राजा विक्रम ने जैसे ही
सिहासन बत्तीसी को छुआ
वेताल ने कहा
राजन आज नहीं
आज आपके लिये हॉट सीट है
किसी भी प्रश्न के उत्तर पर
मन मांगी मुराद
सभी ऑप्शन हैं
फोन अ' फ्रेंड
डबल डिप
बुला लो एक्सपर्ट
या करो ऑडिएंस पोल
राजन स्मरण रखना
यह जीवन और मरण का उत्तर है
किसी चलचित्र का कैसेट नहीं
जिसे रिवाइंड कर लो
फारवर्ड कर डालो
रिवर्स कर फिर बजा डालो
कोई ऑप्शन नहीं
प्ले और ऑफ़
राजन चिंतन नहीं
ये तुम्हारा धीरज है?
या मज़बूरी तुम्हारी?
वा नियति हम सबकी?
जहाँ हम सब मूक दर्शक?
आज घड़ी की सुई भी थम गई है?
गीता का उपदेश मत सुनाना
जो हुआ अच्छा हुआ
जो होगा अच्छा होगा
तुम जानते हो पुत्र शोक?
पिता का आहत हृदय?
शरीर का पञ्चभूत में मिलना?
राजन मौन तोड़ो
तर्क नहीं उत्तर
व्यथित मन शांत कैसे हो?
पिता शोकमुक्त कैसे हो?
बहन हँसे कैसे?
दादी के आंसू कौन पोछेगा?
माँ दिया कब जलायेगी?
परिवार कभी हँस पायेगा?
10.09.2012
बी.एस.पाबला भाईजी को समर्पित
बाबू गुरप्रीत सिंह की याद में
यथार्थ की भूमि पर लिखा मार्मिक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteव्यथित मन शांत कैसे हो?
ReplyDeleteपिता शोकमुक्त कैसे हो?
बहन हँसे कैसे?
दादी के आंसू कौन पोछेगा?
माँ दीया कब जलायेगी?
परिवार कभी हंस पायेगा?
पावला जी,के दुखी परिवार को समर्पित रचना,,,,,,के लिये आभार रमाकांत जी,,,,,,
RECENT POST - मेरे सपनो का भारत
हृदय विदारक. निःशब्द ही नहीं, भावशून्य कर देने वाली पंक्तियां.
ReplyDeleteवाह रमाकांत जी ......मर्म को छू गयी आपकी रचना ....
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी..... अत्यंत दुखद घटना .....
ReplyDeletehttp://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_12.html
ReplyDeleteगीता का उपदेश मत सुनाना
ReplyDeleteजो हुआ अच्छा हुआ
जो होगा अच्छा होगा
तुम जानते हो पुत्र शोक?
पिता का आहत हृदय?
शरीर का पञ्चभूत में मिलना?
क्या कहूँ ... कर दो मेरे टुकड़े,मैं शब्दहीन हूँ ...
मार्मिक रचना..बहुत प्रभावशाली कथ्य !
ReplyDeleteबहुत मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteअपनों की पीड़ा अपने ही समझ सकते हैं....
ReplyDeleteमुझे मालूम है वृक्ष की पीर राजन
ReplyDeleteजिसकी शाख उससे जुदा हो गयी।
तलाशता रहा इश्तेहार देकर उसे मैं
ज्यूँ सांसे मेरी गुमशुदा हो गयी ॥
मार्मिक पर कठोर और अस्वीकार्य सत्य
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक कविता।
ReplyDeleteमर्म्स्पर्शीय ...
ReplyDeleteअंदर तक कुछ जैसे हिला गई ... इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं विक्रमादित्य के पास ...
मन को छूते शब्द ...
ReplyDeleteइस कविता को पहली पंक्ति से पढते हुए बस उन्हीं का स्मरण हो आया था और तभी अंतिम पंक्तियों के उपरांत आपने कह भी दिया.. एक ऐसा पल और एक ऐसी परिस्थिति जहाँ सारे ओप्शन होने पर भी जवाब ढूंढें नहीं मिलता!!
ReplyDeleteचुप हूँ मैं भी!!
nice
ReplyDeleteसुन्दर कविता. गुरुप्रीत जी को श्रद्धांजलि सहित ..............
ReplyDeleteऐसा मौन व्यथा जो कभी टूटे ही न..
ReplyDeleteपाबला परिवार के लिए संवेदना| ईश्वर से प्रार्थना कि पाबला जी और परिवार को धैर्य व शक्ति प्रदान करें|
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