बहुत मुश्किल है वक़्त को हाथों में थाम लेना
फिसल जाता है रेत की मानिंद हाथों से
फिसलते चले जातें हैं इस दरम्यान रिश्ते
और हम बेबस खुली आँखों से देखते रहते हैं
कुछ न कर पाना ....कितना आकुल कर देता है?
युग द्वापर हो वा त्रेता या कलयुग ....
बस यूं ही बैठे-ठाले
22 मार्च 2024
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