मैं जानता हूं
हर फरेब
मेरे प्रत्येक प्रश्न पर
तुम्हारा जवाब
फिर क्यों
तुमसे ही पूछना चाहता हूं?
क्यों सुनना चाहता हूं?
सब
तुम भी जानती हो?
कि सदैव की भांति
आज भी
तुम झूठ ही बोलोगी
यह जानते हुए भी
कि हर बार बोला गया झूठ
तुम्हारा चेहरा बयां कर जाता है
फिर ऐसा क्यों?
मैं कहां जान पाया?
तुम्हारी मजबूरी
मक्कारी या धूर्तता
और एक झूठ को
छुपाने के लिए बोला गया
झूठ पर झूठ
पर ये मेरा ही मन है
जो नहीं त्याग पाता
अपनी आस्था और हठ
एक सच सुनने की
जो तुम्हारी आंखें बोल जातीं हैं
तमाम बंदिशों को तोड़कर
और मैं चलता चला जाता हूं
तुम्हारे एक झूठ से
दूसरे झूठ की
अंतहीन यात्रा में
आँखे जो भी कहेंगी
होठों से निकली ध्वनियाँ
उसे काटती रहेंगी
01.03.2011
चित्र गूगल से साभार
अंतिम तीन लाइन तथागत ब्लाग के सृजनकर्ता
श्री राजेश कुमार सिंह के सौजन्य से
हर फरेब
मेरे प्रत्येक प्रश्न पर
तुम्हारा जवाब
फिर क्यों
तुमसे ही पूछना चाहता हूं?
क्यों सुनना चाहता हूं?
सब
तुम भी जानती हो?
कि सदैव की भांति
आज भी
तुम झूठ ही बोलोगी
यह जानते हुए भी
कि हर बार बोला गया झूठ
तुम्हारा चेहरा बयां कर जाता है
फिर ऐसा क्यों?
मैं कहां जान पाया?
तुम्हारी मजबूरी
मक्कारी या धूर्तता
और एक झूठ को
छुपाने के लिए बोला गया
झूठ पर झूठ
पर ये मेरा ही मन है
जो नहीं त्याग पाता
अपनी आस्था और हठ
एक सच सुनने की
जो तुम्हारी आंखें बोल जातीं हैं
तमाम बंदिशों को तोड़कर
और मैं चलता चला जाता हूं
तुम्हारे एक झूठ से
दूसरे झूठ की
अंतहीन यात्रा में
आँखे जो भी कहेंगी
होठों से निकली ध्वनियाँ
उसे काटती रहेंगी
01.03.2011
चित्र गूगल से साभार
अंतिम तीन लाइन तथागत ब्लाग के सृजनकर्ता
श्री राजेश कुमार सिंह के सौजन्य से
sundar abhivyakti ...
ReplyDeleteshubhkamnayen.
मैं कहां जान पाया.....yahi to mushkil hai......
ReplyDeleteचक्षु सत्य, शब्द मिथ्या.
ReplyDeleteजाने मजबूरी है या मक्कारी ...पर झूठ पर झूठ.... बहुत उम्दा
ReplyDeleteपर ये मेरा ही मन है
ReplyDeleteजो नहीं त्याग पाता
अपनी आस्था और हठ
एक सच सुनने की
जो तुम्हारी आंखें बोल जातीं हैं
तमाम बंदिशों को तोड़कर
बहुत सुन्दर ...
फरेब है या मक्कारी,,,,,
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति,,,बधाई रमाकांत जी
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteआंखें सच बोल देती हैं।
ReplyDeleteअच्छी कविता।
यह तो होता ही रहेगा - आँखे जो भी कहेंगी ,होठो से निकली ध्वनिया उसे काटती रहेंगी
ReplyDeleteजाना, माना और स्वीकार किया शाश्वत असमंजस
वाह ... बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबार बार बोलने से झूठ सच भी तो हो जाता है ....फिर तो आँखों का और होठों की ध्वनियों का तारतम्य बैठ जायेगा न.....!!!
ReplyDeleteजुबान से कुछ भी कहो पर चेहरा सच बोलता है..बस पढ़सकने की बात है..बहुत सुन्दर रमाकान्त..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति... आभार। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteशुभकामनायें ...
ReplyDeleteफिर क्यूँ !
ReplyDeleteबढ़िया.
हसीन फ़रेब,यह चाह कर भी पीछा नहीं छोड़ता :)
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति तारतम्य लिए है एक सिरे से दुसरे तक .बढ़िया प्रवाह है रचना का .
ReplyDeleteसशक्त लेखन के साथ उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभार ।
ReplyDeleteआँखें जो कह जाती हैं उसे पढ़ने की कला कम को ही आती है शब्दों को ही पकड़ कर चलते रहते हैं, सुंदर पोस्ट !
ReplyDeleteबढ़िया..............
ReplyDeleteबेहतरीन रचना..................
अनु
आँखो से सुनी और मौन रहकर चेहरे पर पढ़ी गई बातें ही जीवन का लक्ष्य
ReplyDeleteनिर्धारित करती हैं.......
आँखें दिल की जुबां होती हैं..सच है..
ReplyDeleteलेकिन प्रेम में इतने प्रश्नों का स्थान कहाँ होता है?
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ReplyDeletehttp://priyarajan-naga.blogspot.in/2012/06/study-on-blogging-pattern-of-selected.html