गुरुकुल ५

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Tuesday, 24 July 2012

विक्रम और वेताल 2

विक्रम ने हठ न छोड़ा
वेताल को कंधे पर लाद
चल पड़ा गंतव्य को

वेताल ने कहा
राजन विचार करके बोलो

संशय, भ्रम, आशंका से
मुक्त हो अब मौन तोड़ो
जाति, धर्म, वर्ग, रंग
समुदाय और वर्ण के भेद से परे
पूर्व प्राप्त परिणामों को
एक नई तुला पर तोलो

बंध जाये रिश्तों की डोर
माँ और बेटी के
पत्नी और प्रेमिका संग
घुलती जाये सुगंध
एक ही व्यक्ति में
पुत्र संग पति
न पड़े गाँठ
न बंटे रिश्ते
पिता और प्रेमी के मध्य
बनी रहे मर्यादा

मान्यतायें वही हों
न टूटे
सामाजिक बंधन या नियम
रीति रिवाज भी बने रहे
निर्वहन हो परम्पराओं का
कभी न पड़े दरार

वर्जनाएं भी रहें बनी
न हों सीमाओं का अतिक्रमण
खरे हों कसौटी पर
अपनी अपनी सार्थकता ले

वेताल ने कहा
राजन स्मरण रखो

पिता की छाया
प्रेम और स्पर्श पति का
पुत्र का अगाध स्नेह
त्याग प्रेमी का
बने दृढ़ आलिंगन

पत्‍नी का प्रेम और समर्पण
माँ की विशालता में
हो जाये तिरोहित
बेटी का रुदन
बिंध जाये हृदय में
और पथ निहारे
प्रेयसी बन?

अनजाना, अपरिचित, अपरिभाषित?
सरोकार या लगाव ?
अथवा कह दोगे समर्पण?

क्रमशः
31.10.2007



22 comments:

  1. घबरा कर तुम्हे मैंने बार-बार फूलपाश में जकड़ना चाह है
    सखा-बन्धु-आराध्य
    शिशु -दिव्य-सहचर
    और अपने को नई व्याख्याएं देनी चाही हैं
    सखी-साधिका-बांधवी-
    माँ -वधु सहचरी
    तुम आखिर हो मेरे कौन

    धर्मवीर भारती की "कनुप्रिया" से साभार

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  3. विक्रम और वेताल के माध्यम से ज़िन्दगी का पाठ सिखाती रचना. वेताल के इन प्रश्नों का जवाब किसी विक्रम के पास नहीं, फिर वेताल जा पहुंचेगा पेड़ पर. शुभकामनाएँ.

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  4. multidirectional.......but all in one....

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  5. वर्जनाएं भी रहें बनी
    न हों सीमाओं का अतिक्रमण
    खरे हों कसौटी पर
    अपनी अपनी सार्थकता ले

    सच है ..... मान्यताएं बनायें रखनी हैं तो ये भी होना ही चाहिए ....

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  6. बहुत खूब ..कुछ नया पढ़ने को मिला यहाँ.

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  7. विक्रम और वेताल का, ये सुंदर किस्सा
    सवाल जबाब बन जाती,पश्नों का हिस्सा,,,,,

    सुंदर प्रस्तुति,,,बधाई रमा कान्त जी\\\

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  8. संबंधों पर समग्र दृष्टि.

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  9. बहुत सुंदर वेताल कथा

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  10. कथा के माध्यम ने एक जगह सबकुछ समेट दिया ... काश , विक्रम को पढनेवाले बेताल न बनें

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  11. सुंदर प्रस्तुति..कुछ अलग सी !

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  12. इतने कठिन विकल्प...विक्रम के जवाब का इंतज़ार .
    अनूठी / संतुलित प्रस्तुति.

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  13. गहनता से कही बात .... विक्रम बेताल का संवाद अच्छा लगा

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  14. वर्जनाएं भी रहें बनी
    न हों सीमाओं का अतिक्रमण
    खरे हों कसौटी पर
    अपनी अपनी सार्थकता ले
    bahut hi khubsurat sandesh deti rachna...

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  15. लोककथा के पात्रों द्वारा आपने समय के संबंधों को बखूबी व्याख्या की है।

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  16. अपने प्रवाह में बहा कर अवाक करती रचना..अच्छी लगी..

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  17. अब आई विक्रम की बारी. देखेंगे विक्रम क्या कहता ई या करता है?

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  18. अद्भुत ...!!

    विक्रम बैताल पर इतनी लम्बी कविता ....?
    और अभी भी क्रमश :

    आपमें एक जूनून है ....

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  19. समर्पण की सुंदर व्याख्या और चिंतन. बढ़िया कविता.

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  20. सही सवालों के सही जवाब।

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