तुम सदा
सब कुछ कर सकती थीं
लेकिन
तुमने कभी चाहा ही नहीं
बस उलझी रहीं
अपने ख्वाबों खयालों में
मैने सदा चाहा
लेकिन
तुम्हारी चाहत में
कभी कुछ कर न सका
जो मैने चाहा
तुम कहां अंतर कर सकीं?
मेरे चाहने और तुम्हारे चाहने में
हर बार की तरह
इस बार भी बदल दिया
मेरी र्इच्छा को
अपनी अनिच्छा से
और मेरी चाहत
बस चाहत ही रह गर्इ
चाहत न बन सकी
हम एक और एक मिलकर
ग्यारह बने रहे
एक और एक होकर भी
एक नहीं बन पाये
01.03.2011
चित्र गूगल से साभार
एक सच्ची कहानी उसे समर्पित
जो मेरे इमान और जान से भी ज्यादा कीमती है।
गहरी-गहरी सोच में डूबे दो दीवाने याद आये
ReplyDeleteतुम याद आये और तुम्हारे संग ज़माने याद आये
हर फ़साना हकीक़त नहीं बनता
ReplyDeleteहर चाहत पूरी नहीं होती ...
शुभकामनायें....
सच कहा संध्या जी ने......
Deleteआपने भाव बड़ी कोमलता से व्यक्त किया हैं...
अनु
वाह ...बहुत खूब ।
ReplyDelete@हम एक और एक मिलकर
ReplyDeleteग्यारह बने रहे
एक और एक होकर भी
एक नहीं बन पाये
बस यहीं गड़बड़ हो गयी। अपना-अपना अस्तित्व बचाने की चाह में।
सुंदर भाव …… आभार
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteकोमल भाव लिए रचना.
:-)
मनोभाव का सुंदर चित्रण..
ReplyDeleteकोमल भाव लिए प्यारी सी रचना..
ReplyDeleteकैसी बिडम्बना है..नियति की..बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteहम एक और एक मिलकर
ReplyDeleteग्यारह बने रहे
एक और एक होकर भी
एक नहीं बन पाये,,,,
मनोभाव का सुंदर सम्प्रेषण ,,,..
बेहतरीन रचना,,,,,,
सरल, स्पष्ट मनोभाव .....
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सूचनार्थ
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''इमान और जान से भी ज्यादा कीमती'' को पहचान लिया है आपने, बधाई. बहुतेरे तो अपना पूरा जीवन इस खोज में बिता देते हैं और कुछ तलाशते ही नहीं.
ReplyDeleteहर बार की तरह
ReplyDeleteइस बार भी बदल दिया
मेरी र्इच्छा को
अपनी अनिच्छा से
और मेरी चाहत
बस चाहत ही रह गर्इ
चाहत न बन सकी
हर कोई अपनी ही दुनिया में खोया है...दूसरा भी यही कह सकता है...जीवन का यथार्थ दिखाती रचना !
अधूरी चाहत ...एक और एक ग्यारह ही रखती है दो चाहने वालों को ....सामान्तर चलते रहना नियति हो जाती है .अच्छी भाव अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteहम एक और एक मिलकर
ReplyDeleteग्यारह बने रहे
एक और एक होकर भी
एक नहीं बन पाये
खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....
और मेरी चाहत
ReplyDeleteबस चाहत ही रह गर्इ
चाहत न बन सकी
शब्दों का सुन्दर सामंजस्य..
अच्छी लगी प्रस्तुति..
आभार
कभी एक और एक होते हैं दो, कभी ग्यारह और कभी कभी एक और एक मिलकर एक भी होते हैं| ये खेल है सब तकदीरों का, थोडा सा हिस्सा तदबीरों का भी|
ReplyDeleteरमाकांत जी
ReplyDeleteविरह में डूबी ये रचना दो व्यक्तियों के रिश्तों को व्यक्त karti है..... कभी कभी जीवन का सच यही होता है
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में ,वाह बहुत खूबसूरत अहसास .
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