इन पीछे छूट चुके बरसों में
क्या खोया क्या पाया?
जब भी सोचा
मन भरमाया
बरसों बरस खड़ा रहा
बिजूका बनकर
खेतों में
पंछियों को डराते
पर कभी इंसान बन पाया?
रहा आधा बिजूका
आधा इंसान
नेह की बारिश नहीं होती
सूख गए खेत?
शायद उड़ गए पंछी?
किसी और देश?
मैं कभी न बन पाया
बिजूका
न
इन्सान
कोशिश करें
अगर कुछ बात बन जाये
रमाकांत सिंह ०६.०७ .२०१२
तेरा तुझको अर्पण ,क्या लागे मेरा
श्री राजेशकुमार सिंह तथागत ब्लॉग के सृजन कर्ता ने मेल किया है
मेरे जन्म दिन 06.07.2012 पर आपके जन्म दिन पर एक और
कविता लिखने की कोशिश की थी. पर बात कुछ बन नहीं पाई.
जैसी लिखी है, वैसे ही भेज रहा हूँ. दरअसल लग रहा है
ये दो अलग अलग कविताएँ हैं.
चित्र गूगल से साभार
क्या खोया क्या पाया?
जब भी सोचा
मन भरमाया
बरसों बरस खड़ा रहा
बिजूका बनकर
खेतों में
पंछियों को डराते
पर कभी इंसान बन पाया?
रहा आधा बिजूका
आधा इंसान
नेह की बारिश नहीं होती
सूख गए खेत?
शायद उड़ गए पंछी?
किसी और देश?
मैं कभी न बन पाया
बिजूका
न
इन्सान
कोशिश करें
अगर कुछ बात बन जाये
रमाकांत सिंह ०६.०७ .२०१२
तेरा तुझको अर्पण ,क्या लागे मेरा
श्री राजेशकुमार सिंह तथागत ब्लॉग के सृजन कर्ता ने मेल किया है
मेरे जन्म दिन 06.07.2012 पर आपके जन्म दिन पर एक और
कविता लिखने की कोशिश की थी. पर बात कुछ बन नहीं पाई.
जैसी लिखी है, वैसे ही भेज रहा हूँ. दरअसल लग रहा है
ये दो अलग अलग कविताएँ हैं.
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteसहज भावों की अभिव्यक्ति..
अनु
नेह की बारिश हो तो बिजूका भी भीगे ... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनेह की बारिश भी जरुरी है...सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDelete:-)
सुन्दर उपमान ....
ReplyDeleteनेह के बादल ! अब तो बरस जा
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteपर कभी इंसान बन पाया ?
ReplyDeleteरहा आधा बिजूका
आधा इंसान,,,,,,
भावो की सुंदर प्रस्तुति,,,अच्छा प्रयास,,,,,,
RECENT POST...: दोहे,,,,
बिजूका बनता इंसान, क्या खूब...
ReplyDeleteआभार एवं पुनः अशेष शुभकामनाये
ReplyDeleteदोहरी ज़िन्दगी जीते-जीते हम ज़िन्दगी जीना ही भूल रहे हैं।
ReplyDeleteजन्मदिन की बधाई पहुंचे सिंह साहब तक|
ReplyDeleteइंसान बनना तो मुश्किल है ही, बिजूका बनना भी सरल नहीं|
बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भाव , बधाई .
Deleteबहुत सुंदर रचना ..बधाई। मेरे पोस्ट पर आने के लिए धन्यवाद।
Deleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबिजूका बनना आसान है इंसान बनना बहुत कठिन....सुंदर कविता !
ReplyDeletebahut hi sundar rachna....
ReplyDeleteबरसों बरस खड़ा रहा
ReplyDeleteबिजूका बनकर
खेतों में
पंछियों को डराते
पर कभी इंसान बन पाया?
रहा आधा बिजूका
आधा इंसान
....बहुत सुन्दर रचना..लाजवाब भाव..रमाकांत जी
सुन्दर रचना, सार्थक पोस्ट, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना शुभाशीष प्रदान करें , आभारी होऊंगा .
सुंदर अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteपहले जन्मदिन की शुभकामनाएं स्वीकार करें।
ReplyDeleteवेदों ने कहा है "मनुर्भव:" मनुष्य बनो। मनुष्य बनने की राह में कभी कभी प्राणी बिजूका गति को भी प्राप्त हो जाता है। लेकिन मनुष्य बनने की राह पर तो है।
aabhar,bahut sarthak aur sunder rachana h.
ReplyDeleteजन्मदिन की बधाई व् शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteप्रश्नचिन्ह छोड़ते हुए कविता अच्छी लगी.
जब बात बन जाए तो अवश्य बतायेंगे..वैसे बहुत ही अच्छी लगी ..
ReplyDeleteThanks in support of sharing such a fastidious thought, paragraph is pleasant, thats why i have read it fully
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