मन उढ़रिस तोर नेम म, कब तन उढ़रिस तोर देह ।
चित्त उढ़रिस तोर चेत म, भगति चढ़िस चित गात ।।
संस्कृत ह महतारी आय काय ? तेकर लागमानी होही छत्तीसगढ़ी ह ...
बड़े बड़े गियानी मन खोजा आउ तमड़ा के उढ़ा कइसे उदगरिस ?
बेटी , दाई, बहिनी, बड़का दाई, काकी, मामी, भऊजी, बहुरिया, ....
लमात जा त नता ऊपर नता गिनत जोरत जा ओंघासी आ जाहि ...
न सिराये हवय न थिरावय एकर लम्मा पातर डोरी न तार न बंधना ...
गंथना आय माँचा के जेमा गोड़ कोती ओंचावन नई आय ...
तेकरे सेतिर सब गांव ह साँझर मिंझर हवय ...
आरसमेटा अमोरा ले हमर दु झन आजी दाई मन मुलमुला ल अपन कोंख दिन त हमर बंस बढ़े हवय, इहि किसिम के जगमहन्त ले छोटे बखरी के अकलतरीहा बबा बर अपन समे के सरग के अप्सरा कस सुग्घर दाई बंस के तरन तारन बर बिहाव करके लाये रहिंन ...
महतारी आउ बेटी के हाना ह कूकरी आउ ओकर अंड़वा कस आय ...
पहिली बेटी जनमिस के दाई हमर मुड़ के देंवता नई बताए सकय ...
अरे उकील Ashok Agrawal घलो के कोरट के किताब म नई मिलय
कभू पूछ देखींन बड़े चोंखर्रा किसान हमर छोटे भाई Vp Singh ल
ह जी पहिली गहुँ के दाना आइस के गहुँ के पेंड़...?
ए ह बबा Ravindra Sisodia के जनउला आय आउ नरियरा के शशिभूषण भाई के लुकड़ु फांदा आय , फसड़गे त पुरगे ...
भीषम अपन बल म उठा लाइस अम्बे, अम्बा, आउ अम्बालिका ल
अर्जुन घलो ह कोंन नोनी ल भगवार के ले आने रहिस द्वापर म...
मना रुजी मान मनौव्वल म भीषम के ददा धर लाइस कइना ल
नारद मुनि पार्वती जी के मन ल रेंगा दिन भोलेनाथ बर फेर काय बस मन रमगे महादेव जी बर सुरु होगये रहिस तपईशा उपास, धास...
मीरा बाई के जोग माढ़गे कृष्ण म बस मन उढ़रगे बनगे जोगनी...
सूरदास के चित्त उढ़रगे बंशी बाले बर त तो कहिस बाँह छुड़ाए जात हो निबल जानके मोहि, हिरदय से जब जाओगे मरद मानोगे तोई ।।
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थोरकन गुन देखी तो एकंगू मया कोंन कोंन करिंन ....
फेर ई प्रेम म काम ह बोजाये हवय के काम ले अल्लग अन्तस् के परेम ?
कोंन मेर देंह.... कोंन मेर चित्त .....कोंन मेर काम..... कोंन मेर अन्तस्...
मन, चित्त, अन्तस् कोंहुँ मेर उढ़र जाहि ? काय ठिकाना हवय ....
गुरु Rahul Kumar Singh कथें के टुरी के मन ह बड़ पोठ होथे ...!
आउ टुरा मन तो धकर पकर, लकर धकर होथे !
माई लोग एक पईत गुन लिस त जी के छूटत ले बस ओकरेच आय ...
देबी, देंवता, यक्ष, किन्नर, नर, रिषि, मुनि, नांग कन्या, राच्छस ...
Udaypratap Singh भाई संग चरगोड़िया गाड़ी म बैठे रहेन त बताइस
नर्मदा-जोहिला-सोन के मया के कथा आँखि ल दबाडब्वा दिस...
मोहागे त तो उढ़रगे जोहिला सोन संग ...गुन तो कतका पिराइस होही नर्मदा ल के संग रेंगत संग बोहात एके छीन म लहुट दिस दिशा ल ...
कहिस होही मन म जोहिला ल जा बछदा सोन संग राजपाठ कर ...
हीरक के नई निहारिस एक पईत पिछ घुंच्चू लहुटीस त ...
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नियम धरम हवय काय सब काम बुता के मोला अइसनह लागथे
आगू म लगिस नव त उढ़ा ह नवोढ़ा म बदलगे अरथ....
पीछू म लगगे रि त बनगे उढ़रि त अरथ कहाँ के कहाँ चल दिस ...
मोरे महतारी ह आउ मोरे जनम देवइया बाप पूरा जिनगी सासत बिपत म .
मन, बचन, करम संग आखिरी सांस संग रहिस फेर ....
थोरकन थोरेच कन फरक परगे ....
अपन जिनगी ...अपन सांस...अपन स्वारथ.... बर निकरगे घर ले
बस पूछ नई पाइस बता नई पाइस संकोच, लाज, हेंकराही, अजम
बस धर दिन कपार म बद्दी ....
काबर कथें ***** ऊढरि *****
जनम भर संताप ....सहिस किस्सा बनगे ...
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