गुरुकुल ५

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Tuesday 27 February 2024

***** पयडगरी *****


समारू के खनकत सुर लमगे बिहनियाँ बेरा म
चल संगी चल जाबो गांव
रथीया पहागे रे गरूआ ढिलागे ....
कोकड़ा लगाये हवय दांव ....
चल संगी चल जाबो गांव....

राम राम के बेरा म
बरदी ल सकेल डारिस कातिक राम बछरू, गाय, बईला, सब आगे खईरखा म चमकत हे टिकली गाय के सुहाई, रेंगे नई सकत हे परसोत्तम के हरहि गाय बंधाय हवय बड़े ठेला नरि म , परो दिन नरोत्तम के संढ़वा के बांधे गोड़ायेर छोरे बर परगे राम रे.... बड़ कंदरागे रहिस लहुँ चुहत रहीस 
रामलाल के लागत गाय ल बिहारी के छपरहि गाय घिल्ला डारिस रोजे के बुता हो जात हे । कातिक राम मने मन सोचत हे ए बछर माघ म भूरी भैंस जनम जाहि, राउताईन
 बर हर्रैया संग नांग मोरी घला बनवा लेंहा, बड़े नोनी के चांदी के पुतरी के कोंडा उसलगे रहिस ओहुँ ल नवा ...
मन के संग कारी गाय बहकगे डहर छोड़ *पयडगरी* म

सुने रहिस भागवत कथा म कातिक राम के ददा भैया राम
           महाजनों येन गताः स पन्थाः
झन जा ओ डहर म जेमा बड़े बड़े साधु संत मन रेंगे हवय
तोर मरे बाप घलो ह नई बांहचय , ओ मन तो जसन तसंन बाँहच गईँन तोर धोती ,कुरता, बण्डी ल छोंड़ तोर ए हे... तोपे बर कछु नई बाँहचय, 
हे राम फेर मनषे के गोड़ म कतका बिख ,,,,, करिया डोमी आउ बिछी ले जादा जे डहर म रेंग दिस चार बरिस दुबि नई जामय । फेर बाह रे मनसे कतका सोंच बिचार के भगवान ह हमन ल गढ़े होही ।
हमर आजा के बताए ....हमर बबा बतावय के आये रहिन
बने ...बन रेंगत ***पयडगरी *** ले......२५० बरिस पहिली बसिन्दा बनगे ई माटी के ....दसन पीढ़ी के मुर्दा इहें गड़े हे ई मर्घट्टी म ।

ई * पयडगरी * ले रेंग के जगदीश के लईका शहर पढ़े गईस, गए च राम होगे , सहर गईस उहेच के पुरतिक होगे
चार गिलास काय पढीस , अटर, मटर सटर गोठियाय धरिस , सिरागे मया पीरा सहर के अंजोर म, अकबका गे के अंधमंधागे राम जानय, फेर कहाँ लहुटीस दाई के मरे घला म ,,,,, किस्सा आय के सही तेला भगवान जानय
दाऊ राम गये रहिस बेटा बहुरिया करा बड़ शौख करके 
धरे रहिस जोरन पपची, खुरमी, खाजा, लाड़ू, ठेठरी, मुंड म बोहके लेजे रहिस निमारे चाले लुचाई के चाउर...
सारे बेटा बहुरिया चीन्हीन तलक नई ......
दाऊ राम उहें चार मुठा माटी डारके उहिच कोती ले गया जाके उंकर पिण्डा पारके घर आइस । दे ह आय सहर

हमर ददा बबा जे पयडग़री धरा दिस उहिच ह सार आय
हमर गाँ म एक पइंत कोंहुँ महतारी के दूध पी डारे त
होगे कई जनम कई गोत के बंधना ....टोरे नई टुटय
खोंच दे दुबी कान म होगे मितान, आउ भोजली खोंचागे त
ममा मामी के जात ले नता पसरगे । मरती जीती नता बनथे मोर गांव म ,सहर म लिख फेंक नता रथे ।
बिहनियां आने संझा ताने आउ रथीया माने ,,,, 
सहर म रद्दा बड़े बड़े फेर छाती सुकरे सुकरे 
सहर म जादा मरथे दाई ददा अस्पताल म । थोरको कन मूंड पिराइस भरती कर देथें कोन संग म हाय हाय करही के काबर ओकर दिन रात हाय हाय सुनहिं ....आउ मरगे त ...उहें ओलिहा दिन बरफ के खोली म, हेरिन बिहान दिन एकेच घरी म लेस दिन जिबली के चुलहा म हाड़ा सेरा दिन लकठा परोस के नदिया म ।

मोर गाँव के पय डगरी म नियम धरम के गमक आय
ए म आथे जाथे ....बड़ सोंच समझ के । छोटे हवय झन संसो कर एमा आएके घला आउ जाए के घला बेंवत हवय
छोटे नाह के हवय झन संसो कर मनखे देख तिरिया जाथे
आउ छेंक दिस त मरे उबार नई रहय ।

आये रहिस ई पयडगरी ले रेंगत सुकालू के सुआरी
कुकदिहिन काकी सांवर फेर मनके साफ 
हरियर फ़रियर घर म नाती नतुरा छोंड़ मरगे 
रामसाय के महतारी ...मरीस जुरगे पास परोस के नता ....
घर के ओसारी आउ अँगना म बिछगे सरकी
गांव सिन्न परगे .... सुपचगे बमरी के बोंगरा...
रात भर भले हंसी दंत गिजोरी करत पहा देहिं फेर ठगत ठगात उसनिन्दा होके काट देथे बैरी कस रात ।
ठाड़े पहरा देथे , बिहनियां जेकर जतका कन मया पीरा धरिस.... सकेल देथे लकरी, छेना, बिन कहे बन जाथे मयाना, कर देथें बिदा घर भीतरी , घर बाहिर पिण्डा पारत
चौरस्ता घला म पिण्डा पारथें ....जतका बेर म रथ माढथे
पंछी तिर ततका बेर म घरों घर निकले लकरी छेना डोहरा 
जाथे जोरे बर चिता म फेर पर थे पिण्डा फेर जोरदिन आगि देखते देखत होगे स्वाहा देंह ।

सुरता आथे कुकदिहिन काकी के मांघ ई *पयडगरी* कस 
इंहां-उहां ले भरे रहय सेंदुर , माथा तोपाय अंचरा म
रेंगय ई पयडग़री म ....कांदी लू के आवय त ...
गोंड़ के सांटी के घुंघरू बता देवय आवत हे काकी
बड़ सुग्घर लागय ओकर कन्हिया के चार लर के करधनी
नांग मोरी जे दिन पहिरके आवय त देखनी हो जावय
हर्रैया तो बारों महीना आठों काल पहिरे रहय
पुतरी ओकरे छाती बर बने हे कहाउस लागय
कान के बारी आउ लूरकी  के बड़ सऊख रहिस 
कान तोपाय रहय फेर कान के पक्का रहिस काकी ।

सोनसरहिन दाई कहिस बर घाट संग सुन्ना परगे माता चौंरा के *** पयडग़री *** 
फेर ऐहवाती मरिस कुकदिहिन बहुरिया एकादशी के. दिन
भर माथा सेंदुर, हाथ म भर भर चुरी, गोंड़ म माहुर,
लाल लुगरा बड़ भागमानी रहिस ।।  

20 फरवरी 2024 दिन मंगलवार
एकादशी माघ शुक्ल पाख
यह कथा समर्पित मेरी मां जैसी मामी श्रीमती माधुरी सिंह को जिनके सानिध्य में  हम सब

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