इस बार वेताल ने हठ न छोड़ा
निद्रा लीन विक्रम को उठाकर
कर ली सवारी कंधे की
राजन ये रेपीड फायर राउण्ड है
न रोकना न टोकना
तुम्हारा समय शुरू होता है अब
आसान है किसी रिश्ते को बनाना?
निभाना उससे कठिन?
बनाये रखें चिर स्थाई?
कितना सहज, सरल, कठिन, वा सुगम
रिश्तों में स्वार्थ?
या स्वार्थ पर रिश्ते
हम भी सीखें
रिश्तों का उपयोग दुरुपयोग?
वर्तमान से भविष्य तक?
रिश्तों की बाध्यता कब और कैसे?
नैसर्गिक रिश्ते ज्यादा मजबूत?
रहते हैं बिना स्वार्थ?
न बाध्यता न अनिवार्यता
रहें सदा जवाबदेह?
क्यों किसी की निष्ठा पर प्रश्न?
कोई सीमा या लिहाज?
बिखर जाते हैं
रिश्ते बनाम संबंध?
छवि टूटती है?
टूटन पर फर्क पड़ता है
परिणीति हत्या, आत्महत्या, पीड़ा?
मृत्यु सी भयावह?
रिश्तों का खेल बड़ा कठिन होता है?
पारिवारिक-व्यक्तिगत संबंधों का
सामाजिक-राजनैतिक कह दें
या धार्मिक प्रतिद्वन्दिता का?
पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका का
बन जाता है आसानी से
बिन कहे लपटों में बाप-बेटी भी?
भाई-बहन क्यों संदिग्ध?
इस मायाजाल से मुक्त
मां-बेटे का पवित्र रिश्ता?
कब, क्यों, किन हालात में?
इसकी प्रतीति है होती?
खुल जाती हैं कड़ियां?
बिखरती हैं लड़ियां?
बना रह पाता है
रहस्य पर रहस्य?
रिश्तों की गरिमा?
बरसों की कमाई छवि?
रिश्ते और विश्वास?
छन्न छनाक के बाद
दृष्टिगोचर मूलस्वरूप?
राजन
कहीं ऐसा तो नहीं?
हम अच्छे हैं मायने नहीं रखता?
हमें अच्छा दिखना चाहिए
बन गया है मानदण्ड?
या फिर हमें?
चलो छोड़ो
तुम दो मिनट बैठ चिंतन करो
मैं 120 घंटे में आता हूं
चित्र गूगल से साभार
23.03.2011
एक सौ बीस घंटों में भी चिंतन खतम होगा, नहीं लगता...
ReplyDeleteसुंदर रचना....
सादर।
वेताल का एक और जाल.....इससे तो बाहर निकलना असंभव,,
ReplyDeleteसुन्दर रचना
अनु
शरभंग हो इन दुश्चिंताओं का.
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ReplyDeleteकहीं ऐसा तो नहीं?
हम अच्छे हैं मायने नहीं रखता?
हमें अच्छा दिखना चाहिए
बन गया है मानदण्ड?
Waah.... Gahan Chintan liye Panktiyan
विक्रम और बेताल का,तिलस्मी माया जाल
ReplyDeleteइससे निकलना मुश्किल,लगता है फिलहाल,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
हम अच्छे हैं मायने नहीं रखता?
ReplyDeleteहमें अच्छा दिखना चाहिए bahut achchi pangti......
अक्सर जो होता है वह दिखता नहीं है और जो दिखता नहीं है वह हो भी सकता है
ReplyDeleteरिश्ते स्वतः बनते हैं जन्म से , निभे - यह कहना जन्म लेने की शर्त नहीं होती , मौत भले हो जाए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव से सजी रचना
ReplyDeleteविश्वास की मज़बूत डोर से बंधे रिश्ते बिखरते नहीं जन्मों तक निभाए जाते हैं... शुभकामनायें
ReplyDelete120 घंटे ..कुछ ज्यादा तो नहीं है..वैसे बहुत ही सुन्दर , सारगर्भित संवाद..
ReplyDeleteसमकालीन सच्चाईयों और विद्रूपों और विरूपताओं को समेटे एक मौलिक काव्य श्रृखला
ReplyDeleteरिश्तों की बाध्यता कब और कैसे?
ReplyDeleteनैसर्गिक रिश्ते ज्यादा मजबूत?
रहते हैं बिना स्वार्थ?
न बाध्यता न अनिवार्यता
रहें सदा जवाबदेह?
क्यों किसी की निष्ठा पर प्रश्न?...बहुत ही सुन्दर, सारगर्भित रचना..
रिश्तों के मकडजाल का उतने ही कॉम्प्लेक्स तरीके से वेताल के माध्यम से बयान किया है आपने.. मगर राजन का उत्तर जानने की जिज्ञासा बनी हुई है!! देखें राजन का सिर टुकड़े-टुकड़े होता है या ..... !!
ReplyDeleteमेरे कमेन्ट को स्पैम मुक्त करें!!
ReplyDeleteतुम दो मिनट बैठ चिंतन करो
ReplyDeleteमैं 120 घंटे में आता हूं
विचारोत्तेजक रचना। बिम्बों का उत्तम प्रयोग। हम सब इस मायाजाल में उलझे ही रहते हैं।
उलझनों में उलझने...प्रश्न में प्रश्न छुपे हैं.
ReplyDeleteउतर की तलाश में..हर मन अलग जवाब लिए बैठा होगा.
गहन अर्थ लिए उत्तम कविता..
[चित्र पहले वाला बेहतर था ..यह नया चित्र तो भयावह है!]
विक्रम हठी है, दो मिनट चिंतन करेगा और 120 घंटे के बाद फिर अपनी ड्यूटी शुरू कर देगा|
ReplyDeleteतुम दो मिनट बैठ चिंतन करो
ReplyDeleteमैं 120 घंटे में आता हूं
आपकी यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी ..
आभार
कल 19/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत अच्छी रचना है |
ReplyDeleteआशा
बहुत ही गहन भावो को समेटे ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....
सार्थक एवं प्रेरणादायी।
ReplyDeleteईद की दिली मुबारकबाद।
............
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
टूटन पर कष्ट बहुत होता है ...
ReplyDeleteआभार !
सुन्दर प्रस्तुति। मरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।
ReplyDeletewaah waah kya kahne..........
ReplyDeletebahut khoob
'अच्छा' बनाम 'अच्छा दिखना' ! - अब सिर्फ अच्छा होने से काम नहीं चलता. बिन मार्केटिंग सक्सेस नहीं !
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