आज तो गली-खोर आउ कोलकी घला ह जगर बगर हवय नहीं तो काल तो पटउहां घला म चढ़े ब होवय त मटिया के डर रहय ...
हप के कभू पटाव म लईका मन ल चढ़े नई देंवय ...झझक जाहि त
इचीदे अलहन हो जाहि लईका ल झांक परगे त बड़ मुशकूल हो जाथे
*** कोलकी *** मोर देखत म मोर गांव म दसन ठन रहिस ...
अब सियान ह बताही के कोलकी काबर राखय ...के काबर बर रहय ...?
कोलकी दूर घर के बाधा रेखा आय,...?
घर बनय चर कोनिया त ओरी के पानी गिरेके के अपेच आउ कोलकी
तोरो गिरही त मोरो गिरही भई ...न तोरओरी के पानी ल मैं झोंकव...
झन मोर ओरी के पानी ल तैं झोंकस ...तिवरा, राहेर, तील, बटूरा, मटर, बरी, सब निमरा जिनिस सुखावय त ढुल के अंगना म गिर घला जावय
फेर अंगना लीपा इस आउ पानी गिरगे त ओरी के पानी के झगरा ...
अभी बिहानहा अंगना ल माटी आउ गोबर म गोबरऊट के गईस मनटोरा ह
आउ ए दे पलवा पानी ह पूरा लिपाये गोब्राए ल चोचोर बोचोर कर दिस
पूरा लिपे पोखे ल कोला म लेजाके कूड़ो दिस एके घरि म ,...
आउ अब सोंच तो के ई पानी ह आन के ओरी ले गिरीस तव...?
बस एकरे बर रहय कोलकी दु घर के डेरी जेवनी, पीछू म ...
सासत बिपत म कोलकी म हरु हो ले...
कोलकी ओ अलदा आय जिंहा सुख दुःख गोठिया ले फ़सानी करा ...
हरे खटके कूद डहंक के बुलक जा ऐति ले ओती ...
लुका जा ....आउ झा कर दे ....जेला पा तेला ...
दु चार ठन तुंहुँ गिनवा देखा उकील Ashok Agrawal कुछु करे होहा त ?
आज मनखे के नियत बदलगे त कोलकी नंदागे....
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आज तो घरो घर लेनतृण , मुतरी खोली , त ओनहा बदल ***खोली ,***
त ऐना टांगे के ओ निपोर लकरी के रिकीम रिकीम के बक्सा तेमा ओंठ रंगाये के लुपुस्टिक त गाल ल लाली , पिऊंरा करे के भुरुस संग रंग ...
पहिली तो जा एक कोंटा म कलेचुप पोलखा बदल ले ... फेर ** गहना **
डोला उतरिस नवा बहुरिया खोली म खुसरिस ...बिहान दिन ...
भऊजी उठिस त पाटी पारके चुन्दी गांथ दिस ...फुंदरा पहिरा दिस ..
एक पइंत जे पुतरी, गोप, हँसुली, सूंता बिहाव के चढ़ाव म चढ़गे ते ह
नरी ले उतरबे नई करय भले चाहे डौका के नरी कटा जावय के ...?
ऐसे नहीं के डौका मेडुवा हवय ...अरे गौंटिन ह अप्पत हवय हो ...
मोर देखत सुनत जियत के किस्सा नो हय सिरतोन घटे दुःख सुना...
मुलमुला म ऊधो ददा के बिहाव होइस तरौद के सफुरा दाई बर...
ओ ह सौंख करिस गोड़ म कड़ा पहिरे के त जनम भर गोड़ चकरा के रेगिस आउ पहिरिस चांदी के आधा आधा किलो के कड़ा...
ओकरे देखा सीखी सौंख म हमर आजी दाई भूरी गौंटिन रिसदिहिन
चतुरसिंह ददा करा जिद्द करके पहिरिस गोड़ के कड़ा त ...दु दिन तो बने लागिस फेर गरु म रेंगत नई बनिस आउ जर बोखार पेल दिस ,...
फेर का बलाइन लोहार ल आउ गाड़ा डोर म फ़ांस के हेरिन कड़ा ल...
नरियरा म सरजा के नथ भानु दाई, पुष्कर दाई के सवांगा रहिस...
पुष्प लता मामी के नरी म कटवा आउ फूल संकरी ... प्रेमा दीदी के नरी म सूंता उमर भर नीक लागिस , झांझ आउ लच्छा के तो बाते अलग ...
मोर ममा दाई तिरजुगी दाई ह मरत ले दुलरी पहिरिस ....
पहिली कहाँ के लाकर के फाकर झाँपि म सब्बो गहना ल धरे रहय..
नहीं त लोहाटी संदूक रहय के लकरी के बड़े संदूक म धराय रहय ...
सब गांव के चीन्हा एक ठन गहना ...
नरियरा सरजा के नथ...?
मुलमुला सोन के सूं ता ...?
तुंहर गांव के तूँ बतावा नोनी Sonal Singh
मोर नानपन मने की लईकाई म बेटी के बिहाव म फूफू, मौसी के गहना ल पहिरा के बेटी ल भांवर पार देंवन पहिली पठऊनी ले लहुट के आवय त गहना ल बेटी उतारके जस के तस लहुटा देंवय ....
इहि किसिम के ससुरार ले चढ़ाव म गहना आवय तेला कनकन छूटे के बाद कलेचुप बहुरिया सास ल दे देंवय ....
घट गे सईता बहुरिया के त कभू नता गोता सास ससुर के त चढ़ाव के चलन ह नंदागे ....हवय त लेजा नहीं त पोठ दहेज म मांग ले ...
फेर ओकरे अल्दी बल्दी चढ़ाव चढ़ा ... बहु घला खुश बेटा घला खुस..
आज बदल गे हवय सईता त कोंहुँ कांहीं ल कुछु न देंवय न लेवय...
रातों रात बदल जाथे सोन के सुंता पुतरी नियत आउ सईता होंगे खईता
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आज नौकरी आगे घरो घर चाकरी छूटगे ...सब्बो जिनिस पटागे...
जे ....भिथिया नहीं ते ..... घोड़वा ह भरभर आँखि म दिखत हे ...
जे बहुरिया के आजा ददा बईला गाड़ी म आवय त संग म पैरा लावय...
ते मनखे के नाती सहर के नौकरी के बल म डराबल धरके BMW चढ़त हे
गांव म खपरा के छाँधी वाला घर म उमर खपगे ते हम इंग्रेजी म ...
3 BHK के बोली बोलके मुँ अईठत टेस मारत निकर जात हे काय करबे
पहिली गिनती के कुरिया रहय जइसे जइसे बर बिहाव तइसे तइसे खंजा
मोर गांव घर म बाहिर अंग जेला दिशा फड़ाका कहि देवा बंधवा के पैठू म
नहीं त सफ्फा दिन म आज ले ५० बछर पहिली तला पार पटा जावय...
रेल के लाईन म गौटियाई करत मनखे आज घलो दिख जाथे...
के स्वच्छता के किरा ह सब बेवस्था के ऐसी के तैसी कर दिस...
न हीं त बड़े बिहानियाँ सुकुवा उवत नहा भिंजों के चुलहा दग जावय ...
बिहानियाँ होवय के संझा कुन भिंजोये गईस त सुख, दुख, रिस, राँड़,
लेन देन, खंघे, बढ़े, सबके खंजा माढ़ जावय ...चाउर, दार, पिसान, गुर, घी, अथान, मुरई, बरी, बिजौरी, बर बिहाव सबके फुंचरा निकर जावय
न ही त कुछु न कुछु करके तपड़ा जावय भौंड़ू ...
लेन देन ह अब न जानी काबर अरझगे के सटर पटर होगे ...
नन्दागे जरी मुड़ी के जात ले काल लाज सरम नई रहिस ...
हमर ओ ह हक़ रहिस मांगके खाये खावय के अब सईता टूटगे...?
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मैं तो पहिरे हावव मोर भाई मोर गुरु Rahul Kumar Singh के देहे ल
बड़े जानबकार मनखे कहिस झन देबे अपन ओंनहा ल आन ल...
तोर अवगुन जाहि के नई जाहि तोर गुन ह पक्का चल देहि ...
गिना ह त कुढ़ा पर जाहि तत्का नता गोता के मोर ऊपर करजा हवय...
दाई जनम दिस , बाप ह ना, संगी मन संग दिन त मोर मया रुख नोनी मोला छांव, बहिनी मन मोर आत्मा ल रंग रूप दिन त मोर बड़े मन मान
काय काय ल गिनवाहा बबा Ravindra Sisodia आज घलो हरे खटके
बिन मांगे दूध, दही, महि, खुजरी, लसुन प्याज, कुरता, पैजामा ...
सब मिलत जात हवय ...फेर जइसनहा चलन चलत दिखत हवय ...
हमन लजावत हन लेन देन म ...फेर कभू कभू इहु ह गैंगरुआ कस दुनों कति रेंगत दिख जाथे देवइया बने मन करके देथे त धरवईया के चेत ...
कभू आने त कभू ताने रथे ।