चंद लोग बदल देते हैं
समाज की दशा और दिशा
हम ऐसा क्यों मान लेते हैं?
एक अपवाद बन गया समाज का प्रतिबिम्ब?
आस्था और विश्वास की बुनियाद हिल गई?
एक आदमी की हरकत से
एक फकीर से सुनी कहानी याद आ गई
एक बार एक मुसाफिर के गुम हो गये
आस्था और विश्वास
बस उसने शुरू कर दिया तलाशना
कहाँ है वो? कहाँ मिलेगा?
कौन है, वो कैसा होगा?
जो सुलझा देगा मेरी समस्या?
तन्मयता से खोज देगा
मेरी गुम अमानत
न जाने कितने सवाल.
उत्तर देने वाला?
निकल पड़ा खोज में
मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा
दरगाह की चौखट पे सज़दे में
रख दिया सिर श्रद्धा से
जवाब मिल पाया?
लौट गया खाली हाथ
फिर क्या था फूट पड़ा गुबार
खूब गालियां बकी, तोड़-फोड़ की
कर दिया गन्दा पवित्र स्थल को
शुरू कर दिया सिलसिला
एक मंदिर से दूसरे मस्जिद तक
चर्च के चौखट से गुरूद्वारे के ताल तक
देने लगा आवाज़ निकल बाहर
सर्वत्र निरर्थक
मौन, घुप्प अँधेरा, मन के भीतर और बाहर
गुम हो गई सदा शून्य में
चलने लगा क्रम, एक गाँव से दूसरे नगर
न थमनेवाला संशय और गूँज
खोज की भी इन्तहां होती है?
कौन मन्नतों को करता है पूरा?
रूह से कैसे मुलाक़ात है होती?
आत्मा कहाँ वास करती है?
यात्रा का अंत हुआ वीरान दरगाह में
टूटी दीवारें,बंजर जमीं
तंग पगडण्डी दरख्तों के साये
लगा बरसों न कोई आया, न गया
न मांगी दुआ या पूरी हुई?
आज न जाने क्यूँ
न निकले अपशब्द, न उपजा क्रोध
शाम ढलने लगी
सूरज छुपाने लगा था मुख आसमां में
पैर उठ गए वापस लौटने को
अकस्मात् आवाज़ आई
ऐ जाने वाले मुसाफिर जरा ठहर
चौंक गया, किसने आवाज दी?
अज्ञात भय, कौन होगा ये?
चल पड़ा एक बार फिर
आई वही सदा वीराने से
जरा ठहर, आज क्यों मौन है?
मुसाफिर ने पूछा
तू कौन है मुझे बूझने वाला?
एक कांपती आवाज, मैं तेरी आस्था,
तेरा विश्वास, तेरी आत्मा
मुसाफिर ने पूछा
कैसे मानूं, कहाँ थे आज तक?
क्यों नहीं आये आज के पहले?
जब तक तुम व्याकुल थे
जिज्ञासा थी मन में
साक्षात्कार की ललक थी
मैं तुम्हारे संग चलता रहा
हर उस जगह जहाँ जहाँ तुम फिरे
लेकिन मैं तो हर जगह पाक रूह से
मिलने कुछ पूछने गया
कहीं कोई मिला ही नहीं
मिली ख़ामोशी तनहाई
आज ही तुम क्यूँ?
ऐसा नहीं सब थे वहां
और मैं तो साथ हमेशा
आज तुम्हारी आस्था टूट जाती पूरी
उठ जाता विश्वास
अब लाज़मी हो गया था
तुम्हारे हर सवाल का जवाब देना
ऐसा कभी मत सोचो
जवाब क्यों नहीं दिया गया?
आज तक किसी ने भी तुम्हारे
सवाल का जवाब देना
उचित नहीं समझा
तब तुम्हारा विश्वास था
कोई तो जवाब देगा ही
लेकिन तुम्हारी आज की
ख़ामोशी और हताशा ने
तोड़ दिये बंध समय और दिशा के
मुझे मजबूर कर दिया कहने
कि हर सवाल का जवाब है
ये बात अलग है
कि कभी-कभी हम मौन रह जाते हैं
और ये चुप्पी जवाब नहीं
कभी न सोचना
वादे के मुताबिक यह पोस्ट काव्य मंजूषा ब्लॉग
की मालकिन स्वप्न शैल मंजूषा को समर्पित
चित्र फ्लिकर से साभार.
लेकिन तुम्हारी आज की
ReplyDeleteख़ामोशी और हताशा ने
तोड़ दिये बंध समय और दिशा के
मुझे मजबूर कर दिया कहने
कि हर सवाल का जवाब है
ये बात अलग है
कि कभी कभी हम मौन रह जाते हैं
और ये चुप्पी जवाब नहीं
कभी न सोचना ,,,,,
आस्था और विश्वास को तलाश करती सुंदर रचना,,,,,,,
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
bahut sundar rachna ...!!
ReplyDeleteवाह.....
ReplyDeleteबेहतरीन भावाव्यक्ति......
गहन भाव...
अनु
आज न जाने क्यूँ
ReplyDeleteन निकले अपशब्द न उपजा क्रोध
शाम ढलने लगी
सूरज छुपाने लगा था मुख आसमां में
पैर उठ गए वापस लौटने को
अकस्मात् आवाज़ आई
ऐ जानेवाले मुसाफिर जरा ठहर
Behtreen Abhivykti....
मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है।
ReplyDeleteबार-बार चौंकाती कविता.
ReplyDeleteyou have written very right.
ReplyDeletethanks
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रफ़्तार जिंदगी में सदा चलके पायेंगें
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.. आभार
ReplyDeleteबार-बार पढ़ना होगा....
ReplyDeleteगजब कर दिया है आपने, अब अगली पोस्ट क्या आएगी?
ReplyDeleteखुद पर भरोसा हो तो हर सवाल का जबाब है ...और मौन की भी अपनी भाषा है...
ReplyDeleteबड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में लिखा है आपने...पढ़ते हुए आगे क्या होगा उत्सुकता बढती जा रही थी... सुन्दर रचना के लिए आभार
ReplyDeleteआस्था और विश्वास को तलाशती हुई सुंदर रचना,,,,,,,
ReplyDeleteआस्था और विश्वास एक दूसरे के पूरक हैं .
ReplyDeleteखुद पर विश्वास और ईश्वर में आस्था जीवन के लिए दोनों ज़रुरी हैं.
अच्छी कविता.
Bahut hee sundar likhte hain aap...aapka anusaran karna hoga!
ReplyDeleteचुप्पी जवाब होती है, और कई बार बहुत बड़ा जवाबी होती है|
ReplyDeleteइस समर्पित कविता में कुछ सवाल हैं ऐसे जिसके जवाब तलाशने होंगे, फिलहाल मन लागे फ़क़ीरी में।
ReplyDeleteकि हर सवाल का जवाब है
ReplyDeleteये बात अलग है
कि कभी-कभी हम मौन रह जाते हैं
और ये चुप्पी जवाब नहीं
कभी न सोचना
...आस्था और विश्वास के तलाश की बहुत गहन और सारगर्भित प्रस्तुति...उत्कृष्ट लेखन
अंत तक सोचने को मजबूर करती है आपकी रचना ...
ReplyDeleteअति सुंदर रचना..
ReplyDeleteइसमें कोई शक़ नहीं. मन मैं अनगिनत सवाल उठते ही हैं...मानव हृदय की यही तो त्रासदी है..परन्तु आस्था और विश्वास अपनी जगह क़ायम ही रहते हैं...हाँ कुछ संशय ज़रूर सिर उठाते हैं जिनका समाधान न मिले तो मन उद्विग्न होता है....मैं इ योग्य कहाँ, परन्तु अपनी कविता समर्पित करके आपने मेरा बहुत मान बढ़ाया है...कृतज्ञ हूँ...
ReplyDeleteअति सुंदर रचना..!
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