गुरुकुल ५

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Saturday, 9 June 2012

स्पर्श



खामोशी कहां टूटती है?
बढ़ती जाती है दूरियां
शब्दहीनता से
संवादहीनता के
स्पर्श तराश देते हैं
हमें बुत की तरह


तुम्हारा तर्क,
तुम्हारी खामोशी,
तुम्हारे फरेब ने
खुद ब खुद
उजागर कर दिया
तुम्हारे अंतर्मन को





तुम मुंह फेरो
या विस्तृत आसमां की तरह
फैल जाओ ब्रम्हाण्ड में
क्षुद्र आत्मरक्षा में

अब सब निरर्थक

30.04.2011
(चित्र गूगल से साभार)

24 comments:

  1. तुम्हारा तर्क,
    तुम्हारी खामोशी,
    तुम्हारे फरेब ने
    खुद ब खुद
    उजागर कर दिया
    तुम्हारे अंतर्मन को

    मन के भावों को शब्दों से तराशा है ...सुन्दर

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  2. बहुत सुन्दर...

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  3. bahut khoobsurt
    mahnat safal hui
    yu hi likhate rahe aapko padhana acha lagata hai.

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  4. तुम मुंह फेरो
    या विस्तृत आसमां की तरह
    फैल जाओ ब्रम्हाण्ड में
    क्षुद्र आत्मरक्षा में

    अब सब निरर्थक...
    रचना पढने के बाद काफी देर शांत बैठे सोचते रहे... बहुत गहरे भाव होते हैं आपकी रचनाओं में...

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  5. तुम्हारा तर्क,
    तुम्हारी खामोशी,
    तुम्हारे फरेब ने
    खुद ब खुद
    उजागर कर दिया
    तुम्हारे अंतर्मन को,,,,,

    गहराई लिये सुंदर प्रस्तुति,,,,,,,

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  6. बहूत हि सुंदर गहन भावाभिव्यक्ती है...
    बेहतरीन रचना....

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  7. तुम मुंह फेरो
    या विस्तृत आसमां की तरह
    फैल जाओ ब्रम्हाण्ड में
    क्षुद्र आत्मरक्षा में

    अब सब निरर्थक

    क्या बात है....बहुत सुंदर । कुछ दिनों से देख रहा हू कि आपकी लेखनी का दायरा विस्तृत होता जा रहा है । मेरी कामना है कि आप निरंतर सृजनरत रहें । धन्यवाद ।

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  8. सुन्दर शब्द चयन और गहन विचार

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  9. बर्फ पर यात्रा नहीं होती ,आओ पिघला दे इसे अपने समबन्धोकी गरमी से ,और उतार दे नाव एक नई. शुरुआत के लिए.

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  10. खामोशी कहां टूटती है?
    बढ़ती जाती है दूरियां
    शब्दहीनता से
    संवादहीनता के
    स्पर्श तराश देते हैं
    हमें बुत की तरह.....चंद पंक्तिया और बेहतरीन अभिव्यक्ति.....

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  11. संवाद हीनता की स्थिति से बेहतर है कि वाद-विवाद ही हो, तर्क-वितर्क ही हो, कम से कम समझने का और शायद समझाने का अवसर तो मिल जाता है।

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  12. वाह रामाकान्त जी ....कम शब्दों में ... मन के गहन भाव कितनी खूबसूरती से कह डाले

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  13. This comment has been removed by the author.

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    Replies
    1. ''अब सब निरर्थक''- लेकिन अभिव्‍यक्ति एकदम सार्थक, प्रभावी.

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  14. सुन्दर अभिव्यक्ति.......
    गहन भाव.....................

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  15. कभी कभी खामोशी भी बहुत कुछ बयाँ कर जाती है.

    सुंदर प्रस्तुति.
    बधाई.

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  16. इन खामोश अदाओं का क्या भी कहना |
    कल-कल बहती हुई सरिता हो कोई ||

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  17. gahan ...bahut gahan rachna ...samvaadheentaa gaharii chot detii hai ...

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  18. बढ़िया अभिव्यक्ति ...

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  19. जब अंतर्मन ही कण-कण को अपना स्वर देता है तो फिर सब निशब्द ही हो जता है..

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