गुरुकुल ५

# गुरुकुल ५ # पीथमपुर मेला # पद्म श्री अनुज शर्मा # रेल, सड़क निर्माण विभाग और नगर निगम # गुरुकुल ४ # वक़्त # अलविदा # विक्रम और वेताल १७ # क्षितिज # आप # विक्रम और वेताल १६ # विक्रम और वेताल १५ # यकीन 3 # परेशाँ क्यूँ है? # टहलते दरख़्त # बारिस # जन्म दिन # वोट / पात्रता # मेरा अंदाज़ # श्रद्धा # रिश्ता / मेरी माँ # विक्रम और वेताल 14 # विनम्र आग्रह २ # तेरे निशां # मेरी आवाज / दीपक # वसीयत WILL # छलावा # पुण्यतिथि # जन्मदिन # साया # मैं फ़रिश्ता हूँ? # समापन? # आत्महत्या भाग २ # आत्महत्या भाग 1 # परी / FAIRY QUEEN # विक्रम और वेताल 13 # तेरे बिन # धान के कटोरा / छत्तीसगढ़ CG # जियो तो जानूं # निर्विकार / मौन / निश्छल # ये कैसा रिश्ता है # नक्सली / वनवासी # ठगा सा # तेरी झोली में # फैसला हम पर # राजपथ # जहर / अमृत # याद # भरोसा # सत्यं शिवं सुन्दरं # सारथी / रथी भाग १ # बनूं तो क्या बनूं # कोलाबेरी डी # झूठ /आदर्श # चिराग # अगला जन्म # सादगी # गुरुकुल / गुरु ३ # विक्रम वेताल १२ # गुरुकुल/ गुरु २ # गुरुकुल / गुरु # दीवानगी # विक्रम वेताल ११ # विक्रम वेताल १०/ नमकहराम # आसक्ति infatuation # यकीन २ # राम मर्यादा पुरुषोत्तम # मौलिकता बनाम परिवर्तन २ # मौलिकता बनाम परिवर्तन 1 # तेरी यादें # मेरा विद्यालय और राष्ट्रिय पर्व # तेरा प्यार # एक ही पल में # मौत # ज़िन्दगी # विक्रम वेताल 9 # विक्रम वेताल 8 # विद्यालय 2 # विद्यालय # खेद # अनागत / नव वर्ष # गमक # जीवन # विक्रम वेताल 7 # बंजर # मैं अहंकार # पलायन # ना लिखूं # बेगाना # विक्रम और वेताल 6 # लम्हा-लम्हा # खता # बुलबुले # आदरणीय # बंद # अकलतरा सुदर्शन # विक्रम और वेताल 4 # क्षितिजा # सपने # महत्वाकांक्षा # शमअ-ए-राह # दशा # विक्रम और वेताल 3 # टूट पड़ें # राम-कृष्ण # मेरा भ्रम? # आस्था और विश्वास # विक्रम और वेताल 2 # विक्रम और वेताल # पहेली # नया द्वार # नेह # घनी छांव # फरेब # पर्यावरण # फ़साना # लक्ष्य # प्रतीक्षा # एहसास # स्पर्श # नींद # जन्मना # सबा # विनम्र आग्रह # पंथहीन # क्यों # घर-घर की कहानी # यकीन # हिंसा # दिल # सखी # उस पार # बन जाना # राजमाता कैकेयी # किनारा # शाश्वत # आह्वान # टूटती कडि़यां # बोलती बंद # मां # भेड़िया # तुम बदल गई ? # कल और आज # छत्तीसगढ़ के परंपरागत आभूषण # पल # कालजयी # नोनी

Tuesday, 4 February 2025

*** सईता ***


आज तो गली-खोर आउ कोलकी घला ह जगर बगर हवय नहीं तो काल तो पटउहां घला म चढ़े ब होवय त मटिया के डर रहय ...
हप के कभू पटाव म लईका मन ल चढ़े नई देंवय ...झझक जाहि त
इचीदे अलहन हो जाहि लईका ल झांक परगे त बड़ मुशकूल हो जाथे
कई घानी तो झांक पा गे त पुरगे.. बस होगे ...लईका खईता हो जावय
*** कोलकी *** मोर देखत म मोर गांव म दसन ठन रहिस ...
अब सियान ह बताही के कोलकी काबर राखय ...के काबर बर रहय ...?
कोलकी दूर घर के बाधा रेखा आय,...?
घर बनय चर कोनिया त ओरी के पानी गिरेके के अपेच आउ कोलकी
तोरो गिरही त मोरो गिरही भई ...न तोरओरी के पानी ल मैं झोंकव...
झन मोर ओरी के पानी ल तैं झोंकस ...तिवरा, राहेर, तील, बटूरा, मटर, बरी, सब निमरा जिनिस सुखावय त ढुल के अंगना म गिर घला जावय
फेर अंगना लीपा इस आउ पानी गिरगे त ओरी के पानी के झगरा ...
अभी बिहानहा अंगना ल माटी आउ गोबर म गोबरऊट के गईस मनटोरा ह
आउ ए दे पलवा पानी ह पूरा लिपाये गोब्राए ल चोचोर बोचोर कर दिस
पूरा लिपे पोखे ल कोला म लेजाके कूड़ो दिस एके घरि म ,...
आउ अब सोंच तो के ई पानी ह आन के ओरी ले गिरीस तव...?
बस एकरे बर रहय कोलकी दु घर के डेरी जेवनी, पीछू म ...
सासत बिपत म कोलकी म हरु हो ले...
कोलकी ओ अलदा आय जिंहा सुख दुःख गोठिया ले फ़सानी करा ...
हरे खटके कूद डहंक के बुलक जा ऐति ले ओती ...
लुका जा ....आउ झा कर दे ....जेला पा तेला ...
दु चार ठन तुंहुँ गिनवा देखा उकील Ashok Agrawal कुछु करे होहा त ?
आज मनखे के नियत बदलगे त कोलकी नंदागे....
*****
आज तो घरो घर लेनतृण , मुतरी खोली , त ओनहा बदल ***खोली ,***
त ऐना टांगे के ओ निपोर लकरी के रिकीम रिकीम के बक्सा तेमा ओंठ रंगाये के लुपुस्टिक त गाल ल लाली , पिऊंरा करे के भुरुस संग रंग ...
पहिली तो जा एक कोंटा म कलेचुप पोलखा बदल ले ... फेर ** गहना **
डोला उतरिस नवा बहुरिया खोली म खुसरिस ...बिहान दिन ...
भऊजी उठिस त पाटी पारके चुन्दी गांथ दिस ...फुंदरा पहिरा दिस ..
एक पइंत जे पुतरी, गोप, हँसुली, सूंता बिहाव के चढ़ाव म चढ़गे ते ह
नरी ले उतरबे नई करय भले चाहे डौका के नरी कटा जावय के ...?
ऐसे नहीं के डौका मेडुवा हवय ...अरे गौंटिन ह अप्पत हवय हो ...
मोर देखत सुनत जियत के किस्सा नो हय सिरतोन घटे दुःख सुना...
मुलमुला म ऊधो ददा के बिहाव होइस तरौद के सफुरा दाई बर...
ओ ह सौंख करिस गोड़ म कड़ा पहिरे के त जनम भर गोड़ चकरा के रेगिस आउ पहिरिस चांदी के आधा आधा किलो के कड़ा...
ओकरे देखा सीखी सौंख म हमर आजी दाई भूरी गौंटिन रिसदिहिन
चतुरसिंह ददा करा जिद्द करके पहिरिस गोड़ के कड़ा त ...दु दिन तो बने लागिस फेर गरु म रेंगत नई बनिस आउ जर बोखार पेल दिस ,...
फेर का बलाइन लोहार ल आउ गाड़ा डोर म फ़ांस के हेरिन कड़ा ल...
नरियरा म सरजा के नथ भानु दाई, पुष्कर दाई के सवांगा रहिस...
पुष्प लता मामी के नरी म कटवा आउ फूल संकरी ... प्रेमा दीदी के नरी म सूंता उमर भर नीक लागिस , झांझ आउ लच्छा के तो बाते अलग ...
मोर ममा दाई तिरजुगी दाई ह मरत ले दुलरी पहिरिस ....
पहिली कहाँ के लाकर के फाकर झाँपि म सब्बो गहना ल धरे रहय..
नहीं त लोहाटी संदूक रहय के लकरी के बड़े संदूक म धराय रहय ...
सब गांव के चीन्हा एक ठन गहना ...
नरियरा सरजा के नथ...?
मुलमुला सोन के सूं ता ...?
तुंहर गांव के तूँ बतावा नोनी Sonal Singh
मोर नानपन मने की लईकाई म बेटी के बिहाव म फूफू, मौसी के गहना ल पहिरा के बेटी ल भांवर पार देंवन पहिली पठऊनी ले लहुट के आवय त गहना ल बेटी उतारके जस के तस लहुटा देंवय ....
इहि किसिम के ससुरार ले चढ़ाव म गहना आवय तेला कनकन छूटे के बाद कलेचुप बहुरिया सास ल दे देंवय ....
घट गे सईता बहुरिया के त कभू नता गोता सास ससुर के त चढ़ाव के चलन ह नंदागे ....हवय त लेजा नहीं त पोठ दहेज म मांग ले ...
फेर ओकरे अल्दी बल्दी चढ़ाव चढ़ा ... बहु घला खुश बेटा घला खुस..
आज बदल गे हवय सईता त कोंहुँ कांहीं ल कुछु न देंवय न लेवय...
रातों रात बदल जाथे सोन के सुंता पुतरी नियत आउ सईता होंगे खईता
*****
आज नौकरी आगे घरो घर चाकरी छूटगे ...सब्बो जिनिस पटागे...
जे ....भिथिया नहीं ते ..... घोड़वा ह भरभर आँखि म दिखत हे ...
जे बहुरिया के आजा ददा बईला गाड़ी म आवय त संग म पैरा लावय...
ते मनखे के नाती सहर के नौकरी के बल म डराबल धरके BMW चढ़त हे
गांव म खपरा के छाँधी वाला घर म उमर खपगे ते हम इंग्रेजी म ...
3 BHK के बोली बोलके मुँ अईठत टेस मारत निकर जात हे काय करबे
पहिली गिनती के कुरिया रहय जइसे जइसे बर बिहाव तइसे तइसे खंजा
मोर गांव घर म बाहिर अंग जेला दिशा फड़ाका कहि देवा बंधवा के पैठू म
नहीं त सफ्फा दिन म आज ले ५० बछर पहिली तला पार पटा जावय...
रेल के लाईन म गौटियाई करत मनखे आज घलो दिख जाथे...
के स्वच्छता के किरा ह सब बेवस्था के ऐसी के तैसी कर दिस...
न हीं त बड़े बिहानियाँ सुकुवा उवत नहा भिंजों के चुलहा दग जावय ...
बिहानियाँ होवय के संझा कुन भिंजोये गईस त सुख, दुख, रिस, राँड़,
लेन देन, खंघे, बढ़े, सबके खंजा माढ़ जावय ...चाउर, दार, पिसान, गुर, घी, अथान, मुरई, बरी, बिजौरी, बर बिहाव सबके फुंचरा निकर जावय
न ही त कुछु न कुछु करके तपड़ा जावय भौंड़ू ...
लेन देन ह अब न जानी काबर अरझगे के सटर पटर होगे ...
नन्दागे जरी मुड़ी के जात ले काल लाज सरम नई रहिस ...
हमर ओ ह हक़ रहिस मांगके खाये खावय के अब सईता टूटगे...?
*****
मैं तो पहिरे हावव मोर भाई मोर गुरु Rahul Kumar Singh के देहे ल
बड़े जानबकार मनखे कहिस झन देबे अपन ओंनहा ल आन ल...
तोर अवगुन जाहि के नई जाहि तोर गुन ह पक्का चल देहि ...
गिना ह त कुढ़ा पर जाहि तत्का नता गोता के मोर ऊपर करजा हवय...
दाई जनम दिस , बाप ह ना, संगी मन संग दिन त मोर मया रुख नोनी मोला छांव, बहिनी मन मोर आत्मा ल रंग रूप दिन त मोर बड़े मन मान
काय काय ल गिनवाहा बबा Ravindra Sisodia आज घलो हरे खटके
बिन मांगे दूध, दही, महि, खुजरी, लसुन प्याज, कुरता, पैजामा ...
सब मिलत जात हवय ...फेर जइसनहा चलन चलत दिखत हवय ...
हमन लजावत हन लेन देन म ...फेर कभू कभू इहु ह गैंगरुआ कस दुनों कति रेंगत दिख जाथे देवइया बने मन करके देथे त धरवईया के चेत ...
कभू आने त कभू ताने रथे ।
अब माना के झन माना हो राम सबके ***** सईता ***** सिरागे ?

Swadha Sharma नोनी पैलगी


04 मई 1978 को मैं युवा था तब उमंग थी एक जुनून था
निकला था शहर को स्वर्ग बनाने
तब गीत के बोल थे
चल संगी चल जाबो गांव
रथिया पहागे रे, गरुआ ढ़ीलागे
कोकड़ा लगाये हवय दांव...
चल संगी चल जाबो गांव...
संग म संगवारी रे ...संगी मोटियारी...
लाली लाली लुगरा ... पहिरे हवय बारी
सावन के रिमिर झिमिर ...भादों के अंधियारी
लपर झपर जइसे करय... भांटों करा सारी...
कइसे तोर सुरता भुलांव ....
चल संगी चल जाबो गांव....
गुरुदेव Rahul Kumar Singh
मैं गांव से शहर आया और शहर ने निगल लिया मेरी जवानी और परिवार
बीत गए 1978 से 2025 के बीच 47 साल ...
तब थकाहारा बूढा रामा शहर से गांव लौटते आंसुओं से उसी राह ..
न गा पाया ... न गुनगुनाने की चाह रही ...
आंखों के आंसू कह गये...
चल संगी चल सहर ले गांव
उमर पहागे रे , जांगर सिरागे
लुकड़ु फांदा कस लगे दांव...
चल संगी चल सहर ले गांव...
मोर ख़िरगे संगवारी रे, ... तोर मयारू महतारी ...
सरकगे लाली लुगरा ... बेंचागे लूरकी आउ बारी ...
आँखि म झूलत हवय... छूटे अंगना दुवारी...
अगोरत होही काय रे ... कोला आउ बारी
जाते छाती ल जुड़वांव...
चल संगी चल सहर ले गांव...
बस यूं ही बैठे-ठाले
28 जनवरी 2025
May be an image of 1 person, fishing and body of water
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04, 05, 1978 को यह छत्तीसगढ़ी गीत लिखा गया था ।


यूं ही एक आध बार कहीं सुनाया , गीत याद रहते ही नहीं ।
आज अंधियारी पाठ पू मा शा में बस गुनगुना बैठा ...
मेरे छोटे भाई Bhawani Pandey ने कब इसे घर लिया आभार


Monday, 3 February 2025

***** हँड़ियरा *****


छिति जल पावक गगन समीरा पंच तत्व यह रचित शरीरा ।।
भुंइयाँ , पानी , आगी , अगास , आउ हवा ले ए हमर चोला बने हवय
फेर हँड़िया के महत्तम अपरंपार हवय
पूछें बबा Ravindra Sisodia ल जुन्ना समे ले चलागत हवय...
दुख परगे त घोड़ा, रेल, सरेहन मनखे , चिट्ठी पत्री, साईकिल म सोर देंवय
जिंहा जिंहा कुटुम, परवार, निजी नता , गोत, मितान, गुरु, बंश हवय तिहां
कुल... गोत्र... कुटुम्ब... बंश ...सब ल गुन पाना बड़ मुशकूल हवय ,...
साँझर-मिंझर कर डारथन त समझे समझाए म थोरकन अलकर जाथे
तभो हमर घर परिवार म हड़िया के सुग्घर बेवस्था हवय...
हँड़िया मांढ़ जाथे कुछु खटकगे मन म त घर गोसाईंन बना लेथे निपटारा
हंडियां होगे अलग सलग त तोर सुख-दुःख तोर ओरी परछी के छांव...
त फेर पूरा कुटुम , परिवार, बंश, गोत्र, के सोरी डोरी तोर खांध म..
इहि एके कुटुम म कभू मर हर जाथें त हड़िया निकारे के बेवस्था हवय...
ओहि कुटुम के छोटे बड़े नता के चिन्हारी होथे सुरु दिन मुर्दावाली म
कोंन मुड़ मुड़ाही काला दाग देहे बर हवय ....
अलकर सासत म बेवस्था बनथे बिगड़थे घलो ...कोंहुँ लछिमन के डाँड़ नई खिंचाए हवय के परे रहेन दे मुरदा घर म चार दिन ...
गांव घर के मुर्दा गोतियार उठाथे ...
***
हँड़िया माटी के ... न सोन के न बने रहय चांदी के ....
कोंहुँ जगा के माटी के हँड़िया नई बन जावय न सोज्झे म बन जावय
माटी ल छांटके लाये बर परथे... फेर गड्ढा बनाके फूलो ...फूलगे त कचरके के खुंद... खुंद डारे त भीतरी के माटी-गोंटि मन ल निमार हेर
फेर संथाये दे मन भर ...पाग आगे त चाक म चढ़ाथे ...चाक किंदरगे
अब कोहार पेंदी ले सुरु करिस बनाये बर हँड़िया .... बनगे ? माढ़गे ?
ठोंकिस ... ठठाईस ... फेर ओला आवा म चढ़ाईस ...
रंग ह ओकर करिया के करिया रहिगे काबर हम का जानी ...
तूं बतावां गुरु Rahul Kumar Singh ए खोदल के हेरेके तुंहर बुता आय
कब बनिस ? कोन बनवाइस ? ए सब ज्ञान ध्यान तुंहर बांटा ....
महतारी कहिस हम बीसा लायेंन हमर पादा चुकागे ...
***
सुरता हवय एक ठन गोठ-बात
रामफल ...!
हौ मालिक !
होगे भोजन भजन ?
नहीं सरकार काली बंडा कुकुर बुलक दिस फ़रिका ल ढकेल के ...
छू दिस हँड़िया ल ...त छुआगे बस होगे उपास ...
ए दे आज झलमलहीन जाहि बजार त लाही हँड़िया त चुरहि
चल का होइस मोर संग चल बखरी उहें खा लेबे ...जा चेता दे घर म
ह जी निरमला के ढाई ...देख तो रामफल ल कुछु देवा तो...खाये बर
बड़का दाई पैलगी ओ ...
खुश र बेटा...
रामफल मोर हाथ ह फदके हवय कजरहा म ...तैं जा भोजहर म
हँड़िया म हवय बासी ओला सैकमी म हेर लेबे ...
ओई मेर करईहा म चेंच भाजी होही मलिया म ले लेबे
आउ सुन लाल मिरचा के अथान हवय ओई मेर ठेकवा म नून घलो हवय
आउ सिंका म दही टंगाये हे जमोये रहे ग हेर ले
ए दे देख तो अलदा म गोंदली घला हवय ...
नई छुवाइस कुछु न फ़ेंकाइस हँड़िया ....
त कथें मनखे *** में ओकर घर के हँड़िया के बासी हेरके खाथव ***
***
दोख बहुरिया घर म गोड़ मढ़ाईस बिहानियाँ ...चार पहर रात कटिस...
दाई-ददा, संगी संगवारी , बहिनी, नता गोता उमर भर नई पढ़ा सकिन
ए बहदा डौकी एके रात म सारे मेडुवा टुरा ल पूरा मन्तरा दे दिस ...
फेर बिहानियाँ डौकी संग सरकारी गोड़ बोजवा खोली म चल दिस
१ BHK एक B भिखमंगा H हगरी K खोली ...
न सुते के जगा न ...के बस मनमुख्खी रहन बसन बर भाग पराईस ..
माढ़गे अलग हँड़िया चार घर आड़ म अब सब्बो बुता अपन हिल्ल्ले ...
चूल्हा अलग गाड़ ले के माड़गे अलग हँड़िया होगे अलग बेवस्था ...
हमर गांव म ई रेवाज हवय जेकर मन नई आइस ...बताइस त बताइस
नई खंजा माढिस त कलेचुप परछी म के ढेंकी कुरिया म माड़गे हँड़िया
अब सब नता गोता ले सलग अलग बात बेवहार सुरु हो जाथे ...
छट्ठी , मरनी, हरनी, छेवारी, बिहाव, बात बतंगड़ सब ओकर कपार
महीना म ओनहा घला बदले बर परिस त घर के डौका आगि सुलगाही
नहीं त ओई छूत बीटार म रांध खा झेल अपन कुकरम के झेल ल ...
***
गांव म हँड़िया माढ़े के सबले बड़े कारन देखे बर मिलिस ...
एक लम्बर म बड़े भाई के मनमुख्खी एकंगू चीज बस सक्लाई
दूसर छोटे भाई के घर म रहिके दोगलाई ...
तीसर देरानी जेठानी के हिजगा ऊपर हिजगा ,,...
बाप दाई के एकंगू कोंहुँ लईका बर मया ...
ससुरार के घेरी बेरि बेटी के कान फुंकाई...
कभू कभू बहिनी ,फूफू के अनठेहरि बात बेवहार ...
दमांद घलो ह बड़ बिलाई कस मालिक के आँखि फूटे ल अगोरत रथे
मंद मउहा संग जुआ के गोठ म तो लाठी चल जाथे
एक ठन गोठ ल बताए म लाज घलो लागथे ...ए डौकी लफंदर ह ...
भाई जी Udaypratap Singh तूं कुछु चार डाँड़ बताहा हो ...
के चुपे चुप घिरी मिटकी मारे सुते के ओढ़र करिहा परोसी कस
उकील साहेब Ashok Agrawal जब कभू घर म चलत चलात म
चुलहा अलग सिपचगे ओमा दगा दिस आगि नवा बहुरिया के कोंहुँ
समझ लेवा घर के सियान Arun Rana के छाती म मढ़ा दिस गोड़
हालगे धारन अब भगवान मालिक परमात्मा सहाय ...
भितरहिंन लच्छमी के रूप होथे जेकर परसे म सब दल रथें ...
चुलहा अलग ...हँड़िया के सेवाद अलग ...हमर तुंहर अन्तस अलग
अब तो चलन होगे....
मोर कुकुर...मोर बेटी-बेटा... मोर दूल्हा ...
दुआरी म कुकुर करा सावधान ...
बस यूं ही बैठे-ठाले
20 जनवरी 2025
एकल और संयुक्त घरो की याद में
एक जमाना था जब सुबह चुलहा जला तो रात ढल गई

***-उढ़री ***


मन उढ़रिस तोर नेम म, कब तन उढ़रिस तोर देह ।
चित्त उढ़रिस तोर चेत म, भगति चढ़िस चित गात ।।
संस्कृत ह महतारी आय काय ? तेकर लागमानी होही छत्तीसगढ़ी ह ...
.तेकरे सेतिर ......उढ़ा ले उढ़री बनिस होही ...?
बड़े बड़े गियानी मन खोजा आउ तमड़ा के उढ़ा कइसे उदगरिस ?
बेटी , दाई, बहिनी, बड़का दाई, काकी, मामी, भऊजी, बहुरिया, ....
लमात जा त नता ऊपर नता गिनत जोरत जा ओंघासी आ जाहि ...
न सिराये हवय न थिरावय एकर लम्मा पातर डोरी न तार न बंधना ...
गंथना आय माँचा के जेमा गोड़ कोती ओंचावन नई आय ...
तेकरे सेतिर सब गांव ह साँझर मिंझर हवय ...
आरसमेटा अमोरा ले हमर दु झन आजी दाई मन मुलमुला ल अपन कोंख दिन त हमर बंस बढ़े हवय, इहि किसिम के जगमहन्त ले छोटे बखरी के अकलतरीहा बबा बर अपन समे के सरग के अप्सरा कस सुग्घर दाई बंस के तरन तारन बर बिहाव करके लाये रहिंन ...
महतारी आउ बेटी के हाना ह कूकरी आउ ओकर अंड़वा कस आय ...
पहिली बेटी जनमिस के दाई हमर मुड़ के देंवता नई बताए सकय ...
अरे उकील Ashok Agrawal घलो के कोरट के किताब म नई मिलय
कभू पूछ देखींन बड़े चोंखर्रा किसान हमर छोटे भाई Vp Singh
ह जी पहिली गहुँ के दाना आइस के गहुँ के पेंड़...?
ए ह बबा Ravindra Sisodia के जनउला आय आउ नरियरा के शशिभूषण भाई के लुकड़ु फांदा आय , फसड़गे त पुरगे ...
भीषम अपन बल म उठा लाइस अम्बे, अम्बा, आउ अम्बालिका ल
अर्जुन घलो ह कोंन नोनी ल भगवार के ले आने रहिस द्वापर म...
मना रुजी मान मनौव्वल म भीषम के ददा धर लाइस कइना ल
नारद मुनि पार्वती जी के मन ल रेंगा दिन भोलेनाथ बर फेर काय बस मन रमगे महादेव जी बर सुरु होगये रहिस तपईशा उपास, धास...
मीरा बाई के जोग माढ़गे कृष्ण म बस मन उढ़रगे बनगे जोगनी...
सूरदास के चित्त उढ़रगे बंशी बाले बर त तो कहिस बाँह छुड़ाए जात हो निबल जानके मोहि, हिरदय से जब जाओगे मरद मानोगे तोई ।।
*****
थोरकन गुन देखी तो एकंगू मया कोंन कोंन करिंन ....
फेर ई प्रेम म काम ह बोजाये हवय के काम ले अल्लग अन्तस् के परेम ?
कोंन मेर देंह.... कोंन मेर चित्त .....कोंन मेर काम..... कोंन मेर अन्तस्...
मन, चित्त, अन्तस् कोंहुँ मेर उढ़र जाहि ? काय ठिकाना हवय ....
गुरु Rahul Kumar Singh कथें के टुरी के मन ह बड़ पोठ होथे ...!
आउ टुरा मन तो धकर पकर, लकर धकर होथे !
माई लोग एक पईत गुन लिस त जी के छूटत ले बस ओकरेच आय ...
देबी, देंवता, यक्ष, किन्नर, नर, रिषि, मुनि, नांग कन्या, राच्छस ...
Udaypratap Singh भाई संग चरगोड़िया गाड़ी म बैठे रहेन त बताइस
नर्मदा-जोहिला-सोन के मया के कथा आँखि ल दबाडब्वा दिस...
मोहागे त तो उढ़रगे जोहिला सोन संग ...गुन तो कतका पिराइस होही नर्मदा ल के संग रेंगत संग बोहात एके छीन म लहुट दिस दिशा ल ...
कहिस होही मन म जोहिला ल जा बछदा सोन संग राजपाठ कर ...
हीरक के नई निहारिस एक पईत पिछ घुंच्चू लहुटीस त ...
*****
नियम धरम हवय काय सब काम बुता के मोला अइसनह लागथे
आगू म लगिस नव त उढ़ा ह नवोढ़ा म बदलगे अरथ....
पीछू म लगगे रि त बनगे उढ़रि त अरथ कहाँ के कहाँ चल दिस ...
मोरे महतारी ह आउ मोरे जनम देवइया बाप पूरा जिनगी सासत बिपत म .
मन, बचन, करम संग आखिरी सांस संग रहिस फेर ....
थोरकन थोरेच कन फरक परगे ....
अपन जिनगी ...अपन सांस...अपन स्वारथ.... बर निकरगे घर ले
बस पूछ नई पाइस बता नई पाइस संकोच, लाज, हेंकराही, अजम
बस धर दिन कपार म बद्दी ....
काबर कथें ***** ऊढरि *****
जनम भर संताप ....सहिस किस्सा बनगे ...
बस यूं ही बैठे-ठाले
18 जनवरी 2025
समर्पित मेरी माता बहनों को