गुरुकुल ५

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Saturday, 15 June 2013

ये कैसा रिश्ता है

ये कैसा रिश्ता है, जो हर पल रिसता है
ये कैसा रिश्ता है
जो हर पल रिसता है

मैं देखता हूँ
वक़्त को गुजरते
वक़्त को ही ठहरते
शाम को ढलते
रात को टहलते

क्यूँ देखता हूँ
तुमको बिछड़ते
कश्ती को डूबते
परछाइयों को पिघलते
अचानक तुम्हे हंसते

आज भी देखता हूँ
आसमां को बिलखते
जंगल को बहकते
रात को उगते
सुबह को सिसकते

मैं हर पल वेखता हूँ
खुद को सिमटते
आंसूओं संग बहते
नयनों को सहमते
धूप को ढलते

कल भी देखा था
छाँव को फैलते
रात को उगते
सुबह को बहकते
सपनों को उजड़ते

आज भी बरकरार
दर्द का उबलना
अक्स का सिमटना
जख्म का सिसकना
अश्क का बहना

आज भी होता है
तन्हाई संग रोना
तन्हाई में खिलखिलाना
आंसूओं को पी जाना
आँखों से ही कहना

14जून 2013
ज़िन्दगी संग चलते चलते
चित्र गूगल से साभार


23 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति . आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

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  2. बेहद कोमल अहसास लिए भावपूर्ण रचना...

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  3. गहन अभिव्यक्ति!! भावों का सुन्दर चित्रण!!

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  4. अत्यंत मासूम भावनाओं से भरी प्रथम प्रस्फुटन सी रचना

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती,आभार।

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  6. रिसता हुआ रिश्ता ..
    जिसके लिए कोई पैच भी नहीं.. वाह!

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  7. क्या बात है !
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    गहरी बातें कही हैं।

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  8. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 17/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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  9. अर्थपूर्ण ... रिश्ता हिया ये रिश्ता ... पर भी रहता है ये रिश्ता ...
    यही तो खासियत है रिश्ते की ...

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  10. लगता है, जमाने भर की पीडा आपने सहेज ली है।

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  11. बहुत गहरी अभिव्यक्ति.

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  12. अपनों में मौन कष्टकारक है ..
    मार्मिक अभिव्यक्ति !

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  13. रिश्तों में ही जीना और इन्ही में मरना.

    बहुत सुंदर कविता.

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  14. आज भी होता है
    तन्हाई संग रोना
    तन्हाई में खिलखिलाना
    आंसूओं को पी जाना
    आँखों से ही कहना,,,,

    वाह!!!बहुत सुंदर लाजबाब प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: जिन्दगी,

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  15. बहुत गहरे अर्थ सुन्दर शब्दों में ढले हुए ।

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  16. बहुत सुंदर और गहन अभिव्यक्ति.....

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  18. रिसते, रिसाते, रिश्‍ते.

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  19. संवेदनशील रचना अभिवयक्ति.....

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  20. अक्स का सिमटना
    जख्म का सिसकना..

    क्या कहें!.........मर्मस्पर्शी रचना !

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  21. कई रिश्तें क्यों होते हैं
    कुछ रिश्तें कब खिलते हैं
    कुछ कहाँ मिलते हैं
    कुछ फूल जैसे खिलते हैं
    हम क्यों सोचे ये सब
    क्यों बंधें शब्दों में
    नहीं कोई सीमा या परिधि
    इन्हें बहने दो सागर सा
    या फैलने दो अनंत में







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  22. बहुत सुंदर भाव, शुभकामनाये ,

    यहाँ भी पधारे

    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/04/blog-post_28.html

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