गुरुकुल ५

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Tuesday, 25 June 2013

जियो तो जानूं



वेताल ने कहा
राजन

ऐसा नहीं लगता आपको
इस हादसे ने
आस्था और विश्वास पर
खड़े कर दिये अनगिन प्रश्न

मौन तुम्हारा भी बोलता है
विश्व बंधुत्व के खोखले राज खोलता है
तोर पेट म बहुत बाबू लइका मोर का काम के

की भाषा खुलकर बोलता है

जन नेता, सरकार, देश,
न्यूज़ चैनल, सिद्ध योगी
हिन्दू, मुसलमां, सिक्ख, ईसाई
न ही विश्व
बंधे एक सूत्र में?

सीमाओं में बंधे
राजनैतिक दल, और राजनेता?
सीमाओं को कहाँ तोड़ पाया कोई देश?
बाट जोहता किसी याचना के

वेताल ने कहा
राजन

चाहता यदि विश्व
तो बंध जाते सौ सेतु
बंट गये आज फिर हम?
किस सीमा में,

अपनी कुंठित सीमा में?
अपनों के ही लिये?

मैं फ़रिश्ता कहां
कब कहा मैंने
मैं मुर्दा हूँ
तुम बखूबी जानते हो

मैंने देखा है
तबाही का मंज़र
तुम इन्सा हो
तुम तुम्हारी जानों

बढाकर हाथ किसी मज़लूम की खातिर
तोड़ सब सीमायें तुम जियो तो जानूं

चित्र गूगल से साभार
25.06.2013
***केदारनाथ में फंसे लोगों को विश्व चाहता तो
एक ही दिन में बचा सकता था
किन्तु ऐसा हो न सका क्यों?

***तोर पेट म बहुत बाबू लइका मोर का काम के ***
तुम लड़का जन सकती हो लेकिन मेरे किस काम का
आपके पास सब कुछ मेरे किस काम का

20 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन काश हर घर मे एक सैनिक हो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. ब्लॉग बुलेटिन परिवार को मेरा प्रणाम आभार कि उन्होंने इस रचना को इस लायक समझा

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  2. sahi bat hai yaha har admi apne me hi simta hai.

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  3. बढाकर हाथ किसी मज़लूम की खातिर
    तोड़ सब सीमायें तुम जियो तो जानूं
    sahi bat ......bahut bada dil aur dimag chahiye jo sabke pas nahi hota ...

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  4. दहला देते हैं आपके विचार.

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  5. भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  6. अपने से आगे हर किसी की सोच नहीं रही ... मैं मेरा बस मेरा ... उससे आगे सोच नहीं रही ... फिर कैसे ...

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  7. चाहता यदि विश्व
    तो बंध जाते सौ सेतु
    बंट गये आज फिर हम
    किस सीमा में ?

    सर्वथा अनुत्तरित प्रश्न !

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  8. सही है, इंसान बनाना भी कठिन है इंसान के लिए

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  9. मैंने देखा है
    तबाही का मंज़र
    तुम इन्सा हो
    तुम तुम्हारी जानों
    वाह ... बेहद लाजवाब रचना

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  10. दस पंद्रह पंक्तियों में इतने बड़े,ढेर सारे गंभीर मसलों पर आपने ऊँगली रखी है कि गागर में सागर उक्ति पूरी तरह सार्थक हो उठी है.केदारनाथ में बादलों ने ऐसा ही कुछ करने की कोशिश की होगी तो स्वाभाविक हैं =जलजले

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    1. आदरणीय सिंह साहब सुप्रभात सहित प्रणाम स्वीकारें यह आपकी संगत का असर है आपसे चर्चा और विचार विमर्श का नतीजा है आपकी पारखी नज़रों ने तलाश लिया

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  11. मनुष्‍य द्वारा, मनुष्‍य के ि‍लए निर्मित वैश्विक संकट। बहुत खूब कहा आपने।

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  12. चाहता यदि विश्व
    तो बंध जाते सौ सेतु
    बंट गये आज फिर हम?
    किस सीमा में,

    बहुत खूब कहा आपने।

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  13. बहुत खूब कहा आपने।

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  14. जो हुआ उसे पलटना तो संभव नहीं लेकिन हर कोई सामर्थ्य और भावनानुसार आहुति डाल रहे हैं। आपकी संवेदनशीलता सच्चे हृदय से उठी है, हम सब साथ हैं।

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