गुरुकुल ५

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Monday, 25 June 2012

पर्यावरण



पर्यावरण और शिक्षा विद्यालय में
1 तारे, बादल, नक्षत्र मंडल, मौसम,
2 नदी, नाला, पहाड़, खड्ड-खार्इ,
3 मैदान, मिट्टी, खनिज,
4 वनस्पति, फल, फूल,
5 कीट-पतंगे,
6 पशु, पक्षी,
विदयालय में उपरोक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखकर अध्ययन-अध्यापन शुरू करें।

गांवों में वैज्ञानिकता का ज्ञान प्रारंभिक स्तर से ही मिल जाता है, नित्य कर्म को जाते वक्त वनस्पति, जीव, जन्तु, मिटटी-पत्थर, मौसम, पानी का स्रोत, औषधीय वनस्पति का ज्ञान, इसी प्रकार तैरने में सभी अंगों की देखभाल, स्वयं से स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता, दातुन तोड़ते वक्त पर्यावरण के प्रति प्रेम, सजगता, उन्मुखता, चेतनता, क्रिया-प्रतिक्रिया, विस्तार का ज्ञान, क्रमिक स्तर पर शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक ज्ञान की उपलब्धि प्राप्त हो जाती है। सजीव-निर्जीव, सब्जी, फल, फूल, पक्षी, जानवर, पशु, कीट-पतंगों का जीवन चक्र, मौसम का व्यवहार, मिट्टी-पत्थर, बादल का महत्व, उपयोगिता, तथा इनकी अन्योन्याश्रितता का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।

प्रकृति का मूल, जड़- क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर, का वृहद और व्यावहारिक ज्ञान और अध्ययन एवं प्राकृतिक उपादानों का दोहन, स्रोत, महत्व, उपयोगिता, अन्योन्याश्रितता का सूक्ष्म विवेचन और अध्ययन भी आवश्यक है। प्रकृति का दूसरा भाग चेतन- वनस्पति, निम्नवर्गीय जीव एवं उच्चवर्गीय जीवों में प्राणी, सरीसृप, मछली, उभयचर, स्तनधारियों का व्यापक अध्ययन करें।

नक्षत्र विज्ञान का अलौकिक ज्ञान, सूर्य, चंद्र, पृथ्वी तथा भूगर्भ विज्ञान के साथ अन्य आकाशीय पिण्डों, ग्रहों का अनंत तक विस्तृत ज्ञान तथा संभावनाएं शामिल हैं। वर्ष, महीना, दिन, सुबह, शाम, दोपहर, रात, ब्रह्म मुहुर्त, गोधूलि बेला, आधी रात, अलसुबह, सूर्योदय, सूर्यास्त, पल, क्षण, पहर, ऋतु, उपऋतु, संवत, विक्रम संवत, शक संवत, हिन्दी के महीने, अंग्रेजी महीने, पखवाड़ा, कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष, तिथियां, अमावस्या, पूर्णिमा, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, राशियां, चद्रमंडल, सूर्यमंडल का सहज और सरल अनिवार्य परिवेशगत ज्ञान समाहित हो।

भाषा विज्ञान, ध्वनि विज्ञान, लिपि की दृष्टि से व्यक्तिगत एवं राष्‍ट्रीय हित में पूरक एवं संपूरक विकास की स्थिति में स्वरूप सदैव तदर्थ परिस्थिति परिवेशजन्य ज्ञान अनिवार्य है। वास्तव में इसके आगे भी बहुत कुछ है, और पीछे भी सब कुछ अनंत तक विस्तृत है और इन सबके उपर प्रत्येक जाति, धर्म, समुदाय, वर्ग द्वारा प्रचलित उनकी गणना व अवधारणा को ध्यान में रखकर ज्ञान का स्वरूप निर्धारित करें ताकि पर्यावरण का ज्ञान लोक हित में जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, रंग, वर्ग के भेद से परे ज्ञान हो क्योंकि औपचारिक, नियमित, व्यवस्थित, स्थिर, एवं वैज्ञानिक पाठयक्रम के साथ ही हम शिक्षा के मूल उद्देश्य की पूर्ति कर पायेंगे।


बालकों के सर्वागींण विकास के लिये उसके शारीरिक, चारित्रिक, आध्यात्मिक, नैतिक, विकास के साथ उसके सांस्कृतिक व मानसिक विकास के पटों को भी खोलना पड़ेगा, जहां उसे अपने मूल्य, आदर्श, नीति, जीवन शैली की स्पष्ट झलक दिखलार्इ पड़े। माता-पिता, अभिभावक के साथ-साथ राष्ट्र भी उस पर गर्व कर सके और उसे स्‍वयं अपने भारतीय होने पर गर्व हो।


06.04.2003
चित्र गूगल से साभार

19 comments:

  1. सार्थक , अनुकरणीय विचार.....

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  2. पर्यावरण की ब्रह्माण्‍डीय से भारतीय ता व्‍यापक दृष्टि.

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  3. आपका आलेख कितना उपयोगी व सारगर्भित है..

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  4. सार्थक सशक्त पोस्ट....
    सादर।

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  5. सुंदर लेख इसी तारतम्य में एक उदहारण :

    जब बाज़ार में जामुन दिखने लगे समझ जाइये कि विम्बलडन के मुकाबले शुरू हो गए हैं

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  6. पर्यावारण के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आज बहुत ज़रूरत है। आभार इस प्रस्तुति के लिए।

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  7. मनुष्य प्रकृति से कितना दूर हो गया है..!
    जागरूक करती हुई पोस्ट..
    आभार

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  8. सार्थक सशक्त पोस्ट....

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  9. सार्थकता लिए हुए सटीक लेखन ...

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  10. सार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार .
    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .

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  11. सार्थक एवं रोचक ....

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  12. After attaining 50, I intend to move to a remote area to run a school. If it materialises, my school will surely have these subjects.

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    1. मैं आपका ह्रदय से आभारी आपने इस लायक समझा

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  13. सार्थक, रोचक और सामयिक पोस्ट

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  14. आवश्यक पोस्ट , बधाई !

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