ये कैसा रिश्ता है, जो हर पल रिसता है |
जो हर पल रिसता है
मैं देखता हूँ
वक़्त को गुजरते
वक़्त को ही ठहरते
शाम को ढलते
रात को टहलते
क्यूँ देखता हूँ
तुमको बिछड़ते
कश्ती को डूबते
परछाइयों को पिघलते
अचानक तुम्हे हंसते
आज भी देखता हूँ
आसमां को बिलखते
जंगल को बहकते
रात को उगते
सुबह को सिसकते
मैं हर पल वेखता हूँ
खुद को सिमटते
आंसूओं संग बहते
नयनों को सहमते
धूप को ढलते
कल भी देखा था
छाँव को फैलते
रात को उगते
सुबह को बहकते
सपनों को उजड़ते
आज भी बरकरार
दर्द का उबलना
अक्स का सिमटना
जख्म का सिसकना
अश्क का बहना
आज भी होता है
तन्हाई संग रोना
तन्हाई में खिलखिलाना
आंसूओं को पी जाना
आँखों से ही कहना
14जून 2013
ज़िन्दगी संग चलते चलते
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति . आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?
ReplyDeleteबेहद कोमल अहसास लिए भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति!! भावों का सुन्दर चित्रण!!
ReplyDeleteअत्यंत मासूम भावनाओं से भरी प्रथम प्रस्फुटन सी रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती,आभार।
ReplyDeleteरिसता हुआ रिश्ता ..
ReplyDeleteजिसके लिए कोई पैच भी नहीं.. वाह!
क्या बात है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
गहरी बातें कही हैं।
बढ़िया
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 17/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
अर्थपूर्ण ... रिश्ता हिया ये रिश्ता ... पर भी रहता है ये रिश्ता ...
ReplyDeleteयही तो खासियत है रिश्ते की ...
लगता है, जमाने भर की पीडा आपने सहेज ली है।
ReplyDeleteबहुत गहरी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअपनों में मौन कष्टकारक है ..
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति !
रिश्तों में ही जीना और इन्ही में मरना.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.
आज भी होता है
ReplyDeleteतन्हाई संग रोना
तन्हाई में खिलखिलाना
आंसूओं को पी जाना
आँखों से ही कहना,,,,
वाह!!!बहुत सुंदर लाजबाब प्रस्तुति,,,
RECENT POST: जिन्दगी,
बहुत गहरे अर्थ सुन्दर शब्दों में ढले हुए ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteAs аn ownег of thе car financing for bаd
ReplyDeletecredit badgе. If youг cаr iѕ in
mοtion.
Here iѕ my blog ... tribal
रिसते, रिसाते, रिश्ते.
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteअक्स का सिमटना
ReplyDeleteजख्म का सिसकना..
क्या कहें!.........मर्मस्पर्शी रचना !
कई रिश्तें क्यों होते हैं
ReplyDeleteकुछ रिश्तें कब खिलते हैं
कुछ कहाँ मिलते हैं
कुछ फूल जैसे खिलते हैं
हम क्यों सोचे ये सब
क्यों बंधें शब्दों में
नहीं कोई सीमा या परिधि
इन्हें बहने दो सागर सा
या फैलने दो अनंत में
बहुत सुंदर भाव, शुभकामनाये ,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/04/blog-post_28.html