क्यों करूं प्रतीक्षा?
तुम्हारी तरह मैंने भी
सीख लिया अब
किसी और का हाथ थामना
कन्धे पर सिर रखना
दुखड़ा सुनाना अपने अंदाज में
भिगा देना कन्धे
और छोड़ जाना
आंसुओं के दाग
तुम्हारी दासतां को
दरकिनार कर दिया मैंने
तोड़ दिये बंधन
करता हूं विचरण
विहग सा निस्सीम गगन में
गाता हूं
मुक्ति के गीत
जिसको स्वर दिये थे
तुमने कभी
अब ध्वनित है वही
करता हूं बंधन मुक्त
तुम्हें भी मोह से
और हो जाता हूं मुक्त
तुम्हारे पाश से
गगन तुम्हारा
विस्तार तुम्हारा
विचरण करो
पखेरू सदृश्य
पंख फैलाकर
चूर थकन से कभी
मस्ती मगन यदि
आना तुम्हारा मेरी छांव में
डैने समेटे
पलकें बिछाये
बाहें फैलाकर
प्रतीक्षा-प्रतीक्षा
प्रतीक्षा-प्रतीक्षा,
प्रतीक्षा?
करते थे जैसे हम
एक दूजे की कभी
17.03.2010
अक्सर होता यह है पुराना लगाव बचा रहता है पर दिलचस्पी समाप्त हो जाती है
ReplyDeleteसतत प्रतीक्षारत मन ...कभी बंधना चाह्ता है ....कभी मुक्ति ...!!
ReplyDeleteसुंदर रचना ...
आप उन विरल कवियों में से हैं जिनकी कविता एक अलग राह अपनाने को प्रतिश्रुत दिखती हैं।
ReplyDeleteअति सुन्दर! व्यवहारिक दृष्टि जीवन को आसान बनाती है।
ReplyDeleteमन की नाराजगी है ये.....
ReplyDeleteकिसी और का हाथ थामने की बात भी करता है और प्रतीक्षा भी करता है.....
बहुत भावपूर्ण रचना.....
मन की दुविधा कभी पास रहना चाहता है तो कभी दूर जाना चाहता है....बहुत खुबसूरत रचना..
ReplyDeleteवक्त के साथ किसी और का हाथ थाम तो
ReplyDeleteलेते है पर पहले प्यार को भुलाना मुश्किल होता है...
कोमल भाव लिए रचना...
बहुत सुन्दर
:-)
प्रतीक्षा?
ReplyDeleteकरते थे जैसे हम
एक दूजे की कभी,,,
बहुत बेहतरीन सुंदर भावभिव्यक्ति ,,,,,रमाकांत जी बधाई
RECENT POST ,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
जि़ंदगी के ऐसे अनुभव को शब्दों में बड़ी कुशलता से संजोया है आपने।
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ... अनुपम प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ..
ReplyDeleteतुम्हारी दासतां को
ReplyDeleteदरकिनार कर दिया मैने
तोड़ दिये बंधन
करता हूं विचरण
पखेरू सा निस्सीम गगन में
हर शब्द बोल पड़े हैं । यह कविता मन को छू गयी । मेरे पोस्ट "हम रऊआ सबके भावना के समझत बानी" पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
प्रतीक्षा का अनवरत सिलसिला.
ReplyDeleteअनंत प्रतीक्षा, और उस प्रतीक्षा के साथ जीना सीख लेना दोनों बहुत जरूरी हैं|
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बेहतरीन रचना
दंतैल हाथी से मुड़भेड़
सरगुजा के वनों की रोमांचक कथा
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ब्लॉ.ललित शर्मा
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प्रतीक्षा करना अच्छा लगता है |
ReplyDeleteआशा
वाह जी ...................अति उत्तम
ReplyDeleteखुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
ReplyDeleteगाता हूं
ReplyDeleteमुक्ति के गीत
जिसको स्वर दिये थे
तुमने कभी
अब ध्वनित है वही'
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कितना कुछ बयान करती हैं ये पंक्तियाँ !
..बहुत अच्छी भाव अभिव्यक्ति है .
अति सुंदर ...भावमयी पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......
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