बड़ा अजीब सा रिश्ता है ज़िन्दगी तुझसे
जब भी नज़रें उठाता हूँ साबका है गम से
बड़ी शिद्दत से खोजता हूँ इश्क और नेमत
मेरी ताबीर में कल था वो आज भी यूँ ही
मैं माँगने ही तो गया था इश्क तेरे दर पे
तेरी झोली में क्या अंदाज़ा तू जाने मैं क्यूँ
यूँ ही जीकर अपनी खातिर तो कोई भी मर जाता है
मेरे खातिर हर पल जीने की तमन्ना रख तो जानूं
कौन याद रखता है आज ज़माने में किसे
हमने तो अपने दर का पता आपसे जाना
बनके सौदागर गर निभाना प्यार हो तुमको
यकीन क्यूं मरना मेरा मंज़ूर कर जानां फिर
चिड़ियों के उड़ान में शामिल शाख और आसमां हरदम
खून और युद्ध का प्रेम से बैर रहे चलो न आगाज़ कर लें
२८ मई २०१३
चित्र गूगल से साभार
कौन याद रखता है आज ज़माने में किसे
ReplyDeleteहमने तो अपने दर का पता आपसे जाना
waah....
कौन याद रखता है आज ज़माने में किसे
ReplyDeleteहमने तो अपने दर का पता आपसे जाना,,,
वाह !!! बहुत उम्दा,,
Recent post: ओ प्यारी लली,
बड़ा अजीब सा रिश्ता है ज़िन्दगी तुझसे
ReplyDeleteजब भी नज़रें उठाता हूँ साबका है गम से
सुंदर भावाभिव्यक्ति ..
बेहतरीन नज़्म ॥
ReplyDeleteखूबसूरती से बयाँ किये अलफ़ाज़
ReplyDeleteचिड़ियों के उड़ान में शामिल शाख और आसमां हरदम
ReplyDeleteखून और युद्ध का प्रेम से बैर रहे चलो न आगाज़ कर लें.... बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ..
यूँ ही जीकर अपनी खातिर तो कोई भी मर जाता है
ReplyDeleteमेरे खातिर हर पल जीने की तमन्ना रख तो जानूं
वाह... बहुत खूबसूरत रचना....
मैं माँगने ही तो गया था इश्क तेरे दर पे
ReplyDeleteइश्क मांगना नहीं पड़ता बाबु साहब. प्रयास और मेहनत जरुर करनी पड़ती है वह भी ईमानदारी से .यह तो नेमत है ईश्वर की .
यूँ ही जीकर अपनी खातिर तो कोई भी मर जाता है
ReplyDeleteमेरे खातिर हर पल जीने की तमन्ना रख तो जानूं..
बहुत खूब ... जीने का चेलेंज है ... प्रेम करने वाले ही कबूल सकते हैं ...
लाजवाब रचना है ...
जीवन के कुछ कडवे सत्य अत्यन्त प्रभावी रूप से सामने आते हैं इस प्रस्तुति में।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती से आपने जज़्बात को बयान किया है.. जो भी विधा हो इस रचना की, लेकिन बहुत शानदार है!!
ReplyDeleteसलिल भाई जी प्रणाम सहित आपके विधा प्रेम के लिए आभार आपने सदा की भांति अपने प्रेम की बारिस से रचना को सींचा ऋणी हूँ आपके हाथों का जीवन भर। जिस दिन विधा सीख गया आपको सबसे पहले लिखूंगा अभी तो बस मन के भावों का अंकन
Deleteशायद आपको मेरी बात ने आहत किया, जबकि मेरा यह उद्देश्य कदापि नहीं था!! क्षमा प्रार्थी हूँ!! आशा है क्षमा प्रदान करेंगे, अन्यथा ह्रदय में कचोट रहेगी!! सादर!!
Deleteसलिल भाई जी आप जैसे हितैषी की किसी भी बात का बुरा क्या मानना वास्तव में मैं किसी भी निश्चित विधा को अपना नहीं पाया
Deleteमैं एक खास विधा में लिखता हूँ उसकी चर्चा एक पुरे पोस्ट में करूँगा उसके पूर्व आपसे चर्चा भी करूँगा शेष फिर कभी
"प्रेम न खेती ऊपजे प्रेम न हाट बिकाय
ReplyDeleteराजा - परजा जेहि रुचय शीष देइ लै जाय ।
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहिं
प्रेम-गली अति सॉंकुरी जा में दो न समाहिं ।"
कबीर
कौन याद रखता है आज ज़माने में किसे
ReplyDeleteहमने तो अपने दर का पता आपसे जाना
..बहुत खूब ... प्रेम की यही तो ताकत है ..
उम्दा.. बस एक अलग ही अहसास...
ReplyDeleteप्रेम किसी मिठाई सा लगता है मुझे तो
ReplyDeleteसुंदर भावना मीठा अहसास
लालित्यमयी भावनाओं का सहज प्रवाह !
ReplyDeleteबहुत बढि़या।
वाह, क्या बात कह दी है.
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