गुरुकुल ५

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Saturday, 11 August 2012

टूट पड़ें


वीणा के अंतिम तारों को
इतना न कसो की टूट पड़ें

ये तेरी है या मेरी
काँटों की है झरबेरी
उलझायेगा आँचल
ये अग्नि परीक्षा में
अंजुरी में धरे हाला को
गले में मत डालो


वीणा  के अंतिम तारों को
इतना न कसो की टूट पड़ें


ये अपने कर्म कदम
संकल्पों के दर्पण
चंचल व्यथित अंतर्मन
हर पल वेदना समर में
प्रारब्ध स्वर्ग भूतल कर
झंझावत मथ डालो


वीणा  के अंतिम तारों को
इतना न कसो की टूट पड़ें

09.08.1978
चित्र गूगल से साभार

25 comments:

  1. मधुर झंकृत स्‍वर.

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  2. बहुत ही सुंदर...... सच है कुछ भी जीवन में भार न बने .....

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  3. वीणा के अंतिम तारों को
    इतना न कसो की टूट पड़ें,,,,

    मन को झंकृत करती बेहतरीन प्रस्तुति,,,,,
    RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....,

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  4. बहुत सुन्दर....
    टूटे से फिर फिर जुडेंगे नहीं...

    अनु

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  5. सहज जीवन जीने की प्रेरणा देते शब्द...
    वीणा के अंतिम तारों को
    इतना न कसो की टूट पड़ें

    बहुत अर्थपूर्ण रचना, बधाई.

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  6. जीवन में संतुलन की बहुत ज़रूरत है।

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  7. प्रभावशाली रचना, संदेशपरक!!

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  8. वीणा के अंतिम तारों को
    इतना न कसो की टूट पड़ें.... बहुत सुन्दर भाव..बेहद प्रभावशाली रचना..
    शुभकामनाएं..

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  9. मन की कोमल रगें हैं ये वीणा के अंतिम तार .. ..ये न टूटें ..
    विनम्र आग्रह करती हुई अच्छी कविता.

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  10. दबाव अधिक होगा
    तो टूटना तो है..और एक बार जो टूट जाये.फिर न जुड़े..
    और जुड़ भी जाये तो
    उसमे गाँठ पड़े.
    बेहतरीन और प्रभावशाली रचना....
    :-) :-) :-) :-)

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  11. यही तो है बुद्ध का दर्शन !

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  12. आइये आपकी इस पोस्ट के साथ एक पुराने गीत की याद का लें -
    आती है सदा तेरी टूटे हुए तारों से
    आहट तेरी सुनती हूँ खामोश नजारों से

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  13. आपकी कविता का भाव पक्ष काफी सशक्त लगा । कामना है आप निरंतर सृजनरत रहें । धन्यवाद।

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  14. बेहद सशक्‍त भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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  15. ये अपने कर्म कदम
    संकल्पों के दर्पण
    चंचल व्यथित अंतर्मन
    हर पल वेदना समर में
    प्रारब्ध स्वर्ग भूतल कर
    झंझावत मथ डालो

    ....बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....

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  16. मझ्झिम निकाय ही तो सम्यक जीवन है..प्रभावित करती हुई रचना..

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  17. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  18. ये अपने कर्म कदम
    संकल्पों के दर्पण
    चंचल व्यथित अंतर्मन
    हर पल वेदना समर में
    प्रारब्ध स्वर्ग भूतल कर
    झंझावत मथ डालो

    भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।

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  19. वीणा का अंतिम तार ही क्यों, कोई भी तार ज़रुरत से ज्यादा कसने पर टूट सकता है...
    वीणा के तार को इतना भी न कसा जाए कि वो टूट जाए और इतना ढीला भी न रखा जाए कि कोई आवाज़ ही न निकले..
    सुन्दर भाव...

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  20. अच्छी रचना बन गयी है

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  21. 'मझ्झिम निकाय'
    सर्वोत्तम उपाय|

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