आज भी कायनात का वजूद अच्छे लोगों से ही है? |
एक लम्बे अंतराल बाद
वेताल की सवारी विक्रम के कंधे पर
जुगनुओं की रोशनी में बियावान रास्ता
वेताल ने कहा
राजन
ज़रा गौर करें
ये आपका विस्तृत साम्राज्य
समृद्धि और खुशहाली
लेकिन
शिकायत प्रति पल क्यूं?
जीवन के प्रत्येक पग पर?
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हम मिलते हैं एक दिन में सौ नये लोगों से
इनमे से 97लोग सही और 3 लोग गलत
साबका पड़ता है इन्ही तीन गलत लोगों से
97 सही लोग छुट जाते हैं निभाने के लिये
पुनः अगला दिन वही क्रम फिर मिले सौ लोग
आज भी निर्वहन नये तीन गलत लोगों से ही
छुट गये दुर्भाग्य से शेष 97 सही लोग क्रम से
यही क्रम चल गया मृत्यु तक जाने अनजाने
हमने मान लिया दुनिया बुरे लोगों की ही है?
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कभी ऐसा भी होता है मिले हम सौ लोगों से
इनमे से 97 लोग गलत और 3 लोग ही सही
कुछ ऐसा चक्र चला ये तीन सही ही रहे हमारे संग
छुट गये पुरे 97 बुरे लोग आज बिन कहे सौभाग्य से
सोमवार को जो क्रम था वही बना रहा रोज
बस ये वार बदलते बदलते महीने बन गये
महीने बदल गये बरस में पलक झपकते
और न जाने कब बीत गया जीवन देखते देखते
लगा ये दुनियां केवल सज्जनों से भरी है
राजन
आपकी भृकुटी क्यों तन जाती है
मत भुलिये ये संसार सार है
जीवन और लोगों की भेंट का एक ही निश्चित क्रम है?
बदल जाते हैं रास्ते और गिनती का फेर कभी कभी बूझे अनबूझे?
किसी के हिस्से कम तो किसी के हिस्से जियादा पड़ जाते हैं
बस सही गलत का मायने और अंदाज़ जुदा हो जाता है?
कुछ भी अछूता नहीं रह गया है आज इस संक्रामक रोग से
लिंग, वर्ण, जाति, संप्रदाय, रंग, देश, विदेश, हम, आप,साहित्य
शिक्षा, धर्म, गंवार, विद्वान, नेता, अभिनेता, जननी, जनक, और रिश्ते
पिस गये हैं इसी चक्की में चाहे अनचाहे रोज पल पल समाज
राजन
आप विद्वान और न्याय प्रिय हैं
फिर विस्मय किस बात पर
आज भी कायनात का वजूद अच्छे लोगों से ही है?
भले ही हमारी मुलाकात न हो उनसे और जीवन बीत जाये
भटकते भटकते अंधेरे में उजाला खोजते खोजते चोट खाते
चंद लोग बुरे हों या भले मिले हम उनसे धारणा बन जाती है।
मन खिन्न है सवाल का जवाब हर हाल में चाहिये सवाली है खड़ा
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कभी कभी सब अच्छे लोगों से ही नित हमारी मुलाकात होती है
किन्तु जैसे ही हम अपना प्रयोजन स्पष्ट करते हैं अचानक?
विक्रम ने सोचा
और वेताल ने ताड़ लिया
लोग बुरे ही हैं तो ये दुनियां कैसे चल रही है ये डूबती क्यों नहीं?
यदि लोग भले हैं तो शोर शराबा थमता क्यों नहीं अँधेरा क्यूँ है?
06 जुलाई 2013
समर्पित मेरी ज़िन्दगी को
और सवाल संग शिकायत भी
भला-बुरा ज्यों दिन-रात.
ReplyDeleteआज भी कायनात का वजूद अच्छे लोगों से ही है?
ReplyDeleteदोनों से ही कायनात कायम है....
ReplyDeleteकाले से ही सफ़ेद रंग की पहचान है और काले की सफ़ेद से.
ReplyDeleteजब तक कायनात है दोनों ही रहेंगे अच्छे भी बुरे भी.
बुराई हमेशा अच्छाई को निगल लेती है.
शिकायते/ प्रश्न सब वाजिब हैं लेकिन सटीक उत्तर किस के पास है?
भला-बुरा दोनों का संतुलन ही इस सृष्टि कर्म को सम्भाले हुए है...सत, रज और तमस इन तीनों गुणों के मेल से ही सृष्टि का निर्माण हुआ है...इनसे जो पार हुआ वही जीवन मुक्त है...
ReplyDeleteबुरों के साथ भी रहना है..
ReplyDeleteयही जीवन है !
अच्छे बुरे का ये क्रम चलता रहेगा ... क्योंकि हम अपना रूप बदलते रहते हैं ...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जनसंख्या विस्फोट से लड़ता विश्व जनसंख्या दिवस - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteविक्रम और वेताल को आज के ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए ह्रदय से आभार
Deleteजीवन और लोगों की भेंट का एक ही निश्चित क्रम है?
ReplyDeleteइसमें क्या शक है अक्सर हम उन लोगों से दूर रहने के लिए अभिशप्त होते है जिनका हम साथ चाहते हैं और उनके साथ रहने को विवश होते हैं जिनकी उपस्थिति मात्र से हम असहज हो जाते हैं
राजन आपसे ऐसे ही उत्तर की प्रतीक्षा थी लो मैं चला अगले अंक में फिर मिलूँगा तब तक के लिए दसविदानिया
Deleteअच्छे और बुरे सब साथ साथ ही चलते हैं यही जीवन है..बहुत बढिया..आभार
ReplyDeleteबेहतरीन कविता |
ReplyDelete"संसार विषवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे ।
ReplyDeleteकाव्यामृतरसास्वादन संगतिः सज्जनैः सह "
इस संसार रुपी विष-वृक्ष में दो ही अमृत-रूपी फल लगे हैं । एक - साहित्य का रसास्वादन और दूसरा - सज्जनों की संगति ।
वाह! बहुत बढ़िया!
Deleteराजन
ReplyDeleteआपकी भृकुटी क्यों तन जाती है
मत भुलिये ये संसार सार है ..........सही है .....!!
बड़ी खूबसूरती से वाद-संवाद को आप शब्द देते हैं..
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