गुरुकुल ५

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Thursday 21 June 2012

फ़साना


तुम सदा
सब कुछ कर सकती थीं
लेकिन
तुमने कभी चाहा ही नहीं
बस उलझी रहीं
अपने ख्वाबों खयालों में

मैने सदा चाहा
लेकिन
तुम्हारी चाहत में
कभी कुछ कर न सका
जो मैने चाहा

तुम कहां अंतर कर सकीं?
मेरे चाहने और तुम्हारे चाहने में

हर बार की तरह
इस बार भी बदल दिया
मेरी र्इच्छा को
अपनी अनिच्छा से
और मेरी चाहत
बस चाहत ही रह गर्इ
चाहत न बन सकी

हम एक और एक मिलकर
ग्यारह बने रहे
एक और एक होकर भी
एक नहीं बन पाये

01.03.2011
चित्र गूगल से साभार
एक सच्ची कहानी उसे समर्पित 
जो मेरे इमान और जान से भी ज्यादा कीमती है।

21 comments:

  1. गहरी-गहरी सोच में डूबे दो दीवाने याद आये
    तुम याद आये और तुम्हारे संग ज़माने याद आये

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  2. हर फ़साना हकीक़त नहीं बनता
    हर चाहत पूरी नहीं होती ...
    शुभकामनायें....

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    Replies
    1. सच कहा संध्या जी ने......

      आपने भाव बड़ी कोमलता से व्यक्त किया हैं...

      अनु

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  3. वाह ...बहुत खूब ।

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  4. @हम एक और एक मिलकर
    ग्यारह बने रहे
    एक और एक होकर भी
    एक नहीं बन पाये

    बस यहीं गड़बड़ हो गयी। अपना-अपना अस्तित्व बचाने की चाह में।
    सुंदर भाव …… आभार

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  5. बहुत ही बढ़िया
    कोमल भाव लिए रचना.
    :-)

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  6. मनोभाव का सुंदर चित्रण..

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  7. कोमल भाव लिए प्यारी सी रचना..

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  8. कैसी बिडम्बना है..नियति की..बहुत सुन्दर रचना..

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  9. हम एक और एक मिलकर
    ग्यारह बने रहे
    एक और एक होकर भी
    एक नहीं बन पाये,,,,

    मनोभाव का सुंदर सम्प्रेषण ,,,..

    बेहतरीन रचना,,,,,,

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  10. सरल, स्पष्ट मनोभाव .....

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  12. ''इमान और जान से भी ज्यादा कीमती'' को पहचान लिया है आपने, बधाई. बहुतेरे तो अपना पूरा जीवन इस खोज में बिता देते हैं और कुछ तलाशते ही नहीं.

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  13. हर बार की तरह
    इस बार भी बदल दिया
    मेरी र्इच्छा को
    अपनी अनिच्छा से
    और मेरी चाहत
    बस चाहत ही रह गर्इ
    चाहत न बन सकी
    हर कोई अपनी ही दुनिया में खोया है...दूसरा भी यही कह सकता है...जीवन का यथार्थ दिखाती रचना !

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  14. अधूरी चाहत ...एक और एक ग्यारह ही रखती है दो चाहने वालों को ....सामान्तर चलते रहना नियति हो जाती है .अच्छी भाव अभिव्यक्ति.

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  15. हम एक और एक मिलकर
    ग्यारह बने रहे
    एक और एक होकर भी
    एक नहीं बन पाये


    खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....

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  16. और मेरी चाहत
    बस चाहत ही रह गर्इ
    चाहत न बन सकी

    शब्दों का सुन्दर सामंजस्य..
    अच्छी लगी प्रस्तुति..
    आभार

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  17. कभी एक और एक होते हैं दो, कभी ग्यारह और कभी कभी एक और एक मिलकर एक भी होते हैं| ये खेल है सब तकदीरों का, थोडा सा हिस्सा तदबीरों का भी|

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  18. रमाकांत जी
    विरह में डूबी ये रचना दो व्यक्तियों के रिश्तों को व्यक्त karti है..... कभी कभी जीवन का सच यही होता है

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  19. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!

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  20. सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में ,वाह बहुत खूबसूरत अहसास .
    http://madan-saxena.blogspot.in/
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