वीणा के अंतिम तारों को
इतना न कसो की टूट पड़ें
ये तेरी है या मेरी
काँटों की है झरबेरी
उलझायेगा आँचल
ये अग्नि परीक्षा में
अंजुरी में धरे हाला को
गले में मत डालो
वीणा के अंतिम तारों को
इतना न कसो की टूट पड़ें
ये अपने कर्म कदम
संकल्पों के दर्पण
चंचल व्यथित अंतर्मन
हर पल वेदना समर में
प्रारब्ध स्वर्ग भूतल कर
झंझावत मथ डालो
वीणा के अंतिम तारों को
इतना न कसो की टूट पड़ें
09.08.1978
चित्र गूगल से साभार
मधुर झंकृत स्वर.
ReplyDeletesunder
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर...... सच है कुछ भी जीवन में भार न बने .....
ReplyDeleteवीणा के अंतिम तारों को
ReplyDeleteइतना न कसो की टूट पड़ें,,,,
मन को झंकृत करती बेहतरीन प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....,
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteटूटे से फिर फिर जुडेंगे नहीं...
अनु
सहज जीवन जीने की प्रेरणा देते शब्द...
ReplyDeleteवीणा के अंतिम तारों को
इतना न कसो की टूट पड़ें
बहुत अर्थपूर्ण रचना, बधाई.
जीवन में संतुलन की बहुत ज़रूरत है।
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना, संदेशपरक!!
ReplyDeletebehtreen rachna....
ReplyDeleteवीणा के अंतिम तारों को
ReplyDeleteइतना न कसो की टूट पड़ें.... बहुत सुन्दर भाव..बेहद प्रभावशाली रचना..
शुभकामनाएं..
मन की कोमल रगें हैं ये वीणा के अंतिम तार .. ..ये न टूटें ..
ReplyDeleteविनम्र आग्रह करती हुई अच्छी कविता.
दबाव अधिक होगा
ReplyDeleteतो टूटना तो है..और एक बार जो टूट जाये.फिर न जुड़े..
और जुड़ भी जाये तो
उसमे गाँठ पड़े.
बेहतरीन और प्रभावशाली रचना....
:-) :-) :-) :-)
यही तो है बुद्ध का दर्शन !
ReplyDeleteआइये आपकी इस पोस्ट के साथ एक पुराने गीत की याद का लें -
ReplyDeleteआती है सदा तेरी टूटे हुए तारों से
आहट तेरी सुनती हूँ खामोश नजारों से
आपकी कविता का भाव पक्ष काफी सशक्त लगा । कामना है आप निरंतर सृजनरत रहें । धन्यवाद।
ReplyDeleteबेहद सशक्त भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteये अपने कर्म कदम
ReplyDeleteसंकल्पों के दर्पण
चंचल व्यथित अंतर्मन
हर पल वेदना समर में
प्रारब्ध स्वर्ग भूतल कर
झंझावत मथ डालो
....बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....
मझ्झिम निकाय ही तो सम्यक जीवन है..प्रभावित करती हुई रचना..
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteये अपने कर्म कदम
ReplyDeleteसंकल्पों के दर्पण
चंचल व्यथित अंतर्मन
हर पल वेदना समर में
प्रारब्ध स्वर्ग भूतल कर
झंझावत मथ डालो
भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।
वीणा का अंतिम तार ही क्यों, कोई भी तार ज़रुरत से ज्यादा कसने पर टूट सकता है...
ReplyDeleteवीणा के तार को इतना भी न कसा जाए कि वो टूट जाए और इतना ढीला भी न रखा जाए कि कोई आवाज़ ही न निकले..
सुन्दर भाव...
अच्छी रचना बन गयी है
ReplyDelete'मझ्झिम निकाय'
ReplyDeleteसर्वोत्तम उपाय|
bhavpoorn shshakt rachna
ReplyDeleteसुंदर दर्शन।
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