मैं चला था अकेला, आज फिर तन्हा तेरे बिन, कल भी तन्हा तेरे बिन
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आज है?
कोई बंदिश
कोई तटबंध
निमंत्रण वा आमंत्रण
स्पर्श न आलिंगन
तो फिर
ये उदासी क्यूँ?
**
कल थीं
बंदिशें हर पल
बंधी सीमाओं में
मौन
कहना
सुनना
स्पर्श और आलिंगन
फिर भी आनंद ही आनंद
क्यूँ ?
***
कल
न होंगी बंदिशें
न तटबंध न सीमायें
दे निमंत्रण कर आमंत्रण
रचो इतिहास कर आलिंगन
धरो पग व्योम पर निर्भय
सिकन क्यूं?
फिर माथे पर
****
कल
मैं चला था अकेला?
आज क्यूं?
फिर तन्हा तेरे बिन
कल भी जीना?
तेरे बिन
06 जुलाई 2013
ज़िन्दगी के संग चार कदम चलते चलते
चित्र गूगल से साभार
लंबा सफर तय करती निश्छल भावनाएं.
ReplyDeleteहँसते हँसते सब दे डाला , अब इक जान ही बाकी है !
ReplyDeleteकाश काम आ जाएँ किसी के, इच्छा है ,दीवानों की !
आज है?
ReplyDeleteकोई बंदिश
कोई तटबंध
निमंत्रण वा आमंत्रण
स्पर्श न आलिंगन
तो फिर
ये उदासी क्यूँ?
बहुत उम्दा लाजबाब प्रस्तुति,,,
RECENT POST: गुजारिश,
True lines....
ReplyDeleteDeep emotions & feelings....
कल आज और कल की अनूठी अनुभूतियों का अनुपम अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post मेरी माँ ने कहा !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
. बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार तवज्जह देना ''शालिनी'' की तहकीकात को ,
ReplyDeleteआप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।
ReplyDeleteकल
ReplyDeleteमैं चला था अकेला?
आज क्यूं?
फिर तन्हा तेरे बिन
कल भी जीना?
तेरे बिन
.........बहुत सुन्दर ..कितना कुछ कह दिया ... शब्दों में...रमाकांत जी
@ संजय भास्कर
रचना के साथ तस्वीर भी बहुत पसंद आई सर
ReplyDelete. बहुत सुन्दर.लाजबाब प्रस्तुति..आभार रमाकान्त जी.
ReplyDeleteकुछ बंदिशें भी आनंददायक होती हैं।
ReplyDeleteमन के तार झनझना दिए।
बहुत खूब .....खूबसूरत ...बहुत सुन्दर ..कितना कुछ कह दिया ... शब्दों में.
ReplyDeleteसर्वप्रथम जन्मदिन पर अशेष हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteएक बार पीछे मुड कर तो देखिये बंदिशों और मौन में तो सब कुछ समाया है.
दिखा ?
बहुत ही बेहतरीन हृदयस्पर्शी रचना..
ReplyDeleteआदरणीय आपने ***तेरे बिन *** को सराहा ह्रदय से आभार
ReplyDeleteमैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
ReplyDelete--
पूर्व के कमेंट में सुधार!
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
सूचनार्थ...!
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प्रणाम शास्त्री जी आभार आपने ***तेरे बिन ****को मान दिया
Deleteकुछ बंधन ऐसे होते हैं जो मुक्त करते हैं दुःख से ....
ReplyDeleteभावपूर्ण!
कई 'क्यूँ' निरुत्तर रह जाने के लिए ही होते हैं.
ReplyDeleteअंतस को छूते कोमल अहसास...
ReplyDeleteजनम दिन की बधाई ...
ReplyDeleteआगे बढ़ना या पीछे देखना ... वर है तो बस वर्तमान ही जो सार्थक है ...
प्रिय बाबू साहब 2 दिन देर से ही सही आपके जन्मदिन पर कुछ पंक्तियाँ मेरी ओर से स्वीकार करें
ReplyDeleteजन्म प्रक्रिया ,मृत्यु शाश्वत
आरम्भ से अंत तक
सब कुछ अनिश्चित,अनित्य
और
नश्वर
इस यात्रा के बीच
कभी बसंत कभी सावन,
कभी मनभावन
कभी जलप्लावन
क्या खोया,क्या पाया
किसने कितना निभाया
आज तक कौन जन पाया
पीछे मुड़ कर देखें
कुछ स्मृतियाँ
कुछ चेहरे
हलके गहरे
डूबते उतारते
समुद्र की लहरों से
पास आते है
थमने के पहले
न जाने
कहाँ
गुम हो जाते हैं
SIR JI I LOVE YOU SO MUCH
Deletebadiya rachna.khas kar dusra paira bahut hi achha hai.ur janmdin ki badai bhi.
ReplyDeleteकल
ReplyDeleteमैं चला था अकेला?
आज क्यूं?
फिर तन्हा तेरे बिन
कल भी जीना?
तेरे बिन..... prasansa yogy........jo dusre man me sonchte hai aapne wo is line se samne rakha.......yahi kahunga ye aapke ekant ke umda kyalo ki upaj me se ek honge......... agar wakt mie to meri rachnaye bhi aap jarur padhe..
( www.bnjraj08.com )Meri Kavyaalay....
अहा! सुन्दर प्रस्तुति..
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