ज़िन्दगी तेरा इंतजार आखरी साँस तलक |
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ठगा सा रह जाता हूँ अकेला
जब तुम आँख चुराकर
मुझसे दूर चली जाती हो
फिर वापस न आने के लिये
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दर्द कहाँ महसूस करता हूँ?
जब कोई अपना
बेगाना बनकर
मुस्कुराकर दिल दुखा जाता है
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तिलमिला जाता हूँ
जब तुम आँखों में आंसू ले
पहाड़ी झरने सी
बह जाती हो मेरे ही सामने
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सोचने लगता हूँ
जब दर्द तेरे हिस्से का
बाँट नहीं पाता
अपाहिज ज़िन्दगी ले
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नज़र आता नहीं
तेरा ही चेहरा
सामने रहकर भी
क्यूं धुंधला जाती है मेरी आँखे
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धुंधला जाती है
आँखें मेरी
अश्क आँखों में तेरे
बर्फ से जम जाते है
*****
मौन हो जाता हूँ
यूँ अक्सर तन्हाई में
जब तेरी याद
किसी कोने में टहलती है
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ज़िन्दगी तेरा इंतजार
चंद लम्हों के लिये
आखरी धड़कन में भी
आखरी साँस तलक
०६ जून २०१३
जिंदगी संग चलते चलते
चित्र गूगल से साभार
मन भीगा हो प्यार में तो ऐसे ही भावों में गोते खाता है दिल...
ReplyDeleteइन पंक्तियों में कहीं त्रुटि है ---
धुंधला जाती है
आँखें मेरी
अश्क आँखों में तेरे
बर्फ सी जम जाती
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अश्क आँखों में तेरे बर्फ से जम जाते हैं ..होना चाहिए [शायद]
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आदरणीया अल्पना जी आपका आभार कि आपने सही करवा दिया वरना हम पुल्लिंग को स्त्रीलिंग बना ही दिए थे आपका मार्गदर्शन और स्नेह सदा अपेक्षित
Deleteधुंधला जाती है
आँखें मेरी
अश्क आँखों में तेरे
बर्फ से जम जाते हैं
:))
Deleteमौन हो जाता हूँ
ReplyDeleteयूँ अक्सर तन्हाई में
जब तेरी याद
किसी कोने में टहलती है...कोमल भाव !
भावों का झरना, तरल-निर्मल.
ReplyDeleteबहुत ही कोमल भाव भरी सुन्दर रचना..
ReplyDeleteमहसूस की हुई पंक्तियाँ लग रही हैं :)
ReplyDeleteमौन हो जाता हूँ
ReplyDeleteयूँ अक्सर तन्हाई में
जब तेरी याद
किसी कोने में टहलती है.......sacchi bat .....
प्रेम का सन्देश है,अद्भुत परिवेश है ,विरह का स्वर है , संजोग का ज्वर है ।
ReplyDeleteसोंधी सी खीर है ,अनकही पीर है ,तरकश का तीर है ,नयनों का नीर है ।
गुड की मिठास है ,मिलन की आस है ,समय की सिकुडन है ,स्वतः से अनबन है ।
नदी का बहना है ,अपने में रहना है , शब्दों की सिसकन है ,भावों की कसकन है ।
भाई ! बडा धर्म-संकट म डार देथस ग !
हर एक खाने में एक अलग भाव लिये एक क्षणिका स्वतंत्र भाव लिये हुए भी एक मालिका की तरह सुशोभित हो रही है!!
ReplyDeleteकुछ तुम्हारी यादें और एक तुम्हारा इंतजार... इतना काफी है जीने के लिए... सुन्दर भाव
ReplyDeleteकहाँ जा रहीं मुझे छोड़कर
ReplyDeleteबिना कहे, कुछ ही बाला !
शुभकामनायें आपको !!
Gahre Bhao...Bahut Sundar
ReplyDeletebahut sunder bahv
ReplyDeleteबडा धर्म-संकट म डार देथस ग ! ;)
ReplyDeleteतिलमिला जाता हूँ
ReplyDeleteजब तुम आँखों में आंसू ले
पहाड़ी झरने सी
बह जाती हो मेरे ही सामने
मेरी समझ में कविता की आत्मा यही पंक्तियाँ हैं
सर जी आपका कथन सत्य है कोई संदेह नहीं आपने सराहा सदा आभारी
Deleteतिलमिला जाता हूँ
ReplyDeleteजब तुम आँखों में आंसू ले
पहाड़ी झरने सी
बह जाती हो मेरे ही सामने
bhavna ke atirek se ot-prot abhivyakti .badhai
तुमान के आगे जटा शंकरी नदी याद आ रही है.
ReplyDeleteपीडा का सुख तो अवर्णनीय ही होता है।
ReplyDeleteनज़र आता नहीं
ReplyDeleteतेरा ही चेहरा
सामने रहकर भी
क्यूं धुंधला जाती है मेरी आँखे ..
अलग अलग एहसास उतारे हैं इन क्षणिकाओं में ...
प्रेम का एहसास लिए ये भी लाजवाब है ...