गुरुकुल ५

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Tuesday 11 September 2012

विक्रम और वेताल 4


राजा विक्रम ने जैसे ही
सिहासन बत्तीसी को छुआ
वेताल ने कहा
राजन आज नहीं
आज आपके लिये हॉट सीट है

किसी भी प्रश्न के उत्तर पर
मन मांगी मुराद
सभी ऑप्शन हैं
फोन अ' फ्रेंड
डबल डिप
बुला लो एक्सपर्ट
या करो ऑडिएंस पोल

राजन स्मरण रखना
यह जीवन और मरण का उत्तर है
किसी चलचित्र का कैसेट नहीं
जिसे रिवाइंड कर लो
फारवर्ड कर डालो
रिवर्स कर फिर बजा डालो
कोई ऑप्शन नहीं
प्ले और ऑफ़

राजन चिंतन नहीं
ये तुम्हारा धीरज है?
या मज़बूरी तुम्हारी?
वा नियति हम सबकी?
जहाँ हम सब मूक दर्शक?
आज घड़ी की सुई भी थम गई है?

गीता का उपदेश मत सुनाना
जो हुआ अच्छा हुआ
जो होगा अच्छा होगा
तुम जानते हो पुत्र शोक?
पिता का आहत हृदय?
शरीर का पञ्चभूत में मिलना?

राजन मौन तोड़ो
तर्क नहीं उत्तर
व्यथित मन शांत कैसे हो?
पिता शोकमुक्त कैसे हो?
बहन हँसे कैसे?
दादी के आंसू कौन पोछेगा?
माँ दिया कब जलायेगी?
परिवार कभी हँस पायेगा?

10.09.2012
बी.एस.पाबला भाईजी को समर्पित
बाबू गुरप्रीत सिंह की याद में

20 comments:

  1. यथार्थ की भूमि पर लिखा मार्मिक अभिव्यक्ति..

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  2. व्यथित मन शांत कैसे हो?
    पिता शोकमुक्त कैसे हो?
    बहन हँसे कैसे?
    दादी के आंसू कौन पोछेगा?
    माँ दीया कब जलायेगी?
    परिवार कभी हंस पायेगा?

    पावला जी,के दुखी परिवार को समर्पित रचना,,,,,,के लिये आभार रमाकांत जी,,,,,,

    RECENT POST - मेरे सपनो का भारत

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  3. हृदय विदारक. निःशब्‍द ही नहीं, भावशून्‍य कर देने वाली पंक्तियां.

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  4. वाह रमाकांत जी ......मर्म को छू गयी आपकी रचना ....

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  5. मर्मस्पर्शी..... अत्यंत दुखद घटना .....

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  6. http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_12.html

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  7. गीता का उपदेश मत सुनाना
    जो हुआ अच्छा हुआ
    जो होगा अच्छा होगा
    तुम जानते हो पुत्र शोक?
    पिता का आहत हृदय?
    शरीर का पञ्चभूत में मिलना?

    क्या कहूँ ... कर दो मेरे टुकड़े,मैं शब्दहीन हूँ ...

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  8. मार्मिक रचना..बहुत प्रभावशाली कथ्य !

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  9. बहुत मार्मिक प्रस्तुति

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  10. अपनों की पीड़ा अपने ही समझ सकते हैं....

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  11. मुझे मालूम है वृक्ष की पीर राजन
    जिसकी शाख उससे जुदा हो गयी।
    तलाशता रहा इश्तेहार देकर उसे मैं
    ज्यूँ सांसे मेरी गुमशुदा हो गयी ॥

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  12. मार्मिक पर कठोर और अस्वीकार्य सत्य

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  13. अत्यंत मार्मिक कविता।

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  14. मर्म्स्पर्शीय ...
    अंदर तक कुछ जैसे हिला गई ... इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं विक्रमादित्य के पास ...

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  15. मन को छूते शब्‍द ...

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  16. इस कविता को पहली पंक्ति से पढते हुए बस उन्हीं का स्मरण हो आया था और तभी अंतिम पंक्तियों के उपरांत आपने कह भी दिया.. एक ऐसा पल और एक ऐसी परिस्थिति जहाँ सारे ओप्शन होने पर भी जवाब ढूंढें नहीं मिलता!!
    चुप हूँ मैं भी!!

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  17. सुन्दर कविता. गुरुप्रीत जी को श्रद्धांजलि सहित ..............

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  18. ऐसा मौन व्यथा जो कभी टूटे ही न..

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  19. पाबला परिवार के लिए संवेदना| ईश्वर से प्रार्थना कि पाबला जी और परिवार को धैर्य व शक्ति प्रदान करें|

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