वेताल ने कहा
राजन
ऐसा नहीं लगता आपको
इस हादसे ने
आस्था और विश्वास पर
खड़े कर दिये अनगिन प्रश्न
मौन तुम्हारा भी बोलता है
विश्व बंधुत्व के खोखले राज खोलता है
तोर पेट म बहुत बाबू लइका मोर का काम के
की भाषा खुलकर बोलता है
जन नेता, सरकार, देश,
न्यूज़ चैनल, सिद्ध योगी
हिन्दू, मुसलमां, सिक्ख, ईसाई
न ही विश्व
बंधे एक सूत्र में?
सीमाओं में बंधे
राजनैतिक दल, और राजनेता?
सीमाओं को कहाँ तोड़ पाया कोई देश?
बाट जोहता किसी याचना के
वेताल ने कहा
राजन
चाहता यदि विश्व
तो बंध जाते सौ सेतु
बंट गये आज फिर हम?
किस सीमा में,
अपनी कुंठित सीमा में?
अपनों के ही लिये?
मैं फ़रिश्ता कहां
कब कहा मैंने
मैं मुर्दा हूँ
तुम बखूबी जानते हो
मैंने देखा है
तबाही का मंज़र
तुम इन्सा हो
तुम तुम्हारी जानों
बढाकर हाथ किसी मज़लूम की खातिर
तोड़ सब सीमायें तुम जियो तो जानूं
चित्र गूगल से साभार
25.06.2013
***केदारनाथ में फंसे लोगों को विश्व चाहता तो
एक ही दिन में बचा सकता था
किन्तु ऐसा हो न सका क्यों?
***तोर पेट म बहुत बाबू लइका मोर का काम के ***
तुम लड़का जन सकती हो लेकिन मेरे किस काम का
आपके पास सब कुछ मेरे किस काम का
सत्यवचन देव
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन काश हर घर मे एक सैनिक हो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन परिवार को मेरा प्रणाम आभार कि उन्होंने इस रचना को इस लायक समझा
Deletesahi bat hai yaha har admi apne me hi simta hai.
ReplyDeleteबढाकर हाथ किसी मज़लूम की खातिर
ReplyDeleteतोड़ सब सीमायें तुम जियो तो जानूं
sahi bat ......bahut bada dil aur dimag chahiye jo sabke pas nahi hota ...
दहला देते हैं आपके विचार.
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteअपने से आगे हर किसी की सोच नहीं रही ... मैं मेरा बस मेरा ... उससे आगे सोच नहीं रही ... फिर कैसे ...
ReplyDeleteचाहता यदि विश्व
ReplyDeleteतो बंध जाते सौ सेतु
बंट गये आज फिर हम
किस सीमा में ?
सर्वथा अनुत्तरित प्रश्न !
very true..
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDelete@मानवता अब तार-तार है
सही है, इंसान बनाना भी कठिन है इंसान के लिए
ReplyDeleteexcellent post .thanks
ReplyDeleteमैंने देखा है
ReplyDeleteतबाही का मंज़र
तुम इन्सा हो
तुम तुम्हारी जानों
वाह ... बेहद लाजवाब रचना
दस पंद्रह पंक्तियों में इतने बड़े,ढेर सारे गंभीर मसलों पर आपने ऊँगली रखी है कि गागर में सागर उक्ति पूरी तरह सार्थक हो उठी है.केदारनाथ में बादलों ने ऐसा ही कुछ करने की कोशिश की होगी तो स्वाभाविक हैं =जलजले
ReplyDeleteआदरणीय सिंह साहब सुप्रभात सहित प्रणाम स्वीकारें यह आपकी संगत का असर है आपसे चर्चा और विचार विमर्श का नतीजा है आपकी पारखी नज़रों ने तलाश लिया
Deleteमनुष्य द्वारा, मनुष्य के िलए निर्मित वैश्विक संकट। बहुत खूब कहा आपने।
ReplyDeleteचाहता यदि विश्व
ReplyDeleteतो बंध जाते सौ सेतु
बंट गये आज फिर हम?
किस सीमा में,
बहुत खूब कहा आपने।
बहुत खूब कहा आपने।
ReplyDeleteजो हुआ उसे पलटना तो संभव नहीं लेकिन हर कोई सामर्थ्य और भावनानुसार आहुति डाल रहे हैं। आपकी संवेदनशीलता सच्चे हृदय से उठी है, हम सब साथ हैं।
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