गुरुकुल ५

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Friday, 3 August 2012

मेरा भ्रम?


कितना अजीब लगता है
यह कहना

सचमुच?
छूट गर्इ गाड़ी?
चली गर्इ तुम?
छूट गया मैं
विक्षिप्त, विस्मित, अचंभित
जीने की उत्कट लालसा में

गुजर गये सुनहरे लम्हे
बीत जाने पर वक्त बेखुदी के
मुझे महसूस हुआ
अपना रीतापन

मैं तो फकत जीता रहा
ता-उम्र
तुम्हारी पूर्णता में
अपनी रिक्तता को

आज भी उसी मोड़ पर
सूनी पगडंडी पर
बबूल के साये तले
निहारता शून्य को
तुम्हारी प्रतीक्षा में
निरर्थक?
बिखरता टुकड़ों में

ये मेरा भ्रम?
या विश्वास तेरा?
जानना है तुमसे ही
तुम ही बतलाओ ना?

शब्द स:शब्द
न संशय न जिज्ञासा
न कौतुहल
सहज आग्रह
मृत्यु के पूर्व


एक सच्ची कहानी उसे ही समर्पित
जो मेरे इमान और जान से भी ज्यादा कीमती है।

चित्र गूगल से साभार

15 comments:

  1. बेहतरीन रचना....
    आपकी लेखनी को नमन....

    अनु

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  2. क्या कीजियेगा जिन्दगी ऐसे ही चलती है गाड़ियाँ छूटती रहती हैं फिर भी हमेशा लगता है "गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है "
    आपकी सारी रचनाएँ जीवन की विभिन्न अवस्थाओं पर प्रश्न खड़ा करती है और लाजवाब कर देती हैं

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  3. मैं तो फकत जीता रहा
    ता उम्र
    तुम्हारी पूर्णता में
    अपनी रिक्तता को

    मन के भावों को सार्थक शब्द दिये हैं ॥बेहतरीन प्रस्तुति

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  4. निहारता शून्य को
    तुम्हारी प्रतीक्षा में
    निरर्थक?
    बिखरता टुकड़ों में,,,,

    सार्थक भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति,,,,रमाकांत जी,,,,बधाई,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,

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  5. बिछोह के वो पल 'विक्षिप्त, विस्मित , अचंभित'शून्य की स्थिति से गुज़रते हुए मनोभावों को सटीक शब्द दिए हैं .
    सशक्त भाव अभिव्यक्ति!

    प्रतीक्षारत ,आहत मन कितनी बार टूटता है और बिखरता है!
    यह कविता आप की ही नहीं शायद कई और लोगों की भी सच्ची कहानी हो.
    जिनमें कुछ संभलते हैं तो कुछ बिखर जाते हैं!

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  6. सचमुच ?
    छुट गर्इ गाड़ी?
    चली गर्इ तुम?
    छुट गया मैं
    विक्षिप्त, विस्मित , अचंभित
    जीने की उत्कठ लालसा में

    मन की वेदना को मिले शब्द ......

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  7. मौत टू एक कविता है/मिलेगी मुझको या फिर उस मोड़ पे बैठा हूँ/ जिस मोड़ से जाती हैं हर एक तरफ राहें... इस कविता के भाव वो अनुभव है जिससे कोई नहीं बचा..सुन्दर प्रस्तुति!!

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  8. ऐसे कोमल भावों को बचा कर, सुरक्षित रखा है आपने, बधाई.

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  9. मैं तो फकत जीता रहा
    ता उम्र
    तुम्हारी पूर्णता में
    अपनी रिक्तता को...मन में उठते भावो को बहुत सुन्दर शब्दों में पिरोया है...बहुत सुन्दर..मेरी नई पोस्ट में स्वागत...

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  10. सच्ची कहानी कह देने का साहस... बड़ा दुःसाहसिक अनुरोध. संवेदनापूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.

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  11. .


    "ये मेरा भ्रम?
    या विश्वास तेरा?
    जानना है तुमसे ही
    तुम ही बतलाओ ना?"

    # बंधु , ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम , वो फिर नहीं आते …

    :)
    लेकिन निराशा है तो आशाएं भी हैं …
    मन के आवेग-संवेग और भावनाओं के उतार-चढ़ाव की सहज प्रस्तुति है आपकी रचना में …

    शुभकामनाओं सहित …

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  12. भावमय ... दिल को छूते हैं आपके एहसास ...

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  13. भावमय करते शब्‍दों का संगम ... उत्‍कृष्‍ट लेखन

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  14. मन को झंकृत कर गयी..जीवन यूँ ही बहता रहता है..

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