लेकिन उनसे कुछ बतियाने मैं वापस लौट पाऊंगा? |
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गहन चिंतन और विचार के बाद
मैंने सोचा क्यों न आत्महत्या कर लिया जाये
मुक्ति या मोक्ष के लिये
क्या रखा है जीवन में?
क्या मिल जायेगा बड़ा जीवन जीकर?
यदि छोटा भी हो गया
तो बदल क्या जायेगा?
और बिना कुछ कहे
चल भी दिये तो क्या अंतर पड़ जायेगा?
न आगा न पीछा
जीवन को समझने में मैं क्यों बनूँ ऋषि मुनि?
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लोग स्वर्ग चले जाते हैं
मरने पर जुट जाते हैं स्वजन
स्वर्गवासी बनाने
ऐसा लोग कहते है
एक बार मैं भी मरना चाहता हूँ
ये देखने का शौक है
कितने लोग जुटेंगे
रोयेगा कौन कौन
और कौन मुस्कुरायेगा मेरे जाने पर
लेकिन उनसे कुछ बतियाने मैं वापस लौट पाऊंगा?
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मेरे परम हितैषी ने कहा
आदरणीय
न पढ़ लिखकर आपने अपना
सब कुछ बिगाड़ लिया
और जो लोग जियादा पढ़ लिख भी गये
उन्होंने क्या खम्भा उखाड़ लिया
कल, आज और कल के चक्कर में
ज़िन्दगी भर कुछ कर न सके
सोचते हो इसी चार दिन में
श्रृष्टि को पलट डालोगे
खेल निराला है, 99 के चक्कर से कोई बच पाया?
क्रमशः
20 जुलाई 2013
समर्पित मेरे छोटे भाई दीपक सिंह दीक्षित को
जिसका जीवन दर्शन और चिंतन प्रेरित करता है।
बहुत खरी बातें पर अर्थपूर्ण
ReplyDeletelatest post क्या अर्पण करूँ !
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99 का चक्कर है, क्रमशः होगा ही.
ReplyDeleteबहुत बार उठते हैं ऐसे ख्याल मन में... क्रमशः की प्रतीक्षा है...
ReplyDeleteहर पल यहाँ जी भर जियो....क्या मिला क्या पाया इस के चक्कर में क्यूँ रहना..
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [22.07.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1314 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
चक्कर कहीं के हों, होते हैं अजीब - वहीं के वहीं भटकाते हैं !
ReplyDeleteट्राई करने कुछ ज्यादा ही भारी पड़ सकता है , अतः फिलहाल आईडिया ड्राप करना ठीक है
ReplyDelete:)
सतीश भाई साहब आज भी हम अपने फैसले पर गर्व करते हैं आपका एक कमेन्ट १००० नहीं १०००० के बराबर हैं . प्रणाम स्वीकारें शुभ संध्या
Delete99 के चक्कर ही ऐसा ही होता है..बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति..
ReplyDeleteआत्महत्या से न मुक्ति मिलती है न मोक्ष, जैसे घोर ठंड में सिकुड़ते हुए के कोई कपड़े भी उतरवा दे तो जैसा अनुभव होता होगा, वैसा ही लगता है मरने वाले को, ऐसा संतजन कहते हैं...
ReplyDeleteकोई नहीं बच पाता इस ९९ के चक्कर से ... और जो एक बार इस फेर में आ जाता है ... निकल भी नहीं पाता ...
ReplyDeleteअध्यात्म में कर्म - योग की बडी महिमा है । सृष्टि में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो कर्म योग के द्वारा अपनी तकदीर को सँवार सकता है । यहॉ भाग्य नाम की कोई चीज़ नहीं होती । सत्कर्म ही सौभाग्य है और दुष्कर्म ही दुर्भाग्य । मनुष्य जब प्रयाण करता है तो उसके साथ एक ही चीज़ जाती है , मात्र उसके कर्म । ये कर्म - फल इतने प्रबल होते हैं कि वे पुनर्जन्म के बाद भी पीछा नहीं छोडते । यही कर्म-फल की सच्चाई है । इसमें मन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी....वाह!
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteटिप्पणी 1:
ReplyDeleteअसुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः।
ताँस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के घात्महनो जनाः।।
टिप्पणी 2:
कौन आता है रोने तेरे दर पे गालिब
एक बार मौत की अफवाह उडा के तो देख
लाई हयात तो आये कज़ा ले चली चले
ReplyDeleteना अपनी ख़ुशी आये ना अपनी ख़ुशी चले
"जौक"
दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं
ReplyDeleteकितना हंसीं गुनाह किये जा रहा हूँ मैं
यूं गुजर रहा हूँ जिन्दगी तेरे बगैर
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं। ....