गुरुकुल ५

# गुरुकुल ५ # पीथमपुर मेला # पद्म श्री अनुज शर्मा # रेल, सड़क निर्माण विभाग और नगर निगम # गुरुकुल ४ # वक़्त # अलविदा # विक्रम और वेताल १७ # क्षितिज # आप # विक्रम और वेताल १६ # विक्रम और वेताल १५ # यकीन 3 # परेशाँ क्यूँ है? # टहलते दरख़्त # बारिस # जन्म दिन # वोट / पात्रता # मेरा अंदाज़ # श्रद्धा # रिश्ता / मेरी माँ # विक्रम और वेताल 14 # विनम्र आग्रह २ # तेरे निशां # मेरी आवाज / दीपक # वसीयत WILL # छलावा # पुण्यतिथि # जन्मदिन # साया # मैं फ़रिश्ता हूँ? # समापन? # आत्महत्या भाग २ # आत्महत्या भाग 1 # परी / FAIRY QUEEN # विक्रम और वेताल 13 # तेरे बिन # धान के कटोरा / छत्तीसगढ़ CG # जियो तो जानूं # निर्विकार / मौन / निश्छल # ये कैसा रिश्ता है # नक्सली / वनवासी # ठगा सा # तेरी झोली में # फैसला हम पर # राजपथ # जहर / अमृत # याद # भरोसा # सत्यं शिवं सुन्दरं # सारथी / रथी भाग १ # बनूं तो क्या बनूं # कोलाबेरी डी # झूठ /आदर्श # चिराग # अगला जन्म # सादगी # गुरुकुल / गुरु ३ # विक्रम वेताल १२ # गुरुकुल/ गुरु २ # गुरुकुल / गुरु # दीवानगी # विक्रम वेताल ११ # विक्रम वेताल १०/ नमकहराम # आसक्ति infatuation # यकीन २ # राम मर्यादा पुरुषोत्तम # मौलिकता बनाम परिवर्तन २ # मौलिकता बनाम परिवर्तन 1 # तेरी यादें # मेरा विद्यालय और राष्ट्रिय पर्व # तेरा प्यार # एक ही पल में # मौत # ज़िन्दगी # विक्रम वेताल 9 # विक्रम वेताल 8 # विद्यालय 2 # विद्यालय # खेद # अनागत / नव वर्ष # गमक # जीवन # विक्रम वेताल 7 # बंजर # मैं अहंकार # पलायन # ना लिखूं # बेगाना # विक्रम और वेताल 6 # लम्हा-लम्हा # खता # बुलबुले # आदरणीय # बंद # अकलतरा सुदर्शन # विक्रम और वेताल 4 # क्षितिजा # सपने # महत्वाकांक्षा # शमअ-ए-राह # दशा # विक्रम और वेताल 3 # टूट पड़ें # राम-कृष्ण # मेरा भ्रम? # आस्था और विश्वास # विक्रम और वेताल 2 # विक्रम और वेताल # पहेली # नया द्वार # नेह # घनी छांव # फरेब # पर्यावरण # फ़साना # लक्ष्य # प्रतीक्षा # एहसास # स्पर्श # नींद # जन्मना # सबा # विनम्र आग्रह # पंथहीन # क्यों # घर-घर की कहानी # यकीन # हिंसा # दिल # सखी # उस पार # बन जाना # राजमाता कैकेयी # किनारा # शाश्वत # आह्वान # टूटती कडि़यां # बोलती बंद # मां # भेड़िया # तुम बदल गई ? # कल और आज # छत्तीसगढ़ के परंपरागत आभूषण # पल # कालजयी # नोनी

Saturday 30 March 2024

***** भितरहीन आउ खवईया *****

बड़ महात्तम आय खवईया के जे मानिस ते जानिस

आज होरी म गुलाल लगिस गाल आउ कपार म ..…
आउ रंग ह उबकगे अन्तस् ले छाती म ..आँखि के कोर ह चुचुवागे
दु महीना पहिली ले बनत रहिस फांदा ...देला बलाबो ...देला घलो
सब सियान के सुरता करेन , कईसे मया करै बबा हमर...
लईका ल तो बबा ह बिगारथे... नाती कुछु गलती करबेच नई करय
कभू बद्दी देहे चल देहे त तोर सात पुरखा तरगे ...
भोलेनाथ ल बिनोबे आज ले कभू नई जावव कोकरो घर बद्दी देहे 
लईकाई म पागे कोकरो सइकिल त ..खेचेक खेचेक डंडी के भीतरी ले हाफ पईडिल म गोड़बोजवा चलिस गाड़ी, फ्रीभील ह छोंड़ देवय
नाँहीं त सटकगे त दुनो पार रेंगे धर लिस सइकिल ...होगे बुता

पहिली कहाँ खाई खजेना .... हटरी म गुलगुल भजिया, बरा, मुर्रा के लाड़ू, करी के लाड़ू, चना फुटेना, आउ मेला म जिलेबी, आलू के  गुलाब जामुन, चना चरपटी बस होगे लइकईँ के खंजा...
फेर कभू कभार कोंहुँ मर हरगे पर गे छुट्टी त ....
इंदिरा उदीयान के चार, मकोईया गड़ेन दे कांटा हाथ गोड़ म फेर..
अमरताल भांठा के बोइर, बनाहील, खटोला, के गंगा अमली,
आउ गिरगे पानी त पूरेनहा, दोखही, पर्रि, रामसागर , लख्खी के धार म चढ़त मछरी ....बाम्हन घला केंवट के सेतिर घर दिस ...
फुर फुंदी उड़ातहे अध्धर ले धरे जानिस तेकर निशाना उच्चे...
केकरा, बिछी के डाढ़ा म डोरी बांध डारिस ते बड़े दाजुगर आय...

जेहर ए डारि ले ओ डारी बेंदरा कस कूद दिस ते ह हमर जोंडी...
ठूठी बीड़ी बबा के कलेचुप धर लाइस आउ संग म दु ठन सईघो बीड़ी संग माचिस के कांडी आउ माचिस फोफि के पट्टी ...
ओकरे कहे म चुरय अमली पेंड़ के निकरे कौआ अंडवा....
बारा बतर के रहय लइकाईँ के फांदा...
हपट गयेन कभू त माड़ी कोहनी छोलागे त संगी मुत दिस...
आज तो सगे बियाये लईका कटाय म नई मुतय .ओरजन घट जाहि 
नाक फुटगे नून पाल , डंडा पचरंगा, ईभ्भा खेलत म त सूंघ ले गोबर आज कोंहुँ ल सुंघों दे त सीधा परलोक धर लेहि ।

कोंहुँ ले बुलके आइस लईका *खवईया* के पहिली दिख जावय
खवईया***** मुखिया मुख सो चाहिए, खान - पान सो एक ।
                     पालय पोषय सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ।।
जेकर अन्न पाये के बाद आन के थारी लगय ....
आज घलो मरनी-हरनी, बर-बिहाव के पूजा-पाठ म हवय सियान
ओहि ल ओकरे बर भितरहीन हेरही पहिली थारी...
जुन्ना दिन म पोतिया पहिर के रांधय दार भात ...
बटलोही म चुरय दार, त कुंड़ेरा म दूध , करिया हंडिया म भात
खसखस लोहाटी करईहा म चुरय साग ...त कोन बीमार परय ?
आजो कथें हमर दुआरी ओसारी म ....
महतारी के परसे आउ मघा के बरसे ... बिस्तुर नई जावय ...
आज काल बदलगे भितरहीन ...रान्धथे बिन मया दया के
कोई नेंग चार नई ये कांही श्रद्धा नई ए ...
फुस ले करिस चूर गे, फोस ले करिस उतरगे...
ओलिया दिस फिरिज़ म खा जुड़ाये ल ...पर बेमार...
पहिली तात तात भात, निकरत हे धुआं महकत हे साग
दूध, दही, गुर, घी, अथान, चटनी, बरी, बिजौरी, 
मढ़ाये हवय पठेरा म कौंरा सिराये नई पाइस परोसा होगे ।।

बबा Ravindra Sisodia कहत रहिस नंदागे सब ....
आउ आगू नई सुरता राखहिं काय, 
अलोप हो जाहि बाती कस लव सबो नियम धरम आउ मया...

बस यूं ही बैठे - ठाले
होली की शाम सबको सादर प्रणाम

" अगास दिया ,,

चूल्हा के आगी आय मोर महतारी 
कभू-कभू लागथे भौरी मारत पानी के लहरा आय दाई
फेर कोहुँ दिन ओकर छाती ह भुंइया कस पसर जावय
ददा बताइस तोर महतारी पवन आय बगर जाथे सब जगा
दीदी कहिस हमर महतारी अगास आय

दाई लइकई म चित्त सुत जावय आउ गोड़ म फ़ांस लय गोड़
ऐढ़ा-बेढ़ा फंसगे हमर गोड़, आउ अध्धर होगे चुतर
डेरी हाथ जेवनी म आउ जेवनी हाथ डेरी म धरागे

फेर कभू-कभू माताराम बईठ जाय खटिया के पाटी म
आउ फ़ांस देवय दुनों अपन गोड़ के आजू-बाजू
एहु म फेर हेल्ला  पर जाय हमर दुनों के चुतर
हवा खुल जावय पेट हरू हो जावय, गोड़ के गुझियांये 
सकलाय जतका नस रहय ते मन पट पट ले माढ़ जाय
ई खेल आउ खेलवारी म रहीस हमर बैज्ञानिकता
ओइ गीत मोर महतारी के आजो घलो किंदरत हे मन म

***** झुलिया झूल कदम के फूल
बाहरत-बाहरत कौड़ी पायेन ।।
          एहि कौड़ी के नुने बिसाएंन
ओहि  नुने ल गईया खवाएंन ।।
           इहि गईया ल गयेन चरायेंन
ओहि गईंया ल गयेन धनायेंन ।।
            इहि गईया के दुधे दुहायेंन
ओहि दूध के खीर पकायेंन ।।
           आ जा राजा मुहूं ल खोल
ए दे खीर  गुप्पूक ले ।।

माताराम गुड़ेरिया चिरई कस फुर्र ले उड़ियागे
सोचत हावव अगास म कोन मेर होही
अगास म देखथौं चोर आउ खटिया (सप्तर्षि) के दुरिहा म
***अगास दिया *** बन रब्बक ले चमकत मोर महतारी 
गीत सुनावत हे मोर बहिनी सुनीता ल

***अटकन बटकन दही चटाकन
लऊहा लाटा बनके कांटा
    तुहूर तुहूर पानी आवय
सावन म करेला फुटय
     चारों ( पांचों ) बेटी गंगा गईँन
गंगा ले गोदावरी
     पक्का पक्का आमा खाईन
आमा के डारा टूटगे
        भरे कटोरा फुटगे

काबर भरे कटोरा फुटगे ?
कईसे भरे कटोरा फुटगे ??

आश्विन कृष्णपक्ष तृतीया, पितृ पक्ष
12 सितम्बर 2022

ये कहानी समर्पित माताओं कोमोर महतारी ..… बड़ सुग्घर

कारी आउ गोंदील (दाई-बेटा ) दुनों झन शिवरीनारायण मेला देखे गईन । सरकस, सिनेमा, बरतन दुकान, रेहटा,
जलेबी, चना चरपटी, सड़इल, बताशा, साइकिल दुकान, मौत कुंआ, जोक्कर,कठपुतरी बुलत-बुलत थकगे दाई बेटा । बाढ़त गइस मनसे दूरगँछि कस । रेलम-पेल मंदिर म ठेलागे मनसे ऊपर मनसे छूट गईस सांथ दाई बेटा के हाथ लक्ष्मीनारायण महाराज के गोड़ पखारे के चक्कर म ।।
भगवान के दर्शन के लालसा म भुलागे महतारी बेटा ल ।
बाह रे माया तोर मालिक महतारी कल्लागे अपन दुच्छा हाथ देखके ।। छूटगे कारी के तोलगी लइका के हाथ ले 

पहिली पइंत छुटिस अंचरा दाई के अध्धर होंगे लइका
कोरा सुन्ना लागिस कारी ल, मन भुकुर भुकुर होंगे ।
गोंदील हदरगे अकेल्ला होके, चारों मुड़ा अंधियार होगे ।
दाई ओ दाई ओ दाई.........चारों कोती मातगे पीरा...
फेर मेला के हल्ला गुल्ला आउ धक्का पेल बड़े परगे 
गोंदील के रोवइ कल्लाई के ऊपर ,,,, देख डारिस पुजारी
लइका के आँखी के आंसू आउ मन के पीरा ...…. ।

पुजारी हपके बलाइस मेला के कारकुन ल ... करवादिस
हांका । बाजगे भोंपू । लइका गँवागे मंदिर म पुजारी करा हवय देखा भाई बहिनी मन आवा ले जावा । ऐति बिपतियागे चार मनसे लइका संग ,,,  तोर काय नाम आय
गोंदील, कोन गांव म रथस ...नई जानव, काकर संग आय हस.... दाई संग , काय नाम आय ...कारी, कइसनहा दिखथे .... मोर दाई बड़ सुग्घर हे । मोर महतारी बड़ सुग्घर ..हांका घनघनागे सुना हो बहिनी मन सुना जी...

जुरगे मेला म महतारी ...सोन चांदी म लदाय , किसिम किसिम के लुगरा , हांका परतगे महतारी जुरतगे ...
मौका मिलगे बहिनी दाई मन ल बताय के ...देख मोर 
सोन के पुतरी, कलदार, सूंता, कटवा, मरीच दाना, गल पटिया, गुलु बन्द, हाथ के हर्रेया, गुजरी, ककनी, कड़ा, कंगन, नांग मोरी, आउ हालगे बनुरिया, गोड के लच्छा , पायजेब, तोड़ा, पैरी, झांझ, सांटी, गुलशन पट्टी बाजगे गोड म, एक से एक  बहुरिया कुढ़ परगे, रद्दा मूंदागे...
आँखी थिरके धरिस भगवान के रचना देखके........।
कस बाबू एमा कोन ह आय तोर महतारी...…..?
अपन ले अपन सुग्घर माई लोग ...फेर नई फरक परिस 
गोंदील ल । अधीर होगे । दाई मोर आँखी म नई दिखिस ... धुँधरागे आँखी मनसे के फुदका उड़ाई म ।

थकगे सुरुज घला  बुड़ती म चले बर धर लिस पच्छिम म
मनसे मन घलो धीरे-धीरे छटागे ,,, रोवाई घला थिरागे
फेर छाती के सुसकाई जस के तस बने रहीस .....
दिन बुड़ती होगे, बरदी लहुटे बर धर लिस , गरुआ के खुरी के धुर्रा बगर के माघी मेला म , इहि ओहरती बेरा म
लक्ष्मीनारायण मंदिर के कलश ले लहुटती सुरुज के अंजोर परिस कारी के मुंह म गोंदील के आँखी चमकगे

कलपत अल्लर परे कारी गोंदील ल पाके अब्बक होगे
न रोवत बनिस न बनिस सुसकत ,,,, भरगे आंसू
फुदका म सनाय चुन्दी, उघरा मुंड, फाटे रेशम कोर के लुगरा, हाथ म पटा, बीरबीट कारी ,,,, जइसे नाव तइसे मुंह
गोंदील दऊंडगे महतारी बर हपट्त परत ....कूद परिस 
पुजारी अकबका गईस वाह रे मोर सुग्घर कारी
बाह लक्ष्मीनारायण महाराज तोर महतारी के सुग्घराई
धन हस मालिक , धन हे तोर रचना महतारी के

बाह रे गोंदील आउ तोर सबले सुग्घर महतारी कारी
हदरगे दाई हदरगे बेटा महानदी के निर्मल पानी म 
पुन्नी के चंदा घलो सुरता करथे हर साल
कारी आउ गोंदील के किस्सा 

बस यूं ही बैठे-ठाले
माताराम की याद में Ashok Tiwari भाई साहब

Friday 22 March 2024

# विनिमय #

1976 में विभिन्न जिलों और BTI से स्थानांतरण हुआ
इस कुचक्र में बिलासपुर संभाग भी प्रभावित हुआ ।
मेरे सहित लगभग 600 प्रशिक्षार्थी शिक्षक बस्तर आये ।
दंतेवाड़ा आदर्श बहुउद्देश्यीय विद्यालय में सीखने का अवसर मिला, बेहतरीन छात्रों और आदर्श गुणी शिक्षकों के सानिध्य ने हमें भी लायक बना दिया ।

पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन पश्चात क्षुधा पूर्ति हेतु बाजार जाते थे वहां मधुकर पांडेय जी से मुलाकात हुई ।।
उनके पास मात्र दो जिनिस मिलते थे ....
नम्बर एक में माखुर और नम्बर दो में मिरचा...
सामने तखरी लगी होती थी बिक्रेता के सामान के मापी के लिए जिसमें वो अपनी वस्तुएं तौल जाते थे ।
यदा कदा अनहेजरा ( लगभग ) डाल दिया करते थे , बगल में बिछे बोरी पर और उन्हें मधुकर जी तम्बाखू या मिरचा दे देते थे, यदा-कदा कुछ रकम भी .....

***** हमने कभी किसी ग्राहक से उनका झगड़ा कभी न सुना न देखा .... जबकि वो अपना सभी सामान कभी तौलकर नहीं देते थे, हाथ में पकड़ा चोंगा में डाला लपेटा और ग्राहक बिना हिल हुज्जत किये धर लिया ।
विनिमय होता था हमने अनमोल और ईश्वरीय विनिमय देखा, कम कभी हुआ ही नहीं, ईश्वर की कृपा रही होगी मधुकर पर कि 2 किलो, चार किलो कि एक पाव में कभी अंतर नहीं आया ,,, 
जिसने जो सामान दिया उसके बदले उसे मिला ।
चिरौंजी, गुल्ली, महुआ, बैचांदी कुछ और वनोपज रहे
तखरी ईश्वर की भरोसा आपस का अनमोल*** विनिमय

मेरे छत्तीसगढ़ की विवाह परम्परा में भी **** विनिमय
जिस घर में बेटी ब्याही गई ........
उसी घर से बदले में बेटी मांग ली गई बहु के रूप में
सबकी अपनी दृढ़ मान्यता जिसका सम्मान किया जाता है
कोई इसे अशुद्ध लेन देन कहे ...उनका स्वागत ...
मेरी समझ में यह विनिमय अति दृढ़ और सम्मानजनक
जहाँ रिश्तों की बुनावट जुलाहा पक्षी (बया) के घोंसले जैसा.... धूप छाँव, बरसात पानी,अंधड़ सभी समान
इतना खूबसूरत ताना बाना कि हवा का कोई झोंका नहीं
बड़े से बड़ा तूफान भी इसे कभी डाल से अलग नहीं कर पाया हमने देखा है बरसों बरस इसकी नियति ...
विनिमय बराबरी की है कभी तखरी अंसतुलित नहीं होता
न नियत डोलता न कभी सामंजस्य की कमी देखी 
सुख-दुख समभाव में कट जाता है 
इस विनिमय में भी छेद नहीं छेदा देखने को मिला 
किंतु सनेही स्वजन बेहतरीन तुरपाई कर देते हैं ।
बीते समय की एक नहीं अनेकानेक घटनाएं है।

बदलते परिवेश में सभी आदर्श , परम्परा, रीति रिवाज, नए स्वरूप में हैं सबका स्वागत ।

बस यूं ही बैठे-ठाले
16 मार्च 2024
एक पुरानी लाइन याद आ गई

मैं रिश्तों को जीता हूँ  ,,,, मैं रिश्तों में जीता हूँ।
मैं रिसतों में जीता हूँ ..... मैं रिसतों को जीता हूँ ।।

रिश्ते झेल नहीं पाओगे तो सांसों का थम जाना स्वाभाविक है ।
सांसें चाहे अपने स्वजन की थमें या हमारी थम जाएं ।

जीवन में चारों पुरुषार्थों में प्रथम पुरुषार्थ का सदैव सम्मान करें ।
आप यदि मोक्ष चाहते हैं तो,  अन्यथा हमारी हैसियत बिना अर्थ के 
उन लोगों के सामने जो हमारे ही अधीन हमारे ही हाथों में होते हैं , गली के खसुआये कुत्ते की तरह होती है, 
एक उम्र के बाद अपनी जगह बनाने के लिए दृढ़ता पूर्वक निर्णय लें
बीती बातें, हैसियत, लेन देन सम्बन्ध आएंगे आड़े.... !
थोड़ा भूलें थोड़ा आड़ लें और कर जाएं थोड़ी मनमानी
कर लें थोड़ी सी धूर्तता......
अन्यथा आप बैठे रह जाएंगे खरताल बजाते और साथ के लोग
आपको  बहैसियत बामुलाहिजा बैकुफ घोषित कर देंगे ।

कौन क्या सोचता है थोड़ा भूलना सीखिए...
आप राम बनें या कृष्ण या बन जाएं बुद्ध संग मीरा....
मैं आपको आलोचना से पाट दूंगा, 
जबकि मैं हूँ ही आपसे...

नियति के पार कुछ भी नहीं 
यदि आपको लगे कि उचित है तो अपने स्वजन की चलती सांसों की डोर को काटने में न हिचकें

न हम..... कर्ता हैं .....न कारण 

निर्णय न ले सकें अपने पुत्र के हाथों को जीवन रक्षार्थ कटवाना तो
हाथ न बढ़ाये उसके पालन पोषण में ...न ही उसके संवर्द्धन में
जरूरी नहीं आपका निर्णय युगों तक याद रखा जाए
किंतु मनमानी तो कदापि नहीं, चाहे आपकी या स्वजन की ...

बस यूं ही बैठे-ठाले
18 मार्च 2024
@#% ...बहदा...@#%

परबत ले उतरत बिन लगाम के पानी के धार गंगा कस....
टोरत, फोरत , एईठत, रमजत, कूदत, फांदत, अपन मऊज म...
उतरथे ऊपर ले तरी त बोहाके ले जाथे ...संग म सब्बो जिनिस ल 
नई देखय नवा, रद्दा, नवा डहर, ओई ह बनाथे नवा रद्दा...
ओकर बेग ल अपने ह  नई थामे सकिस ओई ह गंगा आय
बहदा .....जेकर बेग ओकरे मन ले आर पार रेंग देथे

भागवत कथा,बेद, पुरान म सुनेन राजा सगर के नाती भगीरथ ह एक गोड़ म ठाड़ होके करिस जप तप त आइस गंगा ह....
गंगा कहिस जा तोर तप ह मन ल मोह डारिस ... जा...
भगीरथ मैं आँहा तोर पुरखा मन के तरन-तारन बर ...
फेर देख ले मोर बेग ल कोनो नई थामहे सकिस त...
झन कहिबे ए दे सब्बो ल बोहवाके ले गईस...देख ले ...
सुन ले...गुन ले... 
भगीरथ करिस बिनती आशुतोष महाराज के ....
अवघड़ दानी महादेव जी जटा ल छरिया दिस फेर बाँधिस त घूमर घूमर रहिगे गंगा जटा म कई बछर... सब गरब सटक गे...
बड़ मान मनव्वल म... बड़ केलऊली म ... लटपट ..लट ल छोरिस
पाइस थोकन मुँहड़ा पुरके बर ...मगन होगे गंगा
गंगा पाईस रद्दा मांगे म त फेर निकलिस त घलो टोरत फोरत...
 जे नरवा, झोरकी, नदिया जा मिलिस ओकर म बनगे गंगा ....

*** बहदा ***  एक ठन तिरिया के सुभाव आय ?

जे ह बोहाथे गंगा कस  उफनत, रेलत, सकेलत, पानी संग कचरा, कूटा, गाजा, मईल, पथरा, माटी, बन, कुसा, सबके संग धरे...
फेर थिरावत बनारस आउ प्रयाग म करत तरपन प्रानी के...

जेकर भाग परिस नहा डारिस ....बुड़ बुड़ के
आउ जेकर भाग ले छुटिस ते ओई म सेरागे

फेर तिरिया बनगे कभू बंजर बहदा त ???
निघिरघिन्न हो जाथे काय देखे सोंचे घलाऊ म किसकिस
नई सुहावय संग म रेंगाई ह कोन उतरही ओमा फदके बर
अपने कस बना देथे ...
बड़ किस किस गारी आय महतारी बर ?

सुरता आथे कवि के बानी...
प्रभु मोरे अवगुन चित न धरो
एक नदिया एक नार कहावत, मैलोहि नीर भरो
जब मिलके दोउ एक बरन भये सुरसरि नाम परो
प्रभु मोरे ......

फेर कभू
बस यूं ही बैठे-ठाले
19 मार्च 2024
बहुत मुश्किल है वक़्त को हाथों में थाम लेना
फिसल जाता है रेत की मानिंद हाथों से
फिसलते चले जातें हैं इस दरम्यान रिश्ते
और हम बेबस खुली आँखों से देखते रहते हैं

कुछ न कर पाना ....कितना आकुल कर देता है?
युग द्वापर हो वा त्रेता या कलयुग ....

बस यूं ही बैठे-ठाले
22 मार्च 2024

Tuesday 27 February 2024

***** लुवाठ *****


" ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय ,,

कबीर के ई दोहा ह छत्तीसगढ़ी बर कहे हे कस लागथे
भले ही हमन कही देथन कि
कोस कोस म बानी बदलय, चार कोस म पानी ।।
फेर नता-गोता के मुं ले निकरिस गोठ आउ झरगे अमरित

ए देखा हमर नता संग हमर कहा सुनी ....
फेर मन म गुन देखा एकर मिठास आउ गरूआपन

१ लूवाठ निपोर काय करत हस ?
गांव म एके उमर के नोनी ह एक झन दूसर करा पूछिस
२ काय लुवाठ लाये हस ग
बड़का दाई ह नाती ल कहिस चेराये रमकेरिया ल बजार ले
धर लाइस त 
३ काय लूवाठ कर डारबो  ई रदबद रदबद पानी म
मोटियारी टूरि ह अपन मया करईया टुरा ल कहत हे 
४ लुवाठ लाबे कुछु मिलहि त न 
बेटा कुपेचहा बेर म समान लाये जाहि त महतारी के गोठ
५ काय लूवाठ बलाबे ओ मन ल
बर बिहाव म नता रिस्ता ल नेंवता देहे बेर म महतारी आउ काकी फूफू के सियानी
६ फेर लूवाठ आय दाई अईसनहा पहुना हर 
घर म माथा पीरा असकट करईया पहुना पहि बर 
७ काय लूवाठ ले जाबोन सोझे आय जाय बर तो हवय
लकठा के गांव घर जिंहा गईस आउ आइस तत्का बेर

एहि किसिम के कई गोठ बात सुने बर घेरी बेरी मिलथे
मोर छत्तीसगढ़ी आउ छत्तीसगढ़ के माटी म सावन के जइसे फुसफुसाथे पानी गमक जाथे गली खोर
बस इही बतर म निकरिस गोठ आउ मन हदर जाथे 
परदेश घलो म लक्कर लऊहा छत्तीसगढ़ ल छुए बर
मोर छत्तीसगढ़ बोली कहव के भाखा गुर कस बड़ गुरतुर 
कोन काकर करा, कईसनहा ,कोन मेर, कतका बेर, काकर बर, कतका कन तान खींच के कहिस .....
बस मिठागे अमरित ले ओपार गुत्तुर.....
आउ दतकी कन होगे तरक-फरक बिख जहर होंगे
आउ भरभरागे ठाड़ धन मिरची कस कई पीढ़ी ले
कस गोई ....के कहई आउ सुनई मंदरस ले जादा मिठ

बबा Ravindra Sisodia  के बच्ची होंगे कैरम खेलत म हमन बड़ खुश हो गयेन अब कईसे खेल सिराही ....फेर मारिस तुकके रानी ल बोजागे गुच्चू म, ओकर संगी घला ल पिलो दिस, रहपट कस परिस ठाड़ खड़े करिया गोंटि अंधमधात गईस गुच्चू म फेर सारे गुच्चू ह उछर दिस
त बबा कहिस दुनो अंठा ल तनेर के "अब धर लुवाठ ल ,,

काय लूवाठ लिखे, तहिं लुवाठ गुन आउ सुन
हमर कुछु लुवाठ मगज म नई खुसरिस

( मोर महतारी के छां छोटे बहिनी सरिता बईठे हे अपन संगी ऋषि संग गोठे गोठ म बात उसलगे त लिख-पोंछ देखें )

13 जनवरी 2024 दिन मंगलवार

***** मेरखू *****


गरोंसा खेत म अंकरस के नांगर फंदाथे जेठ म
तिंवरा, बटूरा, अंकरी लुवा जाथे तेकर बाद राम जी ।
ओल नई आवय हप कन आउ खरकगे त पुर गे ।
उजिर तला के खाल्हे होलहा खेत म हर साल बाउग म 
बदल बदल के बोवाइस कभू बादशाह भोग, लुचाई, तुलसी मंजरी, गुरमटीया, बोहिता, आउ दुबराज घलो ।
करगहा खेत म बोवाइस नांग केसर के पलटू, सुलटू
हर बरिस मटासी खार के टिकरा म जल्दी ओनार देंवय करहेनी ल । आउ डोंड़संहुँ टिकरा म राहेर तिल ल ।
भर्री ल बंचाके राखय बर्रे बर, चारेच दिन के रखवारी लागय भाजी के पोठात ले फेर गरूआ के तरुआ घलो छिला जाथे खाये म । बोएँ बर परथे कोदो कुटकी ल नई जामय लमेरा अंकरी कस अरसी घलो ह ।

तईहा जम्मो फसल ह रहिस सरग के भरोसा
मालिक बरसा दिस त होगे खाये पिये बर नहीं त परगे अंकाल, आजकाल गांव के रद्दा बनगे नहर... बोहागे चारों मुड़ा गंगा कस धार पानी, एक एकड़ म लुवत हे 30 बोरा आउ जुन्ना बेरा म एक गाड़ा होंगे त बड़े किसान आय ।

 आजकाल आ गे किसिम किसिम के धन कुट्टी  मसीन 
पहिली मलरहीन संग आवय चमकुलिया कोनरहीन
कई पईंत ले ढेंकी के मूसर म खोवत ठेंसा जावय हाथ ह
ढेंकी चलत हे चूईं चूईं ढकर ढिकिर बहुरिया मंगन हवय
पटउन्हा के कड़ी म ओरमे बाँख के डोरी ल डेरी जेवनी अदला बदली करत गोड़ आउ हाथ घलो ल फेर गोड़ चलत हे डेरी जेवनी लुहकी मारत ।
संगे संग चलत हे परोसी घर के चारी ...आउ ए दे चूक गे
ठेंसागे थोथना आउ मुड़ी संग हाथ कोनरहीन के  होगे कलदप देखा- देखा बन्धागे रोचन हाथ म ।

सोझे म नई कंहय ए ल अन्न कुंआरी
ढेंकी म कूटा के देंह के मांस ल हेरके मिठा जाथे 
अन्न कुंआरी के देंह के सब्बो जिनिस के महत्तम हवय
भूंसा निकलगे ते ह डरागे कौड़ा म बनगे पलपला
हम तो बड़ खाये हन पलपला के भूंजाय कांदा कुसा, पताल, गोंदली, ढुलेना कांदा, और लाल सादा कांदा

सूपा म फुनागे कौंढ़ा, बलही गाय के कोटना म डरागे, 
ए बरिस काय होगे कूटत म चाउर टूट गे , कनकी निकलगे
फेर दुबराज के चाउर बोएँ म महकिस ते अलग, छटकत, कूटत चुरत संग पसिया घलो चार घर के जात ले गमकगे
रिसदीहिन भौजी के हाथ के चीला होवय के चुनी के अंगाकर मरिसा क... के भौंता के दाना परे गुर संग सरग के फर कस मिठा जाथे संग होगे बलही गाय के घी का कहने , दाऊ बड़े ददा तो अंगाकर ल मिरचा आउ लसुन के  चटनी संग सुसुआ सुसुआ के नाक बोहात ले रपेट थे ।

मलरहीन आउ कोनरहीन सकेल के चल दिन सब्बो ल
सकेल के टुकना बोरी म ठेस के ,,, परे रहिगे एक ठन दौरी म मुसुआ लेण्डी संग चाउर के बाँहचन .....
माताराम ल देखें बुता करत अकबका गयें
थोरकन रिस म कहें 
काय करत हस ओ तोर जांगर टोरे बिन मन नई माढ़य
कुछु नो हय बाबू चाउर ल निमारत हव ग
माताराम ए म काबर थकत हस ओ
आउ ए ह काय आय 
बाबू ए ह बड़ महत्तम के जिनिस *** मेरखू *** आय
ऐ ह तोरे जात के जिनिस आय ग  मेरखू ददा मेरखू
तहूँ माताराम मुड़ पिरोत हस डार दे गरूआ ल खाहि
मुसुआ लेण्डी ल बिन के काय परमारथ कर डारबे ओ
नो हय बाबू मेरखू ह अकारथ
आ बीने लाग फेर देख के नकुआ ल झन टोरबे
देखें धान के बीज ल ओकर आधा झरे फोकला संग
चाउर के लाल लाल खर्री नई निकरे रहिस
ढेंकी म बने गत के नई कुटाय रहिस ।
फेर एकदम आरुग चाउर के दाना सोंगर-मोंगर 
नई टूटे हे ओखर टुंड़ी .....
माताराम संग बीनें 1,00,000 दाना *** मेरखू ***
ई ही सईघो चाउर चढीस लखनेश्वर मंदिर खरौद म

नई मिठावय मेरखू कतको कन छर ले 
इही किसिम के मनषे घलो मन ओहि बंश के आय फेर जे ह चढ़थे भगवान के माथा म ....मिठावय के झन मिठाय ।
ओई हर आय ......मेरखू
सब्बो ओई फेर ***** मेरखू ***** सबले अलग 
बने चुराये बर परथे, ठाड़ रही जाथे, पेट के मसकत ले खा दे त पेट पिरि हो जाथे ।।

सुनें बबा Ravindra Sisodia  करा आउ गुनें गुरु
Rahul Kumar Singh  संग पछिन निमारके ए दे
सब्बो बड़े मन ल पैलगी आउ संगी मन ल राम राम
बसंत पंचमी के दिन महतारी सरस्वती के चरण बन्दना
13 फरवरी 2024

*** कसरहा ???


सुंदरलाल उपाध्याय जी मुलमुला बखरी के पंडित जी
सादा नीलम के धोती तेमा नील आउ कलफ लगे 
सादा लट्ठा के बण्डी तेकर जेब म शेर छाप बीड़ी आउ माखुर धराय मजाल का हवय के कोंहुँ ल हूत कराईस आउ बिन पैलगी ओखर गोड़ उसलगे ।
उपाध्याय जी एक लरी के बाँख के डोरी जांघ म बरय जांघ के रूंवा झर जावय फेर डोरी के नमूना नई बिगड़य ।
बारीक काम बुता के बड़ शौखिन पंडित जी आज ५० बछर के गाँथे मांचा मथुरा दाई के ओरसारी म हवय ।
फेर बढ़ईकम के घलो धनित्तर आय जेकर घर के बने के सांईत धरागे त खपरा के छवात ले उपाध्याय जी के बीड़ी ओकरे आंट म सुलगीस आउ बुझाईस ।
हमर बट्टू ददा ओकर चिलम गंठवईया संगी रहिस 
कभू-कभू उपाध्याय महाराज एक सांस म चिलम ल सुरक देवय, जीवन घसिया नई सुरके पावय त कंझा जावय ।
फेर गांठय गांजा बनावय बुच के गोली चिलम दगाये बर

इही चिलम के धुंआ के मया म बट्टू बबा के गुंडी के घर छवाइस , धनी कका बार नवापारा के जंगल ले डोहारे रहिस सरई के मुड़का मियार आउ कर्रा के कंडेरी
चमचम ले बनिस घर लकरी के आउ लिखाय देखे रहें हिंदी म मालिक बट्टू सिंह मुलमुला, बढ़ाई ननकी राम कश्यप साज सज्जा की कलाकारी सुंदर लाल उपाध्याय
मुलमुला बखरी के छाँ म महाराज के भरे पूरे घर .....

महाराज के जुलुवा दिखय पटईल, राऊत, कुर्मी, घसिया, भैना, तेली, गोंड़, धोबी, केंवट, सतनामी, सुरुजबंशी के अशीष म सब बर पुर जावय गोरस देत घानी ।
उपाध्याय जी गाय गोरु के बड़ शौखिन आउ दूध के धनित्तर ...तेकर खातिर बारों महीना आठों काल १२ सेर दूध बिहनियां मंझनियाँ कौड़ा म चुरत रहय ।
हमर देखत म मुलमुला गांव के कोंहुँ लईका दूध के सेतिर भुखन नई सुतीस, कतको बेर संकरी खटखटवाके गोरस मांग लिस पंडित जी के दुवारी ले । कातिक राम राउत इही खातिर अपन बरवाही के गोरस घलो ल छोड़ दय ।
बिहनियां संझा भर मंझनियाँ कभू कोई महतारी खाली चरु, गिलास, लोटा देहरी ले नई लहुटीस, कौड़ा म चुरत दूध साढ़ी संग देहे म नजर नई टेढ़वा होइस ।
सबके ओली म धराय रहय धान ..के कुछु ओनारी.. खूंटी के टँगाय सूपा म माढीस जिनिस आउ भर गे लोटा चरु।
जे नई लाय सकिस जिनिस ते ह पटक दिस दु बींड़ा कांदी
इही खातिर न महाराज के ढेरा थिरकिस न अशीष ।लईका, सियान, बहुरिया, डोकरी दाई सब गोड़ छुवय ।
हर बछर सबले आखिरी म महाराज के खरही मिंजावय ।
खरही म टँगाय चिरई खाये के पट्टी ल गुड़ेरिया फोकल 
डारय त दौंरी फंदाय जेठ म ।

सन अड़तालीस म परे रहिस दुकाल.....
देवउठनी एकादशी के बिहान दिन खमखमाय रहिस गुड़ी 
घांघडा लगे गाड़ी बईला ले कोसीर के मनराखन गऊरहा जी उतरीन, छै फुटिया तडंग जवान गौंहा डोमी कस लकलकावत देंह सबके पैलगी जोहर झोंकिस आउ उपाध्याय जी घलो ल अपन पैलगी कहिस ।
गुंडी घर म बनगे च.. आगे माखुर बीड़ी.. फेर सब एक दूसर के मुँ देखत के आखिर मनराखन महाराज कईसे ई भर बिहनहा काय काम बर ..काकर करा.. आये हांवय ।
च गांजा चोंगी माखुर होए के आखिर म मनराखन महाराज के संग आय मर्दनिया ह अपन आये के हिसाब ल बताइस के उपाध्याय जी के बड़े बाबू बर बिहाव के सोर लेके आय हवन तूं अपन बचन ल बताता तइसनहा....
बस सनसनागे गुंडी । बखरी के चार सियान के आगू म होगे बचन बद्ध दुनों महाराज । फुटगे नरियर होगे वाक़दान गांव भर परगे सोर दलहा कस आगी बगरगे चारों मुंड़ा  माड़गे बिहाव महाराज के बड़े दाऊ के ।।

रामनवमी के लगन म होंगे बिहाव , उतरगे डोला,
नवा बहुरिया अमागे कुरिया म ...........
फेर मनखे मन के अवई थोरे थिरकिस नई थिरकिस पहुना
घर म । नवा भीतरहिन आगे महाराज घलो ठमण्डी होगे 
गाय गोरु के देख रेख के अपेच होइस फेर मांढ़गे ।

नवा महराजिन अपन संग म धर लाइन रूप आउ गुन....
सुग्घर कद काठी संग कन्हीया के जात ले करिया चुन्दी
बड़े बड़े गटारन कस ऑंखि, चिक्कन गाल, सुताई कस फरकत  ओंठ, चाक्कर माथा , बिछी कस टेढ़वा भौं तेमा गोल लाल टिकली कुल देखत म महराजिन साकसात दुर्गा माई कस लऊक जावय ।।
ओईच बिहनियां, ओई सांझ, ओई लईका ओईच पहुना पहि कुछु म अदला बदली नई होइस जस के तस.....।

जस के तस दूध के लेन देन सुरु होगे, ई घानी अब संकरी ल खड़बड़वाये बर परे लागिस , अभो घलो धान, ओनारी
आवय फेर दूध ढ़रईया हाथ संग आँखि बदलगे हो राम...
सूपा म गिराय ओली के जिनिस आउ लोटा चरु म दूध
फेर कभू कभार महराजिन के अपन मन के हँसाई...
मने मन म बिन गोठ के गोठ बुड़बुड़ाई आउ एकेच घरी म बेर ..कुबेर छटक जावय आँखि .........
हांस घला देवय महराजिन अपने अपन..........
अब घर अवईया...जवईया ... मन झझके बर धर लिन ।
पहिली लईका पिचका कोंहुँ मन दूध लेहे चल देवय ।
अब मनषे मन देहरी खुन्दे ल झझके बर धर लिन ।

हमर कोसीरहीन बड़े दाई के उदिम घलो बड़ अकारथ रहिस, कतको बेर कुबेर आँखि छँटकार के हांसय ते एक कति, आधा रात के ठाकुर घाट म नहाय चल देवय ।
नहा के आवत बेरा म कोंहुँ ल देख के हौंला के पानी ल झरर्स ले डहर म डार देवय, कोकरो देह म परय के कोंहुँ भिजय का लेना देना ।।। कातिक के महीना म अकेल्ला बर घाट चल देवय नहाय उहें मगन हांसे बुड़ बड़ाये  म ।
रोज मुड़ धो देवय आउ फटकार फटकार के आगू पीछू ऐंड़हा बेड़हा चुन्दी ल झर्रा देवय । ओकर नहावत ले ठाकुर घाट ओकरेच आय ......काकर पुरखारत के पंछी तिर घलो कोई चांटी मांछि डोल जावय ।

संजोग कहा के भाग घटत गईस होनी.......
साल भर के भीतरी पठऊनी के लहुटे के बाद कोला के फरत मुनगा के पेड़ ठाढ़ सुखागे, कोला के पैरावट म आधा रात अपन मन के आगि लगगे ।।
दुबर ब दु अषाढ़ होइस के नहीं राम जानय
फेर लागिस के करेला लिम के पेड़ म चढ़गे
राम जानय का सच क्या लबारी हरेली तिहार के रात उपाध्याय जी के घर के दुवारी म लपलपावत दिया देखिन
बड़े बिहनियां उपाध्याय जी के नाती खैत्ता होगे ।
हमर खोखरहीन दाई कहय कसरहा हो गईस बाबू
ओकरे लईका ल ओकरे झाँक परगे
नई जागीस मसान ह नई बलाय सकिस रिक्षीन ल
लच्छनपुरहिन के लईका चार दिन परे रहिस अल्लर
घेरी बेरी चमक जावय गीगीआवय बइगा आइस होम धूप फेरिस त माढ़ीस गां के मन कहय मुठ मारे रहिस के बान
*?????** कसरहा **???? होगे मंतरा ह ।।

उलटिस बान ह त ओकरे लईका ह फंद जाथे ओकरे मंतरा म ,बड़ अलकर हो जाथे फेर एला साधे म ।।

सुने म आथे हरेली तिहार म जागथे मसान 
आउ उल्टिस बान त .... हो जाथे ***** ????

माघ शुक्ल पाख अष्टमी 
शनिचर १७ / ०२ / २०२४