गुरुकुल ५

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Monday, 15 July 2013

परी / FAIRY QUEEN



उतरकर  स्वर्ग से नीचे
जमीं पर पांव धर लो?
सहचरी हो मेरी
मैं जानता हूं तुम्हे

न पूजो मानकर ईश्वर
न बन साधिका तुम विचरो
सृजन संकल्प ले जग का
श्रृष्टि संताप हरने को

भटकती प्रेम की खातिर
धरकर रूप माया का
बन घन आसमां में
नित निज प्रेम पथ पर

जब कभी आसमां से
मिलन के रंग डूबी
वसुधा पर उतरती
विव्हल उन्मुक्त गति ले

बिन बूझे अमंगल को
श्रृष्टि को भाव मंगल से
प्रेम से सिक्त कर जाना
नियति है तुम्हारी

जन्म से तुम मधुर हो
जानता है जगत तुमको

उफनती गिरि धरा से
नदी बन हो तरंगित
सदा मिलने समंदर से
प्रतीक्षा में प्रिय के

संज्ञा शून्य, महा ठगिनी
उद्विग्न और चंचल
कहां फिर जान पाती हो
दिव्य अपनी नियति को ?

गगन से शून्य तक भटकाव
और अस्तित्व के ठहराव में

अम्बर से उतरकर
तुम्हारी मधुरता
विलीन हो जाती है
समुद्र से मिलकर

प्रलय और सृजन का
तुम्हारा चंचल सौन्दर्य
और सम्मोहक भाव देख
थम जाता है काल भी

भर जाता है न खारापन?

प्रलय मैं सह नहीं सह सकता
सृजन तुम कर नहीं सकती

परी सी स्वर्ग से नीचे
जमीं पर पांव मत धरो
विचरो आसमां में तुम
सदा ही आसमां के पास

मैं खुश हूँ
आज भी हर पल
धरा से देखकर तुमको
मेरा सिर गर्व से तना


०६ जुलाई २०१३

22 comments:

  1. मैं खुश हूँ
    आज भी हर पल
    धरा से देखकर तुमको
    मेरा सिर गर्व से तना...

    बहुत खूब,सुंदर प्रस्तुति,,,

    RECENT POST : अपनी पहचान

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  2. पुराने प्रेम-पत्र की तरह भावपूर्ण.

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  3. प्रलय मैं सह नहीं सह सकता
    सृजन तुम कर नहीं सकती..

    मंगलकामनाएं..

    ReplyDelete
  4. प्रलय और सृजन का
    तुम्हारा चंचल सौन्दर्य
    और सम्मोहक भाव देख
    थम जाता है काल भी
    प्रकृति देवी को समर्पित सुंदर भाव सुमन...

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  5. मैं खुश हूँ
    आज भी हर पल
    धरा से देखकर तुमको
    मेरा सिर गर्व से तना
    बहुत ही भावपूर्ण रचना...

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  6. prem ki khushbu se sarabor ..sundar rachna..

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  7. कल 18/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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    Replies
    1. यशवंत माथुर जी आपके सहृदयता और ***परी*** को नयी पुरानी हलचल में शामिल करने के लिए आभार

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  8. वाह ; बहुत बढ़िया...

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  9. बिन बूझे अमंगल को
    श्रृष्टि को भाव मंगल से
    प्रेम से सिक्त कर जाना
    नियति है तुम्हारी

    ये काम प्रेम का है ... जो रहता है सहचरी के साथ ... जीवन में आता है पल पल ...
    भाव मय ...

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  10. बहुत सुंदर पंक्तियां ....

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  11. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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  12. प्रलय और सृजन ...
    अति सुन्दर !

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  13. अहा! अति सुन्दर काव्य-कृति.. आनंद से अभिभूत हुई..

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  14. प्रलय और सृजन अदबुद्ध काव्य कृति...आभार

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  15. निसंदेह साधुवाद योग्य लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  16. किस पारी की बात हो रही है रमाकांत जी ....?

    बहरहाल शब्दों की अच्छी कलाकारी की आपने ....

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    Replies
    1. आदरणीया हरकीरत * हीर * जी आपने कल्पना और प्रेम को छूने की कोशिश की आपकी पारखी नज़रों को प्रणाम

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  17. बहुत सुन्दर रचना

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  18. बिल्कुलसही बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!

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  19. शायद पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग में,
    बहुत सुंदर रचना

    आभार...

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