तुमने हर बार मुझे पुकारा
क्षितिजा-क्षितिजा-क्षितिजा
हम मिले
जमीं और आसमां की तरह
तुमने कब याद रखा?
मैं मिली तुमसे
पहाड़ों के सर्पिल मोड़ पर
चांदनी की रोशनी में
ख़ुशी में झूमते
ग़मों से दूर गाफिल
संग-संग मुस्कुराते
काले घने बादलों के बीच
कह दिया तुमने
क्षितिजा
तब भी मुझे
हम कभी मिले
समंदर की लहरों पर
सूरज की किरणों संग
इन्द्रधनुष बन
सुबह की ओस में
भीगी संध्या में
भीनी पुरवईया में
हर बार तुमने
पुकारा मुझे
क्षितिजा-क्षितिजा-क्षितिजा
मैं जीना चाहती हूँ
हर जनम
क्षितिज दर क्षितिज
तुम्हारी ही क्षितिजा बन
23.08.1998
चित्र फ्लिकर से साभार
क्षितिजा-क्षितिजा-क्षितिजा
हम मिले
जमीं और आसमां की तरह
तुमने कब याद रखा?
मैं मिली तुमसे
पहाड़ों के सर्पिल मोड़ पर
चांदनी की रोशनी में
ख़ुशी में झूमते
ग़मों से दूर गाफिल
संग-संग मुस्कुराते
काले घने बादलों के बीच
कह दिया तुमने
क्षितिजा
तब भी मुझे
हम कभी मिले
समंदर की लहरों पर
सूरज की किरणों संग
इन्द्रधनुष बन
सुबह की ओस में
भीगी संध्या में
भीनी पुरवईया में
हर बार तुमने
पुकारा मुझे
क्षितिजा-क्षितिजा-क्षितिजा
मैं जीना चाहती हूँ
हर जनम
क्षितिज दर क्षितिज
तुम्हारी ही क्षितिजा बन
23.08.1998
चित्र फ्लिकर से साभार
क्षितिज -जहाँ धरती और आकाश जुड़ते है और क्षितिजा ? वह जो धरती को आकाश से मिला कर सारी दूरियां मिटा दे
ReplyDelete. इस तरह कि धरती ,न धरती रहे .न आकाश,आकाश
अति सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव ......
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एहसास...
सादर
अनु
किन्तु क्षितिज सी दूर रही है, मुझसे मेरी मधुशाला.
ReplyDeleteसुंदर ||
ReplyDeleteभुत सुंदर भाव और शब्द रचना ...
ReplyDeleteमैं जीना चाहती हूँ
ReplyDeleteहर जनम
क्षितिज दर क्षितिज
तुम्हारी ही क्षितिजा बन
वाह ... बेहतरीन भाव
क्षितिजा.... उसकी बातें तो बड़ी सुन्दर हैं ...भाव भी आकंठ प्यार में डूबे हुए ...क्या वह अपनी बातों जैसी ही प्यारी है ...
ReplyDeleteदिगभ्रमित हो गया हूं.....अभी हालात ये है कि लगता है क्षितिजा से कई बार मिला हूं....पर दिमाग अब भी कह रहा है काहे को मुगालते में हो..मगर दिल है कि मानता ही नहीं....। क्षितिजा को अब क्षितिजा कहूं या न कहूं ये भी समझ नहीं आ रहा।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
सुंदर भाव .
ReplyDeleteवह क्षितिजा - जो भ्रम से परे सत्य है
ReplyDeleteमैं जीना चाहती हूँ
ReplyDeleteहर जनम
क्षितिज दर क्षितिज
तुम्हारी ही क्षितिजा बन....बहुत सुन्दर भाव..
बहुत सुन्दर भाव बेहतरीन प्रस्तुति ........................
ReplyDeleteक्षितिज को देखा इस निगाह से भी..
ReplyDeleteक्षितिज..धरती अम्बर का मिलन..भ्रम ...
बहुत ही खूबसूरत लगी कविता..
अहसासों की बहुत सुन्दर और बेहतरीन अभिव्यक्ति...
ReplyDelete:-)
wah kshitija to kshitija hi lagati hai ,,,,,han bhai aisa lagata hai ki hm kshitij tk pahuchenge jaroor pr jb umr ke padav pr hm kshitij ko dhoodhne nikalate hain to vh abhi bhi utani hi door dikh rahi hai ,,,kahi,,,,kshitij ko chhona kori kalpna nahi ,,,,,,sabit hogi .....fil hal ap jaise mahan kvi ki divy drishti nishchay hi kshitija ko dhoodh nikalegi ....sb kuchh hasne ke liye hai anytha mt lijiyega..
ReplyDeletesundar rachana ke liye sadar abhar,
सुंदर भाव, सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर भाव को सुंदरता के साथ पिरोया है..
ReplyDeleteबहुत खूब सर |
ReplyDeleteक्षितिजा-क्षितिजा-क्षितिजा SSSSSSSSSSSSSS
ReplyDeleteकहाँ हो भई ....:))
ख्यालों में जैसे उड़ रहा हूँ ... क्षितिज़ा को पुकारता पर मेरी क्षितिज़ा जो मरी कल्पना में है ... लाजवाब ...
ReplyDeleteसुन्दर भावों से सजी रचना
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