गुरुकुल ५

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Tuesday, 12 June 2012

एहसास



बादल छंटते नहीं
सूरज ढल जाता है

चांद दिखता ही नहीं
रौशनी ये कैसी है?

वक्त

थम गया मौत की मानिंद
यक ब यक मेरे ज़ानिब



दर्द ये कैसा बेहिस?
एहसास होता ही नहीं

कैसा ये बेअदब
हम दोनों का रिश्ता है?

16.03.2012
(चित्र गूगल से साभार)
तथागत ब्लाग के सृजन कर्ता श्री राजेश कुमार सिंह
को समर्पित

18 comments:

  1. बहुत खुबसूरत अहसास...

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  2. संबंधो के जाल/जंजाल में न तो उलझना सरल है न मुक्त होना
    सुंदर भाव्यभिव्यक्ति

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  3. कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं, जिनके साथ चलना होता है।

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  4. कुछ खास ही होता है रिश्‍तों का अदब.

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  5. कैसा ये बेअदब
    हम दोनों का रिश्ता है?

    वाह,,,, बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन रचना,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,

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  6. कुछ बताती कुछ छुपाती।
    कविता लिए पहेली आती।

    सादर।

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  7. बहुत अच्छी रचना..बधाई

    नीरज

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  8. वक्त थम गया मौत की मानिंद...............
    वाह!!!
    बेहतरीन रचना......

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  9. बेअदब रिश्ता भी ... फिर भी निभाया जाता है ... सुंदर प्रस्तुति

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  10. दर्द ये कैसा बेहिस?
    एहसास होता ही नहीं
    कैसा ये बेअदब
    हम दोनों का रिश्ता है?
    बहुत ही सुन्दर रचना...
    कैसा रिश्ता है..
    दर्द भी है आर उसका अहसास भी नहीं...
    बहुत सुन्दर.....

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  11. कैसा ये बेअदब
    हम दोनों का रिश्ता है?.....बहुत सुन्दर.....

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  12. सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  13. कविता में मन को स्पर्श करने वाले भाव अच्छे लगे । मेरे पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका आभार ।

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  14. दर्द का रिश्ता सबसे प्यारा रिश्ता होता है ..सुन्दर रचना..

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  15. दर्द अकसर आकर ठहर ही जाते हैं
    पास जब तक रहते हैं, सताते हैं

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  16. भावपूर्ण रचना...बेहिस का अर्थ क्या है?

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  17. HR SHER LAJABAB ....BADHAI SWEEKAREN.

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