" ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय ,,
कबीर के ई दोहा ह छत्तीसगढ़ी बर कहे हे कस लागथे
भले ही हमन कही देथन कि
कोस कोस म बानी बदलय, चार कोस म पानी ।।
फेर नता-गोता के मुं ले निकरिस गोठ आउ झरगे अमरित
ए देखा हमर नता संग हमर कहा सुनी ....
फेर मन म गुन देखा एकर मिठास आउ गरूआपन
१ लूवाठ निपोर काय करत हस ?
गांव म एके उमर के नोनी ह एक झन दूसर करा पूछिस
२ काय लुवाठ लाये हस ग
बड़का दाई ह नाती ल कहिस चेराये रमकेरिया ल बजार ले
धर लाइस त
३ काय लूवाठ कर डारबो ई रदबद रदबद पानी म
मोटियारी टूरि ह अपन मया करईया टुरा ल कहत हे
४ लुवाठ लाबे कुछु मिलहि त न
बेटा कुपेचहा बेर म समान लाये जाहि त महतारी के गोठ
५ काय लूवाठ बलाबे ओ मन ल
बर बिहाव म नता रिस्ता ल नेंवता देहे बेर म महतारी आउ काकी फूफू के सियानी
६ फेर लूवाठ आय दाई अईसनहा पहुना हर
घर म माथा पीरा असकट करईया पहुना पहि बर
७ काय लूवाठ ले जाबोन सोझे आय जाय बर तो हवय
लकठा के गांव घर जिंहा गईस आउ आइस तत्का बेर
एहि किसिम के कई गोठ बात सुने बर घेरी बेरी मिलथे
मोर छत्तीसगढ़ी आउ छत्तीसगढ़ के माटी म सावन के जइसे फुसफुसाथे पानी गमक जाथे गली खोर
बस इही बतर म निकरिस गोठ आउ मन हदर जाथे
परदेश घलो म लक्कर लऊहा छत्तीसगढ़ ल छुए बर
मोर छत्तीसगढ़ बोली कहव के भाखा गुर कस बड़ गुरतुर
कोन काकर करा, कईसनहा ,कोन मेर, कतका बेर, काकर बर, कतका कन तान खींच के कहिस .....
बस मिठागे अमरित ले ओपार गुत्तुर.....
आउ दतकी कन होगे तरक-फरक बिख जहर होंगे
आउ भरभरागे ठाड़ धन मिरची कस कई पीढ़ी ले
कस गोई ....के कहई आउ सुनई मंदरस ले जादा मिठ
बबा Ravindra Sisodia के बच्ची होंगे कैरम खेलत म हमन बड़ खुश हो गयेन अब कईसे खेल सिराही ....फेर मारिस तुकके रानी ल बोजागे गुच्चू म, ओकर संगी घला ल पिलो दिस, रहपट कस परिस ठाड़ खड़े करिया गोंटि अंधमधात गईस गुच्चू म फेर सारे गुच्चू ह उछर दिस
त बबा कहिस दुनो अंठा ल तनेर के "अब धर लुवाठ ल ,,
काय लूवाठ लिखे, तहिं लुवाठ गुन आउ सुन
हमर कुछु लुवाठ मगज म नई खुसरिस
( मोर महतारी के छां छोटे बहिनी सरिता बईठे हे अपन संगी ऋषि संग गोठे गोठ म बात उसलगे त लिख-पोंछ देखें )
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