मैं नक्सली हूँ? या मैं ही वनवासी? यदि नक्सली ही बन गया तो? |
या मैं ही वनवासी?
बहुत मुश्किल है
वनवासी के झुरमुट में
नक्सली ढूढ़ना
सबने पहन रखे हैं
एक ही मुखौटे?
वनवासी के बीच
नक्सली
वनवासी ही
खोजना जानता है
और हर बार
खोज लेता है
गड़रिया बन वनवासी
या फिर खोज निकालता है
घात लगाकर
भेड़िया बन नक्सली
या रक्षक बन
मेरे अपने
जो हैं मेरे अपने?
जन्म से मैं वनवासी
नक्सली हूँ नहीं
आज भी वनवासी रहकर ही
नक्सलियों में
न ही बन पाया वनवासी
और दोहरी प्रताड़ना झेलकर भी
नक्सली ही कहाँ बन पाया
नहीं रहा मैं वनवासी ?
यदि
नक्सली ही बन गया तो?
26 मई 2013
समर्पित
दरभा घाटी नक्सली हमले में
घायल और स्वर्गीय लोगों को
और चिंता में वनवासियों के
behad bhavnatmak
ReplyDeleteव्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न.
ReplyDeleteचिंता जायज है. अति हमारी तरफ से भी हुई है. सुंदर सामायिक प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति
ReplyDeletelatest post: प्रेम- पहेली
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बहुत उम्दा सामायिक प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteनक्सली / वनवासी बहुत मुश्किल है परिभाषित करना ...चिंता जायज़ है, हिंसा समाधान नहीं...
ReplyDeleteभेद करना आसान होता तो समस्या कब की समाप्त हो चुकी होती।
ReplyDeleteकारण चाहे जो भी हो पर अपने ही घर में लूट-पाट करना और लाशें बिछाना,हर स्थिति में निंदनीय है । अच्छा होता यदि वे अपने साहस एवम् बल का इस्तेमाल देश-हित में करते ।
ReplyDeleteप्रभावी रचना .. समस्या के मूल को पहचानने का प्रयास ...
ReplyDeleteपर सरकार पहले भी चुप अब भी चुप ...
मेरी समझ में समस्या को राजनैतिक चश्मे से ही देखने के और सलवा जुडूम जैसे प्रयोगों से समझने और हल करने के प्रयास अब तक हुए हैं .आवश्यकता इसे सामाजिक,आर्थिक और सांस्कृतिक परिदृश्य के सन्दर्भों से हल करने की है
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteसामयिक गहन रचना!
ReplyDeleteढ़
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थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!
जन्म से मैं वनवासी
ReplyDeleteनक्सली हूँ नहीं...vanwasi ka dard kaun samajhta hai bechare pis jaate hain .....
सामायिक प्रस्तुति ..व्यवस्था पर सवाल उठती हुई.
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