स्पर्श
खामोशी कहां टूटती है?
बढ़ती जाती है दूरियां
शब्दहीनता से
संवादहीनता के
स्पर्श तराश देते हैं
हमें बुत की तरह
तुम्हारा तर्क,
तुम्हारी खामोशी,
तुम्हारे फरेब ने
खुद ब खुद
उजागर कर दिया
तुम्हारे अंतर्मन को
तुम मुंह फेरो
या विस्तृत आसमां की तरह
फैल जाओ ब्रम्हाण्ड में
क्षुद्र आत्मरक्षा में
अब सब निरर्थक
30.04.2011
(चित्र गूगल से साभार)
तुम्हारा तर्क,
ReplyDeleteतुम्हारी खामोशी,
तुम्हारे फरेब ने
खुद ब खुद
उजागर कर दिया
तुम्हारे अंतर्मन को
मन के भावों को शब्दों से तराशा है ...सुन्दर
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeletebahut khoobsurt
ReplyDeletemahnat safal hui
yu hi likhate rahe aapko padhana acha lagata hai.
तुम मुंह फेरो
ReplyDeleteया विस्तृत आसमां की तरह
फैल जाओ ब्रम्हाण्ड में
क्षुद्र आत्मरक्षा में
अब सब निरर्थक...
रचना पढने के बाद काफी देर शांत बैठे सोचते रहे... बहुत गहरे भाव होते हैं आपकी रचनाओं में...
तुम्हारा तर्क,
ReplyDeleteतुम्हारी खामोशी,
तुम्हारे फरेब ने
खुद ब खुद
उजागर कर दिया
तुम्हारे अंतर्मन को,,,,,
गहराई लिये सुंदर प्रस्तुति,,,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
बहूत हि सुंदर गहन भावाभिव्यक्ती है...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....
bahut sunder
ReplyDeleteतुम मुंह फेरो
ReplyDeleteया विस्तृत आसमां की तरह
फैल जाओ ब्रम्हाण्ड में
क्षुद्र आत्मरक्षा में
अब सब निरर्थक
क्या बात है....बहुत सुंदर । कुछ दिनों से देख रहा हू कि आपकी लेखनी का दायरा विस्तृत होता जा रहा है । मेरी कामना है कि आप निरंतर सृजनरत रहें । धन्यवाद ।
सुन्दर शब्द चयन और गहन विचार
ReplyDeleteबर्फ पर यात्रा नहीं होती ,आओ पिघला दे इसे अपने समबन्धोकी गरमी से ,और उतार दे नाव एक नई. शुरुआत के लिए.
ReplyDeleteखामोशी कहां टूटती है?
ReplyDeleteबढ़ती जाती है दूरियां
शब्दहीनता से
संवादहीनता के
स्पर्श तराश देते हैं
हमें बुत की तरह.....चंद पंक्तिया और बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
संवाद हीनता की स्थिति से बेहतर है कि वाद-विवाद ही हो, तर्क-वितर्क ही हो, कम से कम समझने का और शायद समझाने का अवसर तो मिल जाता है।
ReplyDeleteवाह रामाकान्त जी ....कम शब्दों में ... मन के गहन भाव कितनी खूबसूरती से कह डाले
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete''अब सब निरर्थक''- लेकिन अभिव्यक्ति एकदम सार्थक, प्रभावी.
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति.......
ReplyDeleteगहन भाव.....................
कभी कभी खामोशी भी बहुत कुछ बयाँ कर जाती है.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
बधाई.
इन खामोश अदाओं का क्या भी कहना |
ReplyDeleteकल-कल बहती हुई सरिता हो कोई ||
gahan ...bahut gahan rachna ...samvaadheentaa gaharii chot detii hai ...
ReplyDeleteहम्मा
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति ...
ReplyDeletebahut badiya sir
ReplyDeleteजब अंतर्मन ही कण-कण को अपना स्वर देता है तो फिर सब निशब्द ही हो जता है..
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