कारी आउ गोंदील (दाई-बेटा ) दुनों झन शिवरीनारायण मेला देखे गईन । सरकस, सिनेमा, बरतन दुकान, रेहटा,
जलेबी, चना चरपटी, सड़इल, बताशा, साइकिल दुकान, मौत कुंआ, जोक्कर,कठपुतरी बुलत-बुलत थकगे दाई बेटा । बाढ़त गइस मनसे दूरगँछि कस । रेलम-पेल मंदिर म ठेलागे मनसे ऊपर मनसे छूट गईस सांथ दाई बेटा के हाथ लक्ष्मीनारायण महाराज के गोड़ पखारे के चक्कर म ।।
भगवान के दर्शन के लालसा म भुलागे महतारी बेटा ल ।
बाह रे माया तोर मालिक महतारी कल्लागे अपन दुच्छा हाथ देखके ।। छूटगे कारी के तोलगी लइका के हाथ ले
पहिली पइंत छुटिस अंचरा दाई के अध्धर होंगे लइका
कोरा सुन्ना लागिस कारी ल, मन भुकुर भुकुर होंगे ।
गोंदील हदरगे अकेल्ला होके, चारों मुड़ा अंधियार होगे ।
दाई ओ दाई ओ दाई.........चारों कोती मातगे पीरा...
फेर मेला के हल्ला गुल्ला आउ धक्का पेल बड़े परगे
गोंदील के रोवइ कल्लाई के ऊपर ,,,, देख डारिस पुजारी
लइका के आँखी के आंसू आउ मन के पीरा ...…. ।
पुजारी हपके बलाइस मेला के कारकुन ल ... करवादिस
हांका । बाजगे भोंपू । लइका गँवागे मंदिर म पुजारी करा हवय देखा भाई बहिनी मन आवा ले जावा । ऐति बिपतियागे चार मनसे लइका संग ,,, तोर काय नाम आय
गोंदील, कोन गांव म रथस ...नई जानव, काकर संग आय हस.... दाई संग , काय नाम आय ...कारी, कइसनहा दिखथे .... मोर दाई बड़ सुग्घर हे । मोर महतारी बड़ सुग्घर ..हांका घनघनागे सुना हो बहिनी मन सुना जी...
जुरगे मेला म महतारी ...सोन चांदी म लदाय , किसिम किसिम के लुगरा , हांका परतगे महतारी जुरतगे ...
मौका मिलगे बहिनी दाई मन ल बताय के ...देख मोर
सोन के पुतरी, कलदार, सूंता, कटवा, मरीच दाना, गल पटिया, गुलु बन्द, हाथ के हर्रेया, गुजरी, ककनी, कड़ा, कंगन, नांग मोरी, आउ हालगे बनुरिया, गोड के लच्छा , पायजेब, तोड़ा, पैरी, झांझ, सांटी, गुलशन पट्टी बाजगे गोड म, एक से एक बहुरिया कुढ़ परगे, रद्दा मूंदागे...
आँखी थिरके धरिस भगवान के रचना देखके........।
कस बाबू एमा कोन ह आय तोर महतारी...…..?
अपन ले अपन सुग्घर माई लोग ...फेर नई फरक परिस
गोंदील ल । अधीर होगे । दाई मोर आँखी म नई दिखिस ... धुँधरागे आँखी मनसे के फुदका उड़ाई म ।
थकगे सुरुज घला बुड़ती म चले बर धर लिस पच्छिम म
मनसे मन घलो धीरे-धीरे छटागे ,,, रोवाई घला थिरागे
फेर छाती के सुसकाई जस के तस बने रहीस .....
दिन बुड़ती होगे, बरदी लहुटे बर धर लिस , गरुआ के खुरी के धुर्रा बगर के माघी मेला म , इहि ओहरती बेरा म
लक्ष्मीनारायण मंदिर के कलश ले लहुटती सुरुज के अंजोर परिस कारी के मुंह म गोंदील के आँखी चमकगे
कलपत अल्लर परे कारी गोंदील ल पाके अब्बक होगे
न रोवत बनिस न बनिस सुसकत ,,,, भरगे आंसू
फुदका म सनाय चुन्दी, उघरा मुंड, फाटे रेशम कोर के लुगरा, हाथ म पटा, बीरबीट कारी ,,,, जइसे नाव तइसे मुंह
गोंदील दऊंडगे महतारी बर हपट्त परत ....कूद परिस
पुजारी अकबका गईस वाह रे मोर सुग्घर कारी
बाह लक्ष्मीनारायण महाराज तोर महतारी के सुग्घराई
धन हस मालिक , धन हे तोर रचना महतारी के
बाह रे गोंदील आउ तोर सबले सुग्घर महतारी कारी
हदरगे दाई हदरगे बेटा महानदी के निर्मल पानी म
पुन्नी के चंदा घलो सुरता करथे हर साल
कारी आउ गोंदील के किस्सा
बस यूं ही बैठे-ठाले
माताराम की याद में Ashok Tiwari भाई साहब
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