गुरुकुल ५

# गुरुकुल ५ # पीथमपुर मेला # पद्म श्री अनुज शर्मा # रेल, सड़क निर्माण विभाग और नगर निगम # गुरुकुल ४ # वक़्त # अलविदा # विक्रम और वेताल १७ # क्षितिज # आप # विक्रम और वेताल १६ # विक्रम और वेताल १५ # यकीन 3 # परेशाँ क्यूँ है? # टहलते दरख़्त # बारिस # जन्म दिन # वोट / पात्रता # मेरा अंदाज़ # श्रद्धा # रिश्ता / मेरी माँ # विक्रम और वेताल 14 # विनम्र आग्रह २ # तेरे निशां # मेरी आवाज / दीपक # वसीयत WILL # छलावा # पुण्यतिथि # जन्मदिन # साया # मैं फ़रिश्ता हूँ? # समापन? # आत्महत्या भाग २ # आत्महत्या भाग 1 # परी / FAIRY QUEEN # विक्रम और वेताल 13 # तेरे बिन # धान के कटोरा / छत्तीसगढ़ CG # जियो तो जानूं # निर्विकार / मौन / निश्छल # ये कैसा रिश्ता है # नक्सली / वनवासी # ठगा सा # तेरी झोली में # फैसला हम पर # राजपथ # जहर / अमृत # याद # भरोसा # सत्यं शिवं सुन्दरं # सारथी / रथी भाग १ # बनूं तो क्या बनूं # कोलाबेरी डी # झूठ /आदर्श # चिराग # अगला जन्म # सादगी # गुरुकुल / गुरु ३ # विक्रम वेताल १२ # गुरुकुल/ गुरु २ # गुरुकुल / गुरु # दीवानगी # विक्रम वेताल ११ # विक्रम वेताल १०/ नमकहराम # आसक्ति infatuation # यकीन २ # राम मर्यादा पुरुषोत्तम # मौलिकता बनाम परिवर्तन २ # मौलिकता बनाम परिवर्तन 1 # तेरी यादें # मेरा विद्यालय और राष्ट्रिय पर्व # तेरा प्यार # एक ही पल में # मौत # ज़िन्दगी # विक्रम वेताल 9 # विक्रम वेताल 8 # विद्यालय 2 # विद्यालय # खेद # अनागत / नव वर्ष # गमक # जीवन # विक्रम वेताल 7 # बंजर # मैं अहंकार # पलायन # ना लिखूं # बेगाना # विक्रम और वेताल 6 # लम्हा-लम्हा # खता # बुलबुले # आदरणीय # बंद # अकलतरा सुदर्शन # विक्रम और वेताल 4 # क्षितिजा # सपने # महत्वाकांक्षा # शमअ-ए-राह # दशा # विक्रम और वेताल 3 # टूट पड़ें # राम-कृष्ण # मेरा भ्रम? # आस्था और विश्वास # विक्रम और वेताल 2 # विक्रम और वेताल # पहेली # नया द्वार # नेह # घनी छांव # फरेब # पर्यावरण # फ़साना # लक्ष्य # प्रतीक्षा # एहसास # स्पर्श # नींद # जन्मना # सबा # विनम्र आग्रह # पंथहीन # क्यों # घर-घर की कहानी # यकीन # हिंसा # दिल # सखी # उस पार # बन जाना # राजमाता कैकेयी # किनारा # शाश्वत # आह्वान # टूटती कडि़यां # बोलती बंद # मां # भेड़िया # तुम बदल गई ? # कल और आज # छत्तीसगढ़ के परंपरागत आभूषण # पल # कालजयी # नोनी

Tuesday 31 December 2013

अलविदा

क्या तो तू, और क्या तेरी औकात

*
क्या तो तू
और क्या तेरी औकात
कल थी?
आज चली जायेगी?
क्या सोचती हो?
मैं मर जाऊँगा?

**
तेरे एहसास से दिल ग़मज़दा है इतना
यूँ तेरा जाना भी दिल कबूल कर गया

***
हर बरस सोचता हूँ
मेले लगेंगे तुझे अलविदा कहने
ज़रा सोच !
आज!
तेरे आँचल में बचा क्या है?

****
तेरा भरोसा क्या?
बड़े सपने लेकर आती है
बड़े ख्वाब भी दिखा जाती है
और साथ चलकर सब छीन ले जाती है

*****
अब न तेरे इश्क़ में डूबना इस कदर
कि होश आये तो गिरेबां चाक मिले

******
जाम कुछ इस क़दर मैं उठाउंगा कि न छलके न ढलके
आज नशा इतना ही रहे कि मंज़िल वो राह का होश रहे

31 दिसम्बर 2013

समर्पित कलमुँही २०१३ को
जिसने सपने बड़े दिखाकर
बहुत कुछ छीन लिया  

Tuesday 24 December 2013

विक्रम और वेताल १७

न जाने समय किस करवट बैठे?

आज कोलाहल से वातावरण शान्त
और मौसम सर्द-दर-सर्द

राजधानी में ही
चारों ओर पसरा सन्नाटा
आवाज़ लगाता
न जाने समय किस करवट बैठे?

वेताल भी अनमना
वट वृक्ष के पत्तों को गिनता चला जा रहा था

कि यक--यक

विक्रम वेताल को कंधे पर लाद निकल पड़े
राजधानी की सड़क पर समस्याओं के समाधान में

वेताल ने कहा
हे राजन!

आज ये मौन और अकुलाहट कैसी?
यही आपका साम्राज्य विशाल है?
देश की सम्प्रभुता आप के विवेक पर टिकी है?
यहाँ की अनेकता की एकता को बनाये रखें?

आदरणीय
इस विषम स्थिति में एक कथन स्मरण करता

खर को कहा अर्गजा लेपन, मर्कट भूषण अंग !
सुरही को पय पान करइहौं, स्वान नहाये गंग !!

आज आप का कृत्य देश हित में?

किसी तत्व के परमाणु की संरचना में परिवर्तन संभव?
बस ऐसे ही किसी जीव या पादप की रचना में बदलाव?

असम्भव को सम्भव बनाने का प्रयास उचित?

चलो बदल गया तो?

सर्वकालिक, सर्वमान्य, सार्वभौमिक, सर्वग्राह्य, सर्वसुलभ,
सहज, सरल और विश्व वन्दनीय चिर नवीन?

राजन आप सोचें
यदि परिणाम प्रतिकूल?

राष्ट्र किसी व्यक्ति की सोच है?
जीवन की मुख्यधारा में परिवर्तन सम्भव?
चमड़े का सिक्का आज चल पायेगा?

विविधता, कुटिलता, अनेकता, विषमता,
छल, प्रपंच, राग, द्वेष, मोह, वैमनष्यता,
के बीच कौन रह जायेगा राजा भोज का गड़रिया?
देश की विशालता और अचानक बदलाव से

निर्णय
गर्म कांच में पड़ने वाले ठन्डे जल की भांति हुआ तो?

मैं आप से सहमत क्यों?
हम आप को सफल होने दें
?
व्यक्ति राष्ट्र है या राष्ट्र व्यक्ति?
विविधता के संग सर्व हिताय?

हे राजन!

ये महत्वाकांक्षा और दंभ का संक्रमण काल?
आप विश्व बंधुत्व संग लोकतंत्र और स्वाभिमान की रक्षा करें?

आज एक ही नक्षत्र, ग्रह, राशि में अनेक योग
आज मैं कोई कुम्हार, क्षत्रिय या तेली नहीं

अचानक राजपथ धंस गया
और राजा विक्रम राजपथ पर घुटनों के बल
ऊफ
मौन भंग होते ही
वेताल फुर्र

और कस्मकस जस का तस

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः?
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्?

may all be happy. may all remain free from disabilities.
may all see auspicious.may non suffer sorrow  

क्रमशः
24 दिसंबर2013
समर्पित भारतीय जनमानस को

Saturday 21 December 2013

क्षितिज

मेरा ये आसमाँ?  वो कौन सा क्षितिज?

कह दिया तुमने
ये है क्षितिज !

वो कौन सा क्षितिज?

ये मेरा क्षितिज !
वो तुम्हारा क्षितिज !
और वो अलग उसका क्षितिज !
तब क्यूँ कर एक ही क्षितिज?

दृष्टि और दृष्टिकोण पर टिका
सबका अपना क्षितिज?

और

मेरा ये आसमाँ?
आज ये तेरा भी आसमाँ
ये मेरी अपनी ज़मी?
कल तेरा वो आशियाँ

सबके सपने अलग
और सबके अपने जहाँ?
सबके घरौदे भी अलग?
सबकी अपनी धरती

फिर सचमुच

वो मेरा क्षितिज?
ये तेरा आसमां?
यही उसकी जमीं?
वही आसमां?

06 दिसम्बर 2013
ज़िन्दगी एकांत में

Tuesday 17 December 2013

तल्खियाँ


न जाने क्यूँ आज फिर लगने लगा है डर

*
आज भी आंसुओं को पोंछना आता नही
और खुद को खुदा से भी बड़ा मान लिया
**
बेअदब, बेरूखी बेइन्तहा अब काहे का शोर
हसीन धोखा है ये तेरा प्यार मैने जान लिया
***
जख्म जख्म पर ही दिये है तूने बरसों
आज कैसा दर्द अपनो से झेल सीने पर
****
बना खुदा तो ये तेरे बन्दे कहाँ बख्शेंगे
सौगात आँसुओं के तेरी झोली में आये
*****
ये तो हम है जो जी रहे है तेरी खातीर
लोग रूखसत हुए है पाक दामन कभी
******
जलजला या सैलाब दोष क्या सोचना
अब खुदा का कहर बरपेगा तारीख क्यूँ
*******
आक्रोश की प्रसुति हो न, गर्व फिर शरम
रहम वो भी तेरी झोली मे, कर लूँ भरोसा
********
धोखा, छल, फरेब, आँसू सब मेरे हिस्से
न जाने क्यूँ आज फिर लगने लगा है डर

15  दिसम्बर 2013
समर्पित मेरी ज़िन्दगी को 

Thursday 12 December 2013

आप

जनगण मन अधिनायक जय हे 


आप महान है
कोई संदेह कहाँ?
मै भी अभिभूत हू
लोगो का भ्रम बना रहने दो न

आप सर्वश्रेष्ठ है?
हम सब मानते और जानते है
लेकिन
तुम्हे ये हक किसने दे दिया?
कि तुम सब को नीच कह जाओ

लगी न मिरची दाऊ जी
कही वो न हो जाये
जो मेरे नालायक दिमाग में है
तब न रहोगे घर के न घाट के

जरा सम्हलकर
भूले से भी साँझा चूल्हा मत जलाना
आज आप और हम दोनों ही .....?
बड़ी दुविधा है जी

आप तो ऐसे न थे

संयमित मृदु वाणी
कहीं सत्ता का मद तो नहीं चढ़ गया?
इतनी तल्ख़ आवाज़

एक कहावत याद आती है
क्वाँर मे लोमड़ी पैदा हुई
उसने ऐलान कर दिया
आषाढ़ में बहुत पूर आया था

चार लोगों के कहने पर
कोई बेईमान हो जाता है?
न ही खुद के कह देने पर
कोई ईमानदार हो जाता है?


लेकिन
आप ने तो छाती ठोककर कह दिया
बेईमान हैं ये दोनों
अब 

भई गति साँप छछूंदर केरी

सामने बेटी की शादी है
बेटी घर में कुंवारी रह जायेगी
और वादा निभाया
तब भी फ़ज़ीहत

बहुत कठिन है डगर राह { जनपथ } पनघट की

समर्पित मो सम कौन कुटिल खल  को 
12  दिसंबर 2013
चित्र गूगल से साभार 

Tuesday 10 December 2013

विक्रम और वेताल १६

बहुत कठिन है डगर राह { जनपथ } पनघट की


राजन
परिवर्तन प्रकृति का नियम है?
आप जानते हैं?
आप राजा कैसे बने और मैं वेताल

ये सब जोग-संजोग है?
इस पर इतराना कैसा?

आपकी ग्लानि और सन्ताप हरने के लिये
एक लघु कथा सुनाता हूँ

*****
एक बार एक उत्पाती चुहे को
एक हल्दी का टुकड़ा मिल गया
बस क्या था
उसने अपनी बिल के सामने लिखवा दिया

हल्दी का थोक व्यापारी

राजा विक्रम ने मुड़कर पैनी दृष्टि से देखा
राजन यूँ न देखें
मुझे शरम नहीं आती है

किसी झूठ को भी बड़ी ईमानदारी से बोलिये
बड़ी सिद्दत से बोलिये
बड़ी विनम्रता से बोलिये
बारम्बार बोलिये
किसी मंच से बोलिये
ईमानदार बनकर बोलिये
बड़ी जनसभा को सम्बोधित कीजिये 

वो सच प्रतिध्वनित हो जाती है?

राजन
फिर से यूँ ना देखें

झूठ बोलना भी एक कला और कुंठा है?

चूहे ने समझा दिया
वह हल्दी का थोक व्यापारी है?

*****
चलिये इसी कथा का अगला भाग सुनिये
उसी दिन शाम चार बजे
चूहे का बाप मर गया
चूहे ने पण्डित को बुलवाया

पण्डित रामानन्द जी ने कहा
श्राद्ध कर्म शुरू कीजिये
चूहा निरुत्तर

पण्डित जी ने कहा
पिता का नाम लीजिये
फंस गई सांस और फांस
अब मौन और घिघियाहट

क्यूँ असमंजस?

पण्डित ने कहा
बाप का नाम बताओ या श्राद्ध करो?

चौड़े, स्वच्छ राज पथ पर चलते चलते
राजा विक्रम को भी ठोकर लगी
और
आह की आवाज़ के साथ मौन भंग हो गया
फिर क्या वेताल यथावत्?

बहुत कठिन है डगर राह { जनपथ } पनघट की

१० दिसम्बर २०१३
समर्पित भारतीय जनमानस को
चित्र गूगल से साभार 

Sunday 8 December 2013

विक्रम और वेताल १५

भूख चाहे ज़िस्म की या रहे राज की
 भूख में थूंककर चाटते हमने देखा है


आज प्रातः वेताल
राजपथ के वट पर लटका
निहारता रहा शून्य में
देश कहाँ जा रहा है?

अचानक एक झटका लगा
और वेताल विक्रम के मजबूत कंधे पर

राजन
आपने मेरी गहन चिंता और सोच में विघ्न क्यों डाला
आपको देश और जनता की चिंता होती तो?

आज विक्रम की भृकुटि तनी

यूँ न देखें
सचमुच देश की ये दुर्दशा होती?

राजन ज़रा गौर से राजपथ पर एक नज़र डालें 
ये भला मानस जीभ से क्या उठा रहा है?

स्वच्छ वस्त्रधारी, नेकचलन, सौम्य, धीर, गम्भीर
अरे कहीं ये हंस का वंशज तो नहीं?

इसी व्यक्ति की तरह मैं भी वादा करता हूँ?

और आपका मौन भंग होते ही
मैं भी पुनः यथावत्

और आप भी युगों से

चल पड़ते है प्रतिदिन खोज में?
आदर्श, सत्य, सिद्धांत, मूल्य की खोज में?

राजन
सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग
अपने मूल्य, आदर्श, जीवन वृत्त संग रहे?
कभी कोई मेल रहा?

कैसे मान लिया आज को कल स्वीकारेगा
यदि ऐसा सम्भव होता?
तो राजपथ पर स्वयं के त्याज्य वस्तु को
यूँ अपनी ही जिह्वा से न उठाता

भूख चाहे ज़िस्म की या रहे राज की
भूख में थूंककर चाटते हमने देखा है

राजन ज़रा बचकर
यहाँ भी आपके पैरों के नीचे
विक्रम अरे कहकर उछल पड़े
मौन भंग होते ही

वेताल पुनः अदृश्य?
और राजा विक्रम
देश की
दुर्दशा पर मौन?

08 दिसम्बर 2013
चित्र गूगल से साभार 

Thursday 5 December 2013

करिश्मा

 मेरी खता?

*
लाचारी पर यूँ तरस न खा मै तेरी ही तस्वीर हूँ
चार कदम चल मेरे साथ हौसला न दूँ तो कहना

**
माँगना मालिक ने ही सिखलाया मेरी खता क्या
देख हाथ फैला तेरे  नजरो का भरम टूट जायेगा

***
मै करिश्मा हू किसका मै क्या जानूँ तू जाने तू
तूझे शरम लगी तो फेर नजरें या सीने से लगा

०५ दिसम्बर २०१३
चित्र गूगल से साभार



Saturday 30 November 2013

यकीन 3

मैं तुमसे बेइन्तहा नफ़रत करती हूँ

मैं यकीन करती गई
तेरे हर वादे पर
और तू
हर्फ़ दर हर्फ़
छलता रहा
अब मैं बस चाहती हूँ
खून के बदले खून
आंसूंओं से भीगा चेहरा
हर ज़ुल्म का हिसाब
दर्द के बदले दर्द
चौराहे पर बेइज्जती
शर्म से झुका चेहरा
हर अपमान का बदला
जो तूने बिन मांगे
बिन अपराध
मढ़ दिया माथे पर
लेकिन
क्या करूँ?
मैं तुमसे
बेइन्तहां मुहब्बत करती हूँ
तू जानता है
और तेरे ज़ुल्म की
इन्तहां बढ़ जाती है

लेकिन
आज
तुम जानते हो?
मैं तुमसे बेइन्तहा
नफ़रत करती हूँ

२० नवम्बर २०१३
सौजन्य से यकीन ब्लॉग के सर्जक से
चित्र गूगल के सौजन्य से 

Tuesday 26 November 2013

परेशाँ क्यूँ है?

रमाकांत सिंह 

*
आसमां बादलों से परेशाँ क्यूँ है?
घर लोगों से बेवज़ह हैरां क्यूँ है?
ज़िन्दगी खुश है तेरे जानिब यूँ?
फिर ये चेहरा हंसीन वीराँ क्यूँ है?

**
रोशन है ये जहाँ दिल अन्धेरा क्यूँ है?
शोर दीवाली का फिर ये मायूसी क्यूँ है?
लोग खुश महफ़िल में आँखें नम क्यूँ है
जलजला आँखों में यूँ दिल बंज़र क्यूँ है

***
देख मुश्किलों में इन्सां मुस्कुराता क्यूँ है?
तैरकर दरिया में आज मन प्यासा क्यूँ है?
हर हंसीं चहरे पे हंसी है फिर मातम क्यूँ है?
राह अपनी आसां मंज़िल आज कांटे क्यूँ हैं

24  नवम्बर 2013
समर्पित मेरी ज़िन्दगी को
     

Thursday 7 November 2013

टहलते दरख़्त


                                              मेरी भांजी * श्रीमती अंजू ठाकुर *
*
मौन हैं लोग आज
टहलते दरख़्त तले
सूरज के साये में
जागता मुर्दा

**
अंधों के हाथ पकड़
भूख से हँसता बच्चा
अमन चैन पर चिढ़ते
पंडित, मौलवी, फ़क़ीर

***
बर्फ की गर्मी से
पिघलता क़ाफ़िर
नरम पत्थर पर
चैन की नींद ले

****
ओस से सुखी चादर
ख़ुशी के आंसू समेट
रोशनी फैलाती
अमावस की रात

*****
ठहरता वक़्त
बुझते दीपक से
छलता फिर द्वार द्वार
प्रेम का सन्देश धर

******
धूप में टहलता छॉंव
नित इशारे कर
ठहर दम लेने दे
सहर ज़रा होने दे

*******
गमगीन शैतान
दिखता आकुल आज
दुःख शबाब पर?
गर्दिश में गम?

********
आंसुओं में डूबा
बेरहम कातिल
हंस रहा?
ज़ख्मों पर

*********
जूठन पर इतराता
लंगड़ा भिखारी
लड़ते लोग
कुर्सी की खातिर

*********
सुलगता समंदर
मौन हैं लहरें
हुजूम दरिंदों का
सन्देश शांति ले

०२ नवम्बर २०१३

समर्पित मेरी भांजी * श्रीमती अंजू ठाकुर *को { चित्र }

***आजकल एक अज़ीब सी बेचैनी है दिलो दिमाग में
सब कुछ बिखरा सा , चीजें अपना अस्तित्व खोती और
मेरा यकीन डगमगाता शायद इसी ऊहापोह का नतीज़ा ये रचना

Thursday 31 October 2013

बारिस


*
किसी मोड़ पर
पत्तों की सरसराहट
घने जंगल को
सन्नाटे से भर देती है

**
बादल से झरते बूंदों ने
रुककर धीमे से
पत्तों के कानों में कहा
मौसम सुहाना है

***
बारिस, बारिस और बारिस
आँखों से झरी
दर्द से भरी बारिस ने
सीने को बंज़र बना दिया

****

वक़्त ठहर जाता है
फिर भी शाम ढल जाती है
तेरे आने की खबर
बदली सी छट जाती है

*****
कभी कभी किसी मोड़ पर
जंगल का सन्नाटा
दिल और दिमाग में
शोर सा भर देता है

०१ नवम्बर २०१३

एक सुबह
सिंहावलोकन ब्लॉग के सर्जक श्री राहुल कुमार सिंह
संग जंगल के बीच टहलते वक़्त एहसास
  

Saturday 19 October 2013

जन्म दिन


जन्म दिन मेरी मानस पुत्री
श्री मति आभा सिंह
20 OCTOBER

   विद्यालय में 


विद्यालय उद्यान में शिक्षक दिवस पर 






रायगढ़ घर में कुछ फुरसत के पल  

   विद्यालय में जब बच्चों ने सम्मानित किया शिक्षक दिवस पर 


घर में आराम के पल 






श्रीमान दीपक सिंह और श्रीमती आभासिंह { पति पत्नि }
बेटी और दामाद की भूमिका  में मुलमुला में 


   शिक्षा > बी. एस. सी. , एम. ए.  अंग्रेजी , एम. ए. संस्कृत , एम. बी. ए., बी. एड. 




शादी की  साल गिरह पर 

 मायके सारंगढ़ में 
   विद्यालय में शिक्षक पंचायत वर्ग दो


HAPPY BIRTHDAY TO YOU
WITH LOVE AND BLESSINGS

Ramamkant singh 20 OCTOBER
 श्रीमती आभासिंह  विद्यालय में व्याख्याता पंचायत जिला जांजगीर चाम्पा 

Friday 4 October 2013

वोट / पात्रता

एक ही सार्वभौमिक परिचय पत्र जारी किया जाये


यदि ऐसा हो भारत वर्ष में 

एक ही सार्वभौमिक परिचय पत्र जारी किया जाये
परिचय पत्र इन्टरनेट पर प्रकाशित हो
*परिचय पत्र PAAS PORT की भांति अनिवार्य हो
*किसी भी भारतीय को इसी परिचय पत्र द्वारा वोट डालने का अधिकार हो
*परिचय पत्र अनिवार्य हो
*NO WORK NO PAY की भांति नियम हो NO VOTE NO RIGHT
*VOTING न करने पर समस्त मौलिक अधिकार भी SUSPEND कर दिये जायें
*परिचय पत्र के अभाव में किसी भी प्रकार के कार्य {GOVERMENTAL}की पात्रता न हो
*वोट / पात्रता का नियम हो आप किसी एक प्रतिनिधि का चुनाव करें ही
*राष्टपति से लेकर आम जनता का वोट डालना अनिवार्य हो
*वोट न डालना किसी अपरिहार्य कारणवश ही मान्य माना जाये
*नियम मुख्य चुनाव आयुक्त से लेकर चुनाव कर्मचारी पर भी लागू हो
*महिलाओं को वोट डालना अति अनिवार्य किया जाये
*कोई भी वैध व्यक्ति कहीं से भी अपने वोट डाल सके
*चुनाव सम्बन्धी फैसला ४ माह में निरंतरता में देना भी अनिवार्य हो
*किसी भी व्यक्ति को अधिकतम दो टर्म के लिए ही चुनाव लड़ने की पात्रता हो
* किसी प्रलोभन या पैसा के बल पर लड़ा चुनाव सिद्ध होने पर अवैध हो
*किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा चुनाव प्रचार अवैध माना जाये
* चुनाव प्रचार पर खर्च सीमा ४ लाख प्रति विधान सभा से अधिक न हो
*कम से कम १०००० लोगों के समर्थन पत्र के बाद ही प्रत्याशी माना जाये
*कोई भी व्यक्ति एक ही स्थान से चुनाव लड़ सकता है
*****मतदान न करना राष्ट्र द्रोह की श्रेणी में रखा जाये 
आप भी अपने विचार इसी कड़ी में सकारात्मक जोड़ सकते हैं
आपके नकारात्मक विचारों से मैं वाकिफ हूँ

बाकी कुछ हो न हो ये ज़रूर होने की संभावना होगी?

1 ९५ प्रतिशत मतदान की संभावना
2 मतदान की शक्ति का सही आंकलन
3 गलत मतदाता और बाह्य व्यक्ति की  पहचान
4 जनगणना की सत्यता का सही आंकलन
5 भारत की अस्मिता की रक्षा
6 न्याय व्यवस्था को संबल
7 अर्थ व्यवस्था को नया संबल
8 मतदान के अनैतिक खर्च में पूर्ण कटौती

04 OCTOBER 2013





Saturday 28 September 2013

मेरा अंदाज़

मेरा अंदाज़ जुदा, प्यार जतलाने का


बोल कानों को अच्छा लगे गीत बन गये
कभी कभी अर्थहीन बोल भी शामिल हो गये
और कभी कभी शब्द नहीं मात्रा भी अर्थ को अमर कर गये

हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव

इसे आप अलग अलग लय, सुर, ताल, राग में गाकर आनंद लीजिये
हर क्षण नवीन लगता है, आपका अंदाज़ जुदा होना चाहिए

कोशिश कर देखिये इस गीत को यदि थोडा भी ***?

मेरा अंदाज़ जुदा, प्यार जतलाने का
पा न पाया मैं तुझे, तुझ पे मिट जाने का
कैसा अंदाज़ तेरा, प्यार समझाने का
मुझको गर पा न सका, मुझ पे मिट जाने का?***


यही अंदाज़ मेरा प्यार जतलाने का
गर तुझे पा न सका , तुझ पे मिट जाने का

कैसा ये इश्क तेरा कैसा दीवानापन
कैसा अंदाज़ तेरा उस पे दीवानापन
ऐसा अंदाज़ तेरा और ये पागलपन
मिल न पाये गर कभी, गम को बतलाने का?***


मेरा अंदाज़ जुदा ,प्यार जतलाने का
पा न पाया मैं तुझे, तुझ पे मिट जाने का

कैसा अंदाज़ तेरा प्यार समझाने का
मुझको गर पा न सका, मुझ पे मिट जाने का?
*** 
कैसा रिश्ता ये  तेरा कैसा अनजानापन 
बोल न *** 
है जुदा प्यार मेरा उस पे दीवानापन 
चल *** 
साथ हम जी न सके ,साथ मर जाने का? 

29 april 2013
DEDICATED TO MY ZINDAGI

Friday 20 September 2013

श्रद्धा

रामा { रमाकांत } का प्रणाम स्वीकारें 

एक कथा का आनंद लीजिये

पुराने समय में लीलागर नदी के तट पर रामा यादव अपने बेटा, बेटी, पत्नि के साथ
निवास करता था पूरा परिवार शिव भक्त था नदी के तट पर विराजित शिव जी की
नित्य सुबह शाम पूजा करता था अचानक एक दिन पत्नि को सांप ने डस लिया
और वह चल बसी रामा ने सोचा शिव की कृपा होगी,शिरोधार्य किया किन्तु बच्चों
की देखभाल में कमी आने लगी बच्चे बीमार पड़ गये और वे भी चल बसे

रामा उद्विग्न हो उठा मन उचट गया दीन दुनियां से लेकिन वक़्त कहाँ रुकता है


रामा मन में सोचने लगा मेरा क्या कसूर मेरी भक्ति भाव में कौन सी कमी रह गई
जो ऐसा हुआ अब वह प्रतिदिन सुबह शाम बिना नांगा सात लाठी शिव लिंग को

मारकर अपना क्रोध जताता रोज गाय बैल को खोलता दूध दुहता, लोगों को बांटता
शाम को सोने के पहले शिव जी को कोंसता, बन गया बिन बनाये रोजमर्रा  का काम,
पागलों की तरह चल पड़ता बिन खाये पिये जंगल को

दिन बीतते गये, मौसम भी बदला, जेठ की दोपहरी ढलने लगी, आसमान में

बादल छाने लगे एक दिन सुबह से ही मौसम खराब होने लगा था जानवर
अनमने से यहाँ वहां जाने लगे रामा जानवरों को चराने नदी के पार रोज की
तरह चला गया, आज घर में चूल्हा भी नहीं जला था, शाम को अचानक
आसमान बादलों से भर गया, शुरू हो गई बारिस उमड़ घुमड़ कर

जल मग्न हो गया जंगल का कोना कोना बिखर गये सभी जानवर अपनी जान

बचाने में और रामा लहुलुहान हो गया इन्हें सकेलने में आज कोई सुध नहीं रह
गई थी किसी काम की थका हारा उफनती नदी को जानवरों संग तैरकर जैसे तैसे
घर पहुंचा, जो बन गई थी बाढ़ का हिस्सा मन खीझ उठा, लगा आज सुबह से ही
कुछ छुटता चला जा रहा है, लेकिन सुध बिसरा गया था कैसे? क्या छुट गया?

घर के बिखरे चीजों को देखते देखते अचानक याद आ गया भुला काम बस क्या था
चल पड़ा, न देखा अँधेरा न परवाह की अड़चन की, उफनती बौराती नदी को तैरकर
पहुंचा शिव मंदिर फिर क्या था, भांजी लाठी और तान तान कर सुबह और शाम का
हिस्सा दिया चौदह लाठी शिव जी के सिर पर झमाझम,
मारते वक़्त कहता जा रहा था
**ले तेरा दिया तेरे को ही दिया **मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था

अचानक बिजली की कड़क और कौंध के साथ मृग छाला पहने शिव जी प्रकट हुए

और कहा रामा धन्य है तुम्हारी भक्ति और प्रेम इस बरसात में भी मैं तुम्हे याद रहा,
मांगो क्या चाहिये जो भी, अहा इतने कष्ट में भी यह अनन्य श्रद्धा
अचानक नंग धडंग शिव को मंदिर में देख रामा ने पूछा तुम कौन हो और यहाँ कैसे घर
जाओ बारिस में भींग जाओगे किन्तु उत्तर मिला
मैं शिव जी हूँ, रामा ने कहा अच्छा तो मैं हर हर महादेव हूँ, चलो जाओ अपने घर

शंकर जी ने कहा अरे भोले रामा मैं सचमुच शिव हूँ मैं तुम्हारी भक्ति पर प्रसन्न हूँ

हाँ तो, होगे शिव मैं क्या करूँ और मैं कैसे मानूं की तुम भगवान हो, चलो हो भी तो,

मुझे क्या लेना देना, जाओ अपने घर, खुद के पास पहनने को अंगरखा नहीं और …

भोलेनाथ मुस्कुराकर बोले चलो जो मन चाहे मांग लो मिल जायेगा बिना विलम्ब

रामा ने कहा अच्छा अभी बारिस बंद करो, बारिस बंद हो गई
अब चल पड़ा मांग और पूर्ति का खेल शुरू हुई मांग
घर चलो, शिव जी तुरत पहुंचे रामा को लेकर घर, घर बिखर गया है अभी ठीक करो,
गोठान को ठीकठाक करो, मेरा घर मेरी पत्नि और बच्चों के बिना सुना लगता है,

ये क्या बात मुंह से निकली और पूरी होते गई घर किलकारियों से गूंज गया
रामा मांगता गया और भोले महाराज देते गये रामा और बच्चों को अब ध्यान आया
अरे ये तो सचमुच ही शिव जी हैं पूरा परिवार चरणों में लोट गया
रामा कभी अवाक घर को देखता तो कभी भोले भंडारी को

शायद प्रेम और श्रद्धा लिये शब्द कम पड़ जाते है ये अनुभूति हो?  


रामा { रमाकांत } का प्रणाम स्वीकारें और अड़हा पर कृपा बनाये रखें 
  


चित्र गूगल से साभार

Wednesday 11 September 2013

रिश्ता / मेरी माँ

मेरी माँ

क्यूं नहीं सोचता
ये अनोखा रिश्ता?

मेरी माँ
बहन
बेटी
दादी
नानी
माँसी
बुआ
काकी
सहेली
और रिश्तों से जुड़े रिश्ते
जो हमारे अपने हैं?

हर युग में
रिश्तों का दर्द?
क्यूं?

पञ्च कन्यायें
मान्यताओं में ही?

क्यूं अविश्वास से भर गया
ये प्यार का रिश्ता?

मेरे पिता
भाई
बेटा
दादा
नाना
मौसा
फूफा
काका
मित्र
और तब लोग पुकारते थे
गाँव की बेटी अकलतरहीन ]
जो हमारे अपने थे

न जाने कैसे?
सिमट गये रिश्ते

आज सब अजनबी से क्यूं लगते हैं?
या सरोकार रह गया शरीर के माँ स से?

चित्र गूगल से साभार
समर्पित विश्व की माँ बहनों को
भादों मास कृष्ण पक्ष द्वादशी
२ सितम्बर २०१३

Thursday 5 September 2013

विक्रम और वेताल 14



विनम्र आग्रह २ पोस्ट पर आये टिप्पणी कर्ता और सुधि जनों की कृपा से
परिवार में आई खुशहाली के लिये मेरा प्रणाम स्वीकारें आपका योगदान
यूँ ही समय पर मिलता रहेगा
आभार सहित आपका रमाकांत

वेताल ने कहा
राजन
आज आपके चेहरे पर गंभीरता की जगह हंसी
कहीं ऐसा तो नहीं
शहर के लोगों की तरह
मैं भी दृष्टि भ्रम का शिकार हो गया हूँ?
चलो आपके थकान हरने के लिये
एक सत्य कथा सुनाता हूँ
एक महानगर में
रमेश ने अपने मित्र आशा राम से पूछा
क्या हालचाल हैं मित्रवर?

आशा राम ने कहा
सब ठीक ठाक है

पत्नी आज कल जिम जाती है
जोड़ों में दर्द रहता है न
मैंने मोबाईल और गाड़ी का
माडल बदल दिया है
कार का एवरेज २० कि मी प्रति लीटर है
नौकर हर माह बदल जाते हैं
बेटा को अनुदान देकर
पढ़ने विदेश भेजा है
लड़की ने लव्ह मेरिज कर लिया है
दामाद और बेटी 
अलग अलग शहर में रहते हैं 

कुत्ते के कारण
घर में कोई नहीं आता
माँ विगत चार साल से 
अपने दामाद के घर है 
बाबूजी वेंटीलेटर पर हैं 
कोई चिंता नहीं है 

खाना होटल से ही आ जाता है
कपड़ा धोने की झंझट नहीं
धोबी सुबह शाम लेकर चला जाता है
क्रेडिट कार्ड है ना
ये घर भी किराये का ही है
पुस्तैनी मकान बेच दिया 
घर के मेंटेनेंस का भी पैसा बच जाता है 

रमेश ने कहा आशा राम जी मानना  पड़ेगा
आपकी व्यवस्था और सहनशीलता की पराकाष्ठा को

चलो आज मेरे घर भोजन करें 

नहीं मित्र डॉ से पूछकर ही बता पाऊंगा 

पिछले माह हार्ट सर्ज़री हुई है न
शुगर बढ़ गया था
सर्ज़री के बाद
नमक, तेल, मिर्च, मसाले पर रोक है न
डॉ ने उबला हुआ ही खाने को कहा है 
और कह रखा है
भले ही दिन में चार बार ही पीना  
लेकिन हेवार्ड सोडा मिलाकर ही पीना
और समुद्री झींगा
स्वास्थ के लिये ठीक रहेगा
कोई टेंशन नहीं है
इन्कम टेक्स का मामला अदालत में है
दो चार साल में  निपट जायेगा

बड़ा भाई स्वर्गवासी है
बहू ने मुक़दमा कर रखा है

मित्र ने पूछा और कुछ

आशा राम ने कहा 
सब ठीक ठाक है 

वेताल ने कहा 
राजन और 
विक्रम ने भी रौ में कह दिया 
सब ठीक ठाक है

बस क्या था 
वेताल भी लटक गया फ़ौरन 
वहीँ आश्रम के वट वृक्ष की डगाल पर 
विक्रम अवाक देखते रह गये
आश्रम की ऊँची दिवार और गेट को
आश्रम की दीवारों को लांघना …?

०५ सितम्बर २०१३
शिक्षक दिवस के अवसर पर 
मेरे बच्चों को समर्पित 
जिनके कारण मुझे जाना जाता है 
चित्र गूगल से साभार  

Sunday 1 September 2013

विनम्र आग्रह २


विनम्र आग्रह 

आपसे विनम्र आग्रह पोस्ट को बिना पढ़े टिप्पणी न चिपकायें
अपने मित्रों और विद्वान हितैषी को भी पोस्ट अग्रेषित करें

आपका एक नकारात्मक विचार माँ या पिता को आहत करेगा
और संतान भी माँ बाप से अलग हो जायेगा, समाज को दिशा दें
किन्तु निर्विकार विचार दें किसी कुंठा से परे हों

मैं रमाकांत आपका जीवन भर आभारी रहूँगा

ज़रा विचार करें क्यों टूटता जा रहा है एक प्रबुद्ध परिवार?

अहम् की तुष्टि?
बदलती परिस्थितियाँ?
समाज से अलग रहने की चाह?
स्वेच्छाचारिता?
नए युग की चाह?
नये युग का सूत्रपात?
सकारात्मक सोच ?
नकारात्मक विचार?

कहीं ऐसा तो नहीं?

किसी आकर्षण में?
बंधन मुक्त जीवन की आकांक्षा?
किसी को आहत करने के लिए?
किसी बहकावे में?
गलत संगत में?
कोई प्रयोग धर्मिता?
हमारी उदारता?
हमारी हठ धर्मिता?

या फिर

प्रेम की कमी?
सामंजस्य की कमी?
काम का दबाव?
शुरू से ही गलत जीवन शैली?
अभावों में जीवन?
महत्वाकांक्षा?
हमारी कोई कमजोरी?

हमने विचार कर लिया?

किसी का दुरुपयोग?
पारिवारिक दबाव?
कोई कुंठा?
किसी का आश्रय?
अलग बसने की चाह?
विश्वास की कमी?
विश्वास का टूटना?
धोखेबाजी अपनों की?

हम झेल रहे हैं

एक तरफा प्रताड़ना ?
किसी की भी मनमानी ?
हमेशा झूठ बोलना ?
कोई अफवाह ?
कोई बड़ा लाभ ?
हानि पहुँचाने की मंशा ?
अविश्वास की मार
चरित्रहीनता है नहीं
किन्तु गलतफहमी पैदा करने वालों से घिरे

आँखों पर किसी ने पट्टी बाँध दी हो?

बसा हुआ परिवार टूटता है कारण कुछ भी हो
उसकी आंच में जल उठते हैं जुड़े लोग अकारण

कोई बाध्यता नहीं फिर भी एक आग्रह तो है
हम सब अपनी सीमा में अपनी मर्यादा संग साथ रहें

कौन छोटा, कौन बड़ा, किस पैमाने से नापा जाये?
कौन नापेगा, राजा भोज के राज्य का गड़रिया
कहीं नाप तौल गलत हो गया तो किसकी खता?
जीवन हमारा है निर्णय हमारा ही हो विवेक से

ये वो मार्ग है जो वन वे है जाना या आना एक बार
ज़रा सोचो मैं मर गया तो दुबारा मिलूँगा तुम्हे?

अलगाव भी मृत्यु जैसी ही संवादहीनता है?
तब चाहकर भी कुछ नहीं किया जा सकता

हमारा दुर्भाग्य और प्रेम संग विश्वास की कमी?
अनुरोध
बनो विशाल, समाहित कर लो मुझे अपने में

समर्पित मेरे अपनों को जिनसे मेरा जीवन है
०१ सितम्बर २०१३

Thursday 29 August 2013

तेरे निशां

कल तलक मेरी पेशानी पर अक्स था तेरा
                    आज हाथ की लकीरों में ढूंढ़ता हूं तेरे निशां


*
पहेलियाँ ही कहाँ रही पहेलियाँ सुलझ गई
बिगड़े हालात न बन पाये ये कोई बात हुई

**
दर्द दिल में हो तो हर लम्हा उदास होता है
अजीब शै है ये मोहब्बत, ये कहर ढाता है

***
फलक पे तुम ज़मीं आसमां पे क्यूं तुम हो
या अल्ला जिधर देखूं उधर तुम ही तुम हो

****
तुम्हे भूल जाना यूं मेरे अख्तियार में नहीं जानां
और खता इतनी बड़ी कि माफ़ कर नहीं सकता

*****
ख्वाहिशें थम जायें ये तो मुकद्दर तय कर देता है
हौसला, इश्क, आरजू, कसक,मंज़िल के करीब

******
नशा ऐसा तेरे इश्क का रहा और जूनून तुझे पाने की
डूबा कुछ इस कदर कि होश कहाँ शुरूर आज तलक

*******
भूलना तुम्हे आसां लगता है भुला पाना भी दिल से मुश्किल
हर लम्हा तेरी यादें संग चलें मयकदे की तलाश में मयकश

********
कल तलक मेरी पेशानी पर अक्स था तेरा
आज हाथ की लकीरों में ढूंढ़ता हूं तेरे निशां

०६ मई २०१३
चित्र गूगल से साभार

Sunday 25 August 2013

मेरी आवाज / दीपक

चिरंजीव दीपक सिंह दीक्षित ऑटो सेंटर रायगढ़ 

पञ्च तत्व * क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर * के अंश से बना दीपक 
कुछ लोग जीते हैं परमार्थ में उनकी निष्ठा, समर्पण, सेवा, निर्विकार 

कोई संदेह नहीं जीये तो अपनों के लिये और अपनों के संग, हर सांस में
दिया , बाती और तेल ,दीपक बन प्रकाशित करता राह जलकर पथिक को 

दीपक सिंह एक नाम ही नहीं मेरे लिये एक रिश्ता, एक एहसास है
जिसका जीवन दर्शन और चिंतन सदैव मुझे प्रेरणा देता है

*
सुहानी सुबह ०६ जुलाई २०१० को विद्यालय में हम सब स्टाफ रूम में बैठे थे
एक पुरुष और एक लड़की संग आये, परिचय दिया श्रीमति आभा सिंह
विज्ञान विषय वर्ग २ के पद पर नियुक्त की गई है पू मा शा पटियापाली में
मैंने कहा शाला परिवार आपका स्वागत करता है यह स्वर्ग है कोरबा जिला में

कुछ परिचय और स्वागत सत्कार के बाद मुस्कराहट और संकोच संग आवाज आई
आप रमाकांत सिंह हैं क्या? मैं अवाक सा रह गया, पूछा कैसे जाने कि मैं रमाकांत हूँ?
आपकी आवाज से, आज से लगभग नौ साल पहले आप मेरे पास रायगढ़ आये थे
सचमुच नौ वर्ष पूर्व बहन की शादी के सिलसिले में मुलाकात हुई थी चेहरा घूम गया

वही शांत, धीर, गंभीर, पेशानी की लकीर मेहनतकस इंसान की कहानी बयां करती
कल भी वो शख्स मेरी पसंद में शामिल था और आज भी मैं उससे प्यार करता हूँ
**
९ मई १९९९ की रात मैं भैया शशांक सिंह के साथ शादी में शामिल होने धनगाँव निकले
रात घुप्प अँधेरा हाथ को हाथ सुझाई पड़ना मुश्किल, रास्ते में एक परिवार पैदल मिला
पति पत्नी दो बच्चे सुनसान रास्ता, कुछ दूर आगे निकलकर वापस लौटा यूँ ही पूछा
कहाँ जा रहे हैं? मैं रमाकांत सिंह मुलमुला गाँव निवासी हूँ,क्या मेरे लायक कोई

मेरी बात बीच में ही कट गई पुरुष ने कहा क्या आप दंतेवाड़ा बस्तर में कार्यरत थे?
मैंने पूछा आप कौन? मुझे कैसे जानते हैं? जवाब मैं दंतेवाड़ा में गणित व्याख्याता हूँ
१९८० से १९९९ एक अरसा बीत गया था दंतेवाड़ा छोड़े लेकिन कुछ तो किया है मैंने
अँधेरे में छैल बिहारी सिंह को भैया संग छोड़ दिया भटकने अँधेरे में, मजबूरी थी क्या करता
उनकी पत्नि और बच्चों को कोड़ा भाट छोड़ने निकल गया और जीता विश्वास अँधेरे में भी

हम दोनों भाई भी निकल गये बाद में उसे भी लेकर शादी में शामिल होने अपनी जगह

***
२००४ में गणित मेरी दृष्टि में लिखकर सहायक सामग्री के प्रदर्शन हेतु भैसमा निकला
हाई स्कुल का भरा स्टाफ जहां विद्वान लोगों के बीच अपनी बात रखना कठिन
प्राचार्य सक्सेना जी की अनुमति से लेख और सामाग्री को बतलाना शुरू किया

जैसे ही मैंने बोलना शुरू किया एक आवाज आई अरे रमाकांत सिंह आप यहाँ
मैं वापस मुड़ा कुछ आश्चर्य मिश्रित भाव ले, मैं सी. एस. सिंह रात कोड़ा भाट
आपने मुझे परिवार सहित ससुराल छोड़ा था, पसर गई स्मृति रात की दिन में
आप यहाँ कैसे? स्थानातरण से, लेकिन आपने कैसे पहचाना कि मैं वही हूँ?

आपकी आवाज से पहचाना, गणित मेरी दृष्टि में की सामाग्री का प्रदर्शन संग
एक बात समझ में आई कुछ तो है मेरी आवाज में चाहे गाऊं या कुछ कहूँ

अनायास भूपेंद्र जी का गाया ये गीत याद आ गया

नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा
मेरी आवाज़ ही पहचान हैं, गर याद रहें

आंखें तेरी सब कुछ बयां करती हैं तो हाथ की लकीरें बताती तक़दीर का लेखा
मेरी आवाज़ में भी कुछ तो है जादू कल हो न मैं ये आवाज़ गूंजेगी फिजा में?

२२ अगस्त २०१३

समर्पित मेरे छोटे भाई दीपक सिंह दीक्षित को
जिसने मेरे आवाज़ के जादू को समझाया

Tuesday 20 August 2013

वसीयत WILL

रमाकांत सिंह वल्द स्व श्री जीत सिंह
दिन रविवार रात ३ बजकर ५७ मिनट


वसीयत को मेरे मरने के बाद कौन पूरा करेगा?
कह पाना आज कठिन है जब मैं जिंदा हूँ
मरने के बाद कोई बाध्यता नहीं न ही कोई बंधन
और ज़रूरत भी क्या किसे फुरसत होगी पूरा करे

जब तक उसे क़ानूनी जामा न पहनाया जाये

न पाने की इच्छा, न मिलने का भरोसा, न देने वाला कोई
क्या बचा है, कौन बताएगा? किसके हिस्से में क्या आया?
जो दिखा रहा है उसका दावेदार कौन कौन है? प्रयास व्यर्थ
कौन टपक जाये क़ानूनी हक़दार बनकर कठिन पेंच होंगे?

फिर भी सब कुछ समाप्त हो जाये ऐसा सम्भव बनेगा?

हिन्दू परिवार में क़ानूनी हक़दार कौन इस पर प्रश्न पर प्रश्न?
लाश सड़ जायेगी नैसर्गिक वारिस खोजने के चक्कर में दो मत?

पिता की मृत्यु के बाद माँ को दाने दाने तरसते देखा है मैंने
और माँ की मृत्यु के बाद पिता को किसी कोने में आंसू बहाते
कोई नई बात नहीं दोष किसका? नियति या दुर्भाग्य किसका
किन्तु प्रेम करते माँ बाप भाई बहन भी हमारे ही बीच आज भी

जब मैं मरूं तो मेरे कारण सबकी आँखों में आंसूं हो मैं क्यों चाहूँगा ?

मेरे मरने के बाद कोई विवाद न हो खासकर अर्थहीन अर्थ हेतु

मेरी दिली ख्वाहिश है की मुझे प्रातः उज्जैन में ही जलाया जाये
और मेरी भष्म से महाकाल का अभिषेक कर मुझे मुक्त किया जाये
आस्थियाँ गंगा में बहाकर मदन मोहन महाराज की गद्दी से
मेरे दत्तक पुत्र युवराज सिंह से श्राद्ध करवाया जाये
ताकि वह भी जाने अनजाने क़र्ज़ से मुक्त हो

बिना किसी तामझाम के शांति पूर्वक सादा भोजन करवायें
मुझे ज्ञात है मेरे चाहनेवाले भोजन ऐसा ही करेंगे
और जो मुझे चाहते ही नहीं उन्हें भोजन करवाकर दुखी न करें
भोजन व्यर्थ कर कुछ सिद्ध करना उचित होगा ?

मेरी समस्त चल अचल संपत्ति पर बराबर का केवल मेरी बहनों
रेखा सिंह, सुनीता सिंह , प्रतिमा सिंह  और सरिता सिंह का ही अधिकार है 

न जाने कब दिन ढल जाये  ……. 
कल वक़्त मिले न मिले तब  ……

मेरे असामयिक निधन पर इसे ही मेरी अंतिम वसीयत मानी जाये 
जीवन क्षण भंगुर है न जाने कब सूरज डूब जाये
सो लिख दिया ,पुरे होश हवाश में, गवाह आप सब   
सनद रहे वक़्त पर काम आवे और विवाद से मुक्त हो जीवन 

कुछ लोग मेरे किसी भी प्रकार के मृत्यु कर्म में शामिल न हों 
और उन्हें खबर न करें जिन्हें मैं सबसे ज्यादा घृणा करता हूँ

रमाकांत सिंह वल्द स्व श्री जीत सिंह
दिन रविवार रात ३ बजकर ५७ मिनट
प्रकाशन दिनांक २०। ०८। २०१३
श्रावण शुक्ल १४ दिन मंगलवार



Saturday 17 August 2013

छलावा


अब अँधेरा होगा?
भोर हुई
और रवि की किरणों संग
तुमने सोच लिया
जगत को जीत लिया
अब अँधेरा होगा ही नहीं?

विस्तृत आसमान है
उड़ चलो खोलकर पंख
वक़्त थम जायेगा मौज में?
तुम्हारी मर्ज़ी से तुम्हारी खातिर?

अक्षय तरुणाई?
समय की धारा में भी
बारिस के बुलबुले हैं?
कि थम जाये सावन में भी?

अहंकार या बचपना?
या फिर छलावा खुद से?
न संशय न आग्रह
ढीठ, उन्मत्त बन

ज़िन्दगी, ज़िन्दगी है?
ज़िन्दगी में कोई शर्त ?

लेकिन

ज़िन्दगी मेरी है?
मेरी शर्तों पर?
जल तरंग की भांति
नित नये स्वरुप ले

न पुनर्जन्म
न सृजन

मेरे वज़ूद के लिये
मंज़ूर
कोई शर्त नहीं
तेरी मर्ज़ी तू जाने

01जुलाई 2013
चित्र गूगल से साभार

Wednesday 14 August 2013

पुण्यतिथि

स्व श्री जीत सिंह  { बाबूजी }

बाबूजी

निर्वाण दिवस रविवार
समय दोपहर १ बजकर २८ मिनट
१४ अगस्त १९९४

मैं गर्व करता हूँ कि जीवन में बाबूजी ने कभी मुझे मारा या डांटा नहीं
और आत्मग्लानि महसूस करता हूँ कि अंतिम दिनों में ठीक सेवा नहीं कर पाया
मेरे मित्र, हमराज, गुरु, आदर्श और मार्गदर्शक मेरे साथ नहीं बस यादें और यादें
ऐसे पिता को खोना खलता है जीवन दुबारा है ही नहीं आज जतन हजार हो जाये
लेकिन बाबूजी का मिलना …. ?

कुछ यादें आपसे साझा करता हूँ शब्द उनके लिपि मेरी

*
ऐसी पुस्तक कभी मत बनना
जिसे पढ़ना तो सब चाहें
लेकिन
सहेजना कोई नहीं चाहता
और किसी की सहेजने की प्रबल इच्छा हुई
तो सहेजना न जाने

**
जीवन में कभी नींव का पत्थर मत बनना
बनना तो हमेशा उपरी पत्थर बनना
भले ही अनगढ़ रहो
कल कुछ गुंजाईश तो रहेगी

***
प्यार इतना करो
कि सभी वर्जनाएं टूट जायें
और
घृणा भी इतनी सिद्दत से करो
कि प्यार की कोई गुंजाईश न रह जाये

****
जो तुम्हारे पास है नहीं
कभी उसका शोक मत करना
और जो तुम्हारे पास है
उसे खोना नहीं
भले ही वो तुम्हारी गरीबी क्यों न हो

*****
अपना सब पैसा
अपने माँ, बाप, भाई, बहन, और रिश्तेदारों पर
मत खर्च कर देना
वरना
अर्थ का रीतापन और रिश्तों का छलावा
सह नहीं पाओगे

१४ अगस्त २०१३ पुण्यतिथि 

Tuesday 13 August 2013

जन्मदिन

जन्मदिन  १३ अगस्त 

HAPPY BIRTH DAY MY DEAR YUWARAJ SINGH 


युवराज सिंह चंदेल 
 मैं आज गर्व करता हूँ युवराज सिंह के गड़रिएपन पर कि उसे यह मालूम नहीं कि सौ का नोट मूल्य में एक रूपये के सिक्के से ज्यादा मूल्यवान है। आज भी वह सौ के नोट पर एक रूपया के सिक्के को भारी समझता है। यही भोलापन उसे राजा भोज के राज्य का चरवाहा बनाता है और मेरा परम शिष्य।

कल तुम क्या बनोगे शायद यह देखने के लिये मैं जीवित न रहूं किन्तु ऐसा महसूस करता हूँ कि शानू को जिन लोगों का आशीर्वाद प्राप्त है उनका सानिध्य उसे इस काबिल बना देगा कि उसमे मैं जी उठूँगा *****

उज्जवल भविष्य की शुभकामना सहित असीम स्नेह ।  

तुम्हारा नाना 
रमाकांत सिंह 
१३ अगस्त २०१३ 

Sunday 11 August 2013

साया


पांच साल में एक बार आकर, हमारा वोट ले जाकर
1975 / 76 पेंड्रा बिलासपुर जिला मध्यप्रदेश में मुलाकात हुई श्री एच एन श्रीवास्तव जी कवि और गणित लेखक { बी एल कुल्हारा और  एच एन श्रीवास्तव } अद्भुत बाल मन लिये उनके आग्रह पर लिखा व्यंग 
श्री श्रीवास्तव जी अन्डी में प्राचार्य पद की शोभा बढ़ा रहे थे.  

श्री एच एन श्रीवास्तव जी को समर्पित 

हे प्रभु
हमारे अन्नदाता
लोगो को भयदाता
पांच साल में एक बार आकर
हमारा वोट ले जाकर
हमारे भाग्य विधाता
भले ही हम मरे या जियें
किन्तु आपकी जय हो,जय हो

मालिक
आपका साया
हमारे सर पर बना रहे
भले ही पूरा बदन खुला रहे
चाहे लुंगी, बनियान,
क्या अधोवस्त्र?
जड़ से गायब रहे

हुजूर
ये दिखावे के अंगरखा
हिजड़ों का जामा है
राज्यसभा और लोकसभा में
आपके सनेही
परम विदेही
पुत्रों का हंगामा है

मेरे मौला
मेरे आका
डाकुओं से मिला
आतंक वादियों का पिल्ला
लुच्चा, लफंगा पर थोड़ा भोला
केबिनेट मिनिस्टर
उसका ही साम्भा है

हे चक्रधारी
अमीरों के गिरिधारी
बाकी कुछ शेष
भग्नावशेष
प्रतिरक्षा मंत्री
उसका एक मामा है

15 सितम्बर 1975
चित्र गूगल से साभार

Wednesday 7 August 2013

मैं फ़रिश्ता हूँ?

शब्द आप बनो मेरे गीत हम बन जायेंगे
लफ्ज़ आप बनो हम सरगम बन जायेंगे

**
मंजिल आप चुनो राह पर बिछ जायेंगे
खुश रहें आप यूँ ही खुशियाँ बटोर लायेंगे

***
यूँ ही प्यार करते रहें प्यार हम निभायेंगे
कोशिश करें आप जरुरत हम बन जायेंगे

****
दर्द दिल में हो तो हर लम्हा उदास होता है
अजीब शै है ये मोहब्बत ये कहर ढाता है

*****
बने मंजिल यूं तो पाने को तरस जायेंगे
राह पर बिछो धूल बन लोग रौंद जायेंगे

******
मैं फ़रिश्ता हूँ? ये कब कहा तुमसे बोलो न?
मैं भी इंसां हूँ कभी भूले से समझा तुमने ?

*******
तेरा दिया बिन कहे तेरे को ही लौटा दिया
तेरी मर्ज़ी इसे फूंके या करे दफ़न यादों में

07 अगस्त 2013
चित्र गूगल से साभार
मेरे गीत ब्लॉग के सर्जक भाई सतीश सक्सेना जी
को उनकी रचना धर्मिता के लिए समर्पित 

Friday 2 August 2013

समापन?

आत्मदाह / आत्महत्या / पलायन / समापन?


क्या आपने मनुष्य जैसे तुच्छ जीव के अतिरिक्त किसी अन्य जीव को
आत्महत्या करते देखा? या आत्महत्या का प्रयास करते देखा है?

शायद इन निम्न जीवों में सामंजस्य और सहनशीलता का प्रबल भाव होता है

श्रृष्टि का एक मात्र प्राणी और भगवान की उत्तम व अनुपम कृति ही यह दुर्लभ कार्य करते हैं
चलो आत्महत्या करके देखा जाये, मरने के बाद किसी समस्या का समाधान मिल जाये?

बाबूजी की कही एक कहानी आपसे साझा करता हूँ

राजा विक्रमादित्य महारानी मीनाक्षी संग भोजन करते समय अनायास हंस पड़े
मीनाक्षी द्वारा अचानक हंसी कारण कौतुहल बन गया हंसी और वह भी चींटी के जोड़ों पर
राजन मुस्कुराकर टाल गये, तिरिया हठ प्रबल हो उठा, किन्तु विवश हो गये नारी के आंसू से
जिद और प्रेम में जितना भी कम या ज्यादा हो जाये बस कोई मोल और तोल नहीं

राजन को प्राप्त विद्या अनुसार जीवों की भाषा का ज्ञान था किन्तु शर्त अकाट्य
जैसे ही भाषा का रहस्य उजागर होगा, वर का उल्लंघन मृत्यु को टाल नहीं सकता
अनिष्ट निवारण हेतु किसी निर्जन स्थान में ही ज्ञान और मन्त्र को बतलाया जाये
जहाँ जीर्ण शीर्ण कुँए में पीपल का पेड़ उगा हो, और पुराना बरगद के पेड़ में खोह हो

ताकि विद्या को बतलाने के प्रायश्चित स्वरुप आत्मदाह किया जा सके

उज्जैन राज्य के दक्षिण दिशा में तलाश पूरी हुई राजन जैसे ही रहस्य बताने उद्यत हुए
एक बकरी और बकरे का जोड़ा कुँए की ओर निकला, गर्भवती बकरी का मन ललचाया
बकरी ने बकरे से अनुरोध किया, यदि कुँए में उगे कोमल पीपल का पत्ता मिल जाये?
तो पेट का बच्चा और मैं तृप्त हो जायेंगे, कुआं जीर्ण है मृत्यु निश्चित बकरे ने कहा मृदुल

रीता चला गया अनुरोध और समझाईश, जिद बकरी की मर जाओ, किन्तु पत्ते लाओ
बकरे ने अब कड़े ढंग से कहा मुरख मैं मर जाऊंगा, तो क्या हुआ? मैं तो तृप्त हो जाऊँगी
राजन समझ और देख रहे थे, रानी जानवर का मनुहार ताड़ रही थी, जिद प्रबल हो उठा
संयम का बाँध टूटा, बकरे ने निःसंकोच धड़ धड़ कई चोट बकरी के सिर और पेट पर लगाये

बकरे ने कहा मुर्ख बकरी तू मुझे राजा विक्रम जैसा संज्ञा शून्य और विवेकहीन समझती हो
मैं तुम्हारी अंतहीन जिद के लिए अपनी जान दे दूँ,तुम्हे जान देनी है, जाओ तुम स्वतंत्र हो

सामाजिक चेतना, व्यक्तिगत जिम्मेदारी, दायित्वों का निर्वहन, सजगता,सामंजस्य
दया, सेवा, सहिष्णुता, ममता, जीवन्तता, सहयोग, विवशता का सर्वथा अभाव क्यों?



परमपिता की अद्भुत कृति मनुष्य ही है जो अहंकार से परे, ज्ञान, वैभव, विज्ञान का केंद्र?
आत्मदाह / आत्महत्या / पलायन / समापन किसी भी समस्या का न्याय संगत निवारण

जिंदगी जो मेरी है ही नहीं ,अन्यथा करो आत्महत्या। 

और एक बार मरकर पुनः प्राप्त कर देखो ये अनमोल अद्भुत जीवन ?

समर्पित मेरे छोटे भाई दीपक सिंह दीक्षित को 

जिसका जीवन दर्शन और चिंतन प्रेरित करता है। 

चित्र गूगल से साभार
२ जुलाई २०१३ 

Tuesday 23 July 2013

आत्महत्या भाग २

मैं जीना चाहता हूँ जिंदगी तेरे संग


*****
ज़िन्दगी तुझसे तंग आ गया हूँ?
सोचता हूँ तुझसे होकर पृथक
एक नई पारी को अंजाम दूँ
बंध जाऊं नये बंधन में
जिसे मैं चाहता हूँ अपनी जान से ज्यादा
जो रहेगी बन सहचरी मेरे संग?
ज़िन्दगी के आखरी सांस तलक
तेरी तरह बिन कहे भरेगी माँग मेरी खातिर
या है सिर्फ छलावा है वो
ऐ क्या बोलती तू?

मरुथल की मृगमरीचिका सी कौंधती बिजली बन?

*****
चलते चलते शशि भाई ने कहा
पाजामे की क्रीज और गाड़ी का एवरेज
ज़िन्दगी को सफल बनाता है?
भाई साहब
आप करते रहिये पुत्रेष्टि यज्ञ
डालते रहिये समिधा
और पढ़ते रहिये पहाड़ा
माथे की सलवटे भले ही बदल जाये
नसीब में नहीं लिखा है तो
कुआँ में पानी, और चुनाव में जीत?
और प्रेम?
उम्र भर सांस फुल जाएगी

नाहक परेशां होंगे और संग में पड़ोसी जागेगा ताउम्र?

*****
आज सूरज की किरणों की तरह
केवल तुम्हे महसूस करता हूँ
विक्षुब्ध, बेबस हो बरस चुकी दिन रात
अब बनी रहो धूप छांव सी
आज तेरी फुहार नहीं भिगोती
तन और मन को
चचल हवा के झोके की तरह
छूकर चली जाती है


अंजुरी से फिसलते ज़िन्दगी ने कहा
ये होता है सबके साथ नई कोई बात कहाँ?

मैं जीना चाहता हूँ जिंदगी तेरे संग


क्यूं पूरी जिंदगी गुजर जाती है उहापोह में कसमसाते? 

क्रमशः

समर्पित मेरे छोटे भाई दीपक सिंह दीक्षित को
जिसका जीवन दर्शन और चिंतन प्रेरित करता है।

चित्र गूगल से साभार 

Saturday 20 July 2013

आत्महत्या भाग 1

लेकिन उनसे कुछ बतियाने मैं वापस लौट पाऊंगा?


*****
गहन चिंतन और विचार के बाद
मैंने सोचा क्यों न आत्महत्या कर लिया जाये
मुक्ति या मोक्ष के लिये
क्या रखा है जीवन में?
क्या मिल जायेगा बड़ा जीवन जीकर?
यदि छोटा भी हो गया
तो बदल क्या जायेगा?
और बिना कुछ कहे
चल भी दिये तो क्या अंतर पड़ जायेगा?
न आगा न पीछा

जीवन को समझने में मैं क्यों बनूँ ऋषि मुनि?

*****
लोग स्वर्ग चले जाते हैं
मरने पर जुट जाते हैं स्वजन
स्वर्गवासी बनाने
ऐसा लोग कहते है
एक बार मैं भी मरना चाहता हूँ
ये देखने का शौक है
कितने लोग जुटेंगे
रोयेगा कौन कौन
और कौन मुस्कुरायेगा मेरे जाने पर

लेकिन उनसे कुछ बतियाने मैं वापस लौट पाऊंगा?

*****
मेरे परम हितैषी ने कहा
आदरणीय
न पढ़ लिखकर आपने अपना
सब कुछ बिगाड़ लिया
और जो लोग जियादा पढ़ लिख भी गये
उन्होंने क्या खम्भा उखाड़ लिया
कल, आज और कल के चक्कर में
ज़िन्दगी भर कुछ कर न सके
सोचते हो इसी चार दिन में
श्रृष्टि को पलट डालोगे

खेल निराला है,  99 के चक्कर से कोई बच पाया?
क्रमशः
20 जुलाई 2013

समर्पित मेरे छोटे भाई दीपक सिंह दीक्षित को
जिसका जीवन दर्शन और चिंतन प्रेरित करता है।

Monday 15 July 2013

परी / FAIRY QUEEN



उतरकर  स्वर्ग से नीचे
जमीं पर पांव धर लो?
सहचरी हो मेरी
मैं जानता हूं तुम्हे

न पूजो मानकर ईश्वर
न बन साधिका तुम विचरो
सृजन संकल्प ले जग का
श्रृष्टि संताप हरने को

भटकती प्रेम की खातिर
धरकर रूप माया का
बन घन आसमां में
नित निज प्रेम पथ पर

जब कभी आसमां से
मिलन के रंग डूबी
वसुधा पर उतरती
विव्हल उन्मुक्त गति ले

बिन बूझे अमंगल को
श्रृष्टि को भाव मंगल से
प्रेम से सिक्त कर जाना
नियति है तुम्हारी

जन्म से तुम मधुर हो
जानता है जगत तुमको

उफनती गिरि धरा से
नदी बन हो तरंगित
सदा मिलने समंदर से
प्रतीक्षा में प्रिय के

संज्ञा शून्य, महा ठगिनी
उद्विग्न और चंचल
कहां फिर जान पाती हो
दिव्य अपनी नियति को ?

गगन से शून्य तक भटकाव
और अस्तित्व के ठहराव में

अम्बर से उतरकर
तुम्हारी मधुरता
विलीन हो जाती है
समुद्र से मिलकर

प्रलय और सृजन का
तुम्हारा चंचल सौन्दर्य
और सम्मोहक भाव देख
थम जाता है काल भी

भर जाता है न खारापन?

प्रलय मैं सह नहीं सह सकता
सृजन तुम कर नहीं सकती

परी सी स्वर्ग से नीचे
जमीं पर पांव मत धरो
विचरो आसमां में तुम
सदा ही आसमां के पास

मैं खुश हूँ
आज भी हर पल
धरा से देखकर तुमको
मेरा सिर गर्व से तना


०६ जुलाई २०१३