गुरुकुल ५

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Monday, 3 February 2025

सोचता हूँ

सोचता हूँ
ये नव वर्ष क्या लेकर आया
और क्या कुछ लेकर चला गया
सहमा हुआ बच्चा गोद में
कुं... कुं... करता पिल्ला
सरसराता पवन
डोलते पीपल के पत्ते
सुनसान राहों में
थरथराती डोकरी
रंभाती गाय बछड़े को दुध पिलाती
चीथड़ों में लिपटा रामलाल
बहती बदबूदार नाली
कपड़ों के ढेर से उठती दुर्गंध
गुदड़ी में कराहती दादी
बदला ... ? बदला ... कुछ ?
अलसाई नदी की धार
भूखे शेर की दहाड़
झरने की सूखती फुहार
मन का गुबार
सड़क की धूल
ठहरा पानी
मुस्कुराता तुम्हारा चेहरा
थकाहारा सूरज
चलो प्रतीक्षा में आगत नववर्ष के
02 / 01/ 2020
बस यूं ही बैठे-ठाले
और अब ये एक तारीख 2025 का
संग-संग चला
कुछ भी नहीं छूटा
न परेशानियां न मोड़
वही सुबह वही भोर
बच्चों का शोर
कुंए की डोर
खींचता किशोर
माँ की कराह
भौजाई की आह
बेटी की परवाह
उड़ते पंछी
कुहरे में लिपटी झोपड़ी
छत से बतियाता धुंआ
दूध पीती बकरी
आलसी घनश्याम
मंदिर की घंटी
मस्ज़िद का अज़ान
चीखती रेल
दौड़ते लोग
जीवन की आपाधापी
देखते-देखते
चढ़ गया सूरज
कल की तरह सिर पर
बस झुका थोड़ा सा झुका सिर से
खुल गई पोटली
रोटी भी कैसी
रात की बासी
प्याज और मिर्च
आज फिर मुंह चिढ़ाते
बस आस में निगला हरेक निवाला
ढ़लता पूरब
आसमाँ सिर पर
शाम के धुंधलके में
राहें चौरस्ते
मुंह चिढ़ाते
मध्धम रोशनी में
कृशकाय गाय
बंशी बजाता नन्दू चरवाहा
बरसों से संग-संग
सब तो साथ चला
बस यूं ही बैठे-ठाले


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