मनखे कस माटी के घला बान, सुभाव आउ चरित्तर के कारन कई परकार हवय ...तेकरे सेतिर मोर गांव म ओकरे हिसाब म हमर खार ...हवय ...
जीते माटी ..मरते माटी ....देख तमासा माटी के ।
माटी म मिल जाहि ए तन ...ए तन माटी माटी के ।।
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मटासी माटी त मटासी खार, पानी गिरगे त खेत के मेंड़ म रेंगे नई सकय मनखे , कतको जतन करके रेंग देख गोड़ म लेटा धर लेथे ...
हरहूँन धान बोंथे जे ह कम पानी म पाक जावय ...
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डोंड़संहुँ मिलगे त भर्री होगे ... डोंड़संहुँ मनेके कि काय बतावां ...?
न करिया, न सादा न पिऊंरा, समझ लेवा राख कस करछठहूँ रंग ,।
ए सारे भुंइयाँ म तिल, राहेर, कोदो, कुटकी, बों के छोंड़ दे ...
ए माटी म चमरगोंठा मिलथे तेकर सेतिर ओकर बान, सुभाव बदल जाथे अइसनहा माटी म पानी लम्मा बेरा, जादा दिन नई माढ़य
आईस पानी आउ निथरगे अन्ते के तनते ... घेरी बेरी पलोये बर लागथे ।
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कन्हार माटी बर तो हाना हवय " कुल बिहावय आउ कन्हार जोंतय ,,
गरौँसा खेती मन भगवान के देहे कन्हार माटी के रथें ...
गरौँसा खेत म पानी के धार रेंगत रथे, तेकर सेतिर दु फसली माने जाथे
धान के किसिम घलो ह खदुहन बासमती,तुलसी मंजरी, दुबराज रथे ।।
करिया डोमी, करिया रुंवा वाला बिछी , नेवरा, गोजरा, घुस मुसुवा, बन बिलवा संग धनेश, सारस कोकड़ा, अजगर, केकरा, गोह, गंउहा डोमी, सबके मांड़ा आय के भुंइयाँ ह ...सबके खजेना आय ए सब मन ...
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माटी मनखे कस रेंगे हवय नदिया के धार के संगे संग ...
जेमेर पाये हवय संगी नदिया कस त रंग आउ बान सुभाव ल बदलत चले हवय खंडे खंड अपन मानी, बानी आउ पानी संग ...
मन परे हवय त नदिया कस गिंया घलो बदत चले हवय
निहार मोर नदिया महानदी, इंद्रावती,हसदेव, अरपा, पैरी, माँड़, सोंढुर, कन्हर, खारुन ल त कभू संगे संग रेंग देख रेनुका, मनियारी, लीलागर, कोटरी, बाघ, मारी, सबरी, तांदुला आउ जोंक के आजु बाजू बाखा म
ओमेर के पानी , बानी, आउ मानी ह ओ खंड़ के किस्सा कंथुली म चिन्हारी देत चलथे ओ मेर के माटी के गुन ...
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गुरु Rahul Kumar Singh बताथे के नदिया मन हमर बान सुभाव ल हमर बोली रीत, रिवाज, रहन, बसन संग लेन देन ल बड़ रंगे हवय ...
बेलासपुर के आगू बड़े नदिया म पुल नई बने रहिस तेकर सेतिर हमर लेन देन संग आदत, सुभाव म ए पार ओ पार के माटी के महक ह हवय
अइसनहे ए हसदेव के ओ पार घलो बिदकगे हवय हमर चाल चलन
आउ कभू थोरकन आगू निकर गयेन सरगुजा कोती त तो गजब हो जाथे
ओती के माटी के गुन मोर तो मति ल फेर देथे ...
घर तो घर कोला के पाखा कई बछर ले दग नई डोलय पानी बादर सब्बो म जस के तस गीरबे नई करय न घुरय ,,...,,कई बछर ले
एक ठन आउ अज़लेंम बात सरगुजा के कुछु धान के भात ल खा देख
बिन दार के सट ले लीला जाथे संगे संग ओकर महक चार घर ले
कुछु दार चुरो अड़बड़ गुरतुर आउ महमहा त मिलिस मोला
साग , भाजी, पानी के मिठास त चौखट्टी कुंआ माटी के सेतिर लागथे
सरगुजा के माटी म काय चोप हवय गुने बर परही ।।
सरगुजा के माटी के मंहक ह उंकर बोली , सुभाव, रहन, बसन, रीत, रिवाज , बान सब म अलगेच ले निथरके दिख जाथे ।
लिखिहँ बस्तर के किस्सा संग बन के किस्सा माटी म जामे साल, सैगोन, सरई, तेंदू, चार, चिरौंजी, कांदा, कुसा के गोठ...
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मोर छत्तीसगढ़ के राजधानी रैपुर के तो बाते अल्लग हवय ...
मोर गांव, कसबा, सहर, फेर बड़े महा सहर , त फेर कल पुरजा, फेर मसीन, संग पढ़ाई- ,लिखाई आउ नवा नवा मनखे मनके संगत ...
ओकरो ले ओ पार संसार दिन दुनियां के बनत बिगड़त बिज्ञानिक काम धंधा , रोजी , रोजगार, रेल गाड़ी, मोटर, बस , के कल कारखाना के छोटे बड़े दुकान , किताब, दवा, दारू सब मन रैपुर ल रायपुर बना दिन !
बड़े बड़े नेता के मकान दुकान संग उठ बईठ ई हे ले सुरु आउ खतम ।
तेकर सेतिर रैपुर म माटी कम लिंटर जादा हवय ....?
हपकन न मनखे न पेंड ह खोभय इंहा के माटी म ...?
,रैपुर के मनखे बड़ बिच्छल हवय कस लागथे...?
Ashok Tiwari भैया तूं तो एहि बिभाग म कुछु पढ़े लिखे हावव
देखा तो पूछ देखिहा हमर मंदिर के पखना के मूर्ति गिनवईया रायकवार साहब करा के रैपुर नहीं चार कोस आजु बाजू घलो म ...
" काबर ? पखना के भगवान बने ,, पखना के बनगे मनखे ,, ???
भिलाई , दुरुग, कोती तो मनखे लोहाटी होत चलत गए हवय काय ?
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अभनपुर के सड़क तीर म बसे हवय हमर भाई Kumar Lalit दाऊ
ओहर किंदरथे गांव गांव ओकर करा होही सोरी डोरी माटी के
ओहर घाट घाट के पानी पिये हवय ओ धरे होही चिट्ठा आउ नाँम ...
दाऊ जी बताहिं के ओहि माटी म करेला करू काबर होगे त अमली अम्मठ आउ बोइर अड़बड़ गुरतुर काबर लागथे ? ओरमे कोंहड़ा नार संग
ओहि माटी म अमारू पटुवा लरबटहा त राहेर दार काबर महमहाथे,, ,?
पानी पखना ल फोर देथे, पानी माटी ल घोर देथे ,...
जिनगी माटी के आय माटी म मिल जाथे ...
ई कहानी किस्सा कंथुली कहत, सुनत ,सुनावत , बखानत बोहात हवय
इंद्रावती नदिया ओकर रायपुर पार के बोली , बानी, बैर, मितानी, रहन-,बसन , पहिरे, ओढ़े, दसाये, खाये-,खजुवाये , लेहे, देहे, रहे, बसे, मरे, जिये, गाड़े, बरोये, रिस, रांड़, बाजा, गाजा, चोंगी ,माखुर, बर, बिहाव, मरनी, हरनी , काय काय ल गिनावव थोर थोर फरक परतगे...
एके जगा म खड़े र थोरकन टेढ़वा कर दे मुं ल उत्ति होगे, लहुट जा त बूड़ती हो जाथे, जेवनी बाखा कति देखके घुंच देहे त दच्छिन होगे, बस एकरे पलटती म पच्छिम हो जाथे, पूरा समटरर्र्क किंदर दे त जस के तस
बस एहि बानी हमर जिनगी म मेल- बेमेल माटी के रंग ह हमर चोला ल बदलत रेंगत चलत गईस आउ हमन काल रहेंन धुर
जर जंगल के मुर मालिक आदिवासी ...बस्तरिहा
फेर लिखबो पोंछबो काल ....सांस चलत रहिहि त ...
1976 म भर अषाढ़ महीना गरजत घुमरत बादर संग झुलुप लेके उतरें
153 कोरी 10 गुरुजी संग बस्तर ल सुधारे ज्ञान बिज्ञान के छड़ी धर...
बस्तर के माटी के किस्सा आगू के कड़ी म..दंतेश्वरी दाई के चरन पखारत
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