1
धरती ने सूरज से कहा
तुम सदा
पूरब से ही क्यों निकलते हो?
बदलकर देखो अपनी दिशा?
एक बार
2
भूखा कभी भूख की
परिभाषा लिख पाता है?
भर पेट भूख को
परिभाषित कर जाता है
3
अरे नादां
पैर के नीचे
धरती
सिर के ऊपर
आसमां
फिर तू कैसे
हो गया महान?
21.08.2012
चित्र गूगल से साभार
क्या बात है.. गहरे अर्थों को समेटे सीधी सच्ची क्षणिकाएं!!
ReplyDeleteअरे नादां
ReplyDeleteपैर के निचे
धरती
सिर के ऊपर
आसमां
फिर तू कैसे
हो गया महान?
इतना ही तो समझ नहीं पा रहे है.....
भूख और उपजी क्षणिका बेहद प्रभावित करती है।
ReplyDeleteअच्छी क्षणिकाएं रचनाओं की एकरसता तोड़ने के लिए बधाई
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Deleteसर आप अपने वादे को ध्यान नहीं दे रहे हैं यह दिल तोड़ने वाली बात नहीं वादा खिलाफी के अंतर्गत आता है कृपया प्रेम पत्र लिख ही डालिए .
Deleteवाह,,,, बहुत खूब मन को प्रभावित करती सारगर्भित क्षणिकाएं,,,,रमाकांत जी,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,
भर पेट भूख को
ReplyDeleteपरिभाषित कर जाता है-
वाह! वाह! वाह!!
एक अमिट सत्य लिख दिया.
bahut khub
ReplyDelete"भूखा कभी भूख की
ReplyDeleteपरिभाषा लिख पाता है?
भर पेट भूख को
परिभाषित कर जाता है"
सच बात कही है सर!
सादर
सभी क्षणिकाएं सार्थक और सारगर्भित है.. बहुत सुन्दर.. आभार..
ReplyDeleteआपकी क्षणिकाएं, ''देखन में छोटे लगें...'' जैसी असरदार हैं.
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही बढिया
ReplyDeleteभूखा कभी भूख की
ReplyDeleteपरिभाषा लिख पाता है?
भर पेट भूख को
परिभाषित कर जाता है
वहुत गंभीर मर्मयुक्त रचनाएं .....
बहुत सुंदर क्षणिकायें...भूखे के लिये रोटी ही परिभाषा है..महान होने की अभिलाषा ही तो नचाती है मानव को..
ReplyDeleteजीवन से जुडी सुन्दर क्षणिकाएं .
ReplyDeleteकल 24/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
teeno kavita sundar hai.behatrin
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण क्षणिकाएं.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
सादर
अनु
सुन्दर क्षणिकाएं .
ReplyDeleteवाह सर जी..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन क्षणिकाएं है..
अति उत्तम...
:-)
तीनों रचनाओं के प्रश्न सारगर्भित हैं. बहुत अच्छी रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteप्रभावशाली क्षणिकाएं..
ReplyDeleteto say truth...
ReplyDeleteबहुत खूब...|
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