गुरुकुल ५

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Saturday 25 August 2012

शमअ-ए-राह


हर सहर हाल जो, माज़ी में बदल जायेगा
दो कदम चलकर, सरेराह बिछड़ जायेगा
रुक गया तू भी गर, मसीहा की तरह
शमअ-ए-राह, कौन रहनुमा जलायेगा.

सूनी महफ़िल हर सजी, रात के अंधियारे में
साकी सजती ही रही, बाट में चौराहे में
उठ गया तू भी गर, हर सदा की तरह
शमअ-ए-राह, कौन रहनुमा दिखायेगा.


13.09.1979
चित्र गूगल से साभार

22 comments:

  1. चलना ही जीवन है या जीवन ही चलते रहने का नाम है.
    सकारात्मक सोच और संदेश लिए अच्छी रचना..

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  2. उठ गया तू भी गर
    सरे-साम हर सदा की तरह
    शमअ-ए-राह
    कौन रहनुमा दिखायेगा
    बहुत सुंदर भाव ...!!
    शुभकामनायें...

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  3. हमें विश्वास है कि एक दिन
    यह अँधेरा भी कहीं छट जाएगा !

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  4. उम्दा नज़्म ..

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  5. तब तो खुद से तलाशनी होगी, खुद की राहें.

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  6. सकारात्मक सोच वाली कविता

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  7. प्रेरणा देती हुई बहुत सुंदर रचना।

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  8. सुंदर भाव , अच्छी रचना

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  9. कोई न कोई अँधेरे से निकल कर आएगा,
    राह में इक दीप छोटा सा ही बाल जाएगा,
    लड़ सकेगा दीप अँधेरे से तनहा रात भर,
    वो फरिश्ता आएगा, तुम देखना वो आएगा!

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  10. रुक गया तू भी गर, मसीहा की तरह
    शमअ-ए-राह, कौन रहनुमा जलायेगा.

    .....लाज़वाब प्रस्तुति..

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  11. This comment has been removed by the author.

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  12. सुन्दर कविता

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  13. हरफनमौला हैं आप सिंह साहब, गिने चुने लफ़्ज़ों में तड़प, कसक, विरह, वेदना|
    बहुत खूब|

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    1. सार्थक सृजन , आभार.

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  14. chhoti thaali me zyada bhojan parosna aapko aata hai.

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  15. खूबसूरत ख्याल ! आभार !

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  16. कौन जाने वे कब गुजरें इस राह से
    हसरतों की शम्मा एक रौशन रखिये

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  17. सकारात्मक अर्थ लिए हुए लाजवाब रचना |

    my recent post-"एक महान गायक की याद में..."
    आभार |

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