आँगन के पार
एक बंद द्वार
उम्र के पड़ाव पर
हर साल
एक दीवार इस पार
एक दीवार उस पार
डरता हूँ
हर बार
खोलते नया द्वार
कहीं ऐसा न हो कि
इस द्वार के पार हो
एक अलसाई सी
सरकती नदी
और
पुराने बरगद से बंधी
वही नाव
जिसका खेवनहार
मैं
और सवार भी
वही नाव
वही पतवार
बार&बार
न भरपाई की चिंता
न उतराई का भार
फिर क्यों?
डर जाता हूँ
हर बार
खोलते नया द्वार
06.07.2012
एक बार पुन तथागत ब्लॉग के सृजन कर्ता
श्री राजेश कुमार सिंह को उनके ही भाव उनके
ही शब्दों में लिखकर समर्पित, माध्यम बनकर
चित्र गूगल से साभार
फिर क्यों ?
ReplyDeleteडर जाता हूँ
हर बार
खोलते नया द्वार
गहरे भाव......
फिर क्यों ?
ReplyDeleteडर जाता हूँ
हर बार
खोलते नया द्वार
बहुत सुंदर भाव ....मन रुके नहीं,मन थके नहीं ...चलना ही ज़िंदगी है ...
शुभकामनायें.
डगमग डोले जीवन नैया.
ReplyDeleteनैया भी वही...खेवनहार भी वही.....
ReplyDeleteवाह..
बहुत सुन्दर रचना
अनु
फिर क्यों?
ReplyDeleteडर जाता हूँ
हर बार
खोलते नया द्वार...गहन भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति..
फिर क्यों?
ReplyDeleteडर जाता हूँ
हर बार
खोलते नया द्वार
गहन भाव के साथ उत्कृष्ट प्रस्तुति।
भविष्य कैसा होगा क्या लाएगा अपनी झोली में भरकर..यही सोच कर तो मन संशकित रहता है..सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteखोलो अपने मन के द्वार
ReplyDeleteडरना क्यों है बार बार
के मनवा जाना है उस पार
ReplyDeleteके मनवा खोल रे मन द्वार
छोड़ मोह कांकर पाथर का,झटपट हो ले सवार।
गहन भाव लिए सुंदर सी कविता !!
ReplyDeleteबधाई !!
न भरपाई की चिंता
ReplyDeleteन उतराई का भार
फिर कैसा डर
खोलते जाइये
नित नया द्वार...
गहन भाव... शुभकामनायें...
bahut sunder rachna
ReplyDeleteनए द्वार नयी रहें,नयी दुनिया..अनजाने रास्तों से तो हमेशा ही डर लगता है .
ReplyDeleteअकेलापन तो वैसे भी भयावह है..कई मनोभावों को कम शब्दों में बखूबी अभिव्यक्त किया है.अतिसुन्दर!
हर नया द्वार...नई चुनौतियों ...नयी परिस्तिथियों से रूबरू कराता है और शै: शनै: उस सच की ओर ले जाता है जिसे कोई स्वीकारना नहीं चाहता....और यही भय का मुख्य कारण है ......बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइस द्वार के पार हो
ReplyDeleteएक अलसाई सी
सरकती नदी
और
पुराने बरगद से बंधी
वही नाव
जिसका खेवनहार
मैं
और सवार भी.....
वाह..
बहुत सुन्दर रचना....
सादर.
बेहद प्रभावशाली कविता।
ReplyDeletebahut sunder......
ReplyDeleteअज्ञात का डर ऐसा ही होता है..एक बार द्वार खुल जाए तो डर भी मिट जाता है..
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