषे बदलीन संगे संग सोंच बिचार घलो बदलिस 
फेर मनखे के हंकार मनषे के बदलत बेरा लागिस होही तभे बनाय होंहि हमर सियान मन ***** अड़गसनी *****
आज के जुग म सहर म *** $ चेप्टी लॉक $ ***
बड़ मनषे न दिन देखए न बार बर्रा बईला कस मुँहू धरिस कतको बेर कुबेर धमकगे कोकरो घर, मोला लागथे जुन्ना दिन घलो म अइसन्हे होत रहिस होही नहीं त कुकुर बिलाई के रोका छेंका बर दुआरी के आगू पीछू लगा दिन होंहि .....अड़गसनी ?

बस यूं ही बैठे-ठाले
10 जुलाई 2024
                  ***** विनम्र आग्रह *****
मैं नही लगा पाया अड़गसनी नीच रिश्तों के लिए आपसे आग्रह आप अवश्य लगाए अपने घर ***** अड़गसनी ***** विचारों की चेतना की ताकि अवांछित व्यक्ति आपकी मर्यादा को आहत न कर जाए, मनुज से बड़ा और खतरनाक पशु भगवान बना ही नही पाए 
अड़ गसनी एक ऐसा अवरोध जिसे आप स्वीकार और अस्वीकार कर सकते हैं, जिसके लिए जाने अनजाने तर्क कुतर्क रखा जा सकता है । जीवन में अपूरणीय क्षति का निदान ***अड़गसनी ***

मैंने खोया है अपना सुकून, मान, मर्यादा, मां और बहन ।।
10 जुलाई 2021 को मेरे पिता की मणि की माला टूट गई थी 
मेरी छोटी बहन सुनीता सिंह को उसके पुत्र युवराज सिंह ने मुखाग्नि दी थी ... एक विचार जिसे साझा किया  ।

बस चिंतन करें मन लगे तो अमल करें

***** अनाम दाई *****



बड़ दुख लागिस ......आँखि आंसू म झुंझरागे....
पर साल के आगू साल श्राद्ध  करे गयेन त बड़ नियम, धरम, नेंग चार, बुलऊआ पुरखा मन के नवा नवा बात जाने बर मिलिस ...
श्राद्ध, तरपन, फेर पिंडा दान करे बर लगारी लगाके ....
प्रयागराज ,फेर बनारस, फेर गया जी जाए बर परही .....
त सब्बो जगा पुरखा संग हितु पिरितु मन के पिण्ड दान करे बर परही ,, फेर महाराज कहिंन के सब्बो झन तो इही लोक के माया ले उबरे नई ये ,,,,, हम पूछ पारेंन त इंकर मुक्ति गति कईसे बनहि ।।
व्यास जी कहिंन जावा सब्बो झन ल सादा चाउर धरके नेवता पारके संग म ....धरा .... कहाँ ले ?  जावा मुर्दावली ओमन ल संगे संग धरा मुर्दावाली ले आउ संसार के मोह- माया  ले मुक्ति देहे बर ....फेर ओहि मनके आगू म पिंडदान करके ओमन ल बिदा करा नहीं त भटकत रहीं ओकर जी इहें .....
फेर जब पितर पाख म बलाहा अलग अलग तिथि म त आँहिं तुंहर ओरी छांव म तुंहर रान्धे पसाय जिनिस ल खाये जुड़ाय...

गांव, घर , परिवार, गोत म नेंग चार , धरम, करम आउ ......
लोकाचार , बेवहार एक नहीं सगरी परकार के निभाये बर परथे 
अकेल्ला तो जिनगी चलय नहीं संगी , संफरिहा, संगवारी, कमिया, कमैलीन, बुता करईया, चिरई, चुरगुन, गाय, गोरु, कतका ल गिनावव एकर संग खुद पिंडा परवईया के कुल, गोत, प्रवर, बंश, श्रेनी के महतारी पच्छ आउ ददा पच्छ के सात पीढ़ी तरी ऊपर कहि देवा के उत्ति बुड़ती सबके तरन-तारन होथे ।।
सोज्झे काय गुने म गिनाही खोज पांच पीढ़ी उत्ति ले ....
करमनीया डोलगे सबके ना सकेलत म .....

श्राद्ध करवाइया जजमान Ravindra Sisodia 
जात क्षत्रिय , कुल सिसौदिया, प्रवर .... श्रेणी ......... , कुल देबी ....., कुल देंवता........, अस्त्र........, शस्त्र......., बंश........,
सबके हिसाब किताब संग म ददा ...बबा...आजा... पर आजा... फेर ओकर बाप ....फेर ओकर बाप .....मिलगे आउ मिलिचगे
ए दे ....ए दे फदक गे दाई पच्छ म आके .......
श्राद्ध करवइया जजमान जस के तस बबा Ravindra Sisodia 
माताराम विद्यावती जौजे गो लोक बासी श्री भुवन भूषण सिंह (नक्की बाबू)बड़े भाई भुवन भाष्कर सिंग, ...तेकर बड़े भाई ..सत्रुघ्न सिंह उकील ददा.ओकरो बड़े भाई डॉ चंद्रभान सिंह... तकरो बड़े भाई ....बैरिस्टर ददा छेदीलाल जी......
दाई विद्यावती देवी इंकर सास सोन कुंवर दाई जी  फेर ...इनकर सास, ....अनाम इंकर बूढ़ी सास...आजी सास....पर आजी सास
बस ई ही महतारी मन जुरगें अपन नां संग गांव के नाम जइसे कुंती, माद्री, कौशल्या इहु घला मन उँकर जनम देश, गांव के नाम धरके
हूंत करावँय......भाष्करींन दाई घरवाला के सेतिर आज घला खटोला मालगुजारी के हमर दाई के चिन्हारी हवय ।

गोत्र ह तो मिली जाथे बर बिहाव मरनी हरनी म सुने सुनाय....
 *** अत्री, भारद्वाज, भृगु, गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र ***
कोंहुँ न कोंहुँ त होबेच करथे .......मिली जाथे...
प्रवर :- जेमा कुल नाम, परम्परा संगे संग गोत्र आउ जिनगी के करम, धरम, नेंग चार , चरित्तर, गुन, दोस, अकार, परकार, रंग जम्मो कोंहुँ बेर अबेर छट्ठी, छेवारी आत जात दिख जाथे ...
कुल :- घलो ल पूछथे ईँ ह बड़ मुश्कुल हो जाथे काय....….?
लहू के मिजान ....मेल आय तो बड़ सहज, सरल, पानी कस आर पार दिखईया फेर नछत्र, गोत्र, संग पूजा पाठ, जे ह फोकटीहा 
लागथे ....बिज्ञान म लपटाय रथे हमर नेरूहा कस .....
कुल के पयडग़री बने रहय तेकर सेतिर पूछ पुछारी करे रथें ...

आके सटक जाथे बुद्धि सब्बो झन के महतारी कुल म....
मोर दाई के नाव कुमारी, ममा दाई तिरजुगी दाई, बूढ़ी ममा दाई पीली दाई अब ओकर आगू  आजी ममा दाई कोनरहींन दाई , पर आजी ममा दाई रिसदिहीन दाई, ओकर दाई फेर होगे नरियरहींन दाई...खोजत रही गयेन ना ...धराये रहिस होही फेर सुरता ....
होंगे हमर दाई मन  ***** अनाम *****
दाई जे ह हमर बंश ल जनम देथे तेकरे नाम ह अनाम हो जाथे
         ***** अनाम दाई *****
जेह ७ भाँवर किदर काय परिस ओकरे होगे जनमा दिस बाबू नोनी
घर के लच्छमी बनके आइस त दुनों कुल ल तार दिस ..…
मरगे देहरी नई डाँहकिस जनम भर  कुल के मरजाद खातिर ....
मनखे ल बाप के पदबी धरा दिस मुड़ी ले अंचरा नई ढ़रकिस
महतारी घर के बाहिर निकरिस नहीं फेर बाहिर म चिन्हारी दिस
अपन कुल, गोत्र, घर दुआर ल जनम भर तियाग के संग धरिस ...
दाई, ददा, भाई, बहिनी सबके मोह माया छोंड़ के आन घर आइस 
सुरुज उईस आउ बुडगे उमर भर मोर डेहरी कस छां बने रहिस
दाई के एक घं छां ह अलोप होईस त कुलुप अंधियार होगे जिनगी .
भले चारों कती बग बग ले सुरुज नारायन के अंजोर हवय .....
गुरु Rahul Kumar Singh  भला तूं ही बतावा तो ईँ ह आय ?
         ***** अनाम दाई *****

बस यूं ही बैठे-ठाले
१७ जुलाई २०२४

आइए स्मरण कर देखें पूर्वजों के नाम अपने नाम संग चढ़ते क्रम में
देखें हमने कितनी पीढ़ियों को सहेज रखा है मानस पटल पर
भूले से भी स्मरण करने का प्रयास न करें मातृ पक्ष की पीढ़ियों को 
पीड़ा होगी शायद हो जाये आत्मग्लानि कि हम कैसे भूल गए चार पीढ़ी ऊपर के हमारे कुल रक्षक जननियों के नाम को .....
बस स्मरण रहे उनके जन्मस्थान जिसने उन्हें नाम दिया ।।
    " अनाम दाई अकलतरहींन ,,

Thursday 13 June 2024

***** चाण्डाल ( रमाकांत )

एक कथा सदियों पुरानी
एक नगर में यशश्वी राजा मार्तण्ड रानी मीनाक्षी देवी संग
इनकी कीर्ति चारों दिशाओं में चंदन सी महक रही थी
सुदूर घने जंगल मे एक तपस्वी अपनी तपस्या में मगन
पशु, पक्षी, जानवर निःशंक एक संग जीवन यापन में

एक दिन राजा बन की शोभा देखने निकले और भटक गये
घने जंगल में दूर आग जलती दिखी, आश्रय हेतु निकल पड़े
राजा मुनि आश्रम के सुचिता में पूरा श्रम थकान भूल गए
आश्रम में भार्गव मुनि के अतिरिक्त कोई न था 
किन्तु जरूरत की सभी वस्तुओं से आश्रम परिपूर्ण था
रात्रि विश्राम और मुनि के आतिथ्य सत्कार से अभिभूत हो उन्हें नगर आमंत्रित किया और सेवा का अवसर मांगा

कालांतर में भार्गव मुनि काल की प्रेरणा से नगर पहुंचे
राजा और रानी देव् तुल्य मुनि को पाकर अति प्रसन्न हुए
उन्होंने मुनि की रुचि और प्रतिष्ठा अनुरूप स्वागत किया
राजा ने रानी  को शयन कक्ष मुनि को देने आग्रह किया
रानी मीनाक्षी ने शयन कक्ष सुसज्जित कर सौंप दिया

शयन कक्ष में दीवाल पर एक संगमरमर में राजहंस बना था
उसके सामने खूंटी पर नित्य नियम रानी मीनाक्षी
अपने पिता की अंतिम दी गई निशानी मोतियों की माला
बड़े जतन से टांग दिया करती और प्रातः पुनः धारण करती

संजोग जो था रानी मीनाक्षी की उस दिन वो माला वहीं रह गई
भार्गव मुनि समय से आराम करने लगे किन्तु अर्धरात्रि को
अचानक निद्रा टूटी और देखते हैं कि राजहंस सशरीर
धीरे-धीरे एक एक मोटी के मनके को निगल रहा है

मुनि स्तब्ध रह गए अरे ऐसा क्यूं कर ,, क्या यह संभव?
मुनि ने मन मे विचार किया शायद यह मेरा भ्रम होगा
शायद थकान या राजाश्रय में चित्त का विकार होगा
चित्र सजीव हो और ऐसा कृत्य कदापि सम्भव नहीं !

ऐन केन प्रकारेण रात बीती, प्रातः वंदन कर राजा से विदा मांगी, राजा ने आग्रह किया एक दिन और रुकें .....
किन्तु काल ने कुछ और ही लिख रखा था ,, 
मुनि रवाना होने को उद्यत हुए और रनिवास से खबर आई

शयन कक्ष में टँगी मोतियों की माला खूंटी पर नहीं है!!!!

रानी मीनाक्षी के पिता की अंतिम निशानी रनिवास से गुम
मुनि स्तब्ध हो गए ,,,, उन्होंने राजन से रात की बात कही
राजन कल रात राजहंस मोतियों की माला निगल रहा था
कौन करता विश्वास,,,, चित्र कभी सजीव होगा .....
राजा किंकर्तव्यविमूढ़... मुनि को अंगरक्षक बन्दी कर गए

पूरा राज्य इसी चिंता में आकुल रहा कि आखिर मुनि...
सब सोचने लगे राज्य के सन्यासी का ऐसा आचरण

इसी उहापोह में दिन बीत गया राजा मार्तण्ड चिंता मग्न
रात कटे न कटे अचानक शयन कक्ष में एक आहट हुई
राजा की आंखे खुली उन्होंने एक अनोखी बात देखी
राजहंस धीरे-धीरे मोतियों की माला उगल रहा था .....

राजा मार्तण्ड सोचने लगे मन का वहम होगा ,,, 
किन्तु भोर में जैसे ही आंखे खुली ...खूंटी पर माला

राजा का मन पश्चाताप से भर गया,
सिर झुकाये मुनि के समक्ष पूरे वृत्तांत संग क्षमायाचना

भार्गव मुनि ने कहा ......राजन ! ...ये होनी थी जो घटी 
कल प्रातः से रात तक मैने भी समाधि ले चिंतन किया
आखिर इस प्रकार ये होनी कैसे घटित हुई , 

तब ज्ञात हुआ .....प्रारब्ध

मैने आपके ही समान 50 वर्ष पूर्व जनकपुर में
रामाधीन का आतिथ्य स्वीकार कर अन्न ग्रहण किया था

राजन ने प्रश्न किया
मुनिवर आतिथ्य और अन्न का इस घटना से क्या संबंध है?

मुनि ने कहा होता है राजन! 
आप मानो न मानो 

तभी तो राजहंस का चित्र रानी मीनाक्षी की माला निगल गया 
जाने अनजाने पाप और पुण्य के फल भी भुगतने होते हैं

राजन मैने रामाधीन के बरछा खेत का अन्न खाया था ।
बरछा खेत के निकट एक अशांत श्मशान है
जहां बरसों पहले चाण्डाल ( रमाकांत) को जलाया गया था
इस चांडाल ने अपनी मां , पिता , भाई  बहन सबको कष्ट दिया
उन्हें इस कदर अन्न के एक एक दाने के लिए तरसाया,
अन्तोगत्वा वे सब भूखे प्यासे समय पूर्व मर गए।।

लोग मुरदे की राख नदी में बहाना भूल गये थे ।

एक सांड क्रोधित होकर उसे खुरों से खुरच रहा था 
अपना क्रोध चांडाल के जले स्थान पर उतार रहा था ।।
उसकी राख उड़कर उस खेत तक गई, जहां अन्न उपजा
अन्न कर के रूप में राजकोष में 
राज्य को संताप और राजा को आत्मग्लानि
रानी मीनाक्षी का मन क्लांत होना ,विधान में लिखा था 
और दोष मेरे भाग्य में लिख गया ।।

राजन स्मरण रखें 
दोष जाना अनजाना सब हमारे भाग और भाग्य का होता है ।

13 जून 2020 रात्रि 3.31

Saturday 30 March 2024

***** भितरहीन आउ खवईया *****

बड़ महात्तम आय खवईया के जे मानिस ते जानिस

आज होरी म गुलाल लगिस गाल आउ कपार म ..…
आउ रंग ह उबकगे अन्तस् ले छाती म ..आँखि के कोर ह चुचुवागे
दु महीना पहिली ले बनत रहिस फांदा ...देला बलाबो ...देला घलो
सब सियान के सुरता करेन , कईसे मया करै बबा हमर...
लईका ल तो बबा ह बिगारथे... नाती कुछु गलती करबेच नई करय
कभू बद्दी देहे चल देहे त तोर सात पुरखा तरगे ...
भोलेनाथ ल बिनोबे आज ले कभू नई जावव कोकरो घर बद्दी देहे 
लईकाई म पागे कोकरो सइकिल त ..खेचेक खेचेक डंडी के भीतरी ले हाफ पईडिल म गोड़बोजवा चलिस गाड़ी, फ्रीभील ह छोंड़ देवय
नाँहीं त सटकगे त दुनो पार रेंगे धर लिस सइकिल ...होगे बुता

पहिली कहाँ खाई खजेना .... हटरी म गुलगुल भजिया, बरा, मुर्रा के लाड़ू, करी के लाड़ू, चना फुटेना, आउ मेला म जिलेबी, आलू के  गुलाब जामुन, चना चरपटी बस होगे लइकईँ के खंजा...
फेर कभू कभार कोंहुँ मर हरगे पर गे छुट्टी त ....
इंदिरा उदीयान के चार, मकोईया गड़ेन दे कांटा हाथ गोड़ म फेर..
अमरताल भांठा के बोइर, बनाहील, खटोला, के गंगा अमली,
आउ गिरगे पानी त पूरेनहा, दोखही, पर्रि, रामसागर , लख्खी के धार म चढ़त मछरी ....बाम्हन घला केंवट के सेतिर घर दिस ...
फुर फुंदी उड़ातहे अध्धर ले धरे जानिस तेकर निशाना उच्चे...
केकरा, बिछी के डाढ़ा म डोरी बांध डारिस ते बड़े दाजुगर आय...

जेहर ए डारि ले ओ डारी बेंदरा कस कूद दिस ते ह हमर जोंडी...
ठूठी बीड़ी बबा के कलेचुप धर लाइस आउ संग म दु ठन सईघो बीड़ी संग माचिस के कांडी आउ माचिस फोफि के पट्टी ...
ओकरे कहे म चुरय अमली पेंड़ के निकरे कौआ अंडवा....
बारा बतर के रहय लइकाईँ के फांदा...
हपट गयेन कभू त माड़ी कोहनी छोलागे त संगी मुत दिस...
आज तो सगे बियाये लईका कटाय म नई मुतय .ओरजन घट जाहि 
नाक फुटगे नून पाल , डंडा पचरंगा, ईभ्भा खेलत म त सूंघ ले गोबर आज कोंहुँ ल सुंघों दे त सीधा परलोक धर लेहि ।

कोंहुँ ले बुलके आइस लईका *खवईया* के पहिली दिख जावय
खवईया***** मुखिया मुख सो चाहिए, खान - पान सो एक ।
                     पालय पोषय सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ।।
जेकर अन्न पाये के बाद आन के थारी लगय ....
आज घलो मरनी-हरनी, बर-बिहाव के पूजा-पाठ म हवय सियान
ओहि ल ओकरे बर भितरहीन हेरही पहिली थारी...
जुन्ना दिन म पोतिया पहिर के रांधय दार भात ...
बटलोही म चुरय दार, त कुंड़ेरा म दूध , करिया हंडिया म भात
खसखस लोहाटी करईहा म चुरय साग ...त कोन बीमार परय ?
आजो कथें हमर दुआरी ओसारी म ....
महतारी के परसे आउ मघा के बरसे ... बिस्तुर नई जावय ...
आज काल बदलगे भितरहीन ...रान्धथे बिन मया दया के
कोई नेंग चार नई ये कांही श्रद्धा नई ए ...
फुस ले करिस चूर गे, फोस ले करिस उतरगे...
ओलिया दिस फिरिज़ म खा जुड़ाये ल ...पर बेमार...
पहिली तात तात भात, निकरत हे धुआं महकत हे साग
दूध, दही, गुर, घी, अथान, चटनी, बरी, बिजौरी, 
मढ़ाये हवय पठेरा म कौंरा सिराये नई पाइस परोसा होगे ।।

बबा Ravindra Sisodia कहत रहिस नंदागे सब ....
आउ आगू नई सुरता राखहिं काय, 
अलोप हो जाहि बाती कस लव सबो नियम धरम आउ मया...

बस यूं ही बैठे - ठाले
होली की शाम सबको सादर प्रणाम

" अगास दिया ,,

चूल्हा के आगी आय मोर महतारी 
कभू-कभू लागथे भौरी मारत पानी के लहरा आय दाई
फेर कोहुँ दिन ओकर छाती ह भुंइया कस पसर जावय
ददा बताइस तोर महतारी पवन आय बगर जाथे सब जगा
दीदी कहिस हमर महतारी अगास आय

दाई लइकई म चित्त सुत जावय आउ गोड़ म फ़ांस लय गोड़
ऐढ़ा-बेढ़ा फंसगे हमर गोड़, आउ अध्धर होगे चुतर
डेरी हाथ जेवनी म आउ जेवनी हाथ डेरी म धरागे

फेर कभू-कभू माताराम बईठ जाय खटिया के पाटी म
आउ फ़ांस देवय दुनों अपन गोड़ के आजू-बाजू
एहु म फेर हेल्ला  पर जाय हमर दुनों के चुतर
हवा खुल जावय पेट हरू हो जावय, गोड़ के गुझियांये 
सकलाय जतका नस रहय ते मन पट पट ले माढ़ जाय
ई खेल आउ खेलवारी म रहीस हमर बैज्ञानिकता
ओइ गीत मोर महतारी के आजो घलो किंदरत हे मन म

***** झुलिया झूल कदम के फूल
बाहरत-बाहरत कौड़ी पायेन ।।
          एहि कौड़ी के नुने बिसाएंन
ओहि  नुने ल गईया खवाएंन ।।
           इहि गईया ल गयेन चरायेंन
ओहि गईंया ल गयेन धनायेंन ।।
            इहि गईया के दुधे दुहायेंन
ओहि दूध के खीर पकायेंन ।।
           आ जा राजा मुहूं ल खोल
ए दे खीर  गुप्पूक ले ।।

माताराम गुड़ेरिया चिरई कस फुर्र ले उड़ियागे
सोचत हावव अगास म कोन मेर होही
अगास म देखथौं चोर आउ खटिया (सप्तर्षि) के दुरिहा म
***अगास दिया *** बन रब्बक ले चमकत मोर महतारी 
गीत सुनावत हे मोर बहिनी सुनीता ल

***अटकन बटकन दही चटाकन
लऊहा लाटा बनके कांटा
    तुहूर तुहूर पानी आवय
सावन म करेला फुटय
     चारों ( पांचों ) बेटी गंगा गईँन
गंगा ले गोदावरी
     पक्का पक्का आमा खाईन
आमा के डारा टूटगे
        भरे कटोरा फुटगे

काबर भरे कटोरा फुटगे ?
कईसे भरे कटोरा फुटगे ??

आश्विन कृष्णपक्ष तृतीया, पितृ पक्ष
12 सितम्बर 2022

ये कहानी समर्पित माताओं कोमोर महतारी ..… बड़ सुग्घर

कारी आउ गोंदील (दाई-बेटा ) दुनों झन शिवरीनारायण मेला देखे गईन । सरकस, सिनेमा, बरतन दुकान, रेहटा,
जलेबी, चना चरपटी, सड़इल, बताशा, साइकिल दुकान, मौत कुंआ, जोक्कर,कठपुतरी बुलत-बुलत थकगे दाई बेटा । बाढ़त गइस मनसे दूरगँछि कस । रेलम-पेल मंदिर म ठेलागे मनसे ऊपर मनसे छूट गईस सांथ दाई बेटा के हाथ लक्ष्मीनारायण महाराज के गोड़ पखारे के चक्कर म ।।
भगवान के दर्शन के लालसा म भुलागे महतारी बेटा ल ।
बाह रे माया तोर मालिक महतारी कल्लागे अपन दुच्छा हाथ देखके ।। छूटगे कारी के तोलगी लइका के हाथ ले 

पहिली पइंत छुटिस अंचरा दाई के अध्धर होंगे लइका
कोरा सुन्ना लागिस कारी ल, मन भुकुर भुकुर होंगे ।
गोंदील हदरगे अकेल्ला होके, चारों मुड़ा अंधियार होगे ।
दाई ओ दाई ओ दाई.........चारों कोती मातगे पीरा...
फेर मेला के हल्ला गुल्ला आउ धक्का पेल बड़े परगे 
गोंदील के रोवइ कल्लाई के ऊपर ,,,, देख डारिस पुजारी
लइका के आँखी के आंसू आउ मन के पीरा ...…. ।

पुजारी हपके बलाइस मेला के कारकुन ल ... करवादिस
हांका । बाजगे भोंपू । लइका गँवागे मंदिर म पुजारी करा हवय देखा भाई बहिनी मन आवा ले जावा । ऐति बिपतियागे चार मनसे लइका संग ,,,  तोर काय नाम आय
गोंदील, कोन गांव म रथस ...नई जानव, काकर संग आय हस.... दाई संग , काय नाम आय ...कारी, कइसनहा दिखथे .... मोर दाई बड़ सुग्घर हे । मोर महतारी बड़ सुग्घर ..हांका घनघनागे सुना हो बहिनी मन सुना जी...

जुरगे मेला म महतारी ...सोन चांदी म लदाय , किसिम किसिम के लुगरा , हांका परतगे महतारी जुरतगे ...
मौका मिलगे बहिनी दाई मन ल बताय के ...देख मोर 
सोन के पुतरी, कलदार, सूंता, कटवा, मरीच दाना, गल पटिया, गुलु बन्द, हाथ के हर्रेया, गुजरी, ककनी, कड़ा, कंगन, नांग मोरी, आउ हालगे बनुरिया, गोड के लच्छा , पायजेब, तोड़ा, पैरी, झांझ, सांटी, गुलशन पट्टी बाजगे गोड म, एक से एक  बहुरिया कुढ़ परगे, रद्दा मूंदागे...
आँखी थिरके धरिस भगवान के रचना देखके........।
कस बाबू एमा कोन ह आय तोर महतारी...…..?
अपन ले अपन सुग्घर माई लोग ...फेर नई फरक परिस 
गोंदील ल । अधीर होगे । दाई मोर आँखी म नई दिखिस ... धुँधरागे आँखी मनसे के फुदका उड़ाई म ।

थकगे सुरुज घला  बुड़ती म चले बर धर लिस पच्छिम म
मनसे मन घलो धीरे-धीरे छटागे ,,, रोवाई घला थिरागे
फेर छाती के सुसकाई जस के तस बने रहीस .....
दिन बुड़ती होगे, बरदी लहुटे बर धर लिस , गरुआ के खुरी के धुर्रा बगर के माघी मेला म , इहि ओहरती बेरा म
लक्ष्मीनारायण मंदिर के कलश ले लहुटती सुरुज के अंजोर परिस कारी के मुंह म गोंदील के आँखी चमकगे

कलपत अल्लर परे कारी गोंदील ल पाके अब्बक होगे
न रोवत बनिस न बनिस सुसकत ,,,, भरगे आंसू
फुदका म सनाय चुन्दी, उघरा मुंड, फाटे रेशम कोर के लुगरा, हाथ म पटा, बीरबीट कारी ,,,, जइसे नाव तइसे मुंह
गोंदील दऊंडगे महतारी बर हपट्त परत ....कूद परिस 
पुजारी अकबका गईस वाह रे मोर सुग्घर कारी
बाह लक्ष्मीनारायण महाराज तोर महतारी के सुग्घराई
धन हस मालिक , धन हे तोर रचना महतारी के

बाह रे गोंदील आउ तोर सबले सुग्घर महतारी कारी
हदरगे दाई हदरगे बेटा महानदी के निर्मल पानी म 
पुन्नी के चंदा घलो सुरता करथे हर साल
कारी आउ गोंदील के किस्सा 

बस यूं ही बैठे-ठाले
माताराम की याद में Ashok Tiwari भाई साहब

Friday 22 March 2024

# विनिमय #

1976 में विभिन्न जिलों और BTI से स्थानांतरण हुआ
इस कुचक्र में बिलासपुर संभाग भी प्रभावित हुआ ।
मेरे सहित लगभग 600 प्रशिक्षार्थी शिक्षक बस्तर आये ।
दंतेवाड़ा आदर्श बहुउद्देश्यीय विद्यालय में सीखने का अवसर मिला, बेहतरीन छात्रों और आदर्श गुणी शिक्षकों के सानिध्य ने हमें भी लायक बना दिया ।

पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन पश्चात क्षुधा पूर्ति हेतु बाजार जाते थे वहां मधुकर पांडेय जी से मुलाकात हुई ।।
उनके पास मात्र दो जिनिस मिलते थे ....
नम्बर एक में माखुर और नम्बर दो में मिरचा...
सामने तखरी लगी होती थी बिक्रेता के सामान के मापी के लिए जिसमें वो अपनी वस्तुएं तौल जाते थे ।
यदा कदा अनहेजरा ( लगभग ) डाल दिया करते थे , बगल में बिछे बोरी पर और उन्हें मधुकर जी तम्बाखू या मिरचा दे देते थे, यदा-कदा कुछ रकम भी .....

***** हमने कभी किसी ग्राहक से उनका झगड़ा कभी न सुना न देखा .... जबकि वो अपना सभी सामान कभी तौलकर नहीं देते थे, हाथ में पकड़ा चोंगा में डाला लपेटा और ग्राहक बिना हिल हुज्जत किये धर लिया ।
विनिमय होता था हमने अनमोल और ईश्वरीय विनिमय देखा, कम कभी हुआ ही नहीं, ईश्वर की कृपा रही होगी मधुकर पर कि 2 किलो, चार किलो कि एक पाव में कभी अंतर नहीं आया ,,, 
जिसने जो सामान दिया उसके बदले उसे मिला ।
चिरौंजी, गुल्ली, महुआ, बैचांदी कुछ और वनोपज रहे
तखरी ईश्वर की भरोसा आपस का अनमोल*** विनिमय

मेरे छत्तीसगढ़ की विवाह परम्परा में भी **** विनिमय
जिस घर में बेटी ब्याही गई ........
उसी घर से बदले में बेटी मांग ली गई बहु के रूप में
सबकी अपनी दृढ़ मान्यता जिसका सम्मान किया जाता है
कोई इसे अशुद्ध लेन देन कहे ...उनका स्वागत ...
मेरी समझ में यह विनिमय अति दृढ़ और सम्मानजनक
जहाँ रिश्तों की बुनावट जुलाहा पक्षी (बया) के घोंसले जैसा.... धूप छाँव, बरसात पानी,अंधड़ सभी समान
इतना खूबसूरत ताना बाना कि हवा का कोई झोंका नहीं
बड़े से बड़ा तूफान भी इसे कभी डाल से अलग नहीं कर पाया हमने देखा है बरसों बरस इसकी नियति ...
विनिमय बराबरी की है कभी तखरी अंसतुलित नहीं होता
न नियत डोलता न कभी सामंजस्य की कमी देखी 
सुख-दुख समभाव में कट जाता है 
इस विनिमय में भी छेद नहीं छेदा देखने को मिला 
किंतु सनेही स्वजन बेहतरीन तुरपाई कर देते हैं ।
बीते समय की एक नहीं अनेकानेक घटनाएं है।

बदलते परिवेश में सभी आदर्श , परम्परा, रीति रिवाज, नए स्वरूप में हैं सबका स्वागत ।

बस यूं ही बैठे-ठाले
16 मार्च 2024
एक पुरानी लाइन याद आ गई

मैं रिश्तों को जीता हूँ  ,,,, मैं रिश्तों में जीता हूँ।
मैं रिसतों में जीता हूँ ..... मैं रिसतों को जीता हूँ ।।

रिश्ते झेल नहीं पाओगे तो सांसों का थम जाना स्वाभाविक है ।
सांसें चाहे अपने स्वजन की थमें या हमारी थम जाएं ।

जीवन में चारों पुरुषार्थों में प्रथम पुरुषार्थ का सदैव सम्मान करें ।
आप यदि मोक्ष चाहते हैं तो,  अन्यथा हमारी हैसियत बिना अर्थ के 
उन लोगों के सामने जो हमारे ही अधीन हमारे ही हाथों में होते हैं , गली के खसुआये कुत्ते की तरह होती है, 
एक उम्र के बाद अपनी जगह बनाने के लिए दृढ़ता पूर्वक निर्णय लें
बीती बातें, हैसियत, लेन देन सम्बन्ध आएंगे आड़े.... !
थोड़ा भूलें थोड़ा आड़ लें और कर जाएं थोड़ी मनमानी
कर लें थोड़ी सी धूर्तता......
अन्यथा आप बैठे रह जाएंगे खरताल बजाते और साथ के लोग
आपको  बहैसियत बामुलाहिजा बैकुफ घोषित कर देंगे ।

कौन क्या सोचता है थोड़ा भूलना सीखिए...
आप राम बनें या कृष्ण या बन जाएं बुद्ध संग मीरा....
मैं आपको आलोचना से पाट दूंगा, 
जबकि मैं हूँ ही आपसे...

नियति के पार कुछ भी नहीं 
यदि आपको लगे कि उचित है तो अपने स्वजन की चलती सांसों की डोर को काटने में न हिचकें

न हम..... कर्ता हैं .....न कारण 

निर्णय न ले सकें अपने पुत्र के हाथों को जीवन रक्षार्थ कटवाना तो
हाथ न बढ़ाये उसके पालन पोषण में ...न ही उसके संवर्द्धन में
जरूरी नहीं आपका निर्णय युगों तक याद रखा जाए
किंतु मनमानी तो कदापि नहीं, चाहे आपकी या स्वजन की ...

बस यूं ही बैठे-ठाले
18 मार्च 2024
@#% ...बहदा...@#%

परबत ले उतरत बिन लगाम के पानी के धार गंगा कस....
टोरत, फोरत , एईठत, रमजत, कूदत, फांदत, अपन मऊज म...
उतरथे ऊपर ले तरी त बोहाके ले जाथे ...संग म सब्बो जिनिस ल 
नई देखय नवा, रद्दा, नवा डहर, ओई ह बनाथे नवा रद्दा...
ओकर बेग ल अपने ह  नई थामे सकिस ओई ह गंगा आय
बहदा .....जेकर बेग ओकरे मन ले आर पार रेंग देथे

भागवत कथा,बेद, पुरान म सुनेन राजा सगर के नाती भगीरथ ह एक गोड़ म ठाड़ होके करिस जप तप त आइस गंगा ह....
गंगा कहिस जा तोर तप ह मन ल मोह डारिस ... जा...
भगीरथ मैं आँहा तोर पुरखा मन के तरन-तारन बर ...
फेर देख ले मोर बेग ल कोनो नई थामहे सकिस त...
झन कहिबे ए दे सब्बो ल बोहवाके ले गईस...देख ले ...
सुन ले...गुन ले... 
भगीरथ करिस बिनती आशुतोष महाराज के ....
अवघड़ दानी महादेव जी जटा ल छरिया दिस फेर बाँधिस त घूमर घूमर रहिगे गंगा जटा म कई बछर... सब गरब सटक गे...
बड़ मान मनव्वल म... बड़ केलऊली म ... लटपट ..लट ल छोरिस
पाइस थोकन मुँहड़ा पुरके बर ...मगन होगे गंगा
गंगा पाईस रद्दा मांगे म त फेर निकलिस त घलो टोरत फोरत...
 जे नरवा, झोरकी, नदिया जा मिलिस ओकर म बनगे गंगा ....

*** बहदा ***  एक ठन तिरिया के सुभाव आय ?

जे ह बोहाथे गंगा कस  उफनत, रेलत, सकेलत, पानी संग कचरा, कूटा, गाजा, मईल, पथरा, माटी, बन, कुसा, सबके संग धरे...
फेर थिरावत बनारस आउ प्रयाग म करत तरपन प्रानी के...

जेकर भाग परिस नहा डारिस ....बुड़ बुड़ के
आउ जेकर भाग ले छुटिस ते ओई म सेरागे

फेर तिरिया बनगे कभू बंजर बहदा त ???
निघिरघिन्न हो जाथे काय देखे सोंचे घलाऊ म किसकिस
नई सुहावय संग म रेंगाई ह कोन उतरही ओमा फदके बर
अपने कस बना देथे ...
बड़ किस किस गारी आय महतारी बर ?

सुरता आथे कवि के बानी...
प्रभु मोरे अवगुन चित न धरो
एक नदिया एक नार कहावत, मैलोहि नीर भरो
जब मिलके दोउ एक बरन भये सुरसरि नाम परो
प्रभु मोरे ......

फेर कभू
बस यूं ही बैठे-ठाले
19 मार्च 2024
बहुत मुश्किल है वक़्त को हाथों में थाम लेना
फिसल जाता है रेत की मानिंद हाथों से
फिसलते चले जातें हैं इस दरम्यान रिश्ते
और हम बेबस खुली आँखों से देखते रहते हैं

कुछ न कर पाना ....कितना आकुल कर देता है?
युग द्वापर हो वा त्रेता या कलयुग ....

बस यूं ही बैठे-ठाले
22 मार्च 2024

Tuesday 27 February 2024

***** लुवाठ *****


" ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय ,,

कबीर के ई दोहा ह छत्तीसगढ़ी बर कहे हे कस लागथे
भले ही हमन कही देथन कि
कोस कोस म बानी बदलय, चार कोस म पानी ।।
फेर नता-गोता के मुं ले निकरिस गोठ आउ झरगे अमरित

ए देखा हमर नता संग हमर कहा सुनी ....
फेर मन म गुन देखा एकर मिठास आउ गरूआपन

१ लूवाठ निपोर काय करत हस ?
गांव म एके उमर के नोनी ह एक झन दूसर करा पूछिस
२ काय लुवाठ लाये हस ग
बड़का दाई ह नाती ल कहिस चेराये रमकेरिया ल बजार ले
धर लाइस त 
३ काय लूवाठ कर डारबो  ई रदबद रदबद पानी म
मोटियारी टूरि ह अपन मया करईया टुरा ल कहत हे 
४ लुवाठ लाबे कुछु मिलहि त न 
बेटा कुपेचहा बेर म समान लाये जाहि त महतारी के गोठ
५ काय लूवाठ बलाबे ओ मन ल
बर बिहाव म नता रिस्ता ल नेंवता देहे बेर म महतारी आउ काकी फूफू के सियानी
६ फेर लूवाठ आय दाई अईसनहा पहुना हर 
घर म माथा पीरा असकट करईया पहुना पहि बर 
७ काय लूवाठ ले जाबोन सोझे आय जाय बर तो हवय
लकठा के गांव घर जिंहा गईस आउ आइस तत्का बेर

एहि किसिम के कई गोठ बात सुने बर घेरी बेरी मिलथे
मोर छत्तीसगढ़ी आउ छत्तीसगढ़ के माटी म सावन के जइसे फुसफुसाथे पानी गमक जाथे गली खोर
बस इही बतर म निकरिस गोठ आउ मन हदर जाथे 
परदेश घलो म लक्कर लऊहा छत्तीसगढ़ ल छुए बर
मोर छत्तीसगढ़ बोली कहव के भाखा गुर कस बड़ गुरतुर 
कोन काकर करा, कईसनहा ,कोन मेर, कतका बेर, काकर बर, कतका कन तान खींच के कहिस .....
बस मिठागे अमरित ले ओपार गुत्तुर.....
आउ दतकी कन होगे तरक-फरक बिख जहर होंगे
आउ भरभरागे ठाड़ धन मिरची कस कई पीढ़ी ले
कस गोई ....के कहई आउ सुनई मंदरस ले जादा मिठ

बबा Ravindra Sisodia  के बच्ची होंगे कैरम खेलत म हमन बड़ खुश हो गयेन अब कईसे खेल सिराही ....फेर मारिस तुकके रानी ल बोजागे गुच्चू म, ओकर संगी घला ल पिलो दिस, रहपट कस परिस ठाड़ खड़े करिया गोंटि अंधमधात गईस गुच्चू म फेर सारे गुच्चू ह उछर दिस
त बबा कहिस दुनो अंठा ल तनेर के "अब धर लुवाठ ल ,,

काय लूवाठ लिखे, तहिं लुवाठ गुन आउ सुन
हमर कुछु लुवाठ मगज म नई खुसरिस

( मोर महतारी के छां छोटे बहिनी सरिता बईठे हे अपन संगी ऋषि संग गोठे गोठ म बात उसलगे त लिख-पोंछ देखें )

13 जनवरी 2024 दिन मंगलवार

***** मेरखू *****


गरोंसा खेत म अंकरस के नांगर फंदाथे जेठ म
तिंवरा, बटूरा, अंकरी लुवा जाथे तेकर बाद राम जी ।
ओल नई आवय हप कन आउ खरकगे त पुर गे ।
उजिर तला के खाल्हे होलहा खेत म हर साल बाउग म 
बदल बदल के बोवाइस कभू बादशाह भोग, लुचाई, तुलसी मंजरी, गुरमटीया, बोहिता, आउ दुबराज घलो ।
करगहा खेत म बोवाइस नांग केसर के पलटू, सुलटू
हर बरिस मटासी खार के टिकरा म जल्दी ओनार देंवय करहेनी ल । आउ डोंड़संहुँ टिकरा म राहेर तिल ल ।
भर्री ल बंचाके राखय बर्रे बर, चारेच दिन के रखवारी लागय भाजी के पोठात ले फेर गरूआ के तरुआ घलो छिला जाथे खाये म । बोएँ बर परथे कोदो कुटकी ल नई जामय लमेरा अंकरी कस अरसी घलो ह ।

तईहा जम्मो फसल ह रहिस सरग के भरोसा
मालिक बरसा दिस त होगे खाये पिये बर नहीं त परगे अंकाल, आजकाल गांव के रद्दा बनगे नहर... बोहागे चारों मुड़ा गंगा कस धार पानी, एक एकड़ म लुवत हे 30 बोरा आउ जुन्ना बेरा म एक गाड़ा होंगे त बड़े किसान आय ।

 आजकाल आ गे किसिम किसिम के धन कुट्टी  मसीन 
पहिली मलरहीन संग आवय चमकुलिया कोनरहीन
कई पईंत ले ढेंकी के मूसर म खोवत ठेंसा जावय हाथ ह
ढेंकी चलत हे चूईं चूईं ढकर ढिकिर बहुरिया मंगन हवय
पटउन्हा के कड़ी म ओरमे बाँख के डोरी ल डेरी जेवनी अदला बदली करत गोड़ आउ हाथ घलो ल फेर गोड़ चलत हे डेरी जेवनी लुहकी मारत ।
संगे संग चलत हे परोसी घर के चारी ...आउ ए दे चूक गे
ठेंसागे थोथना आउ मुड़ी संग हाथ कोनरहीन के  होगे कलदप देखा- देखा बन्धागे रोचन हाथ म ।

सोझे म नई कंहय ए ल अन्न कुंआरी
ढेंकी म कूटा के देंह के मांस ल हेरके मिठा जाथे 
अन्न कुंआरी के देंह के सब्बो जिनिस के महत्तम हवय
भूंसा निकलगे ते ह डरागे कौड़ा म बनगे पलपला
हम तो बड़ खाये हन पलपला के भूंजाय कांदा कुसा, पताल, गोंदली, ढुलेना कांदा, और लाल सादा कांदा

सूपा म फुनागे कौंढ़ा, बलही गाय के कोटना म डरागे, 
ए बरिस काय होगे कूटत म चाउर टूट गे , कनकी निकलगे
फेर दुबराज के चाउर बोएँ म महकिस ते अलग, छटकत, कूटत चुरत संग पसिया घलो चार घर के जात ले गमकगे
रिसदीहिन भौजी के हाथ के चीला होवय के चुनी के अंगाकर मरिसा क... के भौंता के दाना परे गुर संग सरग के फर कस मिठा जाथे संग होगे बलही गाय के घी का कहने , दाऊ बड़े ददा तो अंगाकर ल मिरचा आउ लसुन के  चटनी संग सुसुआ सुसुआ के नाक बोहात ले रपेट थे ।

मलरहीन आउ कोनरहीन सकेल के चल दिन सब्बो ल
सकेल के टुकना बोरी म ठेस के ,,, परे रहिगे एक ठन दौरी म मुसुआ लेण्डी संग चाउर के बाँहचन .....
माताराम ल देखें बुता करत अकबका गयें
थोरकन रिस म कहें 
काय करत हस ओ तोर जांगर टोरे बिन मन नई माढ़य
कुछु नो हय बाबू चाउर ल निमारत हव ग
माताराम ए म काबर थकत हस ओ
आउ ए ह काय आय 
बाबू ए ह बड़ महत्तम के जिनिस *** मेरखू *** आय
ऐ ह तोरे जात के जिनिस आय ग  मेरखू ददा मेरखू
तहूँ माताराम मुड़ पिरोत हस डार दे गरूआ ल खाहि
मुसुआ लेण्डी ल बिन के काय परमारथ कर डारबे ओ
नो हय बाबू मेरखू ह अकारथ
आ बीने लाग फेर देख के नकुआ ल झन टोरबे
देखें धान के बीज ल ओकर आधा झरे फोकला संग
चाउर के लाल लाल खर्री नई निकरे रहिस
ढेंकी म बने गत के नई कुटाय रहिस ।
फेर एकदम आरुग चाउर के दाना सोंगर-मोंगर 
नई टूटे हे ओखर टुंड़ी .....
माताराम संग बीनें 1,00,000 दाना *** मेरखू ***
ई ही सईघो चाउर चढीस लखनेश्वर मंदिर खरौद म

नई मिठावय मेरखू कतको कन छर ले 
इही किसिम के मनषे घलो मन ओहि बंश के आय फेर जे ह चढ़थे भगवान के माथा म ....मिठावय के झन मिठाय ।
ओई हर आय ......मेरखू
सब्बो ओई फेर ***** मेरखू ***** सबले अलग 
बने चुराये बर परथे, ठाड़ रही जाथे, पेट के मसकत ले खा दे त पेट पिरि हो जाथे ।।

सुनें बबा Ravindra Sisodia  करा आउ गुनें गुरु
Rahul Kumar Singh  संग पछिन निमारके ए दे
सब्बो बड़े मन ल पैलगी आउ संगी मन ल राम राम
बसंत पंचमी के दिन महतारी सरस्वती के चरण बन्दना
13 फरवरी 2024

*** कसरहा ???


सुंदरलाल उपाध्याय जी मुलमुला बखरी के पंडित जी
सादा नीलम के धोती तेमा नील आउ कलफ लगे 
सादा लट्ठा के बण्डी तेकर जेब म शेर छाप बीड़ी आउ माखुर धराय मजाल का हवय के कोंहुँ ल हूत कराईस आउ बिन पैलगी ओखर गोड़ उसलगे ।
उपाध्याय जी एक लरी के बाँख के डोरी जांघ म बरय जांघ के रूंवा झर जावय फेर डोरी के नमूना नई बिगड़य ।
बारीक काम बुता के बड़ शौखिन पंडित जी आज ५० बछर के गाँथे मांचा मथुरा दाई के ओरसारी म हवय ।
फेर बढ़ईकम के घलो धनित्तर आय जेकर घर के बने के सांईत धरागे त खपरा के छवात ले उपाध्याय जी के बीड़ी ओकरे आंट म सुलगीस आउ बुझाईस ।
हमर बट्टू ददा ओकर चिलम गंठवईया संगी रहिस 
कभू-कभू उपाध्याय महाराज एक सांस म चिलम ल सुरक देवय, जीवन घसिया नई सुरके पावय त कंझा जावय ।
फेर गांठय गांजा बनावय बुच के गोली चिलम दगाये बर

इही चिलम के धुंआ के मया म बट्टू बबा के गुंडी के घर छवाइस , धनी कका बार नवापारा के जंगल ले डोहारे रहिस सरई के मुड़का मियार आउ कर्रा के कंडेरी
चमचम ले बनिस घर लकरी के आउ लिखाय देखे रहें हिंदी म मालिक बट्टू सिंह मुलमुला, बढ़ाई ननकी राम कश्यप साज सज्जा की कलाकारी सुंदर लाल उपाध्याय
मुलमुला बखरी के छाँ म महाराज के भरे पूरे घर .....

महाराज के जुलुवा दिखय पटईल, राऊत, कुर्मी, घसिया, भैना, तेली, गोंड़, धोबी, केंवट, सतनामी, सुरुजबंशी के अशीष म सब बर पुर जावय गोरस देत घानी ।
उपाध्याय जी गाय गोरु के बड़ शौखिन आउ दूध के धनित्तर ...तेकर खातिर बारों महीना आठों काल १२ सेर दूध बिहनियां मंझनियाँ कौड़ा म चुरत रहय ।
हमर देखत म मुलमुला गांव के कोंहुँ लईका दूध के सेतिर भुखन नई सुतीस, कतको बेर संकरी खटखटवाके गोरस मांग लिस पंडित जी के दुवारी ले । कातिक राम राउत इही खातिर अपन बरवाही के गोरस घलो ल छोड़ दय ।
बिहनियां संझा भर मंझनियाँ कभू कोई महतारी खाली चरु, गिलास, लोटा देहरी ले नई लहुटीस, कौड़ा म चुरत दूध साढ़ी संग देहे म नजर नई टेढ़वा होइस ।
सबके ओली म धराय रहय धान ..के कुछु ओनारी.. खूंटी के टँगाय सूपा म माढीस जिनिस आउ भर गे लोटा चरु।
जे नई लाय सकिस जिनिस ते ह पटक दिस दु बींड़ा कांदी
इही खातिर न महाराज के ढेरा थिरकिस न अशीष ।लईका, सियान, बहुरिया, डोकरी दाई सब गोड़ छुवय ।
हर बछर सबले आखिरी म महाराज के खरही मिंजावय ।
खरही म टँगाय चिरई खाये के पट्टी ल गुड़ेरिया फोकल 
डारय त दौंरी फंदाय जेठ म ।

सन अड़तालीस म परे रहिस दुकाल.....
देवउठनी एकादशी के बिहान दिन खमखमाय रहिस गुड़ी 
घांघडा लगे गाड़ी बईला ले कोसीर के मनराखन गऊरहा जी उतरीन, छै फुटिया तडंग जवान गौंहा डोमी कस लकलकावत देंह सबके पैलगी जोहर झोंकिस आउ उपाध्याय जी घलो ल अपन पैलगी कहिस ।
गुंडी घर म बनगे च.. आगे माखुर बीड़ी.. फेर सब एक दूसर के मुँ देखत के आखिर मनराखन महाराज कईसे ई भर बिहनहा काय काम बर ..काकर करा.. आये हांवय ।
च गांजा चोंगी माखुर होए के आखिर म मनराखन महाराज के संग आय मर्दनिया ह अपन आये के हिसाब ल बताइस के उपाध्याय जी के बड़े बाबू बर बिहाव के सोर लेके आय हवन तूं अपन बचन ल बताता तइसनहा....
बस सनसनागे गुंडी । बखरी के चार सियान के आगू म होगे बचन बद्ध दुनों महाराज । फुटगे नरियर होगे वाक़दान गांव भर परगे सोर दलहा कस आगी बगरगे चारों मुंड़ा  माड़गे बिहाव महाराज के बड़े दाऊ के ।।

रामनवमी के लगन म होंगे बिहाव , उतरगे डोला,
नवा बहुरिया अमागे कुरिया म ...........
फेर मनखे मन के अवई थोरे थिरकिस नई थिरकिस पहुना
घर म । नवा भीतरहिन आगे महाराज घलो ठमण्डी होगे 
गाय गोरु के देख रेख के अपेच होइस फेर मांढ़गे ।

नवा महराजिन अपन संग म धर लाइन रूप आउ गुन....
सुग्घर कद काठी संग कन्हीया के जात ले करिया चुन्दी
बड़े बड़े गटारन कस ऑंखि, चिक्कन गाल, सुताई कस फरकत  ओंठ, चाक्कर माथा , बिछी कस टेढ़वा भौं तेमा गोल लाल टिकली कुल देखत म महराजिन साकसात दुर्गा माई कस लऊक जावय ।।
ओईच बिहनियां, ओई सांझ, ओई लईका ओईच पहुना पहि कुछु म अदला बदली नई होइस जस के तस.....।

जस के तस दूध के लेन देन सुरु होगे, ई घानी अब संकरी ल खड़बड़वाये बर परे लागिस , अभो घलो धान, ओनारी
आवय फेर दूध ढ़रईया हाथ संग आँखि बदलगे हो राम...
सूपा म गिराय ओली के जिनिस आउ लोटा चरु म दूध
फेर कभू कभार महराजिन के अपन मन के हँसाई...
मने मन म बिन गोठ के गोठ बुड़बुड़ाई आउ एकेच घरी म बेर ..कुबेर छटक जावय आँखि .........
हांस घला देवय महराजिन अपने अपन..........
अब घर अवईया...जवईया ... मन झझके बर धर लिन ।
पहिली लईका पिचका कोंहुँ मन दूध लेहे चल देवय ।
अब मनषे मन देहरी खुन्दे ल झझके बर धर लिन ।

हमर कोसीरहीन बड़े दाई के उदिम घलो बड़ अकारथ रहिस, कतको बेर कुबेर आँखि छँटकार के हांसय ते एक कति, आधा रात के ठाकुर घाट म नहाय चल देवय ।
नहा के आवत बेरा म कोंहुँ ल देख के हौंला के पानी ल झरर्स ले डहर म डार देवय, कोकरो देह म परय के कोंहुँ भिजय का लेना देना ।।। कातिक के महीना म अकेल्ला बर घाट चल देवय नहाय उहें मगन हांसे बुड़ बड़ाये  म ।
रोज मुड़ धो देवय आउ फटकार फटकार के आगू पीछू ऐंड़हा बेड़हा चुन्दी ल झर्रा देवय । ओकर नहावत ले ठाकुर घाट ओकरेच आय ......काकर पुरखारत के पंछी तिर घलो कोई चांटी मांछि डोल जावय ।

संजोग कहा के भाग घटत गईस होनी.......
साल भर के भीतरी पठऊनी के लहुटे के बाद कोला के फरत मुनगा के पेड़ ठाढ़ सुखागे, कोला के पैरावट म आधा रात अपन मन के आगि लगगे ।।
दुबर ब दु अषाढ़ होइस के नहीं राम जानय
फेर लागिस के करेला लिम के पेड़ म चढ़गे
राम जानय का सच क्या लबारी हरेली तिहार के रात उपाध्याय जी के घर के दुवारी म लपलपावत दिया देखिन
बड़े बिहनियां उपाध्याय जी के नाती खैत्ता होगे ।
हमर खोखरहीन दाई कहय कसरहा हो गईस बाबू
ओकरे लईका ल ओकरे झाँक परगे
नई जागीस मसान ह नई बलाय सकिस रिक्षीन ल
लच्छनपुरहिन के लईका चार दिन परे रहिस अल्लर
घेरी बेरी चमक जावय गीगीआवय बइगा आइस होम धूप फेरिस त माढ़ीस गां के मन कहय मुठ मारे रहिस के बान
*?????** कसरहा **???? होगे मंतरा ह ।।

उलटिस बान ह त ओकरे लईका ह फंद जाथे ओकरे मंतरा म ,बड़ अलकर हो जाथे फेर एला साधे म ।।

सुने म आथे हरेली तिहार म जागथे मसान 
आउ उल्टिस बान त .... हो जाथे ***** ????

माघ शुक्ल पाख अष्टमी 
शनिचर १७ / ०२ / २०२४

# @ हेंकरहा % $


नासवान आय देंह ह कभू गरब झन कर
कतका बेर अंगना के पानी के फोटका कस फुट जाहि ।
आगि, पानी, भुंइयाँ, सरग, आउ गर्रा धुंका भगवान आय
ए मन संग हेंजवारी आउ दंत निपोरी करेके नोहय गुरु !
पानी पखना म छेदा कर देथे, घोल देथे कतको बड़े ले बड़े जिनिस ल, तेकर करा जूझे मत जा मोर मालिक ।
आगि कोकरो नई होवय ....शंकर जी लट ले निकरे रहिस न ..... आउ पार्वती देबि महादेव के सुआरी आय न..
अपन ददा राजा दच्छ घर गे रहिस फेर हवन म कूदिस त देखे न स्वाहा होगे....राख नई मिलिस.....
.बड़ोरा के चक्कर परे रहिस १९९१ के बछर म अंवरीद गांव ....रुख राई, खपरा छानी गरूआ बछरू संग ढाबा के टिन तलक ह फिलफिलि कस उड़ीयाये रहिस, कुकदिहिन के बछरू कईसे मस्का के मरगे पीपर के थांगा म ।
दलहा म चढ़के हवा ल झन धर अंगौछि म ...थक जाबे ।
बावन बूटी देंवता कस झन लपास गोड़ ल अगास म तोर पाछु ह चीरा जाहि फलक जाहि दु कुटा चर चर ले ।

" नो हय करेके हेंजवारी झन कर हेंकराही
हेंकरहा सुभाव आउ बानी ह बने नो हय .....  ,,

भैंसों गां के रामभजन के बेटा सालिक के देख सुभाव ल
डुडुवा होवय त ...सांस आउ बल के पुरत ले
बोह के ले आवय बोंगरा कस अपन दुस्मन ल अपन पार
कबड्डी थोरे आय के 32 घरी सांस ले फेर लहुट आ
तोर सांस, तोर देंह आउ बल तोर जांगर .....खेल डुडुवा

बरसत सावन के महीना लउकत गरजत म कुटिघाट के नंदिया ल ए पार ले ओ पार हो जावय भर बइहा पूरा घलो मन ल नई डोला पावय कर दय हेंकराहि 
कोंहुँ तला के कमलगट्टा ल हेर लावय, खोखमा, रतालू कांदा, सिंघरा, पिकी, ढेंस , भर जाड़ म निकार देवय ।
कोन पीपर आउ बर पेड़ के नवा थांगी ले बंधवा के घाट म कतका बेर झरर्स ले कूदना हे बाजी लगा ले .....
एक पइंत कूदिस त चड्डी ह अरझ गे त टँगागे रहिस 
तब ले ओकर नवा नां पर गे रहिस चड्डी भाई ।

सालिक राम एक नम्बर के हेंकरहा .....
लिम, पीपर, अमली, बोहार कुछू पेंड़ के कौंवा अंडवा नई बहाचीस एकर पेंड़ चढ़ाई म। पातर ले पातर थांगी के कोलपद्दा आमा खोज डारय ,  माटा झुमगे खखौरी म चाब  डारिस नरी ल ,खुसरगे कान म फेर आमा झोला म ....
चार संगी झूमे रहय चारों कोती खाये खेले बर ।
काकर कोला म मिठ बेल फरे हवय, कोन बारी म बोइर, बुंदेला पाके हावय, काकर चिरपोटी पताल निक हे ।
डंहक देवय चम्पा कुदके खवा ल देखते देखत ।
टूरि मन संग रेस टिप, सत्तुल, पंचवा, फुगड़ी घलो खेल देवय सारा बेटा ह, बहेरा कस भूत सब्बो म चतुर....

जानय गांव भरके सोर
थुहा तला म मुड़ मिसनी माटी हवय त रामबान्धा म कदम पेंड़, बैगिन म बोइर त ...सरेहा के पार म डूमर पाके हवय
कोनार बंजर के कोन मुड़ा म डोमी आउ बिछी हे त कोन मेर चार आउ मोकईया फरके पाकगे सब सोरी डोरी रहय
परसा भदेर के कोन पेंड़ के पान म अंगाकर मिठाथे !
ई सबके संगे संग बड़े सोर जानय लिमाही के लिम म काकर पाँगे टोनही कतका बेर झूलथे, आउ कतका बेर थिराके जरी म अल्लर सुत जाथे ।

कभू कभू हेंजवारी के हद्द कर देवय
कुटिघाट के मेला माघ के बसंतपंचमी म भरथे
चार संगी बाजी लगा के खवा दिन पेट भर रसगुल्ला
फेर बाजी म पिया दिन लस्सी, फेर कहिन ले खाये सकबे दु डब्बा उखरा, पैसा के लालच आउ हेंकराहि म हौ के छोड नहीं कहिबे नई करिस । अब संगी मन ओला थकोए
रेहटा झूले के बाजी लगा दिन ,सालिक राम बिचारिस खा लेंहैं अब रेंहटा झूलके सुरता लव काय होही ।
रेंहटा चलिस आउ पूरा खाये पिये एक होगे मतागे माथा
देखा देखा होगे लटपट रुकिस रेंहटा

सालिक राम बलि आउ गुनी घलो रहिस 
फेर ***** हेंकरहा  एक लम्बर के
गांव के कोनो पथरा ल उठा के उलट ...पलट देवय
चार घन छीनी मारय त कतको बड़ बोंगरा चार फाली
गाड़ा के सिली ल    ...अध्धर उठा देवय
कोकरो घर कतको बिखहर सांप निकलय
काय मंतरा जानय ओकर राम जानय
सांप ....अपन मन के थिरा जावय ओकर छां म
धर के ढील आवय कोनार बंजर म कलेचुप
सब ल सुरता हवय
सावन के महीना म पुसाऊ राऊत घर डोमी निकलगे
सोन फिन सोन फिन फुंफकारत रहिस, करिया बड़ निक
करम फाटे रहिस ओ दिन सालिक के ओ दिन गांजा फूंक देहे रहिस बिहनियां बिहनियां माते रहिस निसा म
आंधर झांवर रेंगत आइस डोलत फेर धरागे डोमी करिया मरकी म मुँहड़ा बन्धागे फरिया म ...फेर डोरी बांधत म चूक होगे...राम रे...लऊक दिस डोमी हाथ ल ....झटकारिस त लपटगे हाथ म...गेथल दिस चार घँ लहुट लहुट के चोरो बोरो होगे लहू म हाथ ....
एकेच घरी म चढ़गे जहर तरुआ म ....
देखते देखत सालिक राम सुतगे भुंइयाँ म
माटी के चोला माटी म मिलगे
दवा दारू बइगा गुनिया कुछु नई धरिस 
हर साल छें पारा म लोहार कुंआ मेर भरथे नंगमत
सुरता करथन सालिक राम ल ... 
सुरता आथे ओकर पलटाय पखरा आउ * हेंकरहा  सुभाव 

माघ तेरस शुक्ल पाख
18 फरवरी 2024

***** आँकस *****

नई लेवय छुआ छूत न लेवय लबारी
आन तान करे आउ होगे मरे बिहान 
बड़ आँकस आय देबी देंवता कस छां बेटी के घलऊ ....
ए मन के हिरदे हर नरियर आय, एक तो बड़ ऊंच म फरथे
फेर बड़ दिन म पाक थे, पाकगे त टोरे आउ टूटे म दिक्कत
अपन मन के झरथे त गुरतुर अतका कन के गुर के सेवाद ले जादा आउ मुं म गईस त अपन मन के घूरगे ।।

माता दाई गां के रच्छा करईया देबी ..कभू नई जावय नोनी पिला मन ..असुधहा रथे त। बने त बने बिगड़ गे त पुरगे 
94 गाँ के मलकियत आउ पागा बंधाये हवय  हमर तलवार भंजवईया ठाकुर साहेब मन के कपार म ।।
ऊंच पुर देंह काठी के जवान अपन  लाव लस्कर संग आये रहिन के  ??? बलाय गे रहिन २५० बछर पहिली , सुनती सुने हवन ददा बबा मन करा । जुन्ना मालिक मन नई सकेले सकीन राज ...बदलत गे .......धीरे धीरे छिनागे...
मालगुजारी आगे हमर करा......

रेंगथे सुरुज संग महतारी के कोंख घलऊ ह .....
ओकरो ले ऊपर बेटा होगे त बंस चलाये बर बने कुल खूंट के बेटी खोज आउ आउ ला अपन भोजहर के देबी कस
बेटी होइस त खोज अपने कस के अपने बेटा कस पोठ छाती के जे ह ओकर दुख सुख ल झेले सकय जिनगी के घाम छां म आउ रेंगय सासत म घला मुसकियात .....

तिलोकचंदी परिवार सुने हन राजा हर्षवर्धन गोतीयार आय
ई हु मन आये रहीन गौटिया मन के सेतिर लड़े बर
रुक गे छत्तीसगढ़ के माटी के मंहक म .....
महानदी, पैरी, सोंढुल, शिवनाथ, इंद्रावती, नर्मदा, अरपा, सबरी, रेनुका, हसदो, मांड़, गनियारी, लीलागर नदिया मन के सुग्घर बोहात पानी धर लिस लईका कस अंचरा ल
फेर काय होगें खुटिहर ई माटी के .....
बर, बिहाव, छट्ठी, छेवारी, मरनी,  हरनी, हमन के छोंड़ किस्सा संग म आय तेली, नाउ बनिया सबके इं कस होगे
लग गे हवा पानी इहाँ के होगे गुर लाटा ...
अब खोज देख कोंहुँ जात म कोंहुँ जात के गुन
मिंझर गये है गोरस आउ गंगा कस जल एक दूसर म

ए दे कहाँ राजिम  ले बोहात बोहात ए दे पहुच गयें शिवरीनारायण के खंड म ....सुरता आईस ....
बहरतीन दीदी के .....१४ भाई बहिनी म छोटकी नोनी 
लटपट बाँहचीस त धरागे नां बहरतीन एक भाई भान सिंह लट सट ओहुँ नांदिस बारा खटकरम करे म ....

बहरतीन नोनी के जस जस उमर बाढ़त गे तस तस ओखर 
माथा के  अंजोर लकलकाय बर धरिस संसो पेले बर धर लिस दाई ददा ल । व्यास महाराज बनाये रहीन ओखर 
जनम दिन के लिखा पढ़ा के कागज पाथर ल
पुरोहित व्यास जी के नता गोता आय ढाबा दत्त महाराज 
दुनो पुरोहित मने मन म गुनिन फेर सोर सुना दिन 
चंदेल परिवार म मालिक मकुंदी सिंह जी के पुरखा ल धरागे लगन पांत आउ बाजा गाजा संग पधारीन मुलमुला गाँ द्वार चार, लाली भाजी खवाई , बारात पघराई संग परिस भाँवर होगे बारात बिदा ....
गमक गे ..... ( कुलपत सिंग ) बइहा गौंटिया के अँगना ...
हमर ममा दाई तिरजुगी दाई बतावय के बहरतीन दीदी गरूआ ल पेज पानी ढ़रवाय जावय त गाय के कान ठाढ़ हो जावय, कमियां, कमईलिन , राउत, नाउ, घर के आये गये मनषे अब बिन संकरी खटखटाये नई खुसरय घर ।
ममा दाई के ननद जानकी दीदी घलो ई गांव के बहुरिया बनके आय रहिस ।

फेर दिन जात बेरा नई लागय समय के पंछी उड़ाके चार बरिस आगू आगे... फेर घर म छट्ठी छेवारी के सोरी डोरी नई मिलिस, अब थोकन घर गरूआगे मनषे मन के कहा सुनी सुरु होगे , बलाईंन ढाबा दत्त महाराज व्यास जी ल देखिन जन्म पतरी ल कोई कलदप नई मिलिस ।
दु बेटी एक बेटा के जोग पट पट ले दिखिस ।
जतका मुं ओतके बात सुन गुनहा सुनाए बर धरिस
मकुंदी मालिक दूसर बिहाव करहिं काय ???
सारे लबारी बगरगे कई कोस ले
लपरहा नाउ सम्मत नान जात उनीस न गुनिस 
मिसिर महाराज संग बिन सोर देहे पाये अजार कस ह
हबरगे कुपेचहा बेरा म ....ओकरो ले ओ पार बिन आरो करे दंगरस दंगरस पेल दिस अँगना म ...…
जतका म गौंटिन दाई गोड़ धोये बर पानी देतिस ततका म
सारे रम्मत नाउ उछर डारिस अपन घर आये के सोर....

जगम ले बरगे बहरतीन के देंह , आई छीन आगे , एक घरी म सनसनागे माथा फेर धीरज धरके दीदी रेगिस कोला के फईका  ओधाय बेंड़ी  चढ़ा दिस त ओहि रेंगना आ गे फेर अंगना म अब धीरे से चढ़गे संकरी भीतरी अँगना के आउ जम जम ले चढ़गे बेंड़ी.....
अब बहरतीन गौंटिन पूछींन मिसिर महाराज के आये के कारन ....जतका म महाराज कुछु मुं फरकातीन लपरहा रम्मत गोठ ल अध्धर ले झोंक के फेर नून मिरचा लगाके
एके सांस म बफल दिस सब्बो बात
गोठ के निकलती होइस आउ बहरतीन गौंटिन के सात फुटिया तेंदू के लऊड़ी चल गे रम्मत के मुंड़ म
थोकन चूकगे दीदी के लाठी के अंदाज़ ह नहीं त ओहि म रम्मत के मुड़ी शिवरीनारायण कस कलिंदर बगर जातिस अँगना म..... रम्मत हाग मूत डारिस "आँकस देबी ,, के 
आँखि ल देख के .......मिसिर महाराज हक्का बक्का ...
कहाँ ले बल पुरिस कोन देबि देंवता ल सुमिरिस होही रम्मत ओकर भगवान जानय एके कुलांचा म आठ फुट के खवा ल कूद डारिस , पल्ला होंगे पागी ल धरके कोला,  बारी, नरवा, झोरकी कूदत फांदत पहुंच गे खाल्हे राज

नई आईस जनम भर कोसा गाँ चेता दिस सात पीढ़ी ल झन जाहा बिन जाने समझे कोकरो घर.....
बड़ *** आँकस *** आय मुलमुलहिन गौंटिन मन 
बछर बीतगे जुन्ना घर टूट गे फेर जइसे अँगना म गोड़ मढ़ाएं मोला लागिस... बहरतींन दीदी रपोट लिस आउ कहिसआ गये रे बाबू रमाकांत.... तोर संगे संग तोर देंह म भेंट होगे ....तोर बाबू बहोरन संग मोर भाई भान सिंह 

" आँकस ,, आय महतारी के कोंख जे ह जनम देथे

माघ शुक्ल पाख दशमी दिन सोमवार
19 फरवरी 2024

***** पयडगरी *****


समारू के खनकत सुर लमगे बिहनियाँ बेरा म
चल संगी चल जाबो गांव
रथीया पहागे रे गरूआ ढिलागे ....
कोकड़ा लगाये हवय दांव ....
चल संगी चल जाबो गांव....

राम राम के बेरा म
बरदी ल सकेल डारिस कातिक राम बछरू, गाय, बईला, सब आगे खईरखा म चमकत हे टिकली गाय के सुहाई, रेंगे नई सकत हे परसोत्तम के हरहि गाय बंधाय हवय बड़े ठेला नरि म , परो दिन नरोत्तम के संढ़वा के बांधे गोड़ायेर छोरे बर परगे राम रे.... बड़ कंदरागे रहिस लहुँ चुहत रहीस 
रामलाल के लागत गाय ल बिहारी के छपरहि गाय घिल्ला डारिस रोजे के बुता हो जात हे । कातिक राम मने मन सोचत हे ए बछर माघ म भूरी भैंस जनम जाहि, राउताईन
 बर हर्रैया संग नांग मोरी घला बनवा लेंहा, बड़े नोनी के चांदी के पुतरी के कोंडा उसलगे रहिस ओहुँ ल नवा ...
मन के संग कारी गाय बहकगे डहर छोड़ *पयडगरी* म

सुने रहिस भागवत कथा म कातिक राम के ददा भैया राम
           महाजनों येन गताः स पन्थाः
झन जा ओ डहर म जेमा बड़े बड़े साधु संत मन रेंगे हवय
तोर मरे बाप घलो ह नई बांहचय , ओ मन तो जसन तसंन बाँहच गईँन तोर धोती ,कुरता, बण्डी ल छोंड़ तोर ए हे... तोपे बर कछु नई बाँहचय, 
हे राम फेर मनषे के गोड़ म कतका बिख ,,,,, करिया डोमी आउ बिछी ले जादा जे डहर म रेंग दिस चार बरिस दुबि नई जामय । फेर बाह रे मनसे कतका सोंच बिचार के भगवान ह हमन ल गढ़े होही ।
हमर आजा के बताए ....हमर बबा बतावय के आये रहिन
बने ...बन रेंगत ***पयडगरी *** ले......२५० बरिस पहिली बसिन्दा बनगे ई माटी के ....दसन पीढ़ी के मुर्दा इहें गड़े हे ई मर्घट्टी म ।

ई * पयडगरी * ले रेंग के जगदीश के लईका शहर पढ़े गईस, गए च राम होगे , सहर गईस उहेच के पुरतिक होगे
चार गिलास काय पढीस , अटर, मटर सटर गोठियाय धरिस , सिरागे मया पीरा सहर के अंजोर म, अकबका गे के अंधमंधागे राम जानय, फेर कहाँ लहुटीस दाई के मरे घला म ,,,,, किस्सा आय के सही तेला भगवान जानय
दाऊ राम गये रहिस बेटा बहुरिया करा बड़ शौख करके 
धरे रहिस जोरन पपची, खुरमी, खाजा, लाड़ू, ठेठरी, मुंड म बोहके लेजे रहिस निमारे चाले लुचाई के चाउर...
सारे बेटा बहुरिया चीन्हीन तलक नई ......
दाऊ राम उहें चार मुठा माटी डारके उहिच कोती ले गया जाके उंकर पिण्डा पारके घर आइस । दे ह आय सहर

हमर ददा बबा जे पयडग़री धरा दिस उहिच ह सार आय
हमर गाँ म एक पइंत कोंहुँ महतारी के दूध पी डारे त
होगे कई जनम कई गोत के बंधना ....टोरे नई टुटय
खोंच दे दुबी कान म होगे मितान, आउ भोजली खोंचागे त
ममा मामी के जात ले नता पसरगे । मरती जीती नता बनथे मोर गांव म ,सहर म लिख फेंक नता रथे ।
बिहनियां आने संझा ताने आउ रथीया माने ,,,, 
सहर म रद्दा बड़े बड़े फेर छाती सुकरे सुकरे 
सहर म जादा मरथे दाई ददा अस्पताल म । थोरको कन मूंड पिराइस भरती कर देथें कोन संग म हाय हाय करही के काबर ओकर दिन रात हाय हाय सुनहिं ....आउ मरगे त ...उहें ओलिहा दिन बरफ के खोली म, हेरिन बिहान दिन एकेच घरी म लेस दिन जिबली के चुलहा म हाड़ा सेरा दिन लकठा परोस के नदिया म ।

मोर गाँव के पय डगरी म नियम धरम के गमक आय
ए म आथे जाथे ....बड़ सोंच समझ के । छोटे हवय झन संसो कर एमा आएके घला आउ जाए के घला बेंवत हवय
छोटे नाह के हवय झन संसो कर मनखे देख तिरिया जाथे
आउ छेंक दिस त मरे उबार नई रहय ।

आये रहिस ई पयडगरी ले रेंगत सुकालू के सुआरी
कुकदिहिन काकी सांवर फेर मनके साफ 
हरियर फ़रियर घर म नाती नतुरा छोंड़ मरगे 
रामसाय के महतारी ...मरीस जुरगे पास परोस के नता ....
घर के ओसारी आउ अँगना म बिछगे सरकी
गांव सिन्न परगे .... सुपचगे बमरी के बोंगरा...
रात भर भले हंसी दंत गिजोरी करत पहा देहिं फेर ठगत ठगात उसनिन्दा होके काट देथे बैरी कस रात ।
ठाड़े पहरा देथे , बिहनियां जेकर जतका कन मया पीरा धरिस.... सकेल देथे लकरी, छेना, बिन कहे बन जाथे मयाना, कर देथें बिदा घर भीतरी , घर बाहिर पिण्डा पारत
चौरस्ता घला म पिण्डा पारथें ....जतका बेर म रथ माढथे
पंछी तिर ततका बेर म घरों घर निकले लकरी छेना डोहरा 
जाथे जोरे बर चिता म फेर पर थे पिण्डा फेर जोरदिन आगि देखते देखत होगे स्वाहा देंह ।

सुरता आथे कुकदिहिन काकी के मांघ ई *पयडगरी* कस 
इंहां-उहां ले भरे रहय सेंदुर , माथा तोपाय अंचरा म
रेंगय ई पयडग़री म ....कांदी लू के आवय त ...
गोंड़ के सांटी के घुंघरू बता देवय आवत हे काकी
बड़ सुग्घर लागय ओकर कन्हिया के चार लर के करधनी
नांग मोरी जे दिन पहिरके आवय त देखनी हो जावय
हर्रैया तो बारों महीना आठों काल पहिरे रहय
पुतरी ओकरे छाती बर बने हे कहाउस लागय
कान के बारी आउ लूरकी  के बड़ सऊख रहिस 
कान तोपाय रहय फेर कान के पक्का रहिस काकी ।

सोनसरहिन दाई कहिस बर घाट संग सुन्ना परगे माता चौंरा के *** पयडग़री *** 
फेर ऐहवाती मरिस कुकदिहिन बहुरिया एकादशी के. दिन
भर माथा सेंदुर, हाथ म भर भर चुरी, गोंड़ म माहुर,
लाल लुगरा बड़ भागमानी रहिस ।।  

20 फरवरी 2024 दिन मंगलवार
एकादशी माघ शुक्ल पाख
यह कथा समर्पित मेरी मां जैसी मामी श्रीमती माधुरी सिंह को जिनके सानिध्य में  हम सब