गुरुकुल ५

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Monday, 3 February 2025

***** हँड़ियरा *****


छिति जल पावक गगन समीरा पंच तत्व यह रचित शरीरा ।।
भुंइयाँ , पानी , आगी , अगास , आउ हवा ले ए हमर चोला बने हवय
फेर हँड़िया के महत्तम अपरंपार हवय
पूछें बबा Ravindra Sisodia ल जुन्ना समे ले चलागत हवय...
दुख परगे त घोड़ा, रेल, सरेहन मनखे , चिट्ठी पत्री, साईकिल म सोर देंवय
जिंहा जिंहा कुटुम, परवार, निजी नता , गोत, मितान, गुरु, बंश हवय तिहां
कुल... गोत्र... कुटुम्ब... बंश ...सब ल गुन पाना बड़ मुशकूल हवय ,...
साँझर-मिंझर कर डारथन त समझे समझाए म थोरकन अलकर जाथे
तभो हमर घर परिवार म हड़िया के सुग्घर बेवस्था हवय...
हँड़िया मांढ़ जाथे कुछु खटकगे मन म त घर गोसाईंन बना लेथे निपटारा
हंडियां होगे अलग सलग त तोर सुख-दुःख तोर ओरी परछी के छांव...
त फेर पूरा कुटुम , परिवार, बंश, गोत्र, के सोरी डोरी तोर खांध म..
इहि एके कुटुम म कभू मर हर जाथें त हड़िया निकारे के बेवस्था हवय...
ओहि कुटुम के छोटे बड़े नता के चिन्हारी होथे सुरु दिन मुर्दावाली म
कोंन मुड़ मुड़ाही काला दाग देहे बर हवय ....
अलकर सासत म बेवस्था बनथे बिगड़थे घलो ...कोंहुँ लछिमन के डाँड़ नई खिंचाए हवय के परे रहेन दे मुरदा घर म चार दिन ...
गांव घर के मुर्दा गोतियार उठाथे ...
***
हँड़िया माटी के ... न सोन के न बने रहय चांदी के ....
कोंहुँ जगा के माटी के हँड़िया नई बन जावय न सोज्झे म बन जावय
माटी ल छांटके लाये बर परथे... फेर गड्ढा बनाके फूलो ...फूलगे त कचरके के खुंद... खुंद डारे त भीतरी के माटी-गोंटि मन ल निमार हेर
फेर संथाये दे मन भर ...पाग आगे त चाक म चढ़ाथे ...चाक किंदरगे
अब कोहार पेंदी ले सुरु करिस बनाये बर हँड़िया .... बनगे ? माढ़गे ?
ठोंकिस ... ठठाईस ... फेर ओला आवा म चढ़ाईस ...
रंग ह ओकर करिया के करिया रहिगे काबर हम का जानी ...
तूं बतावां गुरु Rahul Kumar Singh ए खोदल के हेरेके तुंहर बुता आय
कब बनिस ? कोन बनवाइस ? ए सब ज्ञान ध्यान तुंहर बांटा ....
महतारी कहिस हम बीसा लायेंन हमर पादा चुकागे ...
***
सुरता हवय एक ठन गोठ-बात
रामफल ...!
हौ मालिक !
होगे भोजन भजन ?
नहीं सरकार काली बंडा कुकुर बुलक दिस फ़रिका ल ढकेल के ...
छू दिस हँड़िया ल ...त छुआगे बस होगे उपास ...
ए दे आज झलमलहीन जाहि बजार त लाही हँड़िया त चुरहि
चल का होइस मोर संग चल बखरी उहें खा लेबे ...जा चेता दे घर म
ह जी निरमला के ढाई ...देख तो रामफल ल कुछु देवा तो...खाये बर
बड़का दाई पैलगी ओ ...
खुश र बेटा...
रामफल मोर हाथ ह फदके हवय कजरहा म ...तैं जा भोजहर म
हँड़िया म हवय बासी ओला सैकमी म हेर लेबे ...
ओई मेर करईहा म चेंच भाजी होही मलिया म ले लेबे
आउ सुन लाल मिरचा के अथान हवय ओई मेर ठेकवा म नून घलो हवय
आउ सिंका म दही टंगाये हे जमोये रहे ग हेर ले
ए दे देख तो अलदा म गोंदली घला हवय ...
नई छुवाइस कुछु न फ़ेंकाइस हँड़िया ....
त कथें मनखे *** में ओकर घर के हँड़िया के बासी हेरके खाथव ***
***
दोख बहुरिया घर म गोड़ मढ़ाईस बिहानियाँ ...चार पहर रात कटिस...
दाई-ददा, संगी संगवारी , बहिनी, नता गोता उमर भर नई पढ़ा सकिन
ए बहदा डौकी एके रात म सारे मेडुवा टुरा ल पूरा मन्तरा दे दिस ...
फेर बिहानियाँ डौकी संग सरकारी गोड़ बोजवा खोली म चल दिस
१ BHK एक B भिखमंगा H हगरी K खोली ...
न सुते के जगा न ...के बस मनमुख्खी रहन बसन बर भाग पराईस ..
माढ़गे अलग हँड़िया चार घर आड़ म अब सब्बो बुता अपन हिल्ल्ले ...
चूल्हा अलग गाड़ ले के माड़गे अलग हँड़िया होगे अलग बेवस्था ...
हमर गांव म ई रेवाज हवय जेकर मन नई आइस ...बताइस त बताइस
नई खंजा माढिस त कलेचुप परछी म के ढेंकी कुरिया म माड़गे हँड़िया
अब सब नता गोता ले सलग अलग बात बेवहार सुरु हो जाथे ...
छट्ठी , मरनी, हरनी, छेवारी, बिहाव, बात बतंगड़ सब ओकर कपार
महीना म ओनहा घला बदले बर परिस त घर के डौका आगि सुलगाही
नहीं त ओई छूत बीटार म रांध खा झेल अपन कुकरम के झेल ल ...
***
गांव म हँड़िया माढ़े के सबले बड़े कारन देखे बर मिलिस ...
एक लम्बर म बड़े भाई के मनमुख्खी एकंगू चीज बस सक्लाई
दूसर छोटे भाई के घर म रहिके दोगलाई ...
तीसर देरानी जेठानी के हिजगा ऊपर हिजगा ,,...
बाप दाई के एकंगू कोंहुँ लईका बर मया ...
ससुरार के घेरी बेरि बेटी के कान फुंकाई...
कभू कभू बहिनी ,फूफू के अनठेहरि बात बेवहार ...
दमांद घलो ह बड़ बिलाई कस मालिक के आँखि फूटे ल अगोरत रथे
मंद मउहा संग जुआ के गोठ म तो लाठी चल जाथे
एक ठन गोठ ल बताए म लाज घलो लागथे ...ए डौकी लफंदर ह ...
भाई जी Udaypratap Singh तूं कुछु चार डाँड़ बताहा हो ...
के चुपे चुप घिरी मिटकी मारे सुते के ओढ़र करिहा परोसी कस
उकील साहेब Ashok Agrawal जब कभू घर म चलत चलात म
चुलहा अलग सिपचगे ओमा दगा दिस आगि नवा बहुरिया के कोंहुँ
समझ लेवा घर के सियान Arun Rana के छाती म मढ़ा दिस गोड़
हालगे धारन अब भगवान मालिक परमात्मा सहाय ...
भितरहिंन लच्छमी के रूप होथे जेकर परसे म सब दल रथें ...
चुलहा अलग ...हँड़िया के सेवाद अलग ...हमर तुंहर अन्तस अलग
अब तो चलन होगे....
मोर कुकुर...मोर बेटी-बेटा... मोर दूल्हा ...
दुआरी म कुकुर करा सावधान ...
बस यूं ही बैठे-ठाले
20 जनवरी 2025
एकल और संयुक्त घरो की याद में
एक जमाना था जब सुबह चुलहा जला तो रात ढल गई

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