कितना अजीब लगता है
यह कहना
सचमुच?
छूट गर्इ गाड़ी?
चली गर्इ तुम?
छूट गया मैं
विक्षिप्त, विस्मित, अचंभित
जीने की उत्कट लालसा में
गुजर गये सुनहरे लम्हे
बीत जाने पर वक्त बेखुदी के
मुझे महसूस हुआ
अपना रीतापन
मैं तो फकत जीता रहा
ता-उम्र
तुम्हारी पूर्णता में
अपनी रिक्तता को
आज भी उसी मोड़ पर
सूनी पगडंडी पर
बबूल के साये तले
निहारता शून्य को
तुम्हारी प्रतीक्षा में
निरर्थक?
बिखरता टुकड़ों में
ये मेरा भ्रम?
या विश्वास तेरा?
जानना है तुमसे ही
तुम ही बतलाओ ना?
शब्द स:शब्द
न संशय न जिज्ञासा
न कौतुहल
सहज आग्रह
मृत्यु के पूर्व
एक सच्ची कहानी उसे ही समर्पित
जो मेरे इमान और जान से भी ज्यादा कीमती है।
चित्र गूगल से साभार
बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteआपकी लेखनी को नमन....
अनु
क्या कीजियेगा जिन्दगी ऐसे ही चलती है गाड़ियाँ छूटती रहती हैं फिर भी हमेशा लगता है "गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है "
ReplyDeleteआपकी सारी रचनाएँ जीवन की विभिन्न अवस्थाओं पर प्रश्न खड़ा करती है और लाजवाब कर देती हैं
मैं तो फकत जीता रहा
ReplyDeleteता उम्र
तुम्हारी पूर्णता में
अपनी रिक्तता को
मन के भावों को सार्थक शब्द दिये हैं ॥बेहतरीन प्रस्तुति
निहारता शून्य को
ReplyDeleteतुम्हारी प्रतीक्षा में
निरर्थक?
बिखरता टुकड़ों में,,,,
सार्थक भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति,,,,रमाकांत जी,,,,बधाई,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
बिछोह के वो पल 'विक्षिप्त, विस्मित , अचंभित'शून्य की स्थिति से गुज़रते हुए मनोभावों को सटीक शब्द दिए हैं .
ReplyDeleteसशक्त भाव अभिव्यक्ति!
प्रतीक्षारत ,आहत मन कितनी बार टूटता है और बिखरता है!
यह कविता आप की ही नहीं शायद कई और लोगों की भी सच्ची कहानी हो.
जिनमें कुछ संभलते हैं तो कुछ बिखर जाते हैं!
सचमुच ?
ReplyDeleteछुट गर्इ गाड़ी?
चली गर्इ तुम?
छुट गया मैं
विक्षिप्त, विस्मित , अचंभित
जीने की उत्कठ लालसा में
मन की वेदना को मिले शब्द ......
मौत टू एक कविता है/मिलेगी मुझको या फिर उस मोड़ पे बैठा हूँ/ जिस मोड़ से जाती हैं हर एक तरफ राहें... इस कविता के भाव वो अनुभव है जिससे कोई नहीं बचा..सुन्दर प्रस्तुति!!
ReplyDeleteऐसे कोमल भावों को बचा कर, सुरक्षित रखा है आपने, बधाई.
ReplyDeleteमैं तो फकत जीता रहा
ReplyDeleteता उम्र
तुम्हारी पूर्णता में
अपनी रिक्तता को...मन में उठते भावो को बहुत सुन्दर शब्दों में पिरोया है...बहुत सुन्दर..मेरी नई पोस्ट में स्वागत...
सच्ची कहानी कह देने का साहस... बड़ा दुःसाहसिक अनुरोध. संवेदनापूर्ण रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDelete.
ReplyDelete"ये मेरा भ्रम?
या विश्वास तेरा?
जानना है तुमसे ही
तुम ही बतलाओ ना?"
# बंधु , ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम , वो फिर नहीं आते …
:)
लेकिन निराशा है तो आशाएं भी हैं …
मन के आवेग-संवेग और भावनाओं के उतार-चढ़ाव की सहज प्रस्तुति है आपकी रचना में …
शुभकामनाओं सहित …
हृदयस्पर्शी कविता, दिल को छूते हुए शब्द!
ReplyDeleteघर सारा ही तुम ले के गए
कुछ तिनके ही बस फेंक गए
उनको ही चुनता रहता हूँ
बीते पल बुनता रहता हूँ।
भावमय ... दिल को छूते हैं आपके एहसास ...
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ... उत्कृष्ट लेखन
ReplyDeleteमन को झंकृत कर गयी..जीवन यूँ ही बहता रहता है..
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