गुरुकुल ५

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Monday, 1 July 2013

धान के कटोरा / छत्तीसगढ़ CG



छत्तीसगढ़ ल कहिथें भईया धान के कटोरा
ये गीत मेरे अंतर्मन को छू जाती है,
गाँव में दुर्भिक्ष के कारण मन में विचार आये
१४ सितम्बर १९७५ को अंकन कर दिया

एक कविता **धान के कटोरा**

तब मन के भाव का कारण था अल्प वृष्टि और नहर के जाल का न होना
आज नहर और तकनीक साथ ही कृषि के विकसित आयाम,
शासन की योजनायें हैं किन्तु प्रगति के सोपान ने खासकर
उद्योग धंधों में प्रयुक्त बिजली की खपत में  एक बार फिर
वही मंज़र नज़र आता है बस कुछ चेहरे और हालात जुदा हैं

आखिर समंदर में या धरातल पर अतिरिक्त पानी आयेगा कहाँ से?
चलो आ गया तो बिजली में प्रयुक्त पानी का पुनर्निर्माण संभव?
बदलेगा कास्मिक साईकल या धरातल से फूटेगा फव्वारा जल का?
उपयोगी पानी की मात्रा जानकर भी हम कर रहे है खिलवाड़ जीवन से?

आज शिक्षा की यात्रा में जैसे बच्चों के चेहरे से बचपन छिन गया है
कहीं ऐसा न हो कल छत्तीसगढ़ के धान का वैभव इतिहास बन जाये
और पावर हब बनने बनाने के चक्कर में किसानों की हाथ में
खाली कटोरा ही बचे भीख माँगने को बाकी तो समय बताएगा

कल अल्प वृष्टि ने, और कल भविष्य का पावर हब रंग दिखायेगा ही
इस कल्पना में डरा मुलमुला छ. ग.गाँव का किसान मुंह बायें खड़ा

**धान के कटोरा**

छत्तीसगढ़ ह रहिगे भईया गर्रा अऊ बड़ोंरा ददा गर्रा अऊ बड़ोंरा
छत्तीसगढ़ ल काबर कहिथें धान के कटोरा भईया धान के कटोरा?

बोट लेहे के बेरा म राजा हमला ददा कहिथें
काम निकल गे त हमन ल भखला कहिथें
हमरे बनाये मंत्री ददा हमन ल गरियाथे
चल घुंच, फेर आ कहिके रोज २ तिरियाथे

बड़े बड़े सुपेती उंकर सोफा सेट ह पिराथे
हमन ल गोदरी बर डोकरा लट्ठा ल देवाथे
का लेबे रे तैं हर मंगलू डौकी तोर खिसियाथे
लोग लइका बर चाउर ले ले पसिया ल पियाबे

बड़े बड़े मोटर म बइठ के राहत कार बनाथें
हंकर हंकर बुता करे बर नोनी खंती ल बताथें
अउठ रुपिया भूति मिलथे तेल नून नई पुरय
भात रोटी के बात करथें बासी घला नई बांचय

खीर पुड़ी इकरेच बाहटा पानी कस दूध फेंकाथे
मोर लइका दिन भर मुर्रा लाड़ू लाई बर तरसगे
बुकुर बुकुर तोर मुंह ल देखव संझा ले बिहनिया
दू जुवार मोहु ल दाई ददा बर खीचरी ल पुरोदे

भुइया खिरगे, जांगर खिरगे, खिरगे भुइयां के पानी?
सूरज खिरगे, बादर खिरगे, खिरगे मनसे के पानी?

माटी के भगवान बने आज ए माटी बनगे मनखे?
धरम पीरा  छिन भर म दाउ कइसे तोर भुलागे?

१४ सितम्बर १९७५

21 comments:

  1. छत्तीसगढ़ ह रहिगे भईया गर्रा अऊ बड़ोंरा
    छत्तीसगढ़ ल काबर कहिथें धान के कटोरा,,,,क्या बात है

    RECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,

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  2. मन को छू गई आपकी यह कविता ,सिर्फ चेहरे बदल जाते हैं ....यह धान का कटोरा
    हमेशा भरा पूरा छलकता रहे ,यही ईश्वर से प्रार्थना है.....

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  3. बहुत मार्मिक प्रस्तुती...विकास के नाम पर खिलवाड़ हो रहा है..

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  4. धरती का बेटा है माटी में लेटा है पेट में भूख है निरीह है मूक है
    खेत की मेढ है दादुर की टेर है आज़ादी की गुलामी है देता सलामी है ।
    सावन का महीना है गर्मी का पसीना है धान का बीज है अपनो की खीझ है
    पीढियों का क्रन्दन है अरण्यरोदन है सूखे का फाग है धधकती आग है ।
    थाली का नमक है गेंदे की गमक है दर्द का साज़ है दबी हुई आवाज़ है
    अनकही पीडा है दायित्व का बीडा है बिका हुआ भाग्य है आया कहॉ स्वराज्य है ?

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  5. कटोरा हमेशा धान से भरा रहे, ईश्वर से यही कामना है...

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  6. अंचल की पीड़ा, मिट्टी का दर्द.

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार८ /१ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है।

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    Replies
    1. आभार राजेश कुमारी जी आपने धान के कटोरा का मान बढाया

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  8. कटोरा हमेशा धान से भरा रहे, ईश्वर से यही कामना है...बहुत सुंदर.

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  9. सार्थक चिंतन। समय रहते ही चेतना ज़रूरी है।

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  10. मिट्टी का दर्द.,....बहुत मार्मिक प्रस्तुती

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  11. बदलेगा कास्मिक साईकल या धरातल से फूटेगा फव्वारा जल का?
    उपयोगी पानी की मात्रा जानकर भी हम कर रहे है खिलवाड़ जीवन से?

    सच है ..
    हम नहीं संभल पा रहे भाई जी !

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  12. आपकी चिंता स्वाभाविक और जायज है.पानी की किल्लत करीब करीब सभी राज्योंमें हैं ही यहाँ तक कि राज्य की राजधानियां भी इससे अछूती नहीं हैं.कुछ वर्षों पहले चेन्नई और हैदराबाद प्रवास के दौरान पानी की जो किल्लत और मारामारी देखी उससे भय महसूस हुआ.छत्तीसगढ़ में भी हम तेजी से उसी खतरे की ओर अग्रसर हैं.दुखद है और डरावना भी.

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  13. सच है.. विकास के नाम पर खिलवाड़ हो रहा है...बहुत मार्मिक प्रस्तुति

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  14. जय हो बहुत ही लाज्वाब ... आंचलिक रंग में रंगी भाव मय प्रस्तुति ...

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  15. बहुत संवेदनशील प्रस्तुति...

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  16. Kab tak chalega ye khilwad ? badhiya prastuti.

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  17. छतीसगढ़ की माटी की सुगंध रचना में आई ..

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  18. marmik prastuti miti ka dard dikhta hai rachna me.........

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  19. यही तो हो रहा है ..

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