सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥ |
केदारनाथ की पावन यात्रा में शामिल लोग अनायास बादल फटने से भूस्खलन से काल
कलवित हो गये। देश विदेश से आये दर्शनार्थी फंस गये इस प्राकृतिक आपदा में टी.वी.
पर समाचार की निरंतरता ने जहां लोगों को अपनों से जोड़ा तो दूसरी ओर भयावह
घटना को दिखलाकर दिल दिमाग और जनमानस को दहला भी गया।
लोग जुटे हैं सेवा में हम भी चिंतित हैं परिजनों के हाल जानने
जो लोग नहीं हैं हमारे बीच उनकी सुध मालिक जाने मैं तो बस प्रार्थना करता हूँ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥
बाबूजी ने बचपन में एक कहानी सुनाई थी मन हल्का करने के लिये आपसे साझा करता हूँ
बहुत बरस पहले ऐसे ही एक आपदा में बहुत सारे लोग मारे गये
उस आपदा में गाँव की गरीब नर्मदा का बेटा भी फंसा था
दबी छुपी जबान से खबर नर्मदा तक पहुंची बेटा मृत्यु को प्राप्त हो गया
जवान बेटे की लाश लावारिस सड़क के अमुक जगह औंधी पड़ी है
नर्मदा बदहवास दौड़ पड़ी नंगे पाँव बेटे की लाश देखने भूखी प्यासी
चौराहे पर जमा लोग पचास लोग सौ बातें तरह तरह की सुनी अनसुनी
एक आवाज़ आई कहाँ है मेरा बेटा अरे कोई पानी पिलाओ उसे
भाई ज़रा उसका चेहरा ऊपर करो आखरी बखत में चेहरा देख लूँ
लोग छिटकने लगे कोई सेवा न करनी पड़ जाये
मौज की जगह आफत न पड़ जाये गले अकारण
माँ के अनुनय विनय पर किसी ने औंधी पड़ी लाश को सीधा किया
माँ के चेहरे पर परम संतोष के भाव जागृत हो उठे चित्त शांत हो गया
जो माँ बदहवास नंगे पाँव, भूखी प्यासी, रोती बिलखती आई थी
उसी भीड़ का हिस्सा बन गई निर्विकार, मौन, निश्छल
वेताल ने कहा
राजन
ये घट जाता है रोज किसी चौराहे पर
आज दर्शन या पूजा के बहाने
तो कल किसी आवेश में
हम भी बन जायें
उसी भीड़ का हिस्सा?
२० जून २०१३
मेरी श्रद्धांजली उन लोगों को
जो केदारनाथ जी दर्शन करने गये थे
मार्मिक!!
ReplyDeleteबेहद दर्दनाक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना!
ReplyDeleteमौत से हमेशा जिन्दगी हारती आई है, पर आज जिन्दगी जीत गई, मौत हार गई।
ReplyDeleteकेदारनाथ सहाय हों.
ReplyDeleteसर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
ReplyDeleteसर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥
जब आपदा आती है तो,फिर ईश्वर ही मारने वाला और वही बचाने वाला, मानव कितना बेबस होता है प्रकृति के समाने..!
लगता भूलों में ही ,यह उम्र गुज़र जायेगी
ReplyDeleteहिमालय को समझते,उम्र गुज़र जायेगी !
कैसे मिल पाएंगे,जो लोग,खो गए घर से,
मां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !
इस प्राकृतिक आपदा के समय में पूरा देश एक साथ खडा है,भाई ! आपने भावना को साझा करने की पहल की, यह अच्छी बात है ।
ReplyDelete" वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यानि संयाति नवानि देही ॥"
भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं कि - " हे अर्जुन ! जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर , नए वस्त्रों को धारण करता है , उसी प्रकार जीवात्मा , पुराने शरीर को त्याग कर नए शरीर में प्रवेश करती है । "
जो नहीं रहे , वे भी किसी के बेटे थे।
ReplyDeleteबेहद कष्टदायक आपदा है।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक और व्यंग भी -बढ़िया प्रस्तुति
latest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !
आपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 23/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
मर्मस्पर्शी शब्द.
ReplyDeleteअत्यंत कष्टप्रद घटना बहुत कुछ सोचने को विवश करती है.
ReplyDeleteसुंदर और बढ़िया
ReplyDeletemaarmik
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.सच कोमल भावो की अभिवयक्ति .
ReplyDeleteउफ़्फ़ बहुत ही दर्दनाक एवं मार्मिक रचना....
ReplyDeleteसुन्दर और मार्मिक।
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