गुरुकुल ५

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Friday, 29 June 2012

फरेब

मैं जानता हूं
हर फरेब
मेरे प्रत्येक प्रश्न पर
तुम्हारा जवाब
फिर क्यों
तुमसे ही पूछना चाहता हूं?
क्यों सुनना चाहता हूं?

सब

तुम भी जानती हो?
कि सदैव की भांति
आज भी
तुम झूठ ही बोलोगी
यह जानते हुए भी
कि हर बार बोला गया झूठ
तुम्हारा चेहरा बयां कर जाता है


फिर ऐसा क्यों?

मैं कहां जान पाया?
तुम्हारी मजबूरी
मक्कारी या धूर्तता
और एक झूठ को
छुपाने के लिए बोला गया
झूठ पर झूठ

पर ये मेरा ही मन है
जो नहीं त्याग पाता
अपनी आस्था और हठ
एक सच सुनने की
जो तुम्हारी आंखें बोल जातीं हैं
तमाम बंदिशों को तोड़कर

और मैं चलता चला जाता हूं
तुम्हारे एक झूठ से
दूसरे झूठ की
अंतहीन यात्रा में


आँखे जो भी कहेंगी
होठों से निकली ध्वनियाँ
उसे काटती रहेंगी

01.03.2011
चित्र गूगल से साभार
अंतिम तीन लाइन तथागत ब्लाग के सृजनकर्ता
श्री राजेश कुमार सिंह के सौजन्य से

23 comments:

  1. sundar abhivyakti ...
    shubhkamnayen.

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  2. मैं कहां जान पाया.....yahi to mushkil hai......

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  3. चक्षु सत्‍य, शब्‍द मिथ्‍या.

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  4. जाने मजबूरी है या मक्कारी ...पर झूठ पर झूठ.... बहुत उम्दा

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  5. पर ये मेरा ही मन है
    जो नहीं त्याग पाता
    अपनी आस्था और हठ
    एक सच सुनने की
    जो तुम्हारी आंखें बोल जातीं हैं
    तमाम बंदिशों को तोड़कर

    बहुत सुन्दर ...

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  6. फरेब है या मक्कारी,,,,,

    बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,बधाई रमाकांत जी

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,

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  7. This comment has been removed by a blog administrator.

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  8. आंखें सच बोल देती हैं।
    अच्छी कविता।

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  9. यह तो होता ही रहेगा - आँखे जो भी कहेंगी ,होठो से निकली ध्वनिया उसे काटती रहेंगी
    जाना, माना और स्वीकार किया शाश्वत असमंजस

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  10. वाह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  11. बार बार बोलने से झूठ सच भी तो हो जाता है ....फिर तो आँखों का और होठों की ध्वनियों का तारतम्य बैठ जायेगा न.....!!!

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  12. जुबान से कुछ भी कहो पर चेहरा सच बोलता है..बस पढ़सकने की बात है..बहुत सुन्दर रमाकान्त..

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  13. सुन्दर प्रस्तुति... आभार। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

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  14. शुभकामनायें ...

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  15. फिर क्यूँ !
    बढ़िया.

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  16. हसीन फ़रेब,यह चाह कर भी पीछा नहीं छोड़ता :)

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  17. अच्छी प्रस्तुति तारतम्य लिए है एक सिरे से दुसरे तक .बढ़िया प्रवाह है रचना का .

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  18. सशक्‍त लेखन के साथ उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ... आभार ।

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  19. आँखें जो कह जाती हैं उसे पढ़ने की कला कम को ही आती है शब्दों को ही पकड़ कर चलते रहते हैं, सुंदर पोस्ट !

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  20. बढ़िया..............

    बेहतरीन रचना..................

    अनु

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  21. आँखो से सुनी और मौन रहकर चेहरे पर पढ़ी गई बातें ही जीवन का लक्ष्य
    निर्धारित करती हैं.......

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  22. आँखें दिल की जुबां होती हैं..सच है..
    लेकिन प्रेम में इतने प्रश्नों का स्थान कहाँ होता है?

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